- डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी (उत्तर- प्रदेश) भारत । email : drrajbahadurmourya@gmail. Com, website: themahamaya.com
जन्म एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि
दिनांक 27 फ़रवरी, 1962 को ममतामयी मॉं श्रीमती गंगादेवी व पिता श्री प्रेमचंद अग्रवाल के घर, स्वामी बाग आगरा (उत्तर-प्रदेश) में जन्मीं दीपशिखा मित्तल बुंदेलखंड के उच्च शिक्षा जगत की सुपरिचित हस्ती हैं । उनके दादा श्री नारायण दास अग्रवाल दानी प्रकृति के थे तथा मूल रूप से रुड़की के पास सिसौली के रहने वाले थे । ज़मींदार होते हुए भी वह ईश्वर की भक्ति और ध्यान साधना में लीन रहते थे । बाद में उनका परिवार आगरा में आकर बस गया था । झाँसी के बुंदेलखंड महाविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में तीन दशक से अधिक अपनी सेवाएँ प्रदान करने वाली प्रोफ़ेसर मित्तल की विद्वता का लोहा सभी मानते हैं । परन्तु इससे भी अधिक उनकी पहचान उनके स्नेहिल व्यक्तित्व के लिए जानी जाती है । प्रोफ़ेसर दीपशिखा मित्तल की सहजता, सरलता और विनम्रता उनके ज्ञान में घुले- मिले हुए हैं । दिनांक 30 जून, 2024 को बुंदेलखंड कालेज से सेवानिवृत्त होने के बावजूद उनकी स्मृतियाँ हम सब के ज़ेहन में शिद्दत के साथ ज़िंदा हैं । दीपशिखा मित्तल कुल तीन बहनें हैं । बड़ी बहन सरोज मित्तल, बाल मंदिर, मोती डूंगरी, जयपुर, राजस्थान के इंटर कॉलेज से सेवा निवृत्त प्रिंसिपल हैं जबकि उनसे छोटी बहन श्रीमती संतोष मित्तल केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, जयपुर, राजस्थान में संस्कृत की प्रोफ़ेसर रह चुकी हैं और अब सेवा निवृत्त होकर जयपुर में रह रही हैं । एक सामान्य लेकिन शिक्षित माता-पिता ने अपनी बेटियों को बेहतरीन तालीम देकर उन्हें काबिल और नेक इंसान बनाया ।
शिक्षा- दीक्षा
दीपशिखा मित्तल जी की प्राथमिक शिक्षा, 1 से 5 स्वामी बाग हायर सेकेंडरी स्कूल आगरा से सम्पन्न हुई । कक्षा 6 से 10 तक की पढ़ाई उन्होंने मुरारी लाल खत्री गर्ल्स इंटर कॉलेज आगरा से हासिल किया । कक्षा 11 एवं 12 की शिक्षा दीपशिखा जी ने प्रेम विद्यालय गर्ल्स इंटर कॉलेज, दयाल बाग, आगरा से प्राप्त किया । उसके बाग वर्ष 1980 में उच्च शिक्षा के अध्ययन हेतु उन्होंने Women’s Training College आगरा में दाख़िला लिया और स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की । बाद में यही कॉलेज दयाल बाग विश्वविद्यालय बना । औपचारिक शिक्षा पूरी करने के बाद कालान्तर में अपने शोध कार्य के लिए वह सेंट जोन्स कॉलेज, आगरा के परिसर में आ गईं । यहीं से उन्होंने डॉ. एम. ए. शाह के निर्देशन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की । अपने अध्ययन काल में दीपशिखा जी बहुत मेधावी और प्रतिभाशाली विद्यार्थी रही हैं । हमेशा ही वह श्रेष्ठ अंकों के साथ परीक्षा उत्तीर्ण करती थी ।उनकी विषय की समझदारी गहन थी । दीपशिखा मित्तल के ऊपर उनकी मॉं श्रीमती गंगादेवी का विशेष प्रभाव रहा । अपने साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि समय का प्रबन्धन करना, न्यूनतम आवश्यकताओं के साथ जीवन जीना तथा स्थितियों और परिस्थितियों से समायोजन बैठाना उन्होंने अपनी मॉं से सीखा है ।
वैवाहिक जीवन और झाँसी आगमन
दिनांक 12 मई, 1989 की दीपशिखा जी का विवाह जनपद झाँसी के मानिक चौक निवासी श्री अनिल कुमार मित्तल से हो गया और इस प्रकार दीपशिखा अग्रवाल, श्रीमती दीपशिखा मित्तल बनकर झाँसी आ गयीं । चूँकि वह विवाह से पहले ही मनोविज्ञान विषय में डाक्टरेट की उपाधि हासिल कर चुकी थीं इसलिए झाँसी आते ही विवाह के मात्र 5 माह बाद ही अक्टूबर, 1989 में डॉक्टर दीपशिखा मित्तल का चयन अस्थायी तौर पर बुंदेलखंड कालेज के मनोविज्ञान विभाग में अध्यापन के लिए हो गया । दिनांक 4 मार्च, 1991 को वह स्थायी रूप से प्रवक्ता बन गईं और तब से लेकर निरंतर 30 जून, 2024 तक अर्थात् 33 साल, 4 महीने डॉ. दीपशिखा मित्तल ने बुंदेलखंड कालेज को अपनी सेवाएँ प्रदान कीं । कॉलेज में उनकी नियुक्ति के समय मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. गुरु प्यारी प्रकाश थीं । डॉ. दीपशिखा मित्तल के दो बच्चे इंजीनियर विभोर मित्तल तथा इंजीनियर अनादि मित्तल हैं । दिनांक 31 मार्च, 1990 को जन्में विभोर मित्तल आजकल मध्यप्रदेश स्थित ओरछा नगर निगम में इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं जबकि 28 सितम्बर, 1991 को जन्में अनादि मित्तल देश की प्रतिष्ठित भारतीय रेलवे इंजीनियर्स सेवा (आई. आर. एस. ई.) में चयनित होकर देश को अपनी सेवाएँ दे रहे हैं । आजकल वह आगरा डिवीजन में डिविज़नल इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं । दोनों बच्चों की शादी संस्कार भी हो चुका है । दीपशिखा जी की बड़ी बहू अंजली मित्तल बेसिक शिक्षा में अध्यापक है जबकि छोटी बहू निशी मित्तल सिविल सेवा में जाने के लिए प्रयासरत हैं ।
प्राध्यापकीय योगदान और उपलब्धियाँ
अपने तीन दशक से अधिक के सक्रिय प्राध्यापकीय जीवन में डॉ. दीपशिखा मित्तल जी ने शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण तथा उन्नयन के प्रत्येक क्षेत्र में अपना प्रचुर योगदान दिया है । उनके निर्देशन में मनोविज्ञान जैसे दुरूह और कठिन विषय में 5 छात्रों, गिरीश श्रीवास्तव, ज्योति पालीवाल, धीरेंद्र कुमार गुप्ता, मनीष कुमार मिश्रा तथा सुरभि निगम ने सफलतापूर्वक अपना शोध कार्य पूर्ण करके पी एच-डी. की उपाधि प्राप्त किया है । सम्प्रति दो छात्र, आशीष कुमार शुक्ला तथा शशांक श्रीवास्तव दीपशिखा मित्तल जी के निर्देशन में अपना शोध कार्य कर रहे हैं । इसके अलावा डॉ. दीपशिखा मित्तल जी ने 15 से अधिक शोध- पत्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हैं । लगभग 30 से अधिक कांफ्रेंस और वर्कशॉप में भी उन्होंने हिस्सा लिया है । दयाल बाग यूनिवर्सिटी, आगरा के विभिन्न अकादमिक कार्यों में भी आपने अपनी सेवाएँ दी हैं । झाँसी के बिपिन बिहारी डिग्री कॉलेज परिसर में स्थित “इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी” सेंटर में भी दीपशिखा मित्तल जी ने बतौर विषय विशेषज्ञ अपनी सेवाएँ दी हैं । वह वहाँ सह- संयोजिका भी रही हैं । डॉ. दीपशिखा मित्तल की पहचान एक लेखक के रूप में भी रही है । वर्ष 2002 में उनकी एक पुस्तक “बाल विकास एवं पारिवारिक सम्बन्ध” प्रकाशित हुई । वर्ष 2015 में उनकी दूसरी पुस्तक “इंसाफ़ मॉंगती बुंदेली धरा” का प्रकाशन हुआ । यह पुस्तक बुंदेलखंड के अकादमिक जगत में खासी चर्चित रही । मनोविज्ञान विषय के अंतर्गत सामाजिक मनोविज्ञान पर उनकी विशेषज्ञता थी । बाल विकास एवं सामाजिक समस्याएँ, दीपशिखा मित्तल जी के शोध का मुख्य क्षेत्र रहा है ।
सामाजिक अवदान
सामाजिक मनोविज्ञान और बाल विकास तथा उनके विविध आयामों व समस्याओं को जानने तथा समझने के लिए डॉ. दीपशिखा मित्तल जी ने देश के विभिन्न हिस्सों का भ्रमण किया । इसमें जम्मू और कश्मीर से लेकर केरला, बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मद्रास, कोलकाता, गुजरात, गोवा और राजस्थान प्रमुख हैं । राजस्थान में जोधपुर और जैसलमेर, गुजरात में बारडोली, महाराष्ट्र में मुम्बई, कर्नाटक में तिरुपति तथा मध्य प्रदेश के भोपाल और उज्जैन जैसे क्षेत्रों में जाकर उन्होंने क्षेत्र अध्ययन किया । बेशक इससे उनकी समझदारी में इज़ाफ़ा हुआ । सामाजिक क्षेत्रों में दीपशिखा मित्तल जी का योगदान क़ाबिले तारीफ़ है । भारत विकास परिषद से जुड़कर उन्होंने नि: स्वार्थ भाव से सामाजिक जन जागरूकता और स्किल डेवलपमेंट के लिए खूब काम किया है । सामाजिक कार्यों को करने की प्रेरणा उन्हें अपने पति श्री अनिल कुमार मित्तल जी से मिली । अनिल कुमार मित्तल जी झाँसी शहर के प्रतिष्ठित समाजसेवियों में रहे हैं । जीवन में उन्होंने देना ही सीखा था । कोई भी व्यक्ति जो उनसे एक बार मिल लेता वह उन्हें कभी भुला नहीं सकता था । यहीं झाँसी के सदर बाज़ार स्थित पोस्ट ऑफिस कार्यालय में वह एक ज़िम्मेदार पद पर कार्यरत थे । अचानक और बहुत ही संक्षिप्त बीमारी के बाद दिनांक 22 अगस्त, 2012 को अनिल कुमार मित्तल जी का देहांत हो गया । डॉ. दीपशिखा मित्तल के लिए यह एक असहनीय दर्द था ।
सादगी और सरलता
अपने कार्य के प्रति समर्पित, बेनज़ीर व्यक्तित्व, सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध, शुद्ध शाकाहारी, समय के अनुशासन का पालन करने वाली प्रोफ़ेसर दीपशिखा मित्तल का जीवन सादगी और सरलता की मिसाल है । दिखावेपन से कोसों दूर दीपशिखा जी का मानना है कि विद्यार्थियों को कठिन परिश्रम के लिए तैयार रहना चाहिए । निरंतर अपना खुद का मूल्यांकन करते रहना चाहिए । अपनी महत्वाकांक्षा और अपनी क्षमता के बीच हमेशा संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिए । सोशल मीडिया पर कम समय खर्च कर पुस्तकों के अध्ययन को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करना चाहिए । यदि आप किसी समस्या को लेकर परेशान या तनाव में हैं तो अपने नज़दीकी और हित चाहने वाले लोगों से खुल कर बात करनी चाहिए । डॉ. दीपशिखा जी के झाँसी आगमन के समय यानी 1991 से ही अब तक उनसे पारिवारिक और सामाजिक तथा प्राध्यापकीय जीवन से बहुत ही करीबी से जुड़ी हुई कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर नूतन अग्रवाल कहती हैं कि, “डॉ. दीपशिखा मित्तल बहुत ही शांत, मृदुभाषी और सकारात्मक सोच रखने वाली व्यक्तित्व हैं । एक शिक्षक के रूप में वह समय की बहुत पाबंद रही हैं । अपने काम के प्रति उनका लगाव बेमिसाल रहा है । किसी से संक्षिप्त परिचय को भी वह आत्मीयता में बदल देती हैं । शिक्षा और विद्यार्थियों के प्रति आज भी उनका लगाव बेनज़ीर है ।”
सन् 1994 से 2024 तक लगभग तीन दशक तक उनसे पारिवारिक और शैक्षिक सम्बन्ध रखने व हार्दिक जुड़ाव रखने वाली बुंदेलखंड कालेज के संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर ज्योति वर्मा कहती हैं कि “दीपशिखा मित्तल एक सरल और सुलझी हुई महिला हैं । उनका जीवन साफ़- सुथरा है । उन्होंने कभी किसी का विरोध नहीं किया और न ही किसी की बुराई किया । अपने परिवार और बच्चों के प्रति हमेशा वह प्रतिबद्ध रहीं । विवादित प्रश्नों और मुद्दों पर उन्होंने हमेशा संतुलन बनाए रखा ।” वर्ष 2012 से निरंतर मनोविज्ञान विभाग में दीपशिखा मित्तल के साथ अध्यापन कार्य कर रहीं और वर्तमान में उसी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर स्मिता जायसवाल कहती हैं कि, “प्रोफ़ेसर दीपशिखा मित्तल एक उत्कृष्ट व्यक्तित्व की धनी, विद्वान प्राध्यापक तथा मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण व्यक्तित्व हैं । उनका जीवन बहुत सरल और सहज है । उनके व्यवहार में आत्मीयता की मिठास और सहयोगी सहकर्मी का भाव हमेशा रहा है ।” वर्ष 2015 से 2017 तक बुंदेलखंड महाविद्यालय के छात्र रहे तथा वर्तमान समय में राजनीति विज्ञान के शोध छात्रों तथा एस्ट्रोलॉजर विशाल शर्मा आज भी याद करते हुए बताते हैं कि “जब मैं अपनी पढ़ाई के बीच दबाव महसूस करता तथा मानसिक रूप से उलझन में होता तब- तब दीपशिखा मैम हमेशा मुझे निराशा से उबारती तथा आगे बढ़ने की सकारात्मक सोच प्रदान करती थी । उनकी दी हुई सीख आज भी मेरे काम आती है ।”
उपसंहार
भारतीय समाज में नारी का जीवन हमेशा चुनौती पूर्ण रहा है । अपने अस्तित्व की पहचान, अपनी अस्मिता की दावेदारी और श्रम के गौरव की रक्षा के लिए हमेशा उसे संघर्ष करना पड़ा है । अपने जन्म से लेकर युवावस्था, अपनी शिक्षा और अपने ख़्वाबों को पूरा करने के लिए नारी को हर मुक़ाम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा है । बावजूद इसके महिलाओं ने अपनी समझदारी, संवेदना, हौसले और जुझारूपन के आवेग से समाज को अचम्भित किया है । दुनिया का इतिहास यह बताता है कि औरत ने मॉं, बेटी, पत्नी, सहयोगिनी के रूप में प्रत्येक संघर्ष में हिस्सा लिया है । सामाजिक बदलाव, सत्ता परिवर्तन और क्रांति के हर दौर में वह झूम कर सड़कों पर उतरी है । वैयक्तिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन के हर क्षेत्र में हर क़दम पर नारी सबसे ज़्यादा ख़तरे उठाती और तकलीफ़ें सहती दिखती हैं । औरत न सिर्फ़ अपनी बल्कि मानवता मुक्ति की लड़ाई तब भी लड़ती है जब उसके अपने साथ छोड़ देते हैं क्योंकि उसका संघर्ष एक परिपूर्ण मनुष्य बनने और बने रहने का संघर्ष है । यद्यपि प्रोफ़ेसर दीपशिखा मित्तल का जीवन एक सामान्य नारी का जीवन है बावजूद इसके एक परम्परागत समाज से निकलकर प्रोफ़ेसर बनने तक का उनका जीवन अवश्य ही चुनौतीपूर्ण रहा होगा । उन सबके लिए यह प्रेरणादायी है जो चुनौतियों का सामना कर रहे हैं तथा जीवन में आगे बढ़कर समाज और राष्ट्र की सेवा करना चाहते हैं ।
मैं अपने आराध्य, अपने ईश्वर, अपने रहबर से दीपशिखा मित्तल जी के लिए, उनके बच्चों तथा उन्हें प्यार करने वालों की सलामती और ख़ुशहाली की दुआ करता हूँ ।
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Is biography ko padhne ke bad mujhe ab yah mahsus hua ki is Aditya Charitra ke vishay mein Keval ek hi paksh Rakha gaya hai aur vah bhi adhura yah to anek pakshon ki dhani hai na keval apne vyavsayik jivan mein balki Apne parivarik jivan mein bhi meri mausi ke dwara anek mahatvpurn bhumika hai Ada ki gai jisse bakhan karna sambhav nahin hai Maurya ji aapke dwara meri mausi ke vyaktitva ko pannon per ukarne ki ek sarahniy koshish ki gai jiske liye main aapka बहुत-बहुत aabhari hun
Thank you Ankit bhai for your valuable comment and perspective