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सुवर्ण भूमि- म्यांमार (भाग-२)

Posted on दिसम्बर 17, 2020दिसम्बर 16, 2020

अद्भुत श्वेडागोन पगोड़ा

म्यांमार की राजधानी यांगून में श्वेडागोन पगोड़ा है। लगभग २५०० साल पहले निर्मित इस स्तूप की ऊंचाई ३२० फ़ीट है। इसमें सोना मढ़ा हुआ है। इसके शिखर पर ७६ कैरेट का हीरा जड़ा हुआ है। इसके घेरे में करीब ७ हजार हीरे और दूसरे कीमती रत्न जड़े हुए हैं।

कन्डोजी झील से पश्चिम में सिंगुटरा पहाड़ी पर स्थित इस पगोड़ा को सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है। इसमें पांच बुद्धों की यादें संग्रहीत हैं- काकुसंध की छड़ी, कोणगमन की पानी की छन्नी, काश्यप के वस्त्र का एक अंश तथा गोतम बुद्ध के बालों के ८ रेशे। इस अति पवित्र और प्राचीन पगोड़ा में ऊपर से बने इसके मुकुट में ५ हजार से अधिक हीरे और २ हजार से अधिक रूबी रत्न जड़े हुए हैं।

श्वेदागोन पगोड़ा को म्यांमार की सांस्कृतिक विरासत का शिखर कहा जाता है। इसमें सोने की १०० प्लेट्स लगी हुई हैं। सितम्बर २०१७ में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां का दौरा किया था तथा विनीत भाव से स्तूप को नमन किया था। यहां पर पहुंचकर उन्होंने कहा था कि ‘ इस जगह का भारत से पुराना नाता है। म्यांमार से हमारी सीमाएं ही नहीं, भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं। हम देश के लिए बड़े और कड़े फैसले लेते हैं। हमारे लिए दल से बड़ा देश है।’ उन्होंने यहां पर एक बोधि वृक्ष भी लगाया। म्यांमार की संसद में कुल ६४२ सीटें हैं जिनमें से २५ प्रतिशत सेना के लिए आरक्षित हैं।

यांगून शहर में ही एक चौखटत्गी बुद्ध मंदिर है। यहां पर भगवान बुद्ध की २१७ फ़ीट से अधिक लम्बी विशालकाय प्रतिमा है। इसका निर्माण सन् १९७३ में हुआ है। पुनीत अवशेषों की स्थापना का स्थल महाविझाया पगोड़ा भी यांगून की खूबसूरत जगहों में से एक है।

म्यांमार के प्राचीन शहर बैगान में आज भी लगभग ३,८२२ मंदिर और पगोड़ा के अवशेष हैं। यह यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल है। १३ वीं शताब्दी तक यह पगोन साम्राज्य की राजधानी था।

भौगोलिक खूबसूरती से परिपूर्ण म्यांमार में पहाड़ी श्रृंखला, झरना, झीलें इत्यादि खूब हैं। यहां पर इरावदी नदी को बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। यहां के लोग चावल खूब खाते हैं। म्यांमार में तीन पर्वत श्रृंखलाएं- रखिने योमा, बागो योमा तथा शान पठार हैं।

म्रौक-ऊ तथा बागो यहां के पुरातात्विक स्थल हैं। चूने और पत्थर से बनी पिंडाया गुफाओं में भगवान बुद्ध की वर्षों पुरानी हजारों मूर्तियां और पेंटिंग हैं। म्यांमार के हमिंगल बेल में दुनिया का सबसे बड़ा घंटा भी है। वुपया में तीसरी सदी में बना चैत्य भी प्रसिद्ध है।

बमर समुदाय

वमा या वर्मन, बर्मा का सबसे बड़ा जातीय समुदाय है। यहां के दो तिहाई लोग इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। वर्ष २०१० में इस समुदाय की आबादी लगभग ३ करोड़ थी। यह इरावदी नदी के जल संभर क्षेत्र में बसे हुए हैं। इरावदी नदी की घाटी में सोना पाया जाता है। बमर समुदाय की स्त्रियां और पुरुष दोनों शरीर के निचले हिस्से पर लोंग्यी नाम की लुंगिया पहनते हैं। यह लोग बौद्ध धर्म की थेरवादी शाखा के अनुयाई हैं। बौद्ध पूजा के साथ ही बमर समुदाय में ‘नाट, नाम के दिव्य गणों की भी पूजा की जाती है। कचिन, शान, चिन तथा नागा यहां पर हासिए के समाज हैं।

म्यांमार के बमर समुदाय में बौद्ध भिक्षुओं का बहुत सम्मान होता है। इनके ज्यादा तर गांवों में एक बौद्ध मठ और पगोड़ा (स्तूप) होता है। इसकी देखरेख और खर्च पूरा गांव अपने योगदान से चलाता है। पूर्णिमा के दिन इन स्तूपों पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। आधुनिक पाठशालाओं के बनने से पहले लोग बौद्ध मठों में ही शिक्षा प्राप्त करते थे। बमर समुदाय के अलावा खोंग भी म्यांमार के अराकान प्रदेश का निवासी जन समाज है। यह लोग भी बौद्ध धर्मावलंबी हैं। म्यित्वीना में जिंगपो समुदाय की बहुसंख्या है। इन्हें कचिन भी कहा जाता है। यह भी थेरवादी बौद्ध धर्मावलंबी हैं।

दक्षिण- पूर्व एशिया की सबसे बड़ी झीलों में से एक, इन्दौजी झील भी म्यांमार के म्यित्वीना में है। यहां से ‘लेडो मार्ग, आसाम को जाता है। खाकाबो राजी, दक्षिण पूर्व एशिया का और बर्मा का सबसे ऊंचा पर्वत है। यह कचिन प्रदेश में है और उस बिंदु पर स्थित है जहां पर भारत, बर्मा और चीन की सीमाएं मिलती हैं। इसका शिखर तल, समुद तल से १९२९५ फ़ीट ऊंचा है भारत और बर्मा की सरहद पर १२ हजार ५५२ फ़ीट ऊंचा सारामति पर्वत, पटकाई पहाड़ों का सबसे बुलंद शिखर है।

पटकाई भारत के पूर्वोत्तर में बर्मा के साथ लगी पहाड़ी श्रृंखलाओं का नाम है। इसी में खासी, गारो, जयंतिया श्रृंखला की पर्वत श्रेणियां हैं। पंगसो दर्रा यहां का महत्वपूर्ण दर्रा है। इसकी ऊंचाई ३,७२७ फ़ीट है। भारत को बर्मा से जोड़ने वाली लेडो रोड इसी दर्रे से होकर निकलती है। यह रोड़ असम के लेडो से होते हुए चीन के कुनमिंग तक जाने वाली सड़क है जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनाया गया था। सन् १४४२ में जापानियों ने इसे काट दिया था। वर्ष १९४२ में इसका नामकरण ‘स्टिल वेल, मार्ग कर दिया गया था जो अमेरिका के जनरल जोसेफ स्टिलवेल के नाम पर था।

म्यांमार की मुद्रा का नाम ‘क्यात, है। भारत की आज़ादी के चार माह पहले तक,भारत का रिजर्व बैंक ही बर्मा का केन्द्रीय बैंक था। वर्ष २००५ में म्यांमार की नई राजधानी नैप्यीदा बनायी गई। वर्ष १९५१ में भारत और बर्मा के बीच द्विपक्षीय संधि हुई। १९८७ में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने म्यांमार की यात्रा किया। १२ से १५ अक्टूबर २०११ में म्यांमार के राष्ट्रपति यू थिन सेन भारत दौरे पर आए। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने दो बार, मई २०१२ तथा मार्च २०१४ में म्यांमार की यात्रा किया। अगस्त २०१५ में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने म्यांमार की यात्रा किया।

भारतीय फिल्मों का गीत ‘मेरे पिया गए रंगून, वहां से किया है टेलीफून…! आज भी भारतीय लोगों की जुबान तथा दिलों की धड़कन में बसता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता में रचा बसा म्यांमार भारत के लिए अवसर की धरती है जिसके कण-कण में बुद्ध विराजमान हैं।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, अध्ययन रत एम.बी.बी.एस., झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत

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3 thoughts on “सुवर्ण भूमि- म्यांमार (भाग-२)”

  1. आर यल मौर्य कहते हैं:
    दिसम्बर 19, 2020 को 8:17 पूर्वाह्न पर

    बहूत ही ज्ञानवर्धक लेख है व तथ्यों के साथ राजवहादुर जी को बहूत बहूत धन्यवाद

    प्रतिक्रिया
  2. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    दिसम्बर 17, 2020 को 8:23 अपराह्न पर

    अदभुत और समावेशी लेख के लिए आपका आभार

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 18, 2020 को 11:36 पूर्वाह्न पर

      बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब

      प्रतिक्रिया

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