Skip to content
Menu
The Mahamaya
  • Home
  • Articles
  • Tribes In India
  • Buddhist Caves
  • Book Reviews
  • Memories
  • All Posts
  • Hon. Swami Prasad Mourya
  • Gallery
  • About
The Mahamaya
buddhism in arunachal pradesh

ज्ञान, शांति और प्रगति का प्रतीक- तवांग मठ, अरुणाचल प्रदेश

Posted on अगस्त 14, 2020अगस्त 14, 2020

भारत के अरुणाचल प्रदेश में समुद्र तल से 10,000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित तवांग बौद्ध मठ सम्पूर्ण मानवता के लिए ज्ञान, शांति और प्रगति का प्रतीक है। यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। तवांग दो शब्दों से मिलकर बना है-त+वांग,त का अर्थ है- घोड़ा और वांग का अर्थ है चुनना, अर्थात् घोड़े द्वारा चुना गया।

यह भारत का सबसे बड़ा बौद्ध मठ है और तिब्बत के ल्हासा शहर में स्थित पोताला महल के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मठ है। तवांग नदी की घाटी में, तवांग कस्बे के निकट स्थित इस मठ को बौद्ध भिक्षु अंतर्राष्ट्रीय धरोहर मानते हैं। यहां पर भगवान बुद्ध की 25 फ़ीट ऊंची विशाल स्वर्ण प्रतिमा स्थापित की गई है जो बहुत आकर्षक और सुंदर है। यह प्रतिमा कमल रूपी सिंहासन पर विराजमान है। प्रतिमा के अगल बगल सारिपुत्र और मौद्गल्यायन की खड़ी हुई प्रतिमाएं हैं जिनके एक हाथ में डंडा तथा दूसरे में भिक्षा पात्र है। इस मठ को आज से लगभग 300 साल पहले मेराक लामा लोद्रे ग्यास्तो ने बनवाया था। इसको “गाल्देन नामग्याल ल्हास्ते” भी कहा जाता है।

tawang monastry
भगवान बुद्ध की 25 फ़ीट ऊंची विशाल स्वर्ण प्रतिमा

तवांग मठ में लगभग 500 बौद्ध भिक्षु रहते हैं। दूर से देखने पर यह दुर्ग जैसा दिखता है। इसमें लामा के लिए घर, स्कूल, पुस्तकालय और म्यूजियम भी है। इस मठ की दीवारों के निर्माण में पत्थरों का प्रयोग किया गया है जिसमें खूबसूरत चित्र कारी की गई है। “काकालिंग” मठ के प्रवेश द्वार का नाम है जो उत्तर दिशा की ओर है। तवांग मठ तीन तल्ले का बना हुआ है।यहां पर लगभग पूरे वर्ष सर्दी रहती है और बर्फ़ गिरती है। मठ परिसर में 65 भवन हैं। तवांग की इस धरती को “छुपा हुआ स्वर्ग” भी कहते हैं।

तवांग में मुख्यत: “मोनपा” आदिवासी निवास करते हैं। यह लोग बुद्ध धर्म के अनुयाई हैं। यहां की महिलाएं तिब्बती स्टाइल का गाउन पहनती हैं जिसे “चुपा” कहा जाता है। पुरुष जो टी शर्ट पहनते हैं उसे “तोह-थुंग” कहते हैं। तिब्बती स्टाइल के कोट को यहां पर “खंजर” तथा टोपी को “गामा” शोम कहते हैं। यह याक के बालों की बनी होती है। यहां पर गोम्पा के रंगीन फहरते हुए ध्वज पूरे परिदृश्य को अनुपम सुन्दरता प्रदान करते हैं।

तवांग मठ के अलावा यहां पर एक अरगलिंग मठ है जो दलाई लामा का जन्म स्थान है। इसमें दलाई लामा के हाथ और पैरों के निशान हैं जिन्हें दर्शन करने के लिए सुरक्षित रखा गया है। यहीं पर रिग्यलिंग मठ अपने शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। बैठने, ध्यान साधना तथा विपश्यना के लिए अच्छी जगह है।तकसांग मठ भी यहां के हरे-भरे वातावरण में स्थित है। इसे टाइगर्स डेन भी कहा जाता है। यहां पर बौद्ध गुरु पद्मसंभव भी आये थे।

यहां की खूबसूरत चोटियां, छोटे-छोटे गांव, शांत झीलें, पत्थर और बांस के बने मकान वातावरण को जीवंत बनाते हैं। तवांग में फ्रोजन,पंगाग-टेंग-सू और संग्त्सर लेक भी है। तवांग शहर के पास ही वार मेमोरियल बना हुआ है जो 40 फ़ीट ऊंचा है। यह स्मारक 1962 में भारत और चीन के युद्ध में शहीद हुए 2,420 जवानों की स्मृति में 1999 में बनाया गया है। इन अमर सपूतों ने कामेंग ज़िले में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। इस वार मेमोरियल में बुद्ध धर्म की झलक साफ़ दिखाई देती है। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा तेजपुर तथा रेलवे स्टेशन रंगपारा है।

arunanchal pradesh

अरुणाचल प्रदेश में ही समुद्र तल से लगभग 6,000 फ़ीट की ऊंचाई पर मेचुका शहर स्थित है जहां पर महायान सम्प्रदाय का 400 साल पुराना सामतेन योंगचा मठ है। यहां पर कई प्राचीन प्रतिमाएं हैं जिनमें गुरु पद्मसंभव की भी मूर्ति स्थापित है। समुद्र तल से लगभग 21,300 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित गोरीचेन चोटी तवांग में है जो साल भर बर्फ से ढंकी हुई रहती है।

अरुणाचल प्रदेश में अलास जन जाति के द्वारा खूबसूरत बांस की चूड़ियां बनायी जाती हैं। यहां पर लकडी की नक्काशी भी लाजबाब की जाती है।नक्कासी करने वाले कारीगरों को त्रूक्पा कहा जाता है। लोसार यहां का एक त्योहार है जो नववर्ष की शुरुआत पर मनाया जाता है।थामेंगे, सुबनगिरी, सियांग, लोहित और तिरप यहां की हिम पोषित नदियां हैं। सियांग को तिब्बत में साम्पो कहा जाता है जो असम के मैदानों में दिबांग और लोहित के साथ मिलकर ब्रम्हपुत्र बन जाती है। 1993 में जेम्स हिल्टन द्वारा लिखा गया उपन्यास लास्ट होराइजन, अरुणाचल प्रदेश की खूबसूरती का सुंदर चित्रण करता है।

भारत के उत्तर- पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश को उगते सूर्य का पर्वत कहते हैं। यहां देश में सबसे पहले सूर्योदय होता है। 83,743 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए अरुणाचल प्रदेश के दक्षिण में असम, दक्षिण-पूर्व में नागालैंड, पूर्व में म्यांमार, पश्चिम में भूटान तथा उत्तर में तिब्बत की सीमा मिलती है। ईटानगर अरूणाचल प्रदेश की राजधानी है। बोलचाल की मुख्य भाषा हिन्दी है। यहां के लोग मूलतः तिब्बती-बर्मी परिवार से हैं। यह पूर्वोत्तर के राज्यों में सबसे बड़ा राज्य है।

अरुणाचल प्रदेश का अधिकांश भाग हिमालय से ढका हुआ है और यहां पर भारी बारिश होती है। इस प्रदेश की 63 फ़ीसदी आबादी 19 प्रमुख जनजातियों और 85 अन्य जनजातियों से सम्बन्धित है।आदि,गालो, निशि, मोम्पा और आपातानी यहां की मुख्य जनजातियां हैं। अरुणाचल प्रदेश की 20 प्रतिशत जनसंख्या प्रकृति धर्मी है जो जीववादी धर्म, जैसे- डोन्यी- पोलो और रन्गफ्राह को मानती है। शेष 29 फ़ीसदी आबादी हिन्दू, 19 प्रतिशत ईसाई तथा 13 प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध धर्म को मानती है।

अरुणाचल प्रदेश का आधुनिक इतिहास 24 फरवरी 1826 को “यंडाबू संधि” के बाद असम में ब्रिटिश शासन लागू होने के बाद से प्राप्त होता है। 1962 से पहले अरुणाचल प्रदेश को पूर्वोत्तर सीमांत एजेंसी (नेफा) के नाम से जाना जाता था। 1965 तक यहां के प्रशासन की देखभाल विदेश मंत्रालय करता था। 1965 के बाद असम के राज्यपाल के द्वारा यहां का शासन गृह मंत्रालय के अंतर्गत आ गया। 1972 में अरुणाचल प्रदेश को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया और इसका नाम अरुणाचल प्रदेश किया गया।

tawang monastry

20 फरवरी 1987 को यह भारतीय संघ का 24 वां राज्य बना। वर्तमान समय में यहां पर 16 जिले हैं। एक सदनीय विधानसभा है जिसकी सदस्य संख्या 60 है। यहां पर लोकसभा की 2 सीटें तथा राज्य सभा की एक सीट है।अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में खूबसूरत बौद्ध मंदिर है। इसकी छत पीली है। मंदिर का निर्माण तिब्बती शैली में किया गया है। दलाई लामा यहां पर आ चुके हैं। यहीं मंदिर परिसर में जवाहरलाल नेहरु संग्रहालय है।

चीन से विवाद

भारत और चीन के बीच मैकमोहन रेखा को अन्तर्राष्ट्रीय सीमा माना जाता है।लेकिन चीन इसे खारिज करता है। चीन कहता है कि तिब्बत का एक बड़ा हिस्सा भारत के पास है। चीन, अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत बताता है जबकि अरुणाचल प्रदेश को समाहित करते हुए भारत की सम्प्रभुता को अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। 1950 के दशक में तिब्बत को चीन ने अपने देश में मिला लिया तथा 38 हजार वर्ग किलोमीटर अक्साई चिन का इलाका भी अपने कब्जे में ले लिया। यह लद्दाख से जुड़े इलाके थे। चीन ने यहां पर नेशनल हाईवे-219 बनाया है जो उसके पूर्वी प्रांत शिन्जियांग को यहां से जोड़ता है।

इसी विवाद के चलते चीन दलाई लामा को भी अपना विरोधी मानता है। आज़ से लगभग 61 साल पहले 1959 में तिब्बत से भागकर दलाई लामा ने भारत में शरण लिया था, तब से वह निरंतर भारत में ही रह रहे हैं। उस समय चीन में माओत्से तुंग का शासन था। 17 मार्च 1959 को दलाई लामा पैदल ही तिब्बत की राजधानी ल्हासा से निकले थे और 15 दिन की कठिन यात्रा कर 31 मार्च 1959 को वह भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे। 1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल पुरस्कार मिल चुका है।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी (उत्तर-प्रदेश)




पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचाये. पोस्ट को शेयर करने के लिए ‘Share This Post‘ button का उपयोग करें. Thank You 🙂





Previous Post- चंदा देवी तथा कुटुमसर की गुफाएं- छत्तीसगढ़




5/5 (4)

Love the Post!

Share this Post

6 thoughts on “ज्ञान, शांति और प्रगति का प्रतीक- तवांग मठ, अरुणाचल प्रदेश”

  1. पिंगबैक: बौद्ध धर्म का पालना - सिक्किम राज्य - The Mahamaya
  2. डॉ. राज बहादुर मौर्य कहते हैं:
    अगस्त 18, 2020 को 3:15 अपराह्न पर

    धन्यवाद

    प्रतिक्रिया
  3. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    अगस्त 16, 2020 को 6:29 अपराह्न पर

    अरुणांचल सामरिक ही नही बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है। महाभारत में भी इसके उल्लेखनीय दृष्टान्त है।ज्ञानवर्धक लेख के लिए बहुत आभार।

    प्रतिक्रिया
    1. अनाम कहते हैं:
      अगस्त 17, 2020 को 4:31 अपराह्न पर

      राजबहादुर मौर्य,
      धन्यवाद आपको डॉ साहब

      प्रतिक्रिया
  4. सुनील दत्त कहते हैं:
    अगस्त 15, 2020 को 8:39 पूर्वाह्न पर

    सादर नमो बुद्धाय सर
    शानदार
    ऐतिहासिक

    प्रतिक्रिया
    1. अनाम कहते हैं:
      अगस्त 17, 2020 को 4:32 अपराह्न पर

      बहुत बहुत धन्यवाद आपको,भाई सुनील दत्त जी
      – राजबहादुर मौर्य

      प्रतिक्रिया

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

About This Blog

This blog is dedicated to People of Deprived Section of the Indian Society, motto is to introduce them to the world through this blog.

Latest Comments

  • Tommypycle पर असोका द ग्रेट : विजन और विरासत
  • Prateek Srivastava पर प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा : विद्वता, साहस और ममत्व का अनुपम संगम
  • Mala Srivastava पर प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा : विद्वता, साहस और ममत्व का अनुपम संगम
  • Shyam Srivastava पर प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा : विद्वता, साहस और ममत्व का अनुपम संगम
  • Neha sen पर प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा : विद्वता, साहस और ममत्व का अनुपम संगम

Posts

  • अप्रैल 2025 (1)
  • मार्च 2025 (1)
  • फ़रवरी 2025 (1)
  • जनवरी 2025 (4)
  • दिसम्बर 2024 (1)
  • नवम्बर 2024 (1)
  • अक्टूबर 2024 (1)
  • सितम्बर 2024 (1)
  • अगस्त 2024 (2)
  • जून 2024 (1)
  • जनवरी 2024 (1)
  • नवम्बर 2023 (3)
  • अगस्त 2023 (2)
  • जुलाई 2023 (4)
  • अप्रैल 2023 (2)
  • मार्च 2023 (2)
  • फ़रवरी 2023 (2)
  • जनवरी 2023 (1)
  • दिसम्बर 2022 (1)
  • नवम्बर 2022 (4)
  • अक्टूबर 2022 (3)
  • सितम्बर 2022 (2)
  • अगस्त 2022 (2)
  • जुलाई 2022 (2)
  • जून 2022 (3)
  • मई 2022 (3)
  • अप्रैल 2022 (2)
  • मार्च 2022 (3)
  • फ़रवरी 2022 (5)
  • जनवरी 2022 (6)
  • दिसम्बर 2021 (3)
  • नवम्बर 2021 (2)
  • अक्टूबर 2021 (5)
  • सितम्बर 2021 (2)
  • अगस्त 2021 (4)
  • जुलाई 2021 (5)
  • जून 2021 (4)
  • मई 2021 (7)
  • फ़रवरी 2021 (5)
  • जनवरी 2021 (2)
  • दिसम्बर 2020 (10)
  • नवम्बर 2020 (8)
  • सितम्बर 2020 (2)
  • अगस्त 2020 (7)
  • जुलाई 2020 (12)
  • जून 2020 (13)
  • मई 2020 (17)
  • अप्रैल 2020 (24)
  • मार्च 2020 (14)
  • फ़रवरी 2020 (7)
  • जनवरी 2020 (14)
  • दिसम्बर 2019 (13)
  • अक्टूबर 2019 (1)
  • सितम्बर 2019 (1)

Contact Us

Privacy Policy

Terms & Conditions

Disclaimer

Sitemap

Categories

  • Articles (105)
  • Book Review (60)
  • Buddhist Caves (19)
  • Hon. Swami Prasad Mourya (23)
  • Memories (13)
  • travel (1)
  • Tribes In India (40)

Loved by People

“

030031
Total Users : 30031
Powered By WPS Visitor Counter
“

©2025 The Mahamaya | WordPress Theme by Superbthemes.com