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तथागत भिक्षु सेवक संघ परिवार : विचार से संस्था तक

तथागत भिक्षु सेवक संघ परिवार : विचार से संस्था तक

Posted on जनवरी 26, 2025जनवरी 26, 2025

अपनी बात :

वर्ष 1990 में श्री शिवनारायण सिंह विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, दीनशाह गौरा, गदागंज जनपद रायबरेली जैसे ग्रामीण परिवेश से इंटर मीडिएट की परीक्षा पास करने के पश्चात् उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए मैं (राजबहादुर मौर्य) जनपद रायबरेली (उत्तर- प्रदेश) के मुख्यालय पर स्थित फ़ीरोज़ गाँधी कालेज में दाख़िला लेने के लिए आया । काफ़ी प्रयासों के बाद जनपद रायबरेली के इस प्रतिष्ठित कॉलेज में मुझे प्रवेश मिला । उस समय कानपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध यह कॉलेज अपनी गुणात्मक शिक्षा और बेहतरीन प्रबंधन व अनुशासन के लिए जाना जाता था । यहीं पर रहकर स्नातक (बी.ए.) तथा स्नातकोत्तर (एम. ए.) की मैंने शिक्षा प्राप्त किया । इसी परिसर में रहकर मैंने पी.एच. – डी. की उपाधि प्राप्त किया । 1997-98 में एक वर्ष दयानंद बछरावां डिग्री कॉलेज, बछरावां, रायबरेली में अध्यापन कार्य करने के बाद, अगले लगभग 10 वर्षों तक इसी शिक्षा के मंदिर में मैंने सान्ध्यकालीन कक्षाओं में अध्यापन कार्य किया । अपने अध्ययन काल में ही वर्ष 1992 में, मैं वैवाहिक बंधन में बंध गया । वर्ष 1994 में बेटी तथा 1996 में बेटे ने जन्म लिया । यद्यपि मैं अपने अध्ययन काल के प्रारंभ से ही जनपद मुख्यालय पर किराए पर रहकर काम कर रहा था लेकिन पत्नी श्रीमती कमलेश मौर्या और दोनों बच्चे बेटी सपना मौर्या तथा बेटा संकेत सौरभ वर्ष 2000 में रहने के लिए रायबरेली मुख्यालय पर आ गए । मेरा पहला आवास, 1991-1993 तक मकान नम्बर B-410 इंदिरा नगर था जबकि दूसरा ठिकाना 1994-2000 तक अमर नगर में था । वर्ष 2000 में बच्चों और परिवार के साथ मैंने जवाहर विहार कॉलोनी MIG- 113 में अपना निवास स्थान बनाया । यहाँ पर मैं 2010 तक रहा । इस तरह अध्ययन, अध्यापन, पारिवारिक जीवन और सामाजिक आन्दोलन साथ- साथ चलते रहे ।

डॉ. रामबहादुर वर्मा का सानिध्य

फ़ीरोज़ गांधी कॉलेज में प्रवेश लेने के साथ ही मैं तत्कालीन राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. रामबहादुर वर्मा जी के सम्पर्क में आ गया । उन्हीं के मार्गदर्शन में मैंने अपनी उच्च शिक्षा की पढ़ाई पूरी की और उन्हीं के निर्देशन में पी एच- डी. की उपाधि हासिल किया । लगभग प्रतिदिन उनके आवास पर मेरा आना- जाना होता था । इसलिए उनके यहाँ आनेवाले सभी लोगों से मैं धीरे-धीरे परिचित होने लगा । इन्हीं में से एक आर. पी. राम थे । वह आई. टी. आई. रायबरेली में नौकरी करते थे । डॉ. आर. बी. वर्मा के घर जब भी आर. पी. राम आते थे तो उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा वर्मा कहती थीं कि देखो तुम्हारे राम जी आए हैं । मैं बड़ी कौतुहल से उन्हें देखता था । वह अपने साथ कुछ पत्रिकाएँ और पुस्तकें भी लाते थे और डॉक्टर वर्मा से दलित साहित्य तथा डॉक्टर बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी के बारे में चर्चा करते थे । मैं शांति पूर्वक उक्त चर्चा को सुनता रहता था । कुछ दिनों बाद मालूम हुआ कि आर पी राम एक पुस्तक भंडार भी चलाते हैं । यद्यपि डॉ. रामबहादुर वर्मा वामपंथी आन्दोलन से जुड़े थे लेकिन वह विद्वानों का आदर करते थे तथा दलित साहित्य को लेकर काफ़ी गंभीर थे । वह मूल रूप से जनपद फैजाबाद (अब अयोध्या) के रहने वाले थे लेकिन रायबरेली आकर उन्होंने यहीं पर बसकर इसी जनपद को अपनी कर्मभूमि बना लिया । लगभग चालीस वर्षों तक डॉ. वर्मा ने फीरोज गांधी कॉलेज में रहकर अपनी सेवाएँ दीं ।

बुद्ध छात्र महासभा

इसी समय जनपद रायबरेली में मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी समाज के अंदर भी जन जागृति के कार्यक्रम चल रहे थे । अहियारायपुर निवासी श्री गजाधर प्रसाद मौर्य, बस्तेपुर निवासी श्री लालता प्रसाद मौर्य, रूस्तमपुर निवासी श्री सूर्य प्रसाद मौर्य, नेताजी के नाम से प्रसिद्ध रहे श्री माता प्रसाद मौर्य, बस्तेपुर निवासी श्री रामेश्वर प्रसाद मौर्य, एडवोकेट श्री रामदेव मौर्य, श्री राम गुलाम मौर्य, श्री गणेश प्रसाद मौर्य, एडवोकेट श्री रामबक्श मौर्य इस आन्दोलन की अगुवाई कर रहे थे । मै धीरे-धीरे इन कार्यक्रमों के सम्पर्क में भी आया । यहाँ सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य तथा सम्राट अशोक की विशेष चर्चा होती थी । कालांतर में इन चर्चाओं में भगवान बुद्ध की भी चर्चा शामिल हो गई । इस प्रकार मैं दलित साहित्य तथा अम्बेडकर परिचर्चा व बुद्ध धर्म के नज़दीक आने लगा । वर्ष 1994 में अपने अध्ययन काल में ही मैंने अपने जैसे फ़ीरोज़ गाँधी कॉलेज के अन्य छात्रों को खोज लिया । इनमें राजेश कुमार मौर्य व रमाकांत मौर्य , निवासी बेला टेकई, राजेश कुमार मौर्य, निवासी ग्राम उत्तर पारा, राजेश कुमार मौर्य, निवासी गदागंज, आशाराम मौर्य, निवासी सलोन, सुलखिया पुर निवासी रवि कुमार मौर्य, समदा निवासी सुरेश कुमार मौर्य, दीनशाह गौरा निवासी सूर्यभान मौर्य, बल्ला निवासी राजेंद्र कुमार मौर्य, मुलिहामऊ निवासी धर्मेश कुमार मौर्य, घुरवारा निवासी लाला मौर्य, उत्तर पारा निवासी वीरेन्द्र कुमार मौर्य, सुरेश कुमार मौर्य, निवासी जमालपुर, महेश चन्द्र मौर्य, निवासी समदा, आनन्द कुमार मौर्य निवासी पिछवारा, ओमप्रकाश मौर्य निवासी कचौंदा, रामू मौर्य निवासी काँसों, विनोद कुमार मौर्य निवासी धर्मापुर कैली, प्रमुख थे । सब ने मिलकर इसी वर्ष जनपद रायबरेली में “बुद्ध छात्र महासभा” बनायी । बेला टेकई निवासी राजेश कुमार मौर्य को महासभा का अध्यक्ष तथा खागीपुर सडवा निवासी मिथिलेश कुमार मौर्य को महामंत्री चुना गया । मुझे महासभा के संस्थापक और संरक्षक का दायित्व दिया गया । महासभा ने छात्रों के बीच अच्छा काम किया । छात्रों की छोटी- छोटी समस्याओं को हल करने में वह सबकी मदद करती थी । महासभा की कॉलेज कैम्पस में ही बैठक होती थी । विभिन्न विषयों पर चर्चा और परिचर्चा होती । इससे छात्रों में आत्मविश्वास के साथ सार्वजनिक रूप से बोलने की क्षमता विकसित होने लगी । महामंत्री मिथिलेश कुमार मौर्य बैठक से पूर्व, बैठक का एजेंडा तैयार कर लाते थे । उपस्थिति तथा बैठक के दौरान लिए गए निर्णयों को लिपिबद्ध कर लेते थे । मुझे याद आता है कि इन्हीं बैठकों में महासभा ने एक पत्रिका निकालने का प्रस्ताव पारित किया था । यद्यपि वह पत्रिका प्रकाशित तो नहीं हो पाई परन्तु उसके लिए लेख माँग लिए गए थे । वर्ष 1996 में कुशवाहा महासभा के द्वारा सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य सेवा संस्थान जनपद रायबरेली में आयोजित मेधावी छात्र/ छात्रा अभिनन्दन समारोह में बुद्ध छात्र महासभा की सक्रिय भागीदारी रही है ।

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प्राध्यापकीय जीवन की शुरुआत

वर्ष 1996 में परास्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं फ़ीरोज़ गाँधी कॉलेज से बाहर आ गया तथा अध्यापन कार्य करने हेतु 1996-1997 में दयानन्द बछरावां कॉलेज, बछरावां जनपद रायबरेली चला गया । इसी दौरान डॉ. रामबहादुर वर्मा जी के निर्देशन में मेरा नामांकन शोध कार्य हेतु कानपुर विश्वविद्यालय में हो गया । मैंने अध्यापन कार्य छोड़कर अपना शोध कार्य करने का निर्णय लिया तथा 1997-1998 में उक्त कार्य में लगा रहा । इस कारण बुद्ध छात्र महासभा का कार्य और संचालन बाधित हुआ । यद्यपि महासभा कार्य तो करती रही लेकिन उसमें गति का अभाव रहा । धीरे-धीरे महासभा के प्रारम्भिक पदाधिकारी पढ़ कर कॉलेज से निकल गए और नए लोग जुड़ नहीं पाए । वर्ष 1999 -2000 में फ़ीरोज़ गांधी कॉलेज में सांध्यकालीन कक्षाओं में अध्यापन करने के लिए मेरा चयन हो गया और मैं अपनी मातृ संस्था में प्राध्यापक बन गया । अध्यापन के पहले वर्ष में तो मैं पूर्ण रूप से अध्यापन कार्य में लगा रहा । जो थोड़ा बहुत समय बचता वह सामाजिक सरोकारों को निभाने में लगा । इसी के साथ अपना कैरियर भी संवारा ।

पत्नी और बच्चों का मुख्यालय आना

मई 2000 में पत्नी और बच्चे भी पढ़ाई करने के उद्देश्य से जनपद रायबरेली के मुख्यालय पर आ गए । अब परिवार के साथ रहने के कारण मुझे खाना बनाने से मुक्ति मिल गई और मैं थोड़ा निश्चिंत हो गया । पुनः मेरा ध्यान मिशनरी कार्यों की ओर लगने लगा । अब आर. पी. राम के बुक स्टाल, इंदिरा नगर पर मेरा आना जाना हो गया । दिन प्रतिदिन मैं दलित साहित्य का अध्येता बनता चला गया । मुझे धीरे-धीरे अपनी अज्ञानता का बोध होने लगा । इसी बीच आर. पी. राम ने रायबरेली में अखिल भारतीय दलित साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया । दो दिवसीय इस कार्यक्रम में पूरे समय उपस्थित रहकर मैंने दलित साहित्य के देश के जाने माने वक्ताओं को सुना । जितना भी अब तक दलित आन्दोलन एवं दलित साहित्य के बारे में मैंने पढ़ा, विद्वान वक्ताओं को सुना, उससे मेरे मन में इस धारा को और अधिक जानने की इच्छा जागृत हुई । कैसे मैं लोगों को बुलाऊँ ? कहॉं कार्यक्रम का आयोजन किया जाए ? कौन सहयोग देगा ? किस मंच का प्रयोग किया जाए ? वक्ता कौन होंगे ? जैसे प्रश्न मेरे मन मस्तिष्क में घूमने लगे ।

सन्तोष कुमार, लवकुश मौर्य, अमरदीप मौर्य, शिवाकान्त कुशवाहा, नारेन्द्र कुशवाहा, जितेंद्र कुमार मौर्य से मुलाक़ात

चूँकि फ़ीरोज़ गांधी कॉलेज जनपद रायबरेली का सबसे बड़ा और लोकप्रिय कॉलेज था इसलिए यहाँ पर जनपद के सभी क्षेत्रों के प्रतिभाशाली विद्यार्थी पढ़ने आते हैं । इसी बीच फ़ीरोज़ गांधी कॉलेज में जनपद के मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी समाज के कुछ प्रतिभाशाली छात्र मुझे मिले । इसमें सलोन क्षेत्र से सन्तोष कुमार, लवकुश मौर्य,(एम . ए.), ऊंचाहार से अमरदीप और संतोष कुमार, (एम ए) तिलोई से शिवाकान्त कुशवाहा तथा इन्द्रेश प्रताप कुशवाहा, (बी एस सी) खीरों से नारेन्द्र कुशवाहा तथा पोठई से जितेन्द्र कुमार मौर्य प्रमुख थे । इन सभी से सम्पर्क का दायरा बढ़ता गया । मैंने अपने मन की बात इन सभी से बताई और आपसी चर्चा परिचर्चा का क्रम प्रारम्भ हुआ । इनमें अधिकतर छात्र परास्नातक स्तर के थे इसलिए बातचीत का नतीजा काफ़ी सकारात्मक रहा । इसी बीच फ़ीरोज़ गांधी कॉलेज में ही अर्थशास्त्र विभाग के प्रवक्ता डॉ. प्रशांत प्रसाद जी से मैने व्यक्तिगत तौर पर संपर्क कर आन्दोलन के बारे में चर्चा किया । चूँकि वह पहले से ही दलित आन्दोलन के प्रबल पक्षधर थे इसलिए उन्होंने मेरे उत्साह को बढ़ाया तथा यथासंभव सहायता देने का आश्वासन दिया । यह बात नवम्बर- दिसम्बर, 2002 की है ।

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तथागत संदेश : “हे मानव तू मिल कर बोल, बुद्धं शरणं गच्छामि” का आयोजन

दिनांक 5 फ़रवरी, 2003 को अचानक दिमाग़ में यह बात आई कि कल यानी 6 फ़रवरी को बसंत पंचमी है । क्यों न इस बार बसंत पंचमी कुछ नए ढंग से मनाई जाए । सोचते- सोचते यह विचार आया कि बसंत पंचमी के इस पर्व को तथागत संदेश, “हे मानव तू मिलकर बोल बुद्धं शरणं गच्छामि” के रूप में मनाया जाए । चूँकि अगले दिन यानी 6 फ़रवरी दिन बृहस्पतिवार को कॉलेज में छुट्टी थी… फिर कैसे इस विचार को अंजाम दिया जाए । लेकिन यह भी एक संयोग था कि अगले दिन यानी बसंत पंचमी को मैंने एम. ए. का अतिरिक्त क्लास पढ़ाने के लिए लड़कों को बुलाया था । दिमाग़ में यह बात रह- रह कर उठ रही थी कि अगर बच्चे न आये तो यह कार्यक्रम कैसे होगा ? बहरहाल मैंने तब भी मन ही मन तय कर लिया कि कार्यक्रम करूँगा चाहे कम ही लोग रहें । खैर अगले दिन यानी 6 फ़रवरी को निश्चित समय ठीक 11 बजे मैं कॉलेज पहुँच गया कुल 7 बच्चे पढ़ने आए । मैंने क्लास पढ़ाया । क्लास 1:15 पर समाप्त हुआ । आशा के मुताबिक़ सन्तोष कुमार, लवकुश मौर्य, उपेन्द्र कुमार और शिव राकेश मौर्य क्लास पढ़ने आए । क्लास समाप्त होते ही इन चारों छात्रों को मैंने बुलाया और कहा कि आप लोग मेरे साथ चलो । बच्चों ने पूछा लेकिन चलना कहाँ है और काम क्या है ? मैंने कहा कि चलना तो सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य सेवा संस्थान है और काम वहीं बताऊंगा । सब लोग वहीं पर पहुँचिए । मैं, लवकुश और संतोष को अपनी मोटरसाइकिल से ले गया । सब लोग संस्थान पर पहुँचे । संस्थान पर दो लड़के और मिले, एक नारेन्द्र कुशवाहा और दूसरे सुनील कुमार मौर्य । नरेन्द्र कुशवाहा बी. एस सी प्रथम वर्ष तथा सुनील कुमार कक्षा 12 के विद्यार्थी थे ।मैंने बच्चों से कहा कि वह तथागत भगवान बुद्ध की प्रतिमा बाहर निकालें तथा उसे साफ़ करें । तुरन्त प्रतिमा निकालकर साफ़ की गई और उसे वहाँ लगें हैंड पंप के सहारे खड़ी की गई । क्योंकि प्रतिमा बड़ी थी इसलिए उसे खड़ी करने में कोई समस्या नहीं हुई । मैंने कहा कि आज बसंत पंचमी है और हम लोग इसे आज तथागत संदेश के रूप में मनाएँगे । तथागत संदेश पर परिचर्चा प्रारम्भ हो गई । सबसे पहले सुनील कुमार ने अपनी बात रखी, फिर नारेन्द्र कुशवाहा इसके बाद शिवराकेश तत्पश्चात् लवकुश मौर्य ने अपने विचार रखे । इसके बाद संतोष कुमार ने अपने विचार व्यक्त किए । अन्त में मैंने भगवान तथागत बुद्ध के संदेशों पर विस्तृत चर्चा की । कार्यक्रम का संचालन उपेन्द्र कुमार मौर्य ने किया ।

वहीं पर बैठे-बैठे यह बात तय की गई कि भगवान तथागत बुद्ध के संदेशों पर आधारित एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जाए । लेकिन मुश्किल सवाल यह है कि कार्यक्रम का प्रारूप क्या होगा, कैसे आयोजित एवं प्रायोजित किया जाए, स्थान कौन सा चुना जाए । बहरहाल, यह बात यहीं पर समाप्त हो गई क्योंकि आगे की कोई भी तस्वीर साफ़ नहीं हो पा रही थी । फिर वहीं नारेन्द्र कुशवाहा को भेजकर चाय और समोसा मँगवाया गया । न्यूज़ भेजने की बात आयी तो संस्थान का पैड नहीं था । सुनील को ज़िम्मेदारी दी गई कि वह संस्थान के अध्यक्ष श्री गजाधर प्रसाद मौर्य जी के घर अहियारायपुर जाकर पैड ले आएँ । सुनील तत्काल जाकर पैड ले आए । इस बीच मैंने रफ़ न्यूज़ बना दी । इधर नारेन्द्र चाय और समोसा लेकर आ गए । सभी ने नाश्ता किया । मैंने न्यूज़ को पैड पर फ़ेयर रूप में लिखा । फिर न्यूज़ भेजने की ज़िम्मेदारी संतोष को दी गई । वह फ़ोटो कॉपी करके न्यूज़ को सभी अख़बारों को पहुँचा आए । अगले दिन कई समाचार पत्रों में वह समाचार प्रकाशित हो गया । हौसले बुलंद हुए ।

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तैयारी नए आरोहण की

कार्यक्रम सकुशल सम्पन्न होने और दैनिक समाचार पत्रों में ख़बर प्रकाशित होने के बाद मैंने इस कार्यक्रम पर विचार शुरू किया । मैंने संतोष कुमार से कहा कि तुम मेरे साथ प्रतिदिन क्लास करने के बाद रहोगे । संतोष ने लगातार सक्रिय रूप से सहयोग किया । इस बीच लगातार सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य सेवा संस्थान पर आना- जाना बना रहा । हम लोगों ने वहाँ रहने वाले नारेन्द्र कुशवाहा और सुनील कुमार को मानसिक रूप से तैयार किया । फिर संतोष से कहा कि वह अन्य लड़कों से सम्पर्क कर कार्यक्रम के बारे में बताएँ । यह काम भी संतोष ने मेहनत करके बख़ूबी निभाया । प्रमुख रूप से जिन छात्रों से सम्पर्क हुआ उनमें शिवाकांत कुशवाहा, इन्द्रेश प्रताप कुशवाहा, बिन्दुसार मौर्य तथा अशोक कुमार मौर्य थे ।फिर हम सभी लोगों ने लगातार बैठकर कार्यक्रम की पूरी रूपरेखा तय किया । फिर बारी आई तारीख़ तय करने की । क्योंकि बच्चों की परीक्षाएं 12 मार्च से प्रारम्भ होकर मई के अन्त तक चलनी थी । इसके बाद शादी ब्याह व बारिश का मौसम आ जाता है । यह तय किया गया कि कार्यक्रम इधर यानी 12 मार्च से पहले किया जाए । बच्चों को परीक्षा की तैयारी के लिहाज़ से इसमें पर्याप्त समय देना आवश्यक था । एक मार्च को शिवरात्रि का पर्व था । 2,3,4 और 5 मार्च को जिला मुख्यालय में मानस संत सम्मेलन आयोजित हो रहा था । इन सब बातों पर विचार विमर्श करके मैंने मन ही मन तय किया कि फ़रवरी महीने की आख़िरी की कोई तारीख़ तय किया जाए । लेकिन यह बात भी थी कि बोलने वाले वक्ताओं से पहले ही सम्पर्क किया जाए क्योंकि बहुत कुछ उनके ख़ाली होने पर भी निर्भर करता है । बहरहाल मैंने सम्भावित तारीख़ 27 एवं 28 फ़रवरी तय किया । यह बात फ़रवरी महीने की 9 तारीख़ की है ।

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प्रतिष्ठित समाजसेवी और मिशनरी लोगों से मुलाक़ातें

अगले दिन यानी 10 फ़रवरी को मैंने फ़ीरोज़ गांधी कॉलेज, रायबरेली में अर्थशास्त्र विभाग के प्रवक्ता प्रशान्त प्रसाद जी से सम्पर्क किया और उन्हें कार्यक्रम की रूपरेखा तथा सम्भावित तारीख़ के बारे में बताया । प्रशांत जी ने मेरी सम्भावित तारीख़ पर अपनी सहमति दे दी । बस मैंने तय किया कि अब तारीख़ 27, 28 फ़रवरी ही रखी जाएगी । यह बात मैंने संतोष को बताई और यह कहा कि वह अन्य बच्चों से सम्पर्क करके चर्चा कर इस तारीख़ को अंतिम रूप दें । अन्ततः रूपरेखा और तारीख़ तय हो गई । फिर वक्ताओं से सम्पर्क करना मैंने स्वयं शुरू किया और छात्रों से संतोष ने सम्पर्क करना शुरू किया । मैंने वक्ता तय किया । प्रशांत जी ने मुझे लगातार इस काम में सहयोग दिया । उन्होंने अपने मामा श्यामलाल धनुर्धारी जो बाराबंकी जिले के रहने वाले तथा लखनऊ हाईकोर्ट में अधिवक्ता थे उनका कार्यक्रम तय करवाया । इधर मैंने लखनऊ निवासी इंजीनियर रामनरेश मौर्य से टेलीफोन पर संपर्क किया और उनसे पूरी बात बताई । उन्होंने बिना किसी औपचारिकता के अपनी सहमति दे दी । इस तरह मेरे पास तीन मज़बूत और विद्वान वक्ता हो गए । फिर आर पी राम जी से संपर्क हुआ तो उन्होंने अपनी सहमति दे दी । अगले दिन यानी 15 फ़रवरी को रूस्तमपुर इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य श्री सूर्य प्रसाद मौर्य जी से सम्पर्क हो गया । मैंने उन्हें भी कार्यक्रम के बारे में बताया और बोलने का आग्रह किया । उन्होंने भी अपनी स्वीकृति दे दी । इसी दिन संतोष के साथ जाकर मैंने जिला पंचायत रायबरेली के अध्यक्ष श्री गणेश प्रसाद मौर्य जी से मुलाक़ात किया । कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए उन्होंने अपनी सहमति दे दी । अब रह गई बात समापन करने की । यह तय किया गया कि समापन ऊँचाहार टाउन एरिया की चेयरमैन श्रीमती सुशीला मौर्या से कराया जाए । यह ज़िम्मेदारी कि उनका कार्यक्रम लगाया जाए, अमरदीप मौर्य और संतोष कुमार को दी गई । उनकी भी सहमति मिल गई । एक और मुश्किल सा लग रहा सवाल (वक्ताओं) लगभग हल हो गया । जो शेष कमी थी उसे आर पी राम ने सक्रिय सहयोग देकर पूरा कर दिया ।

व्यवस्थापक कमेटी का गठन

हम लड़कों के लिए किसी बड़े कार्यक्रम का आयोजन करना चुनौतीपूर्ण काम था वह भी तब जब सभी लोग अनुभवहीन और धनहीन थे । हमारे पास केवल कुछ करने का जुनून और विजन था । हम लोगों ने मिल बैठकर तय किया कि कार्यक्रम के लिए एक व्यवस्थापक कमेटी बना दिया जाए । सन्तोष कुमार, उपेन्द्र कुमार, स्वामी शरण वर्मा, नरेन्द्र कुशवाहा और सुनील कुमार मौर्य के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया । व्यवस्थापक कमेटी ने अपना काम पूरी मेहनत, लगन और निष्ठा के साथ प्रारम्भ किया । बाद में इस कमेटी में दो छात्रों बिंदुसार मौर्य और शिवाकांत कुशवाहा को और शामिल किया गया । काम शुरू हुआ । व्यवस्थापक कमेटी ने अपनी मीटिंग बुलाई । व्यवस्था कैसे किया जाए इस पर चर्चा की गई । क्योंकि खर्च भी आना था। कार्यक्रम दो दिवसीय होना था इसलिए रुकने की, खाने की, सोने की व्यवस्था करनी थी । मैंने व्यवस्थापक कमेटी से कहा कि वह पैसे के रूप में किसी बाहरी व्यक्ति से सहयोग न ले केवल जो सामान लगे वह मँगवा कर इकट्ठा किया जाए, लेकिन ध्यान रहे कि किसी भी व्यक्ति से अधिक सामान भी न लिया जाए । व्यवस्थापक कमेटी ने पूरे अनुशासन के साथ उक्त दिशा निर्देशों का पालन किया । सामान इकट्ठा किया गया । नक़द खर्च के लिए तय किया गया कि जो प्रशिक्षण शिविर होगा उसमें दो तरीक़े से लोगों को आमंत्रित किया जाए । एक, डेलीगेट दूसरे श्रोता । डेलीगेटों की संख्या 30 से 40 के बीच रखी जाए जिनसे 30-30 रूपए डेलीगेशन शुल्क लिया जाए । श्रोताओं से किसी प्रकार का एक भी पैसा न लिया जाए, यह बात तय की गई ।

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तैयारी और चार्ट राइटिंग

बस फिर पूरे उल्लास और हर्ष के माहौल में तैयारी चलती रही । शिवाकांत, इन्द्रेश प्रताप, बिंदुसार, शिवराज, प्रदीप कुमार, सन्तोष कुमार, अमरदीप, उपेन्द्र कुमार, नरेन्द्र कुमार, सुनील कुमार, गंगा प्रसाद लगातार सम्पर्क में रहे । नारेन्द्र और सुनील कुमार ने संस्थान की सफ़ाई की और टेंट हाउस का सारा सामान बुक कराया । इधर सन्तोष कुमार ने कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार कर उसकी कम्प्यूटर कम्पोजिंग कराई, फ़ोटो कॉपी कराई और विवरण पत्र, रूपरेखा बांटने का काम शुरू कराया । इसी बीच मैंने यह तय किया कि बौद्ध साहित्य को अपनी स्वयं की लेखनी के द्वारा लिखा जाए और पूरी फ़िल्म तैयार की जाए । मैंने खुद ही लिखना शुरू किया तथा और सब को भी प्रेरित किया कि वह भी चार्ट तैयार करें । इन्द्रेश, शिवाकांत और बिंदुसार ने मिलकर मिलिन्द प्रश्न पर पूरा शोध चार्ट तैयार किया । शिवराज ने बुद्ध शिक्षा जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक हिन्दुस्तान की कहानी से लिखकर तैयार किया । अशोक कुमार ने स्वामी विवेकानंद और बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर के कोटेशनों को लिपिबद्ध किया साथ ही अनाथ पिंडक की कहानी लिखी । प्रीती मौर्या ने कहानी पटाचारा लिखा । गौतमी का विवरण देवराज ने लिखा । धम्म चक्र प्रवर्तन का प्रतीक चिह्न अमरदीप ने तैयार किया । सिद्धार्थ गौतम की अपने पिता से आख़िरी मुलाक़ात का लेखन नारेन्द्र कुशवाहा और सुनील कुमार ने तैयार किया । गौतम बुद्ध का जीवन परिचय तथा चार आर्य सत्य सन्तोष कुमार ने लिखा । आर्य अष्टांगिक मार्ग मैने स्वयं लिखा । कहानी अंगुलिमाल की संकेत सौरभ और उनकी मम्मी श्रीमती कमलेश मौर्या के जिम्मे आई । बौद्ध धर्म एक वैज्ञानिक धर्म- गंगा प्रसाद ने लिखा । सन्तोष कुमार मौर्य, ऊंचाहार ने स्वामी विवेकानंद के कोटेशन को चार्ट में उतारा । एक अच्छा इंसान कैसे बने… यह भी लिखा । अमरदीप मौर्य ने विनोबा भावे के प्रेरक कथनों, अपने व्यक्तिगत विचार, विचारक शिवखेडा, कवि वर्ड्स वर्थ तथा जार्ज बर्नार्ड शा के विचारों को बख़ूबी चार्ट पर हाथों से लिखा । सपना मौर्या ने बुद्ध की शिक्षा को चार्ट में लिखा । इस प्रकार का टूटा फूटा प्रयास साहित्य को प्रदर्शित करने के लिए किया गया ।

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जन्म : तथागत भिक्षु सेवक संघ परिवार जनपद रायबरेली का…

दिनॉंक 23 फ़रवरी, 2003 की रात मैं चार्ट लिख रहा था कि अचानक दिमाग़ में थोड़ी उलझन हुई मैंने लिखना बंद किया और चाय बनाई, पत्नी श्रीमती कमलेश मौर्या को नींद से जगाया, चाय उन्हें भी पीने के लिए मजबूर किया । न- नुकुर करने के बाद वह चाय पीने के लिए तैयार हो गईं । थोड़ी ताजगी आई । मैंने पत्नी से कहा कि मेरे दिमाग़ में एक विचार आ रहा है कि क्यों न एक संघ बना दिया जाए । वह मेरी बात को अनसुनी जैसा कर रही थीं । मैंने अपनी बात जारी रखी और कहा कि उसका नाम होगा, “भिक्षु सेवक संघ” । मैंने फिर उनसे पूछा कि इस पर उनकी क्या राय है और क्या वह मुझे कुछ लड़कों के नाम सुझा सकती हैं, उन्होंने सीधे कहा कि यह काम मेरा नहीं तुम्हारा है और चुपचाप लेट गयीं, थोड़ी देर बाद मैं भी लेट गया । यह बात रात 2 से 3 बजे की है ।

अगली सुबह यानी 24 फ़रवरी को मैं कॉलेज गया । क्लास पढ़ाया और वहीं संतोष को बुलाकर मैंने अपनी बात बताई और कहा कि वह सभी लड़के जो व्यवस्था कमेटी में हैं तथा अन्य जो भी सम्पर्क में हैं उनकी बैठक बुलाएँ और उनको इस बारे में जानकारी दें तथा अपने “भिक्षु सेवक संघ” के इस विचार पर सुझाव दें व अध्यक्ष नियुक्त करें । शीघ्र ही उसी दिन संतोष ने मीटिंग बुलाई और वापस आ कर मुझे बताया कि सभी सदस्यों ने अपनी सहमति दे दी है साथ ही शिवाकांत ने बताया कि संघ का अध्यक्ष सर्वसम्मति से सन्तोष कुमार को बनाया गया है जबकि महामंत्री पद की ज़िम्मेदारी स्वयं उन्हें दी गई है । आगे चलकर भिक्षु सेवक संघ के नाम को थोड़ा विस्तार देकर “तथागत भिक्षु सेवक संघ परिवार” किया गया । (शेष अगले ब्लॉग में…)

–डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी (उत्तर- प्रदेश) भारत ।
email : drrajbahadurmourya@gmail.com, website: https://themahamaya.com

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1 thought on “तथागत भिक्षु सेवक संघ परिवार : विचार से संस्था तक”

  1. अनाम कहते हैं:
    फ़रवरी 5, 2025 को 7:44 अपराह्न पर

    Very impressive story

    प्रतिक्रिया

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