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होमो डेयस : पुस्तक समीक्षा / महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ

Posted on मई 31, 2025मई 31, 2025
  • डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी (उत्तर- प्रदेश) भारत । mail id- drrajbahadurmourya @ gmail.com, website : the Mahamaya.com
  • पुस्तक होमो डेयस हिब्रू विश्वविद्यालय,येरुशलम में इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ. युवाल नोआ हरारी की लेखनी से निकली विश्व प्रसिद्ध रचना है । यह आने वाले कल का संक्षिप्त इतिहास है । ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से विश्व इतिहास में विशेषज्ञता हासिल करने वाले युवाल नोआ हरारी समकालीन दौर के सबसे चर्चित लेखक हैं । उनकी पुस्तक सेपियन्स अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चुकी है । पुस्तक होमो डेयस को हरारी ने अपने गुरु सत्यनारायण गोयनका की (1924-2013) को समर्पित किया है । उनका आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है कि, “जिन्होंने मुझे विपश्यना ध्यान की उस तकनीक की शिक्षा दी, जिसने मुझे वास्तविकता को उसके मूल रूप में देखने और मानस तथा मानस जगत को बेहतर ढंग से समझने में मदद की ।”
  • होमो डेयस पुस्तक मूल रूप से अंग्रेज़ी में “अ ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ टुमॉरो” नामक शीर्षक से हार्विल सेकर द्वारा वर्ष 2016 में प्रकाशित हुई । इसके पूर्व वर्ष 2015 में यह पुस्तक द हिस्ट्री ऑफ टुमॉरो नामक शीर्षक से किनेरेट ज्मोरा- बिटन विर द्वारा इज़राइल में हिब्रू में प्रकाशित की गयी । इस पुस्तक का हिन्दी संस्करण वर्ष 2019 में पहली बार भारत में मंजुल पब्लिकेशन हाउस, द्वितीय तल, उषा प्रीत कॉम्प्लेक्स, 42 मालवीय नगर, भोपाल (मध्यप्रदेश) से प्रकाशित की गयी । जिसका हिन्दी अनुवाद मदन सोनी ने किया है । पुस्तक का विक्रय एवं विपणन कार्यालय 7/32, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली है । युवाल नोआ हरारी की एक अन्य पुस्तक सेपियन्स का भी हिन्दी अनुवाद मदन सोनी के द्वारा किया गया है । वह भोपाल स्थित राष्ट्रीय कला केंद्र भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हैं तथा उन्हें अनेकों पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है ।
  • होमो डेयस आने वाले कल का संक्षिप्त इतिहास है । भारत के एक प्रमुख दैनिक अख़बार दैनिक जागरण ने होमो डेयस पुस्तक और युवाल नोआ हरारी के बारे में लिखा है कि “हरारी मौजूदा दौर के श्रेष्ठ लेखकों में हैं जो दुनिया के कई देशों में बेहद लोकप्रिय हैं । इस पुस्तक में उन्होंने भविष्य को विषय बनाया है ।” जापान में पैदा हुए एक ब्रिटिश उपन्यासकार, पटकथा लेखक और लघु कहानीकार नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक काजुओ इशिगुरो ने होमो डेयस पुस्तक के बारे में लिखा है कि यह, “उनकी उत्कृष्ट पुस्तक सेपियन्स से ज़्यादा पठनीय, ज़्यादा महत्वपूर्ण।” न्यूयार्क टाइम्स की टिप्पणी है, “उत्तेजक…एक प्रतिभाशाली विचारक की कलाकारी” ऑब्ज़र्वर की टिप्पणी है “ताजगीपूर्ण और जीवंत… हरारी लोकप्रियता रचने के मामले में विलक्षण हैं, एक माहिर कहानीकार और मनोरंजन करने वाले हैं… रोमांचक और विस्मयकारी । अमेरिकी वैज्ञानिक इतिहासकार और लेखक जैरेड डायमंड का मानना है कि होमो डेयस “इतिहास और आधुनिक दुनिया के सबसे बड़े सवालों पर चर्चा करती पुस्तक है ।”
  • होमो डेयस के बारे में संडे टाइम्स ने लिखा है कि “एक ऐसी पुस्तक जो हमारे दिमाग़ में छाये जालों को साफ़ कर देती है… हरारी का लेखन शक्ति और स्पष्टता के साथ इस संसार को विस्मयकारी और नया बना देता है ।” दैनिक भास्कर ने पुस्तक के बारे में टिप्पणी करते हुए लिखा है कि “हरारी ने आज के तथ्यों के आधार पर जो नहीं हुआ उसका इतिहास लिख दिया है । इतिहास और मौजूदा समय को देखते हुए इंसानी प्रजाति का भविष्य जानना चाहें, तो इसे ज़रूर पढ़ें । हरारी आपको निराश नहीं करेंगे ।” वस्तुतः होमो डेयस उन परियोजनाओं, स्वप्नों और दु:स्वप्नों की पड़ताल करती है जो इक्कीसवीं सदी को आकार देने वाले हैं- मृत्यु पर विजय प्राप्त करने से लेकर कृत्रिम जीवन की रचना तक । यह किताब कुछ बुनियादी सवाल पूछती है : हम यहाँ से कहाँ जाएँगे ? और हम अपनी ही विनाशकारी शक्तियों से इस नाज़ुक संसार की रक्षा कैसे करेंगे ?
  • होमो डेयस के बारे में नोबेल पुरस्कार प्राप्त इजराइली – अमेरिकी वैज्ञानिक डैनियल काह्नेमन ने लिखा है कि, “होमो डेयस आपको चकित कर देगी । यह आपका मनोरंजन करेगी । यह आपको उस तरह सोचने पर विवश कर देगी जिस तरह आपने पहले कभी नहीं सोचा होगा ।” वस्तुतः सेपियन्स ने हमें बताया कि हम कहॉं से आए थे, होमो डेयस हमें बताती है कि हम कहाँ जा रहे हैं । होमो डेयस पुस्तक का उद्घोष है, “युद्ध गुज़रे जमाने की चीज़ है । आपके किसी संघर्ष में मारे जाने से ज़्यादा सम्भावना आपके द्वारा आत्महत्या किये जाने की है । अकाल समाप्त हो रहा है । आपके भूख से मरने से ज़्यादा बड़ा जोखिम मोटापे का शिकार होने का है । मृत्यु मात्र एक तकनीकी समस्या है । समानता समाप्त हो चुकी है- लेकिन अमरता प्रवेश कर चुकी है ।
  • युवाल नोआ हरारी ने अपनी किताब होमो डेयस में मनुष्यों के समकालीन और भविष्य की नई कार्यसूची की पहचान करने की कोशिश की है । वह लिखते हैं कि वास्तव में, आज ज़्यादातर देशों में अकाल से ज़्यादा बदतर समस्या अति भोजन करना बन चुकी है । 2014 में 2.1 अरब लोगों का वज़न बहुत ज़्यादा था, इसके मुक़ाबले 8500 लाख लोग कुपोषण का शिकार थे । अनुमान है कि 2030 तक आते- आते आधी मानव जाति अधिक वज़न का शिकार होगी । 2010 में अकाल और कुपोषण ने मिलकर 10 लाख लोगों की जान ली थी जबकि मोटापे ने 30 लाख लोगों की जानें ली थीं । उन्होंने लिखा है कि अब क़ुदरती अकाल दुनिया में नहीं रहे, सिर्फ़ राजनीतिक अकाल ही हैं ।
  • युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि 1692 और 1694 के बीच लगभग 28 लाख फ़्रांसीसी यानी आबादी का 15 प्रतिशत भूख का शिकार होकर मरे । 1695 में अकाल ने एस्टोनिया पर हमला कर आबादी के पॉंचवें हिस्से को ख़त्म कर दिया था । 1696 में फ़िनलैंड में वहाँ की आबादी के लगभग एक चौथाई से एक तिहाई लोग मारे गए । स्कॉटलैण्ड को 1695 और 1698 के बीच प्रचंड अकाल का सामना करना पड़ा, जिस दौरान वहाँ के कुछ जनपदों को अपनी आबादी के 20 प्रतिशत तक लोगों से हाथ धोना पड़ा । 1974 में रोम में पहली वर्ल्ड फूड कॉन्फ़्रेंस का आयोजन किया गया और इसमें शामिल प्रतिनिधियों के सामने विनाशकारी परिदृश्य पेश किए गए थे ।
  • युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि अकाल के बाद मनुष्यता की दूसरी सबसे बड़ी दुश्मन थी महामारी और संक्रामक बीमारियां । सन् 1330 के दशक में पूर्वी या मध्य एशिया में किसी जगह से प्रारम्भ हुई संक्रामक बीमारी को काली मौत या ब्लैक डेथ कहा जाता है । यह पिस्सुओं में रहने वाले यर्सीनिया पेस्टिस नामक जीवाणु से फैलती है । पूरे यूरेशिया महाद्वीप में इस बीमारी से लगभग 7.5 करोड़ से 20 करोड़ के बीच लोग मारे गए । इंग्लैंड में दस में से चार लोग मरे । फ्लोरेंस नगर ने एक लाख निवासियों में से 50 हज़ार लोगों को खो दिया । 16 वीं शताब्दी में दुनिया भर में चेचक के विषाणु ने तबाही मचाई । 5 मार्च, 1520 को क्यूबा से निकले स्पेनी सैनिकों के साथ मैक्सिको में आई और दो माह के भीतर मैक्सिको की एक तिहाई आबादी को मार दिया ।
  • 18 जनवरी, 1778 को एक ब्रितानी खोजी कैप्टन जेम्स कुक हवाई द्वीप पर पहुँचा और अपने साथ फ्लू, तपेदिक और सिफ़लिस नामक बीमारी को वहाँ पहुँचाया । हवाई द्वीप की 5 लाख की आबादी में 1853 तक मात्र 70 हज़ार लोग रोगों से जीवित बचे । शेष सभी लोग बीमार में मारे गए । जनवरी 1918 में उत्तरी फ्रांस की खन्दकों में से एक खास तरह के विषाक्त रोग से सैनिकों का मरना शुरू हुआ, इसे स्पेनिश फ्लू का नाम दिया गया । हिन्दुस्तान में इस बीमारी से लगभग 150 लाख लोग मारे गए । ताहिती के द्वीप पर 14 प्रतिशत लोग मारे गए । सामोआ में 20 प्रतिशत । कांगों की ताँबे की खदानों में हर पॉंच में से एक मज़दूर मारा गया । कुल मिलाकर इस महामारी ने एक साल से भी कम समय में 5 करोड़ से 10 करोड़ के बीच लोगों की जान ली जबकि 1914 से 1918 के बीच चले विश्वयुद्ध ने 4 करोड़ लोगों की जान ली थी ।
  • 1979 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषणा किया कि मानवता की जीत हुई है और चेचक का पूरी तरह से उन्मूलन कर दिया गया है । यह पहली ऐसी महामारी थी जिसे पृथ्वी से पूरी तरह मिटा देने में मनुष्य कामयाब रहा । 1967 में चेचक ने 1.5 करोड़ लोगों को गिरफ़्त में लिया हुआ था और उनमें से 20 लाख लोगों की जान चली गयी थी लेकिन 2014 में एक भी व्यक्ति को न तो चेचक का संक्रमण हुआ और न ही उससे किसी की जान गई । इसी प्रकार से इंसान ने स्वाइन फ़्लू और इबोला जैसी बीमारियों पर नियंत्रण कर लिया । 1980 के दशक के शुरुआती दौर में हुए एड्स के पहले बड़े प्रकोप के बाद से 3 करोड़ से ज़्यादा लोग इस बीमारी से मर चुके हैं ।
  • युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि बीसवीं शताब्दी में अधिकतर लोग हिंसा में मारे गए । इस सदी में हिंसा के कारण 5 फ़ीसदी मौतें हुईं जबकि आरम्भिक इक्कीसवीं सदी में यह वैश्विक स्तर पर हुई मौतों के लगभग एक प्रतिशत के लिए ज़िम्मेदार है । 2012 में सारी दुनिया में लगभग 5 करोड़ 60 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी जिनमें से 6 लाख 20 हज़ार लोग इंसानी हिंसा के कारण मारे गए जबकि युद्ध में 1 लाख 20 हज़ार लोग और अपराधों में 5 लाख लोग मारे गए । इसके विपरीत 8 लाख लोगों ने आत्महत्या की ओर 15 लाख लोग डायबिटीज़ से मरे । शक्कर अब बारूद से ज़्यादा ख़तरनाक है ।
  • युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि आतंकवाद कमजोरी की रणनीति है जो उन लोगों के द्वारा अपनाई जाती है जिनकी पहुँच असली सत्ता तक नहीं होती । यह एक ऐसा प्रदर्शन है जो हिंसा का भयावह नज़ारा पेश करता है, जो हमारी कल्पना को जकड़ लेता है और हमें ऐसा महसूस करने को विवश कर देता है कि हम वापस मध्ययुगीन अराजकता में फिसल रहे हैं । तुलना करने पर हम पाते हैं कि जहॉं 2010 में दुनिया भर में मोटापे और उससे जुड़ी बीमारियों ने 30 लाख लोगों की जान ले ली वहीं आतंकवाद ने 7,697 लोगों को मारा जिनमें से ज़्यादातर लोग विकासशील देशों के थे ।वस्तुतः स्थितियों को बेहतर बनाना और दुख को और भी कम करना हमारी सामर्थ्य के भीतर है । सफलता महत्वाकांक्षा को जन्म देती है ।
  • प्राचीन ग्रीक दार्शनिक इपीक्यूरस ने कहा था कि देवताओं की उपासना करना वक़्त की बर्बादी है, मृत्यु के बाद कोई अस्तित्व नहीं होता और सुख ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य है । उसने अपने शिष्यों को चेतावनी दी थी कि सुखी होना बहुत मुश्किल काम है । भौतिक उपलब्धियाँ मात्र हमें लम्बे समय तक सुखी नहीं रख पायेंगी । सचमुच दौलत, प्रसिद्धि और आनन्द की अंधी तलाश हमें सिर्फ़ दयनीय अवस्था में ही ले जाएगी । एपीक्यूरस ने खाने पीने के मामले में संयम और काम वासना को नियंत्रण में रखने की सलाह दी थी । स्वाधीनता के अमेरिकी घोषणा पत्र में सुख की खोज के अधिकार की गारंटी दी थी, स्वयं सुख के अधिकार की नहीं । थामस जैफरसन अपने नागरिकों के सुख के लिए राज्य को ज़िम्मेदार नहीं बनाया बल्कि सिर्फ़ राज्य की शक्ति को सीमित किया था ।
  • इपीक्यूरस के मुताबिक़, हम उस वक़्त सुखी होते हैं, जब हमें सुखद अनुभूतियाँ हो रही होती हैं और हम अप्रिय अनुभूतियों से मुक्त होते हैं । इसी तरह से जेरेमी बेन्थम का मानना था कि प्रकृति ने मनुष्य को दो प्रभावी शक्तियों के अधीन बनाया हुआ है – आनंद और पीड़ा और यही हमारे सारे कृत्यों को, हमारी वाणी और चिंतन को निर्धारित करते हैं । बेन्थम के उत्तराधिकारी जॉन स्टुअर्ट मिल ने कहा था कि पीड़ा से मुक्ति और आनन्द के अलावा सुख और कुछ भी नहीं है और आनंद तथा पीड़ा से परे न तो कोई शुभ है और न ही कोई अशुभ है । जो भी कोई शुभ और अशुभ का निर्णय किसी और चीज से करने की कोशिश करता है, वह आपको और शायद खुद को भी बेवक़ूफ़ बना रहा होता है ।
  • युवाल नोआ हरारी लिखते हैं कि सुख की जैवरासायनिक खोज दुनिया में अपराध की भी पहली वजह है । 2009 में संयुक्त राज्य अमेरिका की संघीय जेलों में क़रीब आधे क़ैदी नशीले पदार्थों की वजह से वहाँ पहुँचे थे । 38 प्रतिशत इतालवी क़ैदी नशीले पदार्थो से जुड़े अपराधों की वजह से दोषी ठहराए गए थे । युनाइटेड किंगडम के 55 प्रतिशत क़ैदियों ने सूचित किया था कि उन्होंने अपने अपराध या तो नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते हुए या उनका क्रय विक्रय करते हुए किया था । 2001 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 62 प्रतिशत आस्ट्रेलियाई अपराधियों ने नशीले पदार्थों के प्रभाव के दौरान वे अपराध किए थे, जिनके कारण वह जेल भोग रहे थे ।
  • युवाल नोआ हरारी के अनुसार मनुष्यों को देवताओं के स्तर पर ऊँचा उठाने की प्रक्रिया तीन रास्ते अपना सकती है : जैव अभियांत्रिकी, साइबोर्ग अभियांत्रिकी और अजैविक सत्ताओं की अभियांत्रिकी । जैव अभियांत्रिकी की शुरुआत इस आंतरिक बोध के साथ होती है कि हम जैविक कायाओं की पूरी सम्भावनाओं का दोहन करने से काफ़ी दूर हैं । साइबोर्ग अभियांत्रिकी एक कदम आगे जाकर जैविक काया को अजैविक उपकरणों से मिला देगी । जैसे कि बायोनिक हाथ, कृत्रिम ऑंख या ऐसे लाखों नैनो रोबोट हमारे रक्त प्रवाह में तैरते हुए समस्याओं का समाधान करेंगे । मात्र 400 डालर में ऑनलाइन मिलने वाले माइंड रीडिंग हेलमेट को आप ख़रीद कर आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं ।
  • ज्ञान के विरोधाभास को स्पष्ट करते हुए युवाल नोआ हरारी ने कहा है कि महलों में रहने वालों की कार्यसूचियां हमेशा उन लोगों की कार्यसूचियों से भिन्न होती हैं, जो झोपड़ियों में रह रहे होते हैं । कोशिश करने और हासिल करने में फर्क है । ऐसा ज्ञान जो आचरण में बदलाव नहीं लाता, वह बेकार है । आज हमारा ज्ञान अन्धाधुन्ध रफ़्तार से बढ़ रहा है इसलिए क़ायदे से दुनिया की हमारी समझ उत्तरोत्तर तीव्र गति से बढनी चाहिए । हमारा नवीनतम ज्ञान तेज रफ़्तार आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक बदलावों का कारण बनता है ।
  • युवाल नोआ हरारी ने उद्यानों के संक्षिप्त इतिहास पर कलम चलाते हुए लिखा है कि निजी आवासों और सार्वजनिक इमारतों के प्रवेश द्वार पर लॉन विकसित करने का विचार मध्य युग में फ़्रांसीसियों तथा अंग्रेज़ कुलीनों के क़िले में जन्मा था । शुरुआती आधुनिक युग में इस आदत ने गहरी जड़ें जमाईं और यह अभिजात वर्ग की खास पहचान बन गई । सामन्ती क़िलों के प्रवेश द्वार पर विशुद्ध घास के मैदान प्रतिष्ठा के ऐसे प्रतीक हुआ करते थे, जिनकी नक़ल कोई नहीं कर सकता था । लॉन जितना बड़ा और स्वच्छ होता था उतना ही वह राजवंश शक्तिशाली होता था । कालांतर में यही परम्परा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आवासों की प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गयी । इस तरह से मनुष्यों ने लॉन को राजनीतिक शक्ति, सामाजिक हैसियत और आर्थिक संवृद्धि से जोड़ लिया ।
  • मनुष्यता के युग नामक अध्याय में हरारी ने लिखा है कि दुनिया में स्वतंत्रता पूर्वक विचरण करने वाले जानवरों की संख्या घट रही है और उसका स्थान पालतू जानवर ले रहे हैं । जर्मनी 50 लाख पालतू कुत्तों का घर है । कुल मिलाकर लगभग 2 लाख जंगली भेड़िए अभी भी पृथ्वी पर घूमते हैं, लेकिन इसी दुनिया में 40 करोड़ पालतू कुत्ते हैं । दुनिया में लगभग 60 करोड़ घरेलू बिल्लियों के मुक़ाबले 40 हज़ार शेर हैं । 9 लाख अफ़्रीकी भैंसों के मुक़ाबले 1.5 अरब पालतू गाय हैं, 5 करोड़ पेंगुइन और 20 अरब चूज़े हैं । 1970 के बाद से उत्तरोत्तर बढ़ती पारिस्थिति परक जागरूकता के बावजूद वन्यजीवों की आबादी आधी रह गयी है । 1980 में यूरोप में 2 अरब जंगली परिंदे थे । 2009 में मात्र 1.6 अरब रह गए हैं ।
  • युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि जीवधारी ऐल्गरिदम हैं । ऐल्गरिदम सुसंगत तौर पर हमारी दुनिया की एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा है । उन्होंने आगे लिखा है कि ऐल्गरिदम अनेक सीढ़ियों (स्टेप्स) का ऐसा सुसंगत सेट है, जिसका इस्तेमाल गणना करने, समस्याओं को हल करने और निर्णयों तक पहुँचने के लिए किया जा सकता है ।ऐल्गरिदम कोई खास गणना नहीं है बल्कि वह पद्धति है, जिसका अनुसरण गणना करते समय किया जाता है । जैसे यदि आप दो संख्याओं का औसत निकालना चाहते हैं तो आप एक सरल ऐल्गरिदम का इस्तेमाल कर सकते हैं । ऐल्गरिदम कहता है : पहली सीढ़ी : दोनों संख्याओं को जोड़ दीजिए । दूसरी सीढ़ी : दोनों संख्याओं के उस योगफल को दो से विभाजित कर दीजिए ।
  • चेतना- युक्त- मानस अर्थात् माइंड के बारे में युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि मानस पीड़ा, आनन्द, क्रोध और प्रेम जैसे व्यक्तिनिष्ठ अनुभवों का एक प्रवाह है । यह मानसिक अनुभव उन परस्पर सम्बद्ध अनुभूतियों, भावनाओं और विचारों से निर्मित होते हैं जो क्षणभर को कौंध कर तुरंत ग़ायब हो जाते हैं और फिर दूसरे अनुभवों से झिलमिलाते हैं और लुप्त हो जाते हैं, पलभर को जागते हैं और गुज़र जाते हैं । अनुभवों का यह उन्मत्त समूह चेतना प्रवाह की रचना करता है । मानस के बहुत से हिस्से होते हैं, वह निरंतर बदलता रहता है और ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं है कि वह अमर है । नवीनतम सिद्धांत यह भी मानते हैं कि अनुभूतियाँ और भावनाएं जैव रासायनिक डेटा- प्रॉसेसिंग ऐल्गरिदम हैं ।
  • युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि चेतना प्रवाह वह ठोस वास्तविकता है, जिसे हम हर क्षण प्रत्यक्ष घटित होते देख सकते हैं । यह दुनिया की सबसे असंदिग्ध चीज है । आप उसके अस्तित्व पर शंका नहीं कर सकते । यहाँ तक कि हम जब संदेह से भरे होते हैं और खुद से पूछते हैं : क्या व्यक्तिनिष्ठ अनुभव वास्तव में होते हैं ? तब भी हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि हम संदेह का अनुभव कर रहे हैं । हर व्यक्तिनिष्ठ अनुभव के दो बुनियादी लक्षण होते हैं : अनुभूति और आकांक्षा । सत्रहवीं सदी में देकार्त ने दृढतापूर्वक कहा था कि केवल मनुष्य ही महसूस करता है और लालसा करता है, जबकि तमाम अन्य प्राणी बेदिमाग स्वचालित यंत्र होते हैं ।
  • मस्तिष्क एक अत्यंत जटिल यंत्र है जिसके भीतर 80 अरब से ज़्यादा न्यूरॉन असंख्य पेचीदा जालों में परस्पर जुड़े हैं । क्रोध एक अत्यंत ठोस अनुभव है । जब मैं कहता हूँ कि, मैं ग़ुस्से में हूँ.. तो मैं एक अत्यंत बोधगम्य अनुभूति की ओर इशारा कर रहा हूँ । लेकिन जब आकाश में पानी के खरबों कण आपस में मिल जाते हैं, तो हम उसे बादल कहते हैं । लेकिन कोई बादल- चेतना उभरकर यह ऐलान नहीं करती कि मैं बारिश महसूस कर रही हूँ । मनुष्यों को भूख या भय के व्यक्ति निष्ठ अनुभव क्यों होते हैं ? जीवविज्ञानियों ने इसका एक बहुत सरल जबाब दिया था कि व्यक्तिनिष्ठ अनुभव हमारे जीवित बने रहने के लिए अनिवार्य है क्योंकि हम भूख या भय महसूस न करते होते तो हमने ख़रगोशों का पीछा करने और शेरों से बचकर भागने की परवाह न की होती ।
  • युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि कभी किसी ने पीड़ा या प्रेम के अनुभवों को सूक्ष्मदर्शी यंत्रों के माध्यम से नहीं देखा है और हमारे आस-पास पीड़ा और प्रेम की ऐसी बहुत सी विस्तृत जैवरासायनिक व्याख्याएँ उपलब्ध हैं जो व्यक्तिनिष्ठ अनुभवों के लिए कोई भी गुंजाइश नहीं छोड़ती । जहाँ अमर आत्माओं का अस्तित्व एक विशुद्ध अटकल है, वहीं पीड़ा का अनुभव एक प्रत्यक्ष और अत्यंत अनुभवगम्य वास्तविकता है । चूँकि सारे वैज्ञानिक निरंतर पीड़ा और संदेह जैसी व्यक्तिनिष्ठ अनुभूतियों को महसूस करते हैं, इसलिए वे उनके अस्तित्व से इनकार नहीं कर सकते ।
  • फ्रायड के अनुसार “सेनाएँ सैन्य आक्रामकता को भड़काने के लिए काम (सैक्स) इच्छा का इस्तेमाल करती हैं । सेना नौजवानों को ठीक उस वक़्त भरती करती है, जब उनकी यौन इच्छा अपने चरम पर होती है । सेना सैनिकों के वास्तविक यौन संसर्ग और तत्सम्बन्धी सारे दबाव के निकास के अवसरों को सीमित करती है, जो नतीजतन उसके भीतर इकट्ठा होता रहता है । इसके बाद सेना इस अवरुद्ध दबाव को अलग दिशा देती हुई उसको सैन्य आक्रामकता के रूप में निकलने की गुंजाइश देती है । दिमाग़ी अध्ययन के लिए 1950 में अंग्रेज़ गणितज्ञ और कम्प्यूटर युग के एक जनक एलेन ट्यूरिंग द्वारा एक आविष्कार किया गया था जिसे ट्यूरिंग टेस्ट के नाम से जाना जाता है ।
  • युवाल नोआ हरारी ने अपनी किताब में लिखा है कि दिनांक 7 जुलाई, 2012 को तंत्रिकाजैविकी और संज्ञानात्मक विज्ञानों के विशेषज्ञ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एकत्र हुए और उन्होंने चेतना विषयक कैम्ब्रिज घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए । इसमें कहा गया है कि, “एक केन्द्राभिमुखी साक्ष्य दर्शाते हैं कि अ- मानवीय प्राणियों में सोद्देश्य व्यवहारों को प्रदर्शित करने की क्षमता के साथ-साथ चेतन अवस्थाओं के तंत्रिकाशारीरिक, (न्यूरोएनाटॉमिकल) तंत्रिकारासायनिक (न्यूरोकैमिकल) और तंत्रिकाक्रियात्मक (न्यूरोफिजियोलॉजिकल) सब्स्ट्रेट होते हैं । वर्ष 2015 में न्यूज़ीलैंड की संसद ने पशु कल्याण संशोधन अधिनियम को पारित किया और यह सुनिश्चित किया कि पशुओं को चेतन प्राणी के रूप में मान्यता प्रदान की जाती है ।
  • पुस्तक में ज़िक्र किया गया है कि 8 दिसम्बर, 1991 को विस्कुली के क़रीब एक राजकीय देहाती बंगले में रूस, उक्रेन और बेलारूस के नेताओं ने बेलावेझा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें कहा गया था कि हम बेलारूस गणराज्य, रूसी महासंघ और उक्रेन जिन्होंने यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स संस्थापक राज्यों के रूप में 1922 की संघटन सन्धि पर हस्ताक्षर किए थे, एतद् द्वारा घोषणा करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय विधि की सत्ता और भूराजनीतिक वास्तविकता के रूप में सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक का अस्तित्व समाप्त होता है । बस इतना ही कहा और सोवियत संघ समाप्त ।
  • युवाल नोआ हरारी ने स्वप्नकाल शीर्षक के अंतर्गत लिखा है कि, अगर मनुष्य की कोई आत्मा नहीं होती और अगर विचार, भावनाएं और अनुभूतियाँ जैवरासायनिक ऐल्गरिदम मात्र हैं, तो जीव विज्ञान मानव समाजों की सारी सनकों की जड़ तक क्यों नहीं जा सकता । 21 वीं सदी की नई प्रोद्योगिकियॉं ज़्यादातर गल्पों को और अधिक शक्तिशाली बना देंगी । इसी पुस्तक में उन्होंने आगे लिखा है कि कृषि क्रान्ति की शुरुआत 12 हज़ार साल पहले हुई थी । लगभग 6 हज़ार साल पहले सुमेर के मंदिर राजनीतिक तौर आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र हुआ करते थे । उरुक, लागाश और शुरुपक के प्राचीन नगरों में देवता ऐसी वैधानिक सत्ताओं की भूमिका निभाते थे जिनके स्वामित्व में खेत और ग़ुलाम हो सकते थे ।
  • मिस्र के लोगों ने नील नदी की घाटी में पुरोहित राजा के साथ एक जीवित देवता फैरो की रचना कर डाली । सारा मिस्र इसी देवता का था और सारी प्रजा को इसके आदेश को मानना होता था । सेनुसरेट तृतीय और उसके बेटे अमेनेमहत तृतीय नामक फैराओं ने, जिन्होंने ईसा पूर्व 1878 से ईसा पूर्व 1814 तक मिस्र पर शासन किया था, ने नील नदी को फेयुम घाटी से जोड़ने वाली एक विशाल नहर खुदवाई थी । बाँधों, जलाशयों और उप नहरों के एक पेचीदा ताने बाने ने नील के कुछ पानी को फेयुम की तरफ़ मोड़ दिया और इस तरह 130 खरब गैलन पानी की क्षमता वाली एक विशालकाय कृत्रिम झील को तैयार कर दिया । इस नई कृत्रिम झील के तट पर शादेत नामक एक नया नगर बसाया गया जिसको यूनानी लोग मगरमच्छों का नगर कहते थे । यहीं पर सोबेक का मंदिर था जिसे फैरो के रूप में जाना जाता था ।
  • युवाल नोआ हरारी ने अब्राहम लिंकन को उद्धृत करते हुए लिखा है कि, “आप सारे समय किसी को धोखा नहीं दे सकते । अगर आप वास्तविकता को बहुत ज़्यादा विकृत कर देते हैं तो वह आपको कमज़ोर कर देगी और आप ज़्यादा स्पष्ट दृष्टि रखने वाले प्रतिद्वंद्वियों का सामना नहीं कर पाएंगे । दूसरी तरफ़, आप किन्हीं कल्पित मिथकों पर भरोसा किए बिना जन समुदाय को प्रभावशाली ढंग से संगठित नहीं कर सकते । वास्तविकता में कल्पना का मिश्रण किये बग़ैर बहुत थोड़े से लोग ही आपका अनुसरण करेंगे ।” राष्ट्र तभी गौरव हासिल करता है जब वह राष्ट्रीय हित को बढ़ावा देता है और एक कार्पोरेशन तभी उन्नति करता है जब वह भरपूर पैसा कमाता है ।
  • हरारी के अनुसार दुःख कल्पनाओं में हमारे विश्वास की वजह से उत्पन्न हो सकता है । जैसे किसी राष्ट्रीय या मज़हबी मिथक में विश्वास युद्ध का कारण बन सकता है जिसकी वजह से लाखों लोग अपने घर, अपने अंग और अपनी ज़िंदगियाँ तक गवां सकते हैं । युद्ध की वजह काल्पनिक है लेकिन उससे पैदा होने वाली तकलीफें सौ फ़ीसदी वास्तविक हैं । यही वजह है कि हमें कल्पना को यथार्थ से अलग करने की कोशिश करनी चाहिए । क़िस्से मानव समाज की बुनियादों और स्तम्भों की भूमिका निभाते हैं । लेकिन बदक़िस्मती से इन क़िस्सों में अन्धविश्वासों का अर्थ था कि मानवीय उद्यम चेतन प्राणियों के बजाय प्रायः देवताओं और राष्ट्रों जैसी कल्पित सत्ताओं की महिमा बढ़ाने पर केंद्रित रहा ।
  • युवाल नोआ हरारी लिखते हैं कि विज्ञान और धर्म उन पति और पत्नी की तरह हैं जो 500 सालों के वैवाहिक परामर्श के बाद भी आज तक एक-दूसरे को समझ नहीं पाए हैं । वस्तुतः मज़हब एक सौदा है जबकि आध्यात्मिकता एक यात्रा है । एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आध्यात्मिक यात्रा का अंत हमेशा दुखदाई होता है क्योंकि यह अकेलेपन से युक्त ऐसा मार्ग है, जो समूचे समाज के बजाय अलग-अलग व्यक्तियों के लिए उपयुक्त बैठता है । विज्ञान को मुनासिब इंसानी संस्थाएँ रचने के लिए हमेशा मज़हबी सहयोग की ज़रूरत पड़ती है । वैज्ञानिक इस बात का अध्ययन करते हैं कि दुनिया किस तरह से काम करती है, लेकिन इस बात को निर्धारित करने की कोई वैज्ञानिक पद्धति नहीं है कि मनुष्यों को किस तरह आचरण करना चाहिए ।
  • चूहा दौड़ नामक एक उप अध्याय में हरारी लिखते हैं कि आधुनिक दुनिया में, हम इंसान सारा काम खुद करते हैं, इसलिए रात दिन निरंतर दबाव में बने रहते हैं । आधुनिकता वृद्धि को एक ऐसे परम मूल्य के रूप में क़ायम रखती है, जिसकी ख़ातिर हर तरह की क़ुर्बानी करनी चाहिए और हर तरह का ख़तरा उठाना चाहिए । व्यक्तिगत स्तर पर हमें निरंतर अपनी आय और अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने की प्रेरणा दी जाती है । धन का लालच वृद्धि के लिए ईंधन का काम करता है । पूंजीवाद की दुनिया में बाज़ार का हाथ सिर्फ़ अदृश्य ही नहीं है बल्कि अन्धा भी होता है । बिना किसी अर्थ के व्यवस्था को क़ायम रखना असंभव है ।
  • युवाल नोआ हरारी ने मानववादी क्रांति की वकालत करते हुए लिखा है कि, मानववादी मज़हब मनुष्यता का उपासक है और वह मनुष्यता से वह भूमिका निभाने की उम्मीद करता है जो ईसाइयत और इस्लाम में ईश्वर और अल्लाह निभाया करते थे और जो भूमिका बौद्ध और ताओ धर्म में कुदरत के नियम निभाया करते थे ।मानववाद मनुष्यों के अनुभव से ब्रम्हांड को अर्थ देने की उम्मीद करता है । एक अर्थहीन दुनिया के लिए अर्थ की रचना करने का पैग़ाम हमें मानववाद देता है । रूसो ने अपने उपन्यास एमिली में लिखा है कि, “ खुद के मन की बात सुनो, अपने प्रति ईमानदार रहो, अपने ह्रदय का अनुसरण करो, वह करो जो अच्छा महसूस होता है ।”
  • हरारी ने लिखा है कि हमारे जज़्बात सिर्फ़ हमारी निजी ज़िन्दगियों के लिए ही अर्थ उपलब्ध नहीं कराते बल्कि सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं के लिए भी अर्थ उपलब्ध कराते हैं । हर बार जब भी आप अपने दिल में ग़ुस्से और नफ़रत की आग भड़काते हैं, आप नर्क का अनुभव करते हैं और हर बार जब भी आप अपने शत्रुओं को क्षमा कर देते हैं, अपने कुकृत्यों पर पश्चाताप करते हैं और अपनी सम्पति को गरीब के साथ साझा करते हैं, तब आप स्वर्गिक आनंद का अनुभव करते हैं । अनुभव एक व्यक्तिनिष्ठ घटना है, जो तीन मुख्य घटकों से मिलकर बनती है : इन्द्रियबोध, भावावेग और विचार । किसी भी निश्चित क्षण में मेरे अनुभव में आने वाली वह हर चीज़ जिसे मैं अपनी इन्द्रियों से महसूस करता हूँ (ताप, आनन्द, तनाव इत्यादि), वह हर भावावेग जिसे मैं महसूस करता हूँ और जो भी विचार मेरे दिमाग़ में आते हैं, इसमें समाहित होते हैं ।
  • युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि यदि आप में किसी चीज के लिए ज़रूरी संवेदनशीलता नहीं है तो आप उस चीज़ को अनुभव नहीं कर सकते और आप अनुभवों के एक लम्बे सिलसिले से गुज़रे बिना अपनी संवेदनशीलता विकसित नहीं कर सकते । विल्हेम वॉन हम्बोल्ट ने कहा है कि, “जीवन के व्यापकतम सम्भव अनुभव के निचोड़ से प्रज्ञा को हासिल करना ही अस्तित्व का मूल उद्देश्य है ।” उन्होंने आगे लिखा है कि, “जीवन का एक ही शिखर है : हर मानवीय चीज़ की अनुभूति की थाह लेना ।” ज्वायस का उपन्यास यूलीसीज बाहरी कृत्यों के बजाय आन्तरिक जीवन की पराकाष्ठा पर आधुनिक एकाग्रता का निरूपण करता है । अपोकेलिप्स नाऊ, फुल मैटल जैकेट और ब्लैक हॉक डाउन हॉलीवुड की सुपरहिट फ़िल्में हैं ।
  • हरारी का प्रेरक उद्बोधन है, “हर मनुष्य प्रकाश की एक अद्वितीय किरण है जो एक अलग परिप्रेक्ष्य से दुनिया को प्रकाशित करती है और जो विश्व में रंग, गहराई और अर्थ का योगदान करती है । इसलिए हमें हर व्यक्ति को दुनिया को अनुभव करने, उसको अपनी आन्तरिक आवाज़ का अनुसरण करने और अपने आन्तरिक सत्य को अभिव्यक्त करने की अधिकतम सम्भव स्वतंत्रता प्रदान करना चाहिए । चाहे वह राजनीति हो, अर्थव्यवस्था हो या फिर कला हो । वैयक्तिक स्वाधीनता को राजकीय हितों या मज़हबी सिद्धांतों से ज़्यादा महत्व दिया जाना चाहिए । व्यक्ति जितनी ही ज़्यादा स्वतंत्रता का उपभोग करता है, दुनिया उतनी ही ज़्यादा सुन्दर, संवृद्ध और अर्थपूर्ण बनती है ।”
  • लाइम का विचार है कि युद्ध का अनुभव मानव जाति को नई उपलब्धियों की ओर ले जाता है । युद्ध प्राकृतिक वरण को अन्ततः खुली छूट देता है । यह कमजोर को नेस्तनाबूद कर देता है और मज़बूत, ताकतवर और महत्वाकांक्षी को पुरस्कृत करता है । युद्ध जीवन की सच्चाई को उजागर करता है और शक्ति, गौरव तथा विजय के संकल्प को जगाता है । आप नीत्शे ने कहा कि “युद्ध जीवन का विद्यालय है और यह कि जो चीज मुझे मारती नहीं है, वह मुझे और ज़्यादा मज़बूत बनाती है ।” द्वितीय विश्वयुद्ध में 5 लाख अंग्रेज़ों और 5 लाख अमरीकियों के मुक़ाबले 2.5 करोड़ सोवियत नागरिक मारे गए थे । 1956 में सोवियत मुखिया निकिता ख्रुश्चेव ने कहा था कि “चाहे आप इसे पसंद करें या न करें, लेकिन इतिहास हमारे पक्ष में है । हम आपको दफ़ना देंगे ।”
  • आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के बारे में हरारी ने कहा है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की नई संतति इंसानी परामर्श के बजाय मशीनी शिक्षण को प्राथमिकता देती है । आज चेहरे की पहचान के कम्प्यूटर प्रोग्राम लोगों को इंसानों से कहीं ज़्यादा दक्षता पूर्वक और फुर्ती से पहचानने में सक्षम हैं । 10 फ़रवरी, 1996 को आई बी एम के डीप ब्लू ने विश्व चैंपियन गैरीकास्पारोव को हराकर इंसानी श्रेष्ठता के खास दावे को झूठा साबित कर दिया । कालांतर में गूगल के आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के अल्फा गो सॉफ़्टवेयर ने खुद को गो नामक वह खेल सिखाया, जो चीन का एक प्राचीन रणनीतिक खेल है । 2014 में येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने आईफ़ोन से नियंत्रित कृत्रिम पाचक ग्रन्थि के पहले कामयाब परीक्षण की घोषणा की ।
  • डेडलाइन नामक एक एप्लीकेशन आपको सूचना देता है कि मौजूदा आदतों को देखते हुए आप के जीवन के कितने साल और बचे हैं । बेडपोस्ट नामक एक कम्पनी ऐसे जैवसांख्यकीय बाजूबंद बेचती है जिसको आप सम्भोग के दौरान पहन सकते हैं । यह बाजूबंद ह्रदय की गति, पसीने के स्तर, सम्भोग की अवधि, कामोत्तेजना की चरम अवस्था की अवधि और आपके द्वारा खर्च कैलोरी की मात्रा जैसे ऑंकडे एकत्र करता है । इन आँकड़ों को एक कम्प्यूटर में डाल दिया जाता है, जो सारी सूचना का विश्लेषण करने के बाद आपके सम्भोग कर्म के निष्पादन को सटीक संख्या के आधार पर एक श्रेणी प्रदान करता है । इसी प्रकार से गूगल ने 2008 में गूगल फ्लू ट्रेंड की शुरुआत की थी ।
  • गूगल बेस लाइन स्टडी एक महत्वाकांक्षी परियोजना है । डी एन ए परीक्षणों का बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है । इसकी अगुवाई करने वालों में से एक है 23 एंड मी, जो कि गूगल के सह संस्थापक सर्गेई ब्रिन की पूर्व पत्नी ऐनी वोजिकी द्वारा स्थापित एक निजी कंपनी है । इसी तरह से जी पी एस पर आधारित परिवहन सम्बन्धी एक एप्लीकेशन है जिसका इस्तेमाल आजकल ज़्यादातर ड्राइवर करते हैं । जल्द ही ऐसा वक़्त आएगा जब आप पुस्तक पढ़ रहे होंगे तो पुस्तक आपको पढ़ रही होगी ।
  • युवाल नोआ हरारी ने अपनी लेखनी को आख़िरी मुकाम पर पहुँचाते हुए लिखा है कि जिस रूप में होमो सेपियंस को हम जानते हैं, उस रूप में वह अपने ऐतिहासिक विकास की सारी मंज़िलें पूरी कर चुका है और वह भविष्य में प्रासंगिक नहीं रह जाएगा । इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि हमें होमो डेयस अर्थात् मनुष्य के एक अधिक उत्कृष्ट रूप की रचना के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना चाहिए । होमो डेयस में कुछ अनिवार्य मानवीय लक्षण बरकरार रहेंगे, लेकिन इसी के साथ उसमें कुछ प्रोन्नत शारीरिक और मानसिक क़ाबिलियतें होंगी, जो उसको अत्यंत परिष्कृत अ- चेतन ऐल्गरिदमों के विपरीत भी बेहतर ढंग से काम करने में सक्षम बनाएँगी । चूँकि बुद्धिमत्ता चेतना से विलग हो रही है, और चूँकि अ- चेतन बुद्धिमत्ता अन्धाधुन्ध रफ़्तार से विकसित हो रही है इसलिए अगर मनुष्य इस खेल में बनें रहना चाहते हैं तो उनको सक्रिय रूप से अपने मानस को प्रोन्नत करना अनिवार्य है ।
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