Skip to content
Menu
The Mahamaya
  • Home
  • Articles
  • Tribes In India
  • Buddhist Caves
  • Book Reviews
  • Memories
  • All Posts
  • Hon. Swami Prasad Mourya
  • Gallery
  • About
The Mahamaya
borobudur indonesia

विज्ञान, कला और स्थापत्य का अद्भुत संगम – महानतम बोरोबुदुर विहार

Posted on नवम्बर 14, 2020नवम्बर 14, 2020

सन् ७५० से ८५० ई. के मध्य निर्मित तथा वर्ष १९९१ में विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया बोरोबुदुर विहार इंडोनेशिया के मध्य जावा प्रान्त के मगेलांग नगर में स्थित है। महानतम, अद्वितीय तथा विज्ञान, कला, और स्थापत्य का अद्भुत संगम यह विहार महान् गुरू गोतम बुद्ध का एक पूजा तथा तीर्थ स्थल है।

जून २०१२ में इसे विश्व के सबसे बड़े पुरातत्व स्थल के रूप में गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया। महायान बौद्ध शाखा से संबंधित यह विहार आज़ भी संसार में सबसे बड़ा बौद्ध विहार है। इसके निर्माण का अनुमानित समय लगभग ७५ वर्ष है। ५०४ बुद्ध प्रतिमाओं से सुसज्जित यह बौद्ध विहार ६ वर्गाकार चबूतरों पर बना हुआ है। विहार के केन्द्र में प्रमुख गुम्बद के चारों ओर स्तूप वाली ७२ बुद्ध प्रतिमाएं स्थापित हैं।

बोरोबुदुर विहार का निर्माण ९ वीं सदी में शैलेन्द्र राजवंश के कार्यकाल में किया गया।इसकी स्थापत्य कला में इंडोनेशिया की पूर्वज पूजा तथा बौद्ध अवधारणा का मिश्रित रूप है। शैलेन्द्र राजवंश को कट्टर बौद्ध धर्म का अनुयाई माना जाता है। इस विहार की तीर्थयात्रा स्मारक के नीचे से आरम्भ होती है और स्मारक के चारों ओर बौद्ध दर्शन (ब्रम्हांडिक) के तीन प्रतीकात्मक स्तरों,कामधातु (इच्छा की दुनिया), रूप ध्यान (रूपों की दुनिया), और अरूप ध्यान (निराकार दुनिया) से होते हुए शीर्ष पर पहुंचता है। वर्ष में एक बार बैसाख पूर्णिमा के दिन इंडोनेशिया में बौद्ध धर्मावलंबी इस स्मारक पर आकर पवित्र उत्सव मनाते हैं।

borobudur
बैसाख पूर्णिमा के दिन बोरोबुदुर विहार

बोरोबुदुर विहार के अस्तित्व का विश्व स्तर पर ज्ञान सन् १८१४ में सर थामस स्टैनफोर्ड रैफल्स द्वारा लाया गया। जावा १८११ से १८१६ के मध्य ब्रितानी प्रशासन के अधीन रहा। इसी दौरान थामस स्टैनफोर्ड रैफल्स यहां लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल बन कर आए थे।वर्ष १९७५ से १९८२ के मध्य इंडोनेशिया सरकार और यूनेस्को के द्वारा इसकी मरम्मत की गई। बोरोबुदुर इंडोनेशिया का सबसे अधिक दौरा किया जाने वाला पर्यटन स्थल है। वर्ष १९७४ में स्मारक को देखने २ लाख ६० हजार पर्यटक यहां आए थे जिनमें ३५ हजार विदेशी थे। १९९० के दशक तक यह संख्या बढ़कर २५ लाख तक पहुंच गई थी जिसमें ८० प्रतिशत देशी थे।

इंडोनेशिया में प्राचीन मंदिरों को चंडी कहा जाता है। अतः बोरोबुदुर मंदिर को कई बार चंडी बोरोबुदुर भी कहा जाता है। बोरोबुदुर शब्द पहली बार सर थामस रैफल्स की पुस्तक‘ जावा का इतिहास, में प्रयुक्त हुआ है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि बुदुर सम्भवतः आधुनिक जावा भाषा के शब्द ‘ बुद्ध, से बना हुआ है। सन् १३६५ में मजापहित दरबारी एवं बौद्ध विद्वान मपु प्रपंचा द्वारा लिखे तालपत्र में इस स्मारक का नाम बुदुर पवित्र बौद्ध पूजा स्थल नगर करेता गमा आया है।कसपरिस के अनुसार बोरोबुदुर का मूल नाम ‘ भूमि सम्भार भुधार, है जिसका अर्थ ‘ बोधिसत्व के दस चरणों से संयुक्त गुणों का पहाड़, है। बोरोबुदुर को कई सदियों तक ज्वालामुखी की राख और जंगलों ने छुपा कर रखा। इस क्षेत्र की उच्च कृषि उर्वरता के कारण इसे ‘ द गार्डेन आफ़ जावा, यानी जावा का बगीचा भी कहा जाता है।

  • borobudur temple

लगभग १२०० वर्षों के अतीत को अपने अन्तस में संजोए हुए बोरोबुदुर विहार दुनिया की ऐतिहासिक सम्पदा है। ज्ञान और शांति के इस स्थल के दर्शन का सर्वाधिक लोकप्रिय समय सूर्योदय दर्शन है। यहां जालीदार छिद्रों वाले प्रत्येक स्तूप में भगवान बुद्ध की धम्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा में मूर्ति स्थापित की गई है। प्रत्येक स्तूप का आधार कमल पुष्प के आकार में है। हर स्तूप की रचना, ज्यामिति व समरूपता चकित करने वाली है। इसकी सम्पूर्ण संरचना पत्थरों को आपस में फंसा कर की गई है। किसी गारे,चूने व कीलों का उपयोग इसके निर्माण में नहीं किया गया है।

बोरोबुदुर विहार २५०० वर्ग मीटर में फैला हुआ है। इसमें २,६७२ उकेरे हुए चित्रों के पैनल हैं। इसके गलियारों में १४६० शिलाओं पर बुद्ध से जुड़ी कथाओं का वर्णन किया गया है।परिसर में ज्वालामुखी की राख से बने लगभग २० लाख पत्थर मौजूद हैं। ५०० से अधिक स्मारक मौजूद हैं जिनमें से कुछ का पुनर्निर्माण हो चुका है,बाकी आज भी मलबे के रूप में वहां मौजूद हैं।

borobudur temple

समुद्र तल से ८६९ फ़ीट की ऊंचाई पर, एक चट्टान पर, एक सूखी झील की सतह पर ४९ फ़ीट ऊपर निर्मित बोरोबुदुर विहार में बुद्ध प्रतिमाएं भूमि स्पर्श मुद्रा,(पृथ्वी साक्षी है) वार मुद्रा, (परोपकार दान) ध्यान मुद्रा, (एकाग्रता और ध्यान) अभय मुद्रा, (साहस, निर्भयता) वितर्क मुद्रा(तर्क और पुण्य) तथा धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा(घूमता हुआ धर्म का पहिया) में स्थापित हैं। ऊपर से देखने पर बोरोबुदुर एक विशाल तांत्रिक बौद्ध मंडल का रूप प्राप्त करता है। इसका सोपान पिरामिड से लिया गया है। वास्तविक आधार के ऊपर झालरदार आधार बना हुआ है जो आज भी रहस्य है। यहां से ले जाई गई अनेक कलाकृतियां बैंकाक के राष्ट्रीय संग्रहालय में जावा कक्ष में प्रदर्शित की गई हैं।

इंडोनेशिया गणराज्य दक्षिण पूर्व एशिया और ओसिनिया में स्थित एक विशाल देश है। १७५०८ द्वीपों वाले इस देश की आबादी लगभग ४० करोड़ है। यहां की मुद्रा रुपिया है। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह अंडमान सागर में इंडोनेशिया के साथ समुद्री सीमा साझा करते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरु यहां के बाली द्वीप को ‘ दुनिया की सुबह, कहते थे। यह अब मुस्लिम बहुल देश है।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ,अध्ययन रत एम.बी.बी.एस., झांसी,उ.प्र.

No ratings yet.

Love the Post!

Share this Post

1 thought on “विज्ञान, कला और स्थापत्य का अद्भुत संगम – महानतम बोरोबुदुर विहार”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    दिसम्बर 4, 2020 को 3:17 अपराह्न पर

    आपका लेख इंडोनेशिया के समृद्ध और शानदार अतीत की ओर ध्यान आकर्षित करता है। गागर में सागर भरने का आपका प्रयास सराहनीय है।

    प्रतिक्रिया

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

About This Blog

This blog is dedicated to People of Deprived Section of the Indian Society, motto is to introduce them to the world through this blog.

Latest Comments

  • श्रीमती कमलेश मौर्या, भारत पर यात्रा विवरण: बोधगया, सासाराम, औरंगाबाद, राजगीर, नालंदा और पटना की यात्रा, दिनॉंक : 24 सितम्बर से 30 सितम्बर, 2025 तक
  • अनाम पर यात्रा विवरण: बोधगया, सासाराम, औरंगाबाद, राजगीर, नालंदा और पटना की यात्रा, दिनॉंक : 24 सितम्बर से 30 सितम्बर, 2025 तक
  • Vishal Sharma पर यात्रा विवरण: बोधगया, सासाराम, औरंगाबाद, राजगीर, नालंदा और पटना की यात्रा, दिनॉंक : 24 सितम्बर से 30 सितम्बर, 2025 तक
  • Jyoti Verma पर यात्रा विवरण: बोधगया, सासाराम, औरंगाबाद, राजगीर, नालंदा और पटना की यात्रा, दिनॉंक : 24 सितम्बर से 30 सितम्बर, 2025 तक
  • अनाम पर यात्रा विवरण: बोधगया, सासाराम, औरंगाबाद, राजगीर, नालंदा और पटना की यात्रा, दिनॉंक : 24 सितम्बर से 30 सितम्बर, 2025 तक

Posts

  • अक्टूबर 2025 (1)
  • अगस्त 2025 (1)
  • जुलाई 2025 (1)
  • जून 2025 (2)
  • मई 2025 (1)
  • अप्रैल 2025 (1)
  • मार्च 2025 (1)
  • फ़रवरी 2025 (1)
  • जनवरी 2025 (4)
  • दिसम्बर 2024 (1)
  • नवम्बर 2024 (1)
  • अक्टूबर 2024 (1)
  • सितम्बर 2024 (1)
  • अगस्त 2024 (2)
  • जून 2024 (1)
  • जनवरी 2024 (1)
  • नवम्बर 2023 (3)
  • अगस्त 2023 (2)
  • जुलाई 2023 (4)
  • अप्रैल 2023 (2)
  • मार्च 2023 (2)
  • फ़रवरी 2023 (2)
  • जनवरी 2023 (1)
  • दिसम्बर 2022 (1)
  • नवम्बर 2022 (4)
  • अक्टूबर 2022 (3)
  • सितम्बर 2022 (2)
  • अगस्त 2022 (2)
  • जुलाई 2022 (2)
  • जून 2022 (3)
  • मई 2022 (3)
  • अप्रैल 2022 (2)
  • मार्च 2022 (3)
  • फ़रवरी 2022 (5)
  • जनवरी 2022 (6)
  • दिसम्बर 2021 (3)
  • नवम्बर 2021 (2)
  • अक्टूबर 2021 (5)
  • सितम्बर 2021 (2)
  • अगस्त 2021 (4)
  • जुलाई 2021 (5)
  • जून 2021 (4)
  • मई 2021 (7)
  • फ़रवरी 2021 (5)
  • जनवरी 2021 (2)
  • दिसम्बर 2020 (10)
  • नवम्बर 2020 (8)
  • सितम्बर 2020 (2)
  • अगस्त 2020 (7)
  • जुलाई 2020 (12)
  • जून 2020 (13)
  • मई 2020 (17)
  • अप्रैल 2020 (24)
  • मार्च 2020 (14)
  • फ़रवरी 2020 (7)
  • जनवरी 2020 (14)
  • दिसम्बर 2019 (13)
  • अक्टूबर 2019 (1)
  • सितम्बर 2019 (1)

Contact Us

Privacy Policy

Terms & Conditions

Disclaimer

Sitemap

Categories

  • Articles (110)
  • Book Review (60)
  • Buddhist Caves (19)
  • Hon. Swami Prasad Mourya (23)
  • Memories (13)
  • travel (2)
  • Tribes In India (40)

Loved by People

“

032758
Total Users : 32758
Powered By WPS Visitor Counter
“

©2025 The Mahamaya | WordPress Theme by Superbthemes.com