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पुस्तक समीक्षा : “ह्वेनसांग की भारत यात्रा” : भाग -1 से 30 तक

Posted on अप्रैल 20, 2020जुलाई 12, 2020

ह्वेनसांग की यात्रा का पहला पड़ाव “ओकीनी” राज्य था। यह स्थान वर्तमान काल में करशर अथवा कर शहर माना जाता है जो संगेज झील के पास है। उस समय यहां 10 संघाराम बने हुए थे जिनमें हीनयान धर्म के अनुयाई दो हजार संन्यासी निवास करते थे। सूत्र,विनय और पुस्तकें भारतवर्ष के समान हैं। यह लोग केवल तीन पुनीत भक्ष्य का सेवन करते हैं जो शाक,अन्न और फल होते हैं। सदा वृद्धि दायक नियम (लघुयान से महायान) की ओर जाने का लक्ष्य रखते हैं।

buddhist stupa afganisthan

वहां से चलकर वह किउची राज्य में आया। उस समय यहां 100 संघाराम थे जिसमें 5000 से अधिक सर्वास्तिवाद संस्था के हीनयान सम्प्रदाय के अनुयाई शिष्य निवास करते थे। उसने लिखा है कि इन लोगों के जीवन पवित्र हैं और यह लोग दूसरे लोगों को धार्मिक जीवन और धार्मिक आचार बनाये रखने के लिए सदा उत्तेजना देते रहते हैं।

ह्वेनसांग ने लिखा है कि इस देश के पूर्वी हद पर एक नगर है जो अब उजाड़ है। इस उजड़े नगर की उत्तर की ओर कोई 40 ली के अंतर पर एक पहाड़ की ढाल पर 2 संघाराम पास पास बने हुए हैं। यहां पर बहुमूल्य धातुओं से सुसज्जित महात्मा बुद्ध की एक मूर्ति है जिसकी कारीगरी मानुषी क्षमता से परे है। पूर्वी संघाराम के गुम्बज पर एक पत्थर पर महात्मा बुद्ध का चरण चिन्ह 1 फुट 8 इंच लम्बा और 8 इंच चौड़ा बना हुआ है। इसी मुख्य नगर के पश्चिमी फाटक के बाहरी स्थान पर सड़क के दाहिनी ओर तथा बांई ओर करीब 90 फुट ऊंची महात्मा बुद्ध की 2 मूर्तियां बनी हुई हैं। इन मूर्तियों के आगे मैदान में बहुत सा स्थान पंचवारषिक महोत्सव किए जाने के लिए नियत है। जिस स्थान पर यह सभा होती है इसके उत्तर- पश्चिम में एक नदी पार कर “ओपीलीना” नामक संघाराम है। इस मंदिर का सभा मंडप बहुत लम्बा- चौड़ा और खुला हुआ है। यहां महात्मा बुद्ध की मूर्ति बहुत सुन्दर है। यहां के साधु अपने धर्म के कट्टर हैं।

सर्वास्तिवाद संस्था बौद्धों की बहुत प्राचीन संस्था है जिसका संबंध हीनयान सम्प्रदाय से है। चीनी लोगों के अनुसार हीनयान सम्प्रदाय संसार के एक भाग अर्थात् संघ या समाज से मुक्त होने की शिक्षा देता है और महायान सम्प्रदाय सम्पूर्ण सांसारिक बंधनों से मुक्त करता है। सर्वास्तिवादी लोग वस्तु की नित्यता स्वीकार करते हैं। यात्रा के अगले क्रम में ह्वेनसांग किउची से 600 ली चलकर पश्चिम जाकर ” पोहलुहकिया” अथवा वाजुका या अक्सू आया। उस समय यहां पर कोई 10 संघाराम थे जिसमें 1000 के लगभग साधु निवास करते थे। यह लोग सर्वास्तिवादी हीनयानी थे। यहां से आगे चलकर वह निउचीक (नुजकंद), चेशी (चाज), फीह्वान (फरगान), सुटुलिस्सेना, सोमोकेन, मिमोहो (मधियान), कीपोटाना ( केवद), काशनिया, होहान, पूहो (वोखारा), फाटी, होलीसीमीकिया (ख्वारजम), किश्वांगना (केश) प्रदेश से होते हुए तामी देश में आया। उस समय तामी में 10 संघाराम थे जिसमें 1000 सन्यासी निवास करते थे। स्तूप और भगवान बुद्ध की मूर्तियां नाना प्रकार के चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध थी। आगे चलकर वह चयीगोहन्या देश में आया जहां उसे 5 संघाराम मिले जिनमें उस समय कुछ संन्यासी रहते थे। उसके बाद वह हूहलोमो (गर्मा) देश में आया यहां उसे 2 संघाराम तथा लगभग 100 संन्यासी मिले। आगे चलकर सुमन (सुमान और कुलाव) देश में दो संघाराम और कुछ संन्यासी मिले। क्योहोन्टोना (कुवादियान) देश में उसे 3 संघाराम और 100 संन्यासी मिले।

इसके आगे बढ़ कर ह्वेनसांग हूशा, खोटलो, क्यूमीटो, फोकियालंग, हिलूसिमकिन रूई जैसे प्रदेशों को पार करता हुआ होलिन (खुल्म) राज्य में आया। यहां उसे 10 संघाराम और 500 संन्यासी मिले। वहां से आगे निकल कर वह पोहो (वलख) प्रदेश में आया। यहां 100 संघाराम थे जिसमें 3000 संन्यासी निवास करते थे। इन सबका सम्बन्ध हीनयान सम्प्रदाय से था। नगर के बाहर दक्षिण- पश्चिम दिशा में नव संघराम नाम का एक स्थान है, यहां पर महात्मा बुद्ध की एक सुन्दर रत्न जड़ित मूर्ति है।संघाराम के भीतर इसी मूर्ति के दक्षिणी भाग में महात्मा बुद्ध के हाथ धोने का पात्र रखा हुआ है। यहीं लगभग एक इंच लम्बा और पौन इंच चौड़ा एक दांत भी महात्मा बुद्ध का है। इसका रंग कुछ पीला पन लिए हुए सफेद और चमकदार है। इसके अतिरिक्त एक झाड़ू भी महात्मा बुद्ध की रखी हुई है। यह कांस की बनी हुई है और लगभग दो फुट लंबी और सात इंच गोल है। इसकी मूठ मे अनेक रत्न जड़े हुए हैं।संघाराम के उत्तर में एक स्तूप है जो 200 फिट ऊंचा है। इसके ऊपर की स्तकारी ऐसी है कि हीरे की बनी हुई मालूम होती है। इसके पास ही कई सौ स्तूप बने हुए हैं। इसके दक्षिण-पश्चिम में एक विहार बना है जिसमें लगभग 100 संन्यासी निवास करते हैं। यहीं पास में एक टेवयी नाम का क़स्बा है जिसमें 30 फुट ऊंचा एक स्तूप है। यह स्तूप सौदागरों ने बनवाया था जिसमें बुद्ध के कुछ बाल और नाखून हैं।

बामियान

ह्वेनसांग ने लिखा है कि भगवान तथागत ने उक्त व्यापारियों के स्तूप बनाने का तरीका पूछने पर कहा, भगवान ने अपने संघातों को चौकोर रूमाल की भांति बिछाकर उत्तरासर्ग रखाऔर फिर साकाक्षिका को। इनके ऊपर अपने भिक्षापात्र को औंधा कर अपने हाथ की लाठी को खड़ा कर दिया । इस तरह पर सब वस्तुओं को रखकर उन लोगों को स्तूप बनाने का तरीका बताया। दोनों आदमियों ने अपने देश को जाकर आज्ञा अनुसार वैसा ही स्तूप निर्माण कराया जैसा कि भगवान ने उनको बतलाया था। बौद्ध धर्म के जो सबसे प्रथम स्तूप बने थे वह यही हैं।

इस कस्बे से 70 ली पश्चिम में एक स्तूप 20 फुट ऊंचा है। यह काश्यप बुद्ध के समय में बना था । वहां से चलकर ह्वेनसांग “जुईमोटो”,हूशीकरन (जुजगान) और टालाकइन (तालीकान) होते हुए कईची (गची या गज) प्रदेश में पहुंचा। जहां उसे 10 संघाराम मिले जिनमें कोई 200 साधुओं निवास करते थे। सभी सर्वास्तिवाद संस्था के हीनयान संप्रदाय से संबंध रखते थे। आगे चलकर ह्वेनसांग फनयन्ना अर्थात् बामियान जो आजकल अफगानिस्तान है वहां पहुंचा। यहां उस समय दस संघाराम और 100 सन्यासी थे । इनका संबंध लोकोत्तर वादी संस्था और हीनयान संप्रदाय से था। यहीं की राजधानी के पूर्वोत्तर में एक पहाड़ था इस पहाड़ की ढाल पर एक पत्थर की मूर्ति भगवान बुद्ध की 140 या 150 फुट ऊंची थी। इसके सब और सुनहरा रंग झलकता था और इसके मूल्यवान आभूषण अपनी चमक से नेत्रों को चौंधिया देते थे

Bamyan Afganisthan
बामयान बुद्ध, बामयान, अफगानिस्तान।

इस स्थान से पूर्व की ओर एक संघाराम से किसी प्राचीन नरेश का बनवाया हुआ है। इस संघाराम के पूर्व में भगवान बुद्ध की एक खड़ी मूर्ति 100 फीट ऊंची किसी धातु की बनी है । नगर के पूर्व 12या 13 ली पर एक संघाराम है जिसमें भगवान बुद्ध की एक लेटी हुई मूर्ति उसी प्रकार की है जिस प्रकार उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था। मूर्ति की लंबाई लगभग 100 फीट है। इस देश का राजा त्रि- रत्नों के लिए अपने राज्य, कोष,स्त्री बच्चे तथा अपने शरीर तक को दान कर देता है। इस लेटी मूर्ति से 200 ली दक्षिण- पश्चिम जाने पर एक संघाराम है जिसमें बुद्ध भगवान का एक दांत है जिसकी लंबाई 5 इंच तथा चौड़ाई 4 इंच के कुछ कम है।

कपिशा

यात्रा के अगले चरण में वह किया पीसी (कपिसा) देश में आया। यहां का राजा क्षत्रिय था तथा त्रिरत्नों को मानने वाला था। प्रत्येक वर्ष वह एक चांदी की मूर्ति 18 फीट ऊंची भगवान बुद्ध की बनवाता था और “मोक्ष महापरिषद” नाम का बड़ा भारी मेला इकट्ठा करके दरिद्र तथा दुखियों को भोजन देता था। विधवा तथा अनाथ बालकों के कष्टों का निवारण करता था। लगभग 100 संघआराम और 6000 संन्यासी इस राज्य में हैं। यह सब लोग महायान संप्रदाय के सेवक हैं। ऊंचे-ऊंचे स्तूप और संघाराम बहुत ऊंचे स्थानों पर बनाए जाते हैं जिससे उनका प्रताप बहुत दूर से और सब ओर से प्रदर्शित होता था। राजधानी के पूर्व तीन या चार ली पर पहाड़ के नीचे उत्तर तरफ एक बड़ा संघाराम लगभग 300 सन्यासियों समेत है। इसका संबंध हीनयान संप्रदाय से है। इस संघाराम में भगवान बुध के मंदिर के पूर्वी द्वार के दक्षिण की ओर महाकालेश्वर राजा की मूर्ति है। इसके उत्तर के पहाड़ी दरों पर पत्थर की कोठियां हैं। इन गुफाओं के पश्चिम में पहाड़ी दर्रे के ऊपर अवलोकितेश्वर बुद्ध की मूर्ति है।

Bodhisattva maitreya, afganisthan

राजधानी के दक्षिण- पूर्व तीस ली की दूरी पर “राहुल” नाम का संघाराम है। इसके समीप 100 फीट ऊंचा एक स्तूप है। राजधानी के पूर्वोत्तर में एक बड़ी नदी के किनारे एक संघाराम है इसमें तथागत भगवान के सिर की अस्थि रखी हुई है। इसका ऊपरी भाग 1 इंच चौड़ा और रंग कुछ पीलापन लिए हुए श्वैत है। इसके अतिरिक्त यहां तथागत भगवान की चोटी भी रखी हुई है जिसका रंग काला दुरंगी है। इस संघाराम के दक्षिण पश्चिम में एक और संघाराम किसी प्राचीन राजा की रानी का बनवाया हुआ था इसमें सोने का मुलम्मा किया हुआ एक स्तूप लगभग 100 फीट ऊंचा था। इस स्तूप की बाबत प्रसिद्ध है इसमें बुद्ध भगवान का लगभग एक सर रखा हुआ है।

नगर के पश्चिम- दक्षिण में एक पहाड़ पीलू सार है । पीलूसार ने भगवान् और उनके 1200 अरहतों को आतिथ्य स्वीकार करने के लिए निमंत्रित किया था। पहाड़ के ऊपर एक ठोस चट्टान का टीला है जिस पर तथागत भगवान ने आत्मा की भेंट को स्वीकार किया था। बाद को अशोक राजा ने उस स्थान पर लगभग 200 फीट ऊंचा स्तूप बनवाया था। यह स्तूप “पीलूसार स्तूप” के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्तूप के उत्तर में एक पहाड़ी गुफा है जहां भगवान तथागत ने अरहतों समेत भोजन प्राप्त किया था। लोगों ने इस स्थान पर संघाराम बनवा दिया जो “खदिर संघाराम” के नाम से प्रसिद्ध है।

-डॉ. राजबहादुर मौर्य,झांसी


 

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7 thoughts on “पुस्तक समीक्षा : “ह्वेनसांग की भारत यात्रा” : भाग -1 से 30 तक”

  1. ปั้มไลค์ कहते हैं:
    जून 28, 2020 को 8:18 पूर्वाह्न पर

    Like!! Thank you for publishing this awesome article.

    प्रतिक्रिया
    1. अनाम कहते हैं:
      जून 30, 2020 को 8:14 अपराह्न पर

      Most welcome

      प्रतिक्रिया
  2. Vishwanath कहते हैं:
    मई 8, 2020 को 10:01 पूर्वाह्न पर

    सिविल सर्विसेस के लिए ये जानकारी बहुत अच्छी है। सर
    नमो बुद्धाय जय भीम

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 8, 2020 को 10:28 पूर्वाह्न पर

      नमो बुद्धाय

      प्रतिक्रिया
  3. अभय राज सिंह कहते हैं:
    अप्रैल 30, 2020 को 5:32 अपराह्न पर

    Sir, ली और संघाराम को संक्षेप में विश्लेषित करने का कष्ट करें।

    प्रतिक्रिया
  4. अभय राज सिंह कहते हैं:
    अप्रैल 30, 2020 को 5:26 अपराह्न पर

    अत्यन्त ज्ञानवर्धक है।

    प्रतिक्रिया
  5. Dhirendra maurya कहते हैं:
    अप्रैल 23, 2020 को 3:30 अपराह्न पर

    सुन्दर

    प्रतिक्रिया

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