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- डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी, उत्तर- प्रदेश (भारत), email : drrajbahadurmourya @ gmail. Com, website : the Mahamaya.com
- पुस्तक नेक्सस, इतिहासकार, दार्शनिक और युनिवर्सिटी ऑफ यरूशलम, इज़राइल में इतिहास के प्रोफेसर युवाल नोआ हरारी की कलम से निकली एक कालजयी रचना है । अब तक उनकी पूर्व में प्रकाशित पुस्तकों सेपियन्स, होमो डेयस जैसी अन्य पुस्तकों का वैश्विक स्तर पर 65 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और 4.5 करोड़ से ज़्यादा प्रतियाँ बिक चुकी हैं । युवाल नोआ हरारी समकालीन दौर के सबसे लोकप्रिय और चर्चित लेखकों में से एक हैं । उनकी पुस्तक नेक्सस का हिन्दी अनुवाद वर्ष 2025 में, भारत में मदन सोनी के द्वारा किया गया है । हिन्दी में यह पुस्तक मंजुल पब्लिशिंग हाउस, द्वितीय तल, उषा प्रीत कॉम्प्लेक्स, 42 मालवीय नगर, भोपाल (मध्य- प्रदेश) के द्वारा प्रकाशित की गयी है । नेक्सस का शाब्दिक अर्थ है – सम्बन्ध/ सॉंठ- गॉंठ ।
- पुस्तक के बारे में कवर पेज के अन्दर भाग पर लिखा गया है कि, “नेक्सस मानव इतिहास के माध्यम से यह देखने का प्रयास करती है कि सूचना का प्रवाह हमें यहाँ तक कैसे लाया है । हमें पाषाण युग से लेकर बाइबिल, छापाखाने के आविष्कार, मास मीडिया के उदय और हाल के ही लोकलुभावनवाद के पुनरुत्थान तक ले जाते हुए, युवाल नोआ हरारी हमें सूचना और सत्य, नौकरशाही और मिथकों तथा ज्ञान और शक्ति के बीच जटिल रिश्तों पर विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं । वह इस बात की पड़ताल करते हैं कि रोमन साम्राज्य, कैथोलिक चर्च और सोवियत संघ जैसी व्यवस्थाओं ने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सूचनाओं का अच्छा या बुरा, किस तरह इस्तेमाल किया । वह उन ज़रूरी विकल्पों को विचाराधीन बनाते हैं जिनका सामना हमें करना पड़ता है क्योंकि अमानवीय बुद्धि हमारे अस्तित्व को ही ख़तरे में डाल रही है ।”
- उसी स्थान पर ज़िक्र करते हुए कहा गया है कि, “पिछले एक लाख वर्षों में हम सेपियन्स ने बहुत अधिक शक्ति अर्जित कर ली है । लेकिन हमारी सभी खोजों, आविष्कारों और विजयों के बावजूद आज हम ख़ुद को अस्तित्वपरक संकट की स्थिति में पाते हैं । दुनिया पारिस्थितिकी ध्वंस के कगार पर है । अन्तर्राष्ट्रीय और राजनीतिक तनाव बढ़ रहे हैं और हम उस ए. आई. के युग में तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं जो एक अजनबी सूचना तंत्र है और यह हमें तबाह कर देने का ख़तरा पैदा कर रहा है । हमने जो कुछ भी हासिल किया है, उसके बावजूद हम इतने आत्मविनाशी क्यों हैं ? सूचना सत्य का अपरिष्कृत रूप नहीं है, न ही यह सिर्फ़ एक हथियार है । पुस्तक नेक्सस इन चरम सीमाओं के बीच मध्य- मार्ग की खोज करती है और ऐसा करते हुए हमारी साझा मानवता का पुनरान्वेषण करती है ।”
- पुस्तक के कवर पेज के पिछले हिस्से पर लिखा गया है कि, “कहानियों ने हमें एक साथ ला दिया । पुस्तकों ने हमारे विचारों और हमारे मिथकों को फैलाया । इन्टरनेट ने अन्तहीन ज्ञान का आश्वासन दिया । एल्गॉरिदम ने हमारे रहस्यों को जान लिया और हमें एक- दूसरे के विरूद्ध खड़ा कर दिया । ए. आई. क्या कर सकता है ? नेक्सस इस बात का रोमांचक वृत्तांत है कि हम इस मुकाम तक कैसे पहुँचे और जीवित बने रहने के लिए तथा उन्नति करने के लिए हमें तत्काल कौन से विकल्प अपनाने चाहिए ।”
- पुस्तक नेक्सस के बारे में अपना अभिमत देते हुए रोरी स्टीवर्ट कहते हैं कि, “हरारी हमारी पीढ़ी के सबसे महत्वपूर्ण बुद्धिजीवियों में शामिल हैं- साहसी, मौलिक, विद्वतापूर्ण, उत्तेजक और सम्मोहक । उनकी यह नवीनतम पुस्तक साक्षरता से लेकर ए. आई. तक हर चीज की पुनर्कल्पना करती है और उन सभी अन्य पुस्तकों की तरह दुनिया के प्रति लोगों के नज़रिए को बुनियादी तौर पर बदल देती है ।” स्टीफ़न फ़्राई ने लिखा है कि, “ज़बरदस्त, विचारोत्तेजक और अत्यन्त तर्कपूर्ण । हरारी हमारे समक्ष तेज़ी से निकट आ रहे एक ऐसे भविष्य का नज़ारा पेश करते हैं जो रोमांचकारी और डरावना है । अगर कोई ऐसी पुस्तक है जिसे मैं सभी से- ख़ास तौर से हमारे राजनीतिक, कॉर्पोरेट और सांस्कृतिक लीडरों से- पढ़ने का आग्रह करूँगा, तो वह है नेक्सस ।
- युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि प्रज्ञा या विवेक का जो अर्थ आमतौर पर लिया जाता है, वह है सही निर्णय लेना, लेकिन सही क्या है, यह विभिन्न समाजों, संस्कृतियों या विचारधाराओं के भिन्न-भिन्न मूल्य निर्णयों पर निर्भर करता है । सूचना के अपरिपक्व दृष्टिकोण को समझाते हुए उन्होंने कहा है कि, नस्लवादी लोग अज्ञानी होते हैं, जो जैविकी और इतिहास के तथ्यों से वाक़िफ़ नहीं होते । वे सोचते हैं कि नस्ल एक वैध जैविक कोटि है और साज़िश की नक़ली परिकल्पनाओं ने उन्हें इस बात की पट्टी पढ़ा रखी होती है । इसलिए नस्लवाद का इलाज यह है कि लोगों को अधिक से अधिक जैविक और ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध कराए जाएँ ।
- युवाल नोआ हरारी ने नेक्सस में लिखा है कि हमें यह बात दिमाग़ में रखनी चाहिए कि ए. आई. इतिहास की ऐसी पहली प्रोद्योगिकी है जो स्वयं ही निर्णय ले सकती है और नए विचारों को जन्म दे सकती है । इसके पहले के सारे इंसानी आविष्कारों ने मनुष्य को सक्षम बनाया था, क्योंकि नया औज़ार कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो उसके इस्तेमाल का निर्णय हमेशा हमारे हाथों में हुआ करता था । चाकू और बम खुद नहीं तय करते कि उन्हें किसकी हत्या करनी है । वे गूँगे औज़ार हैं जिनमें सूचना को संसाधित करने और स्वाधीन निर्णय लेने के लिए आवश्यक बुद्धिमत्ता का अभाव होता है । इसके विपरीत, ए. आई. खुद ही सूचना को संसाधित करने की बुद्धि की माँग करता है और इसलिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में मनुष्यों की जगह ले लेता है ।
- सूचना क्या है ? इस अध्याय के अंतर्गत नोआ हरारी ने लिखा है कि खगोलविदों के लिए तारकपुंजों की आकृति और गति विश्व के इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण सूचना होती है । नाविकों के लिए ध्रुवतारा संकेत देता है कि उत्तर दिशा कहाँ है । ज्योतिषियों के लिए नक्षत्र वह ब्रह्माण्डीय लिपि है जो व्यक्तियों और पूरे समाज को भविष्य के बारे में सूचना देती है । कोई भी चीज़ उस वक़्त एक सूचना बन जाती है, जब लोग सत्य को खोजने की कोशिश में उसका उपयोग करते हैं । सत्य की अवधारणा में यह प्रतिज्ञा निहित होती है कि किसी एक सार्वभौमिक यथार्थ का अस्तित्व है । इसलिए सत्य की खोज एक वैश्विक परियोजना है । जहाँ समाजों, राष्ट्रों या संस्कृतियों के प्रतिस्पर्धी विश्वास या भावनाएँ हो सकती हैं लेकिन उनके सत्य परस्पर विरोधी नहीं हो सकते ।
- नोआ हरारी ने लिखा है कि 1915 से 1918 तक अंग्रेज़ी और ऑटोमन साम्राज्यों ने मध्यपूर्व पर नियंत्रण के लिए लड़ाई लड़ी थी । गाजा की पहली लड़ाई (26 मार्च, 1917) और दूसरी लड़ाई (17-19 अप्रैल, 1917) के बीच फ़िलिस्तीन में रह रहे, अंग्रेज़ों के पक्षधर यहूदियों ने नीली (NILI) के गुप्त नाम से जासूसी का एक तंत्र खड़ा किया, जिसका उद्देश्य अंग्रेज़ों को ऑटोमन सेना की गतिविधियों की सूचना देना था । नीली द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना ने बीरशेरा की लड़ाई (31 अक्टूबर, 1917) और थर्ड बैटल ऑफ गाजा (1-2 नवम्बर, 1917) में अन्ततः ऑटोमन मोर्चे को तोड़ने में अंग्रेज़ों की मदद की । 2 नवम्बर, 1917 को ब्रिटेन के विदेश मंत्री आर्थर बेल्फोर ने घोषणा पत्र जारी किया था जिसमें कहा गया था कि ब्रिटिश सरकार फिलिस्तीन को यहूदी लोगों के राष्ट्रीय निवास के रूप में देखने के पक्ष में है ।
- नोआ हरारी ने लिखा है कि दृष्टिकोण और भावनाएँ नक्षत्रों और कबूतरों की ही तरह सार्वभौमिक यथार्थ का अंग हैं । केवल राष्ट्रीयता ही ऐसी चीज़ नहीं है जो लोगों के दृष्टिकोण को प्रभावित करती है । हर व्यक्ति का दुनिया के बारे में एक अलग दृष्टिकोण होता है जिसे विभिन्न शख्सियतों और जीवन -इतिहासों के परस्पर कटाव ने गढ़ा होता है । सटीकता की खोज को उसकी पराकाष्ठा पर ले जाने का नतीजा यह होगा कि हम दुनिया की एक- एक चीज का अलग-अलग निरूपण करने की कोशिश करने लगेंगे । संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के जज डी. ब्रैंडिस ने ह्विटनी बनाम कैलिफ़ोर्निया (1927) नामक मुक़दमे में लिखा था कि गलत वक्तव्य का इलाज है और ज़्यादा बोलना ।
- युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि ज्योतिष विद्या हज़ारों सालों से इतिहास पर ज़बरदस्त प्रभाव डालती रही है और आज भी लाखों लोग अपनी ज़िंदगी के महत्वपूर्ण निर्णय, जैसे कि क्या पढ़ें या किससे शादी करें, आदि लेने से पहले अपने नक्षत्रीय संकेतों को जॉंच लेते हैं । 2021 तक वैश्विक ज्योतिष बाज़ार का मूल्य 12.8 अरब डॉलर का था । इतिहास में ज्योतिष के महत्व को स्वीकार करना ही होगा । रोमन सम्राट निर्णय लेने से पहले नियमतः ज्योतिषियों से परामर्श किया करते थे । कई मुल्कों के शासक आज भी ज्योतिष को बहुत गम्भीरता से लेते हैं । कहा जाता है कि 2005 में म्यांमार की सैनिक सरकार ज्योतिष के परामर्श के आधार पर देश की राजधानी को यांगून से हटाकर नाएप्यीडा ले गई थी । वस्तुतः सूचना का सत्य से कोई अनिवार्य रिश्ता नहीं है बल्कि सूचना विभिन्न चीजों को, वे चाहे युगल हों या साम्राज्य, आपस में जोड़कर नई वास्तविकताओं की रचना करती है ।
- युवाल नोआ हरारी लिखते हैं कि सूचना चीजों को एक विन्यास देती है । कुण्डली प्रेमियों को ज्योतिष परक विन्यास में रखती है । प्रचारपरक प्रसारण मतदाताओं को राजनीतिक तौर पर विन्यस्त करता है और मार्चिंग गीत सैनिकों को सैन्य विन्यास में रखता है । सूचना हमेशा लोगों को जोड़ती है । हमारी सफलता का रहस्य इस बात में है कि हम ढेरों लोगों को आपस में जोड़ने के लिए सूचना का इस्तेमाल करने की प्रतिभा रखते हैं । कैथोलिक चर्च के लगभग 1.4 अरब सदस्य हैं जो बाइबिल और अन्य खास ईसाई क़िस्सों से जुड़े हुए हैं । चीन की आबादी लगभग 1.4 अरब है जो आपस में कम्युनिस्ट विचारधारा और चीनी राष्ट्रवाद के क़िस्सों से जुड़े हुए हैं । विश्व का व्यापारिक तंत्र लगभग 8 अरब सेपियन्स को मुद्राओं, कार्पोरेट्स और ब्रांडों के क़िस्से आपस में जोड़ते हैं।
- सूचना का अपरिपक्व दृष्टिकोण कहता है कि सूचना सत्य की ओर ले जाती है और सत्य का ज्ञान लोगों को शक्ति और विवेक दोनों चीज़ें हासिल करने में मदद करता है । जबकि बड़ी संख्या में लोगों के बीच व्यवस्था क़ायम करने के लिए विश्व के बारे में सत्य बोलना सबसे कारगर तरीक़ा नहीं है । वैज्ञानिक प्रगति के लिए सत्य के प्रति अटल जुडाव अनिवार्य है और यह एक सराहनीय आध्यात्मिक व्यवहार है लेकिन यह विजय दिलाने वाली राजनीतिक युक्ति नहीं है । सत्य अक्सर तकलीफ़देह और परेशान करने वाला होता है और अगर हम उसे अधिक सान्त्वना देने वाला और प्रशंसापूर्ण बनाने की कोशिश करेंगे तो वह सत्य नहीं रह जाएगा । इसके विपरीत, कल्पित किस्सा ज़्यादा लचीला होता है ।
- नोआ हरारी ने लिखा है कि क़िस्से मनुष्यों के द्वारा विकसित की गई पहली निर्णायक महत्व की सूचना प्रौद्योगिकी थी जिसने बड़े पैमाने पर मानवीय सहयोग की बुनियाद रखी और मनुष्यों को पृथ्वी का सबसे अधिक शक्तिशाली प्राणी बनाया । यूक्रेन के कवि बियालिक जिन्हें इज़राइल का राष्ट्रकवि माना जाता है ने यहूदियों के उत्पीड़न पर खूब लेखन किया । हंगरी के यहूदी थियोडोर हर्जेल 1980 के दशक में और बीसवीं सदी के आरम्भिक वर्षों में यहूदीवादी आन्दोलन आयोजित कर रहे थे । उनकी पुस्तक द जूइ़श स्टेट (1896) एक घोषणापत्र था जो फिलिस्तीन में यहूदी राज्य स्थापित करने के हर्जेल के विचार की रूपरेखा प्रस्तुत करता था और द ओल्ड न्यू लैंड (1902) एक स्वप्नदर्शी उपन्यास था जो 1923 के वातावरण में स्थित था और जिसमें हर्जेल द्वारा कल्पित समृद्धशाली यहूदी राज्य का वर्णन था । यह दोनों किताबें यहूदीवादी आन्दोलन को आकार देने में अत्यंत प्रभावशाली रही हैं ।
- यूक्रेनियाई यहूदी बियालिक और हंगेरियाई यहूदी हर्जेल ने यहूदीवाद के लिए वही किया जो उनके पहले कवि तारस शेवचेंको ने यूक्रेनियाई राष्ट्रवाद के लिए, सैंडोर पेट्रोफी ने हंगेरियाई राष्ट्रवाद के लिए और अदम मिकेविश्ज ने पोलैंड के राष्ट्रवाद के लिए किया था । हर ओर के अन्य राष्ट्रीय आंदोलनों को देखते हुए हर्जेल ने लिखा था कि राष्ट्र स्वप्नों, गीतों और फंतासियों से उत्पन्न होते हैं । भारतीय संदर्भ का उदाहरण देते हुए नोआ हरारी ने लिखा है कि हिन्दू पौराणिक कथाओं की आधारभूत कथाओं में से एक रामायण चौबीस हज़ार श्लोकों की है और वह अपने आधुनिक संस्करणों में लगभग 1700 पन्नों में फैली हुई है लेकिन इसकी विपुल लम्बाई के बावजूद हिन्दू इसे याद रखने का और उसका मौखिक वाचन करने में सफल रहे हैं ।
- वर्ष 1987-88 में रामायण को फ़िल्म और टेलीविजन पर 78 एपिसोड में प्रसारित किया गया । यह लगभग दुनिया की सबसे ज़्यादा देखी गयी टेलीविजन सीरीज़ थी जिसे 65 करोड़ दर्शकों ने देखा । बी. बी. सी. की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ जब यह एपीसोड प्रसारित किए जाते थे तो सड़कें वीरान हो जाती थीं, दुकानें बंद रहती थीं और लोग अपने टेलीविजन सेटों के समक्ष जल चढ़ाते थे तथा सेट को मालाएँ पहनाते थे । केंडाल हैवन ने 2007 में प्रकाशित अपनी पुस्तक स्टोरी प्रूफ़ : द साइंस बिहाइंड द स्टार्टलिंग पावर ऑफ स्टोरी में लिखा है कि, “इंसानी दिमाग़ जीवन को समझने, उसे परखने, याद रखने और योजना बनाने के लिए एक प्राथमिक मार्गदर्शक के रूप में किस्सों और क़िस्सों की वास्तुकला पर निर्भर करता है… जीवन क़िस्सों की तरह है, क्योंकि हम क़िस्सों की शब्दावली में ही सोचते हैं ।” क़िस्से तथ्यात्मक, वैचारिक, भावनात्मक और सारगर्भित सूचना के लिए अत्यंत कारगर साधन हैं ।
- भारत का ज़िक्र करते हुए युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि 2014 में, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाया कि शौचालयों का अभाव हिंदुस्तान की एक बड़ी समस्या है । खुले में शौच करना हैज़ा, पेचिस और डायरिया जैसी संक्रामक बीमारियों का बहुत बड़ा कारण है, साथ ही वह स्त्रियों और लड़कियों के समक्ष यौन अत्याचार के ख़तरे पैदा करता है । अपने स्वच्छ भारत अभियान के तहत मोदी ने तमाम भारतीय नागरिकों को शौचालयों की सुविधा उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया और 2014 तथा 2020 के बीच हिन्दुस्तान की सरकार ने इस योजना पर 10 अरब डॉलर खर्च किए जिसके तहत 10 करोड़ से ज़्यादा नए शौचालयों का निर्माण कराया गया ।
- जोसेफ़ हेलर का 1961 में लिखा गया प्रतिष्ठित उपन्यास कैच -22 नौकरशाही द्वारा युद्ध में निभाई जाने वाली केन्द्रीय भूमिका का चित्रण करता है । 1980 के दशक के ब्रिटिश कॉमेडी सीरियल यस मिनिस्टर और यस प्राइम मिनिस्टर ने दिखाया था कि कैसे प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अपने राजनीतिक आकाओं के साथ छल करने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए रहस्यमय नियमों, अस्पष्ट उप- समितियों और दस्तावेज़ों के ढेर का उपयोग करते हैं । 2015 के कॉमेडी ड्रामा द बिग शॉट, जो माइकल लेविस की 2010 की किताब पर आधारित था, ने 2007-8 के आर्थिक संकट में नौकरशाही की जड़ों की छानबीन की थी । वस्तुतः व्यवस्था को क़ायम रखने के लिए नौकरशाही और मिथक दोनों अनिवार्य हैं । दोनों ही ख़ुशी- ख़ुशी व्यवस्था की ख़ातिर सत्य की क़ुर्बानी देने को तैयार रहते हैं ।
- सेंट ऑगस्टीन के मुताबिक़, “ग़लतियाँ करना मानवीय है और ज़िद के साथ ग़लतियाँ करते रहना शैतानियत है ।” नोआ हरारी ने मज़हब के मर्म को किसी अलौकिक सत्ता और अचूक बुद्धि की कल्पना के बारे में लिखा है बैनिंग समुदाय के बीच आत्माओं की मध्यस्थता करने वाले विशेषज्ञ जो अंगगरागा कहलाते हैं, वह पारंपरिक रूप से आत्माओं के साथ संवाद करने वाले हुआ करते थे । इसी प्रकार ब्राज़ील की कालापालो जनजाति में धार्मिक अनुष्ठान अनेताऊ नामक आनुवंशिक अनुष्ठान- अधिकारियों द्वारा सम्पन्न किए जाते थे । प्राचीन सेल्टिक और हिन्दू समाजों में क्रमशः ड्रूइड और ब्राह्मण इस प्रकार के कर्तव्यों को पूरा करते थे । प्राचीन यूनान में पाइथिया डेल्फी के अपोलो के मंदिर की मुख्य पुरोहित होती थी ।
- युवाल नोआ हरारी ने अपनी किताब में लिखा है कि वैज्ञानिक क्रांति के बहुत सारे महत्वपूर्ण नेता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नहीं थे । उदाहरण के लिए निकोलस कॉपरनिकस, रॉबर्ट बॉयल, टाइचो ब्रेहे और रेने डेकार्ट, स्पिनोजा, लाइब्निज, ऑक बर्कले, वॉल्तेयर, दिदरो, रूसो किसी अकादमिक पद पर नहीं थे । 1660 में स्थापित रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन फॉर इम्प्रूविंग नॉलेज और फ्रेंच एकेडमी डेस साइंसेज़ (1666) जैसे वैज्ञानिक संगठनों, फिलॉसॉफिकल ट्रांजैक्शन्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी (1665) और हिस्ट्री डेल एकेडमी रॉयल डेस साइंसेज़ (1699) जैसी वैज्ञानिक पत्रिकाओं और आर्किटेक्ट्स ऑफ द एनसाइक्लोपीडिया (1751-72) जैसे वैज्ञानिक प्रकाशक आनुभाविक साक्ष्यों के आधार पर सूचना का संग्रह करती थीं । जब फिलॉसफिकल ट्रांजैक्शन्स ऑफ द रॉयल सोसायटी के लिए कोई लेख छपने भेजा जाता था तो पत्रिका के सम्पादक जो सबसे पहला सवाल पूछते थे वह यह होता था कि “इसके सच होने का क्या सबूत है ।”
- युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि “वैज्ञानिक क्रांति की शुरुआत अज्ञानता की खोज से हुई थी ।” किताब पर केंद्रित मज़हब मानते थे कि ज्ञान का अचूक स्रोत उनकी पहुँच में है । ईसाइयों के पास बाइबिल थी, मुसलमानों के पास क़ुरान थी, हिन्दुओं के पास वेद थे और बौद्धों के पास त्रिपिटक थी । वैज्ञानिक संस्कृति के पास ऐसी कोई किताब नहीं थी जिनकी इन किताबों के साथ तुलना की जा सकती, न ही वह यह दावा करती थी कि उसका कोई नायक अचूक पैग़म्बर, संत या जीनियस है । वैज्ञानिक परियोजना की शुरुआत अचूकता की कल्पना को नकारने और एक ऐसा सूचना तंत्र तैयार करने के लिए आगे बढ़ने के साथ होती थी, जो ग़लतियों को अपरिहार्य मानता था । आत्म सुधार की प्रक्रिया ग़लतियाँ करने की सम्भावना को अंगीकार करती है । वस्तुतः विज्ञान एक सामूहिक उद्यम है, जो किसी एक वैज्ञानिक या किसी एक अचूक किताब की बजाय सांस्थानिक सहयोग पर निर्भर करता है ।
- नोआ हरारी ने लिखा है कि विज्ञान के इतिहास में सर्वाधिक सराहनीय क्षण वे रहे हैं जब मान्य ज्ञान को उलट दिया गया है और नए सिद्धांतों का जन्म हुआ है । मार्च, 2000 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने एक विशेष आयोजन करके यहूदियों, विधर्मियों, स्त्रियों और देशज समुदायों के खिलाफ किए गए ऐतिहासिक अपराधों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त के लिए माफ़ी माँगी थी । उन्होंने कुछ लोगों द्वारा सत्य की सेवा में किए गए अपराधों के लिए माफ़ी माँगी । इसी तरह जब 2022 में पोप फ़्रांसिस ने कैनेडा में चर्च द्वारा संचालित आवासीय स्कूलों में देशज लोगों के खिलाफ किए गए दुराचरण के लिए माफ़ी माँगी तो उन्होंने कहा था, “मैं क्षमा माँगता हूँ, ख़ास तौर से, जिस तरह से चर्च के कई सदस्यों ने सांस्कृतिक विनाश और बलात् धर्मांतरण की योजना में सहयोग किया था ।”
- डायग्रॉस्टिक ऐंड स्टेटिस्टिकल मैन्युअल ऑफ मेटल डिसऑर्डर नामक पुस्तक को मनोचिकित्सकों की बाइबिल की संज्ञा दी जाती है । 1952 में इस किताब का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ था । रोनाल्ड हटन की पुस्तक द विच : ए हिस्ट्री ऑफ फ़ियर येल यूनिवर्सिटी प्रेस से 2017 में प्रकाशित हुई । 2011 में रसायन शास्त्री डान शेटमेन को क्वासीक्रिस्टल के नाम से की गई एक खोज के लिए रसायन शास्त्र के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया । नोबेल समिति ने कहा कि “उनकी खोज अत्यंत विवादास्पद थी लेकिन अन्ततः उन्होंने वैज्ञानिकों को पदार्थ की प्रकृति मात्र पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य किया ।” उन्नीसवीं सदी के बाद के वर्षों में जॉर्ज कैंटर ने अनंत संख्याओं (इन्फाइनाइट नंबर्स) का अपना सिद्धांत विकसित किया जो बीसवीं सदी की ज़्यादातर गणित के लिए आधार बना ।
- अमेरिका में 11 सितंबर के आतंकवादी हमले के बाद उसके जबाब में इराक पर हमला करने को लेकर अक्टूबर 2002 में अमेरिकी जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने सरकार को हमले का अधिकार देने के लिए मतदान किया । प्रस्ताव हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में 133 के जबाब में 296 यानी 69 प्रतिशत बहुमत और सीनेट में 23 के जबाब में 77 के बहुमत से पारित हुआ । लोकतंत्र केवल तब नहीं मरता, जब लोग बात करने के लिए आज़ाद नहीं होते बल्कि वह तब भी मरता है जब लोग सुनने के इच्छुक या सुनने में सक्षम नहीं होते ।
- अधिनायकवाद पर कलम चलाते हुए युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि 1930 के दशक में स्तालिन के भीषण आतंक के दौरान लाल सेना के 1 लाख, 44 हज़ार अधिकारियों में से 10 प्रतिशत को एन के वी डी द्वारा या तो गोली मार दी गयी या फिर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया था । इनमें से 186 में से 154 डिवीजन कमांडर, नौ में से 8 एडमिरल, 15 में से 13 जनरल और 5 में से 3 मार्शल शामिल थे । सोवियत संघ में स्तालिन के समय खुली बातचीत करने से ज़्यादा ख़तरनाक और कुछ नहीं था । इसी तरह प्राचीन रोमन सम्राट नीरो ने अपनी मॉं, एग्रीपिना, अपनी पत्नी, ऑक्टेविया की हत्या का इंतज़ाम किया था । नीरो ने कुछ ऐसे अत्यंत सम्मानित और शक्तिशाली कुलीनों को भी फाँसी की सजा दी थी या उन्हें देश निकाला दिया था, जिन्होंने सिर्फ़ अपना असंतोष ज़ाहिर किया था या उसके बारे में चुटकुले सुनाए थे ।
- युवाल नोआ हरारी ने 2019 के अपने सोवियत दौरे के दौरान उन्हें गाइड कर रहे एक व्यक्ति को उद्धृत करते हुए लिखा है कि, “अमेरिकी लोग इस धारणा के साथ बड़े होते हैं कि सवालों का नतीजा जबाब होते हैं । लेकिन सोवियत नागरिक इस धारणा के साथ बड़े हुए थे कि सवालों के नतीजे मुसीबत होते हैं । सोवियत संघ में पहला पर्सनल कम्प्यूटर 1984 में प्रकट हो सका । तब संयुक्त राज्य अमेरिका में लोगों के पास एक सौ दस लाख पीसी थे ।जबकि कम्प्यूटर का जन्म 1940 में हो गया था । जिस तरह से विमान पंख विकसित किए बिना परिंदों से ज़्यादा तेज़ उड़ते हैं वैसे ही कम्प्यूटर भी बिना भावनाएँ विकसित किए समस्याओं को मनुष्यों से बेहतर तरीक़े से सुलझा लेते हैं ।
- नोआ हरारी ने सोवियत तानाशाह स्तालिन की मौत का एक रोचक किस्सा सुनाया है । उन्होंने लिखा है कि 1 मार्च, 1953 को स्तालिन को दिल का दौरा पड़ा । वह अपने डाचा (मकान) में गिर पड़ा, कपड़ों में ही यूरिन कर दिया और मदद के लिए पुकारने में असमर्थ अपने गीले पायजामे में कई घंटे तक पड़ा रहा । रात को क़रीब साढ़े दस बजे जब एक गार्ड ने विश्व साम्यवाद के उस अन्दरूनी एकांत कक्ष में प्रवेश करने की हिम्मत जुटाई, तो वहाँ उसने अपने नेता को फर्श पर पड़ा पाया । 2 मार्च को सुबह 3 बजे पोलित ब्यूरो के सदस्य डाचा में पहुँचे और इस पर बहस करने लगे कि अब क्या किया जाए । उसके बाद कई घंटों तक कोई भी व्यक्ति डॉक्टर को बुलाने का साहस नहीं जुटा पाया क्योंकि अगर स्तालिन होश में आ गए और उन्होंने ऑंखें खोलकर अपने बिस्तर के इर्द -गिर्द डॉक्टर को मँडराते हुए देख लिया तो वह समझ जाएगा कि यह हमारी हत्या की साज़िश है । इस प्रकार भय और डर ने स्तालिन की ज़िंदगी ले ली ।
- बुद्धि और चेतना बहुत अलग हैं । बुद्धिमत्ता लक्ष्य हासिल करने की क़ाबिलियत है और चेतना व्यक्ति परक एहसासों, जैसे कि दर्द, आनन्द, प्रेम और घृणा को अनुभव करना है । हमारे श्वसन से लेकर पाचन तक की शरीर की 99 प्रतिशत क्रियाएँ बिना किसी सचेत निर्णय के चलती रहती हैं । एक औसत व्यक्ति एक मिनट में 250 शब्द पढ़ सकता है । जिस तरह मछली पानी में रहती है उसी तरह हम मनुष्य भी डिजिटल नौकरशाही में रहते हैं और डेटा को निरंतर अपनी साँसों में खींचते और छोड़ते रहते हैं । हमारी हर गतिविधि एक डेटा छोड़ती है जिसे उसके पैटर्नों की शिनाख्त के लिए संचित और विश्लेषित किया जा सकता है ।
- 1979 में ईरान के इस्लामिक मज़हबी तंत्र बन जाने के बाद नई सरकार ने औरतों को हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया था । 2022 में ईरान ने हिजाब क़ानूनों को अमल में लाने का ज़्यादातर ज़िम्मा चेहरे की पहचान करने वाले एल्गोरिदम की देशव्यापी प्रणाली को सौंप दिया, जो भौतिक स्पेस और ऑनलाइन वातावरण दोनों पर निरंतर निगरानी रखता है । इसके कुछ ही समय बाद, 16 सितंबर, 2022 को ईरान की नैतिकतावादी पुलिस की हिरासत में 22 वर्षीय लड़की महसा अमीनी की मौत हो गई, जिसे इसलिए गिरफ़्तार किया गया था कि उसने हिजाब ठीक से नहीं पहना हुआ था । इस पर प्रदर्शनों का सैलाब फूट पड़ा, जिसे स्त्री, जीवन, स्वतंत्रता आंदोलन के नाम से जाना जाता है । सितम्बर, 2023 में महसा अमीनी की पुण्यतिथि पर ईरान की संसद ने एक नया और ज़्यादा सख़्त हिजाब विधेयक पारित किया । इस नए क़ानून के मुताबिक़ जो औरतें हिजाब नहीं पहनेंगी उन्हें भारी जुर्माना भरने और दस साल तक की क़ैद की सज़ा दी जा सकती है ।
- अमेरिकी अध्येता शोशाना जुबोफ ने वाणिज्यिक निगरानी प्रणाली को निगरानी पूंजीवाद की संज्ञा दी है । प्रतिष्ठा बाज़ार ने हमेशा ही लोगों को नियंत्रित किया है और उन्हें प्रचलित सामाजिक मानकों का पालन करने के लिए बाध्य किया है । अधिकांश समाजों में लोगों को अपना धन गवां देने की बजाय अपनी प्रतिष्ठा गँवा देने का भय बना रहता है । आर्थिक तनाव की तुलना में शर्मिंदगी और अपराध बोध के कारण अधिक लोग आत्महत्या करते हैं । फ़िलिस्तीनी दार्शनिक सारी नुसीबेह ने कहा था कि, “यहूदी और मुसलमान, मज़हबी विश्वासों के आधार पर काम करते हुए और परमाणु क्षमताओं के बल पर, एक चट्टान के लिए इतिहास के निकृष्टतम नरसंहार में शामिल होने के लिए तैयार बैठे हैं ।” वे उन अणुओं के लिए नहीं लड़ते जिनसे यह चट्टान निर्मित है । वे उसकी पवित्रता के लिए लड़ते हैं, कुछ- कुछ वैसे ही जैसे कि बच्चे पोकेमॉन के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं ।
- अलेक्जेंडर सोल्झेनित्सिन ने अपनी किताब द गुलाग आर्कपेलगो (1973) में लेबर कैम्पों और उन्हें रचने तथा क़ायम रखने वाले सूचना तंत्रों का उल्लेख किया है । इस पुस्तक में लेखक ने उदाहरण देते हुए लिखा है कि ताली बजाना वफ़ादारी का प्रतीक है । पत्रकार मैक्स फिशर ने वर्ष 2022 में प्रकाशित अपनी किताब द केऑस मशीन में लिखा है कि यूट्यूब एल्गोरिथम ब्राज़ील में उग्र दक्षिणपंथ के उदय और जेयर बोल्सानेरो को हाशिये के व्यक्ति से ब्राज़ील का राष्ट्रपति बनाने वाला एक महत्वपूर्ण इंजन साबित हुआ । सोशल मीडिया लोगों को जोड़ने में, पहले वंचित रह आए समूहों को अभिव्यक्ति देने तथा नए मूल्यवान आन्दोलनों और समुदायों को संगठित करने में बहुत मददगार रहा है । इसने मानवीय सृजनात्मकता की अपूर्व लहर को भी आन्दोलित किया है ।
- कम्प्यूटर अचेतन सत्ताएँ हैं जो किसी चीज़ में विश्वास नहीं करतीं । उनमें विषयपरकता का अभाव है । बावजूद इसके कम्प्यूटरों के बारे में जो एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात समझने की है, वह यह है कि जब ढेर सारे कम्प्यूटर एक- दूसरे से संवाद करते हैं तो वे अंतर- कम्प्यूटर वास्तविकताएँ रच सकते हैं जो उन अंतर्विषयी वास्तविकताओं जैसी होंगी जिन्हें इंसानी तंत्र रचते हैं । गूगल एल्गोरिथम विभिन्न मानदंडों जैसे कि कितने लोग उस वेबसाइट पर जाते हैं और कितनी अन्य वेबसाइटें उससे जुड़ी हुई हैं, पर अंक प्रदान करके उस वेबसाइट की श्रेणी निर्धारित करता है । यह श्रेणी अपने आप में अंतर- कम्प्यूटर वास्तविकता है । कम्प्यूटर एक- दूसरे से सीधे संवाद कर सकते हैं, उन जगहों पर पैटर्नों को पहचान सकते हैं जहां हम नहीं पहचान पाते ।
- युवाल नोआ हरारी लोकतंत्र के बारे में लिखते हैं कि, “उदार लोकतंत्र का सबसे बड़ा फ़ायदा यह होता है कि उसमें आत्म -सुधार की मज़बूत प्रक्रियाएँ मौजूद रहती हैं जो कट्टरतावाद की अतियों पर लगाम लगाती हैं और अपनी ग़लतियों को पहचानने तथा कार्रवाइयों के विभिन्न तरीक़ों को आजमाने की हमारी क़ाबिलियत को बरकरार रखती हैं ।” लोकतंत्र के बने रहने के लिए थोड़ी- बहुत अकुशलता एक लक्षण है, कोई खोट नहीं । व्यक्तियों की निजता और आज़ादी की रक्षा के लिए, सबसे अच्छा यही है कि पुलिस और बॉस दोनों को ही हमारे बारे में हर किसी चीज़ की जानकारी न हो । सामाजिक वास्तविकता प्रगति के समर्थकों की समझ के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा जटिल है और लोग दुनिया को समझने तथा भविष्य का पूर्वानुमान करने में बहुत अच्छे साबित नहीं होते ।
- नोआ हरारी ने संयुक्त राज्य अमेरिका के एक मुकदमे का हवाला देते हुए लिखा है कि सन् 1951 में कान्सास प्रांत के टोपेका क़स्बे में स्थित बोर्ड ऑफ एजुकेशन के नौकरशाहों ने ओलिवर ब्राउन की बेटी को उनके घर के क़रीब स्थित प्राथमिक पाठशाला में प्रवेश देने से इंकार कर दिया । ब्राउन ने, बारह अन्य परिवारों के साथ, जिनके साथ भी वैसा ही सुलूक किया गया था, टोपैको बोर्ड ऑफ एजुकेशन के खिलाफ मुक़दमा दायर कर दिया, जो अन्ततः संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया । बोर्ड के सारे सदस्य गोरे थे, ब्राउन अश्वेत थे और पास का वह स्कूल गोरे बच्चों के लिए अलग- थलग स्कूल था । ऐसे में यह समझना आसान था कि नौकरशाहों ने ब्राउन की बेटी को नस्लवाद की वजह से स्कूल में दाख़िला देने से मना कर दिया था । सुप्रीम कोर्ट ने अन्ततः ब्राउन के पक्ष में फ़ैसला सुनाया ।
- 9 जुलाई, 1955 को अल्बर्ट आइंस्टीन, बट्रेंड रसेल और कई अन्य वैज्ञानिकों और विचारकों ने मिलकर रसेल- आइंस्टीन घोषणा- पत्र प्रकाशित किया था जिसमें लोकतंत्रों और तानाशाहियों, दोनों के नेताओं से परमाणु युद्ध को रोकने के लिए सहयोग का आह्वान किया गया था । इस घोषणा- पत्र में कहा गया था कि, “हम मनुष्यों के रूप में मनुष्यों से अपील करते हैं : अपनी मानवता को याद रखें और बाक़ी सब भूल जाएँ । अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो एक नए स्वर्ग का मार्ग खुला हुआ है, अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो आप के सामने सार्वभौमिक मृत्यु का ख़तरा है ।” वस्तुतः मनुष्यता कभी एकजुट नहीं रही है । हम हमेशा बुरे लोगों से परेशान रहे हैं और अच्छे लोगों के मतभेदों से भी ।
- आधुनिक तकनीक पर क़लम चलाते हुए नोआ हरारी लिखते हैं कि गूगल, फ़ेसबुक और एमेजॉन दुनिया भर छा जाने के लिए बेताब हैं । मैकडोनाल्ड एक विश्वव्यापी श्रृंखला है जहाँ पर हर दिन पाँच करोड़ लोग भोजन करते हैं । गूगल सर्च इंजन का इस्तेमाल प्रतिदिन दो से तीन अरब के बीच लोगों के द्वारा किया जाता है जो 8.5 अरब जानकारियाँ खोजते हैं । गूगल दुनिया की सारी जानकारी को एक जगह व्यवस्थित करना चाहता है । एमेजॉन दुनिया की सारी ख़रीदारी को केन्द्रीकृत करना चाहता है । फ़ेसबुक दुनिया के सभी क्षेत्रों को आपस में जोड़ना चाहती है । सन् 2000 में जब गूगल का सर्च इंजन अपने शुरुआती क़दम उठा रहा था तब एमेजॉन किताबों की एक मामूली ऑनलाइन शॉप हुआ करती थी ।
- वर्ष 2016 में द इकॉनॉमिस्ट ने फ्रॉम नॉट वर्किंग टू न्यूरल नेटवर्किंग शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें पूछा गया था कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जो अपने शुरुआती दिनों से अहंकार और मोहभंग से जुड़ा रहा है, अचानक प्रौद्योगिकी का सबसे लोकप्रिय क्षेत्र कैसे बन गया ? 2017 में, चीन की सरकार ने न्यू जनरेशन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस प्लान जारी किया जिसमें घोषणा की गयी कि 2030 तक चीन के ए आई सिद्धांत प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोग विश्व में नेतृत्व का स्तर प्राप्त कर लेंगे, जिससे चीन दुनिया का प्राथमिक एआई नवाचार केंद्र बन जाएगा ।
- अन्ततः मेरा भी अपना मानना है कि युवाल नोआ हरारी की विश्व विख्यात रचना नेक्सस सभी के लिए एक बेहतरीन पठनीय पुस्तक है । यह हमारी समझदारी में इज़ाफ़ा करती है और दृष्टिकोण को विस्तृत बनाती है ।
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