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सेपियन्स : पुस्तक समीक्षा / महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ

Posted on अप्रैल 11, 2023अक्टूबर 21, 2023

(मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास)

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी (उत्तर-प्रदेश), भारत । email : drrajbahadurmourya. gmail.com, website : themahamaya.com (विशेष आभार : बुन्देलखण्ड कॉलेज, झाँसी (उत्तर- प्रदेश) में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. अनुराग सिंह का, जिन्होंने सेपियन्स पुस्तक को पढ़ने के लिए मुझे प्रेरित किया तथा बेटी इं. सपना मौर्या का जिन्होंने मुझे यह पुस्तक उपलब्ध कराई)

1- सेपियन्स पुस्तक मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास है जो हिब्रू विश्वविद्यालय, यरूशलम, इज़राइल में इतिहास विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ. युवाल नोआ हरारी द्वारा लिखी गई है । डॉ. युवाल नोआ हरारी ने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से इतिहास में पी एच डी की उपाधि प्राप्त की है । उनका अनुसंधान व्यापक विषयों पर केन्द्रित है, जैसे कि : इतिहास और जीव विज्ञान का क्या सम्बन्ध है ? क्या इतिहास में इंसाफ़ है ? क्या इतिहास के विस्तार के साथ लोग सुखी हुए ? यह पुस्तक अंतर्राष्ट्रीय बेस्ट सेलर में शामिल है और दुनिया की तीस से ज़्यादा भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है । प्रस्तुत पुस्तक को नोवा हरारी ने अपने पिता श्लोमो हरारी की प्रिय स्मृति में समर्पित किया है ।

2- युवाल नोआ हरारी द्वारा लिखित मूल अंग्रेज़ी पुस्तक सेपियन्स : अ ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ ह्यूमनकाइंड का प्रकाशन वर्ष 2014 में पहली बार हार्विल सेकर द्वारा किया गया था । भारत में इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद मदन सोनी द्वारा किया गया है जो वर्ष 2018 में पहली बार प्रकाशित हुआ । हिन्दी में इसे मंजुल पब्लिकेशन हाउस, कारपोरेट एवं सम्पादकीय कार्यालय द्वितीय तल, उषा प्रीति कॉम्प्लेक्स, 42, मालवीय नगर, भोपाल द्वारा प्रकाशित किया गया है । पुस्तक का ISBN : 978-93-88241-17-5 है । वर्ष 2021 में इस पुस्तक का सातवाँ हिन्दी संस्करण प्रकाशित हुआ है जो लगभग 450 पेज की है ।

3- मदन सोनी, जिन्होंने सेपियन्स पुस्तक का हिन्दी में तर्जुमा किया है, हिन्दी के लेखक और साहित्यालोचक हैं । वर्ष 1952 में सागर, मध्यप्रदेश में जन्में तथा मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित राष्ट्रीय कला केंद्र, भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी पद से सेवानिवृत्त सोनी जी ने दुनिया के कई प्रसिद्ध लेखकों और चिंतकों की रचनाओं का अनुवाद किया है, जिनमें शेक्सपियर, लोर्का, एडवर्ड बॉण्ड, मार्ग्रेट ड्यूरास, जाक देरीदा, एडवर्ड सईद आदि शामिल हैं । वे फ़्रांस में नान्त के उच्च अध्ययन संस्थान के फ़ैलो भी रहे हैं । उन्हें अनेक पुरस्कार और सम्मानों से अलंकृत किया गया है जिनमें मानव संसाधन विकास मंत्रालय, संस्कृति विभाग की वरिष्ठ अध्ययन वृत्ति और रज़ा फ़ाउन्डेशन पुरस्कार शामिल हैं ।

4- युवाल नोआ हरारी की पुस्तक सेपियन्स के बारे अपना अभिमत देते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि, “रूचिकर और उत्तेजक… यह पुस्तक हमें एक दृष्टिकोण देती है कि हम कितने अल्पकाल से इस धरती पर हैं”। लिटरेरी रिव्यू का मन्तव्य है, “मानव इतिहास के 70,000 सालों का तेज़ रफ़्तार, बुद्धिमत्ता पूर्ण और चुनौतियों से भरा सफ़र ।” मेल ऑन संडे, बुक्स ऑफ द इयर का मानना है कि, “इसे पढ़ना एक मानसिक व्यायाम, ठण्डे स्नान और ताजगी से भर देने वाले अभ्यास का एहसास कराता है और वह भी आपके अपने घर के आरामदेह वातावरण में ।” फ़ाइनैन्शियल टाइम्स ने सेपियन्स पुस्तक के बारे में कहा कि, “एक ज़बरदस्त महत्त्वाकांक्षा से युक्त मानव जाति का इतिहास… जीवन्त, उत्प्रेरक और ज्ञानवर्धक ।”

5- सेपियन्स पुस्तक के बारे में संडे टाइम्स का अभिमत है कि, “सेपियन्स उस पुस्तक की तरह है जो आपके दिमाग़ की दुविधा को साफ़ कर देती है । हरारी एक बौद्धिक कलाबाज़ हैं जिनके तार्किक करतब देखकर आप सराहना के भाव से चकित रह जाते हैं । उनके लेखन से शक्ति और स्पष्टता प्रस्फुटित होती है और वह दुनिया को विचित्र और नया बना देती है ।” द टाइम्स का मानना है कि, “हरारी लिख सकते हैं, उस अर्थ में नहीं जिस अर्थ में ज़्यादातर लेखक लिख सकते हैं, बल्कि, सचमुच लिख सकते हैं । बुद्धिमत्ता, स्पष्टता, सौष्ठव और अद्भुत कौशल के साथ ।” डेली टेली ग्राफ़ की टिप्पणी है, “हरारी जीवविज्ञान, विकास वादी मानव विज्ञान और अर्थशास्त्र के बारे में उतनी ही ताजगी से भर देने वाली स्पष्टता रखते हैं जितनी ऐतिहासिक प्रवृतियों की चर्चा करते हुए… आप उनके साथ बने रहेंगे तो बहुत कुछ सीखेंगे ।”

6- सेपियन्स पुस्तक के बारे में दैनिक जागरण का अभिमत है कि यह, “मानव जाति के विकास का संक्षिप्त इतिहास” है । जबकि दैनिक भास्कर की टिप्पणी है, “नीरस इतिहास को दिलचस्प तरीक़े से बताने वाले हरारी आने वाले कल की बात करते हैं ।” एक लाख साल पहले पृथ्वी पर कम से कम छह मानव प्रजातियाँ हुआ करती थीं । आज महज़ एक प्रजाति है … और वह हैं हम… होमो सेपियन्स । हमारी प्रजाति वर्चस्व की लड़ाई में किस तरह से कामयाब हुई ? हमारे भोजन खोजने वाले पूर्वज नगरों और राजवंशों का निर्माण करने के लिए क्यों एकजुट हुए ? हमने देवताओं, राष्ट्रों और मानव अधिकारों में विश्वास करना कैसे शुरू किया ? आने वाली सहस्राब्दियों में हमारी दुनिया कैसी होगी ? स्पष्ट, पर्याप्त रूप से विस्तृत और उत्तेजक सेपियन्स मनुष्य होने के बारे में पहले से बनी हमारी सोच को चुनौती देती है : हमारे विचारों, हमारे कर्मों, हमारी ताक़त… और हमारे भविष्य को ।


7- सेपियन्स पुस्तक के पहले पृष्ठ पर ही लिखा हुआ है कि, “हमारे विश्वास चाहे जो भी हों, लेकिन मैं हम सभी को हमारी दुनिया के बुनियादी आख्यानों पर सवाल उठाने के लिए, अतीत की घटनाओं को वर्तमान के सरोकारों से जोड़कर देखने के लिए और विवादास्पद मुद्दों से न डरने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ ।” लेखन की दृष्टि से पूरी पुस्तक चार भागों में विभाजित है । भाग एक मे संज्ञानात्मक क्रांति, भाग दो में कृषि क्रांति भाग तीन में मानव जाति का एकीकरण और भाग चार में वैज्ञानिक क्रांति का वर्णन किया गया है । संज्ञानात्मक क्रांति के अंतर्गत एक महत्वहीन प्राणी, ज्ञान का वृक्ष, आदम और ईव के जीवन का एक दिन तथा बाढ़ जैसे उप शीर्षक हैं । कृषि क्रांति में इतिहास का सबसे बड़ा धोखा, पिरामिडों का निर्माण, भारी बोझ की स्मृति तथा इतिहास में कोई न्याय नहीं है, जैसे उपशीर्षक सम्मिलित हैं ।

8- सेपियन्स पुस्तक के भाग तीन में मानव जाति का एकीकरण अध्याय के तहत, इतिहास का तीर, पैसे की ख़ुशबू, साम्राज्यवादी आकांक्षाएँ, मज़हब का सिद्धांत और सफलता का रहस्य उपशीर्षक हैं । अगले अध्याय में वैज्ञानिक क्रांति के तहत, अज्ञान की खोज, विज्ञान और साम्राज्य का गठबंधन, पूँजीवादी पंथ, उद्योग के पहिए, एक स्थायी क्रांति, और उसके बाद वे हमेशा सुखपूर्वक रहे तथा होमो सेपियन्स का अन्त, उप अध्याय सम्मिलित हैं । उपसंहार, वह प्राणी, जो एक ईश्वर बन गया, के रूप में लिखा गया है । पुस्तक के कवर और पीछे के पृष्ठ पर मानव के अंगूठे का चिन्ह निर्मित किया गया है । संज्ञानात्मक क्रांति अध्याय के आरम्भ में ही दक्षिण फ़्रांस की शोवे- पों- द गुफ़ा में लगभग तीस हज़ार साल पहले बनी एक मनुष्य के हाथ की छाप को दिखाया गया है तथा यह भी लिखा गया है कि, “किसी ने यह कहने की कोशिश की थी कि मैं यहाँ था ।”

9- सेपियन्स में ज़िक्र है कि लगभग 14 अरब वर्ष पहले पदार्थ, ऊर्जा, देश और काल उस घटना की वजह से अस्तित्व में आए थे, जिसे बिग बैंक के नाम से जाना जाता है । हमारे विश्व के इन तीन बुनियादी लक्षणों की कहानी को भौतिकशास्त्र कहा जाता है । पदार्थ और ऊर्जा अपने प्रकट होने के लगभग तीन लाख साल बाद एटम नामक जटिल संरचनाओं में संयुक्त होने लगे और इसके बाद यह एटम अणुओं में संयुक्त हो गए । एटमों, अणुओं और उनकी परस्पर क्रिया की इस कहानी को जीव- विज्ञान के नाम से जाना जाता है । लगभग 70 हज़ार साल पहले होमो सेपियन्स से सम्बन्धित जीवों ने इससे भी ज़्यादा विस्तृत संरचनाओं को रूप देना शुरू किया, जिन्हें संस्कृतियों के नाम से जाना जाता है । इन मानवीय संस्कृतियों के उत्तरवर्ती विकास को इतिहास कहा जाता है ।

10- इतिहास की प्रक्रिया को तीन महत्वपूर्ण क्रांतियों ने आकार दिया : संज्ञानात्मक क्रांति ने लगभग 70 हज़ार साल पहले इतिहास को क्रियाशील किया । कृषि क्रांति ने 12 हज़ार साल पहले इसे तीव्र गति दी । वैज्ञानिक क्रांति, जो सिर्फ़ 500 साल पहले शुरू हुई थी, शायद इतिहास को ख़त्म कर सकती है और किसी पूरी तरह से भिन्न चीज़ की शुरुआत कर सकती है । आधुनिक मनुष्यों की तरह के प्राणी लगभग 25 लाख साल पहले प्रकट हुए थे, लेकिन असंख्य पीढ़ियों तक वे उन अनगिनत दूसरे जीवों से अलग नहीं दिखते थे, जिनके साथ वे अपने प्राकृतिक वास साझा करते थे । लगभग 20 लाख साल पहले पूर्वी अफ़्रीका की पद यात्रा करते हुए यह देखे जा सकते थे ।

11- जिन प्रजातिओं का विकास एक साझा पूर्वज से होता है, उन्हें जीनस शीर्षक के अंतर्गत रखा जाता है । शेर, बाघ, तेंदुआ और चीता पैन्थेरा जीनस के अंतर्गत आने वाली विभिन्न प्रजातियाँ हैं । जीव- विज्ञानी प्राणियों को दोहरे लैटिन नाम से वर्गीकृत करते हैं, पहले जीनस और फिर प्रजाति । हममें से हर कोई सम्भवतः एक होमो सेपियन्स है – जीनस होमो (मनुष्य) की सेपियन्स (बुद्धिमान) प्रजाति । वस्तुतः हम एक विशाल और ख़ासतौर से कोलाहल पूर्ण परिवार के सदस्य हैं, जिसे विशाल वानरों (ग्रेट एप्स) के नाम से जाना जाता है । हमारे सबसे करीबी जीवित रिश्तेदारों में चिंपांजी, गोरिल्ला, और ओरांग- उटांग शामिल हैं । चिंपांजी सबसे करीबी है । महज़ साठ लाख साल पहले एक इकलौती मादा वानर की दो बेटियाँ थीं । उनमें से एक सारे चिंपांजियों की पूर्वज बन गई और दूसरी हमारी अपनी नानी है ।

12- मनुष्यों का पहला विकास लगभग पचीस लाख साल पहले पूर्वी अफ़्रीका में वानरों के एक आरम्भिक जीनस ऑस्ट्रालेपीथीकस से हुआ था, जिसका मतलब है दक्षिणी वानर । यूरोप और पश्चिमी एशिया के मनुष्य होमो निएंडरथलेंसिस (नियंडर घाटी के मनुष्य) के रूप में विकसित हुए, जिन्हें आमतौर पर मात्र निएंडरथल्स कहा जाता है । एशिया के अधिकांश भाग होमो इरेक्ट्स (तन कर खड़ा मनुष्य) से आबाद थे । यह लगभग बीस लाख साल तक बने रहे ।इंडोनेशिया में जावा द्वीप पर होमो सोलोऐंसिस (सोलो घाटी का मनुष्य) नामक प्रजाति रहती थी । एक अन्य इंडोनेशियाई द्वीप- फ़्लोरेस पर होमो फ़्लोरेसिएंसिस नामक प्रजाति रहती थी । 2010 में जब साइबेरिया में डेनिसोवा गुफा की खुदाई करते हुए विज्ञानियों को एक अंगुली की हड्डी का जीवाश्म प्राप्त हुआ जिसे होमो डेनिसोवा नाम दिया गया ।


13- साठ किलोग्राम के वजन वाले स्तनपायी प्राणियों के मस्तिष्क का औसत आकार 200 घन सेंटीमीटर होता है । 25 लाख साल पहले के सबसे प्राचीन पुरुषों और स्त्रियों के मस्तिष्क लगभग 600 घन सेंटीमीटर के थे । आधुनिक सेपियन्स औसतन 1,200-1,400 घन सेंटीमीटर मस्तिष्क धारण करते हैं । निएंडरथल्स के मस्तिष्क इससे भी बड़े थे । सेपियन्स में मस्तिष्क शरीर के कुल वजन का लगभग 2-3 प्रतिशत होता है । जिस वक़्त शरीर आराम कर रहा होता है, उस वक़्त वह शरीर की 25 प्रतिशत ऊर्जा का उपभोग करता है । कुछ मानव प्रजातियों ने कोई आठ लाख साल पहले आग का कभी -कभार इस्तेमाल किया था लेकिन तीन लाख साल पहले तक आते- आते होमो इरेक्टस, निएंडरथल्स और होमो सेपियन्स के पूर्वज नियमित रूप से आग का इस्तेमाल करने लगे थे ।

14- आग के फ़ायदों के बावजूद एक लाख, पचास हज़ार साल पहले तक मनुष्य हाशिये के प्राणी ही थे । ज़्यादातर वैज्ञानिक इस बात पर एकमत हैं कि एक लाख, पचास हज़ार साल पहले का समय आते- आते पूर्वी अफ़्रीका उन सेपियन्स से आबाद हो चुका था, जो हमारी तरह से दिखते थे । वैज्ञानिक इस बात पर भी एकमत हैं कि लगभग 70 हज़ार साल पहले पूर्वी अफ़्रीका के सेपियन्स अरब प्रायद्वीप में फैल गए थे और वहाँ से बहुत तेज़ी से समूचे यूरेशियाई भू- भाग में फैल गए । होमो सोलोएंसिस का अंतिम अवशेष लगभग 50 हज़ार साल पहले का है । होमो डेनिसोवा इसके तुरंत बाद लुप्त हो गए । निएंडरथल्स मोटे तौर पर 30 हज़ार साल पहले चले गए । बौने नुमा अंतिम मानव फ्लोरेस के द्वीप से लगभग 12 हज़ार साल पहले ग़ायब हुए । वे हम होमो सेपियन्स के पीछे अंतिम मानव प्रजाति को भी छोड़ गए ।

15- संज्ञानात्मक क्रांति उसे कहा जाता है जो 70 हज़ार और 30 हज़ार साल पहले के बीच के वक़्त में सोचने और सम्प्रेषित करने के नए तरीक़ों के रूप में प्रकट हुई । हमारी भाषा गपशप करने के तरीक़े के रूप में विकसित हुई । इस अनुमान के मुताबिक़, होमो सेपियन्स प्राथमिक तौर पर एक सामाजिक प्राणी हैं । कल्पना, ख़तरनाक ढंग से गुमराह करने या भ्रमित करने वाली हो सकती है । अगर आप अस्तित्व हीन रक्षक देवदूतों की प्रार्थना करते हुए घंटों गुज़ार देते हैं तो क्या आप अपना क़ीमती वक़्त बर्बाद नहीं कर रहे होते हैं । वह समय जो आप भोजन की तलाश, लड़ने और सम्बन्धों को बनाने में लगा सकते हैं । सामाजिक अनुसंधान से यह बात सामने आयी है कि गपबाजी से बँधे समूह का स्वाभाविक आकार लगभग 150 व्यक्तियों का होता है ।

16- संज्ञानात्मक क्रांति के कारण होमो सेपियन्स के चारों ओर की दुनिया के बारे में सूचना को बड़ी मात्रा में प्रसारित करने की दक्षता हासिल हो गई । इससे जटिल कामों की योजना बनाना और उन्हें क्रियान्वित करना, जैसे कि शेरों से दूर रहना और बाइसन का शिकार करना आसान हो गया ।जर्मनी की स्टाडेल गुफा में एक लगभग 32 हज़ार साल पुरानी नर- सिंह या नारी सिंह की हाथी दॉंत की मूर्ति पायी गयी है जिसका शरीर इंसान का है लेकिन सिर सिंह जैसा है । यह कला और शायद धर्म और जिन चीजों का वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं है, उनकी कल्पना कर सकने की इंसानी सामर्थ्य के भी पहले के निर्विवाद उदाहरणों में से एक है ।

17- उत्तरी इज़राइल में एक 12 हज़ार साल पुरानी क़ब्र (किबुट्ज मायन बराक म्यूज़ियम) का पता चला है । इसमें एक पिल्ले की बग़ल में एक पचास साल की उम्र की स्त्री का कंकाल रखा है । पिल्ले को स्त्री के शिर के क़रीब दफ़नाया गया है । उसका बायाँ हाथ कुत्ते पर जिस तरह से रखा हुआ है वह एक भावनात्मक रिश्ते की ओर इंगित करता है । निश्चित ही दूसरी सम्भावित व्याख्याएँ भी हो सकती हैं । मसलन हो सकता है कि वह पिल्ला अगली दुनिया के द्वारपाल के लिए एक सौग़ात हो । वस्तुतः कुत्ता पहला वह जानवर था, जिसे होमो सेपियन्स ने पालतू बनाया । आज न्यूज़ीलैंड में 45 लाख सेपियन्स और 500 लाख भेंड हैं ।

18- विचारों, विश्वासों और एहसासों की दुनिया को समझना सहज ही मुश्किल काम है । जीववाद जो आत्मा या जीव के लिए लैटिन भाषा के anima से बना है, यह विश्वास है कि लगभग सर्वत्र, हर प्राणी, हर वनस्पति और हर कुदरती सृष्टि में चेतना और अनुभूतियाँ मौजूद होती हैं और वे सब सीधे-सीधे मनुष्य के साथ संवाद कर सकते हैं । चट्टान लोगों के किसी कृत्य से ख़फ़ा हो सकती है और किन्हीं दूसरे कृत्यों से आनन्दित हो सकती है । वह चट्टान लोगों को डॉंट सकती है या किसी अनुग्रह का आग्रह कर सकती है । पहाड़ी की तलछटी का बलूत का वृक्ष भी एक सजीव सत्ता है और उसी तरह से पहाड़ी के नीचे बहती नदी, जंगल के बीच की खुली जगह में फूटता झरना, उसके इर्द-गिर्द उगी झाड़ियाँ, वहाँ का पानी पीते चूहे, लोमड़ियाँ और कौवे भी सजीव सत्ताएँ हैं ।


19- जीववादी विश्वास करते हैं कि मनुष्यों और दूसरी सत्ताओं के बीच कोई अवरोध नहीं है । वे सब बोलने, नाचने, गाने और उत्सव मनाने के माध्यम से आपस में संवाद कर सकते हैं । जीववाद कोई विशिष्ट धर्म नहीं है । यह नितांत अलग-अलग तरह के हज़ारों धर्मों, उपासना पद्धतियों और आस्थाओं का जातिवाचक या जेनेरिक नाम है । जो चीज़ इन सबको जीववादी बनाती है, वह है जगत के प्रति और उसमें मनुष्य की जगह के प्रति एक साझा दृष्टिकोण । अर्जेंटीना में एक लगभग नौ हज़ार साल पहले की गुफा का पता चला है जिसमें मनुष्यों के हथेलियों के निशान पाये गए हैं- लेकिन इसका क्या अर्थ है कोई नहीं जानता ।

20- रूस में सुंगीर नामक स्थान पर पुरातत्वविदों ने 1955 में मैमथ अर्थात् विशाल हाथियों का शिकार करने वाली एक संस्कृति से जुड़े 30 हज़ार साल पुराने क़ब्रिस्तान की खोज की थी । एक क़ब्र में उन्हें पचास साल के एक आदमी का कंकाल मिला था, जो मैमथ के दांतों से बने मनकों की लड़ियों से ढंका हुआ था । इन लड़ियों में पिरोए हुए कुल मनकों की संख्या 3 हज़ार थी । इस मृतक के शिर पर लोमड़ी के दांतों से सज्जित एक टोप था और उसकी कलाइयों पर हाथीदांत के 25 कंगन थे । उसी जगह की अन्य क़ब्रों में बहुत थोड़ी सी चीजें थीं । अध्येताओं ने इससे निष्कर्ष निकाला कि सुंगीर के मैमथ के शिकारी क्रमबद्धता में विश्वास रखने वाले समाज में रहते थे ।

21- युवाल नोआ हरारी ने बताया है कि पुर्तगाल में कृषि क्रांति से ठीक पहले के कालखंड के 400 कंकालों का सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें से केवल दो कंकाल ही ऐसे थे जो हिंसा के निशान दर्शाते थे । इज़राइल में इसी कालखंड के 400 कंकालों के ऐसे ही एक सर्वेक्षण ने मात्र एक खोपड़ी में ऐसी एक दरार का पता लगाया, जिसे मानवीय हिंसा से जोड़कर देखा जा सकता है । सूडान के जब्ल सहावा में 59 कंकालों वाला एक 12 हज़ार साल पुराना क़ब्रिस्तान मिला था इनमें 24 कंकालों की हड्डियों में भाले की नोक चुभी थी । बावेरिया की ऑफ्नेट गुफा में पुरातत्वविदों को अड़तीस भोजन खोजियों के अवशेष मिले । इनमें आधे कंकालों में डंडे और चोट के निशान थे ।

22- पृथ्वी की जलवायु कभी चैन नहीं लेती । वह निरंतर बदलती रहती है । इतिहास की हर घटना किसी जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में घटित हुई है । हमारा ग्रह ठंडे होने और गर्म होने के असंख्य चक्रों से गुजरा है । पिछले दस लाख सालों के दौरान औसतन हर एक लाख साल में एक हिम- युग रहा है । पिछला हिम युग 75 हज़ार से 15 हज़ार साल पहले तक जारी रहा था । इसके दो शिखर काल रहे, पहला लगभग 70 हज़ार साल पहले, और दूसरा लगभग 20 हज़ार साल पहले, जो किसी हिम युग के सन्दर्भ में कोई असामान्य रूप से गम्भीर घटना नहीं है । आस्ट्रेलिया में विशालकाय डाइप्रोटोडॉन 15 लाख साल पहले प्रकट हुआ था और पिछले कम से कम दस हिम युगों को आसानी से झेल गया ।

23- जीवाश्मीकृत वनस्पतियों का रिकॉर्ड बताता है कि 45 हज़ार साल पहले आस्ट्रेलिया में यूकेलिप्टस वृक्ष बहुत दुर्लभ हुआ करता था, लेकिन होमो सेपियन्स के आगमन ने इस प्रजाति के स्वर्ण- युग की शुरुआत की। चूँकि यूकेलिप्टस आग के बाद फिर अच्छी तरह से उत्पन्न हो जाते हैं, इसलिए वे दूर- दूर तक और व्यापक रूप से फैलते गए और दूसरे वृक्ष ग़ायब होते गए । इस बात पर विश्वास करने के पर्याप्त कारण हैं कि अगर होमो सेपियन्स ऑस्ट्रेलिया में न गए होते, तो वह भू- भाग आज भी मार्सूपियल शेरों, डइप्रोटोडियनों और विशालकाय कंगारुओं का घर होता । होमो सेपियन्स पश्चिमी गोलार्द्ध में पहुँचने वाली पहली और एकमात्र प्रजाति थी । यह अमेरिका पैदल चलकर पहुँची थी क्योंकि उस समय समुद्र के जलस्तर नीचे थे और एक ज़मीनी पुल उत्तर -पूर्वी साइबेरिया और उत्तर- पश्चिमी अलास्का को जोड़ता था ।

24- पहले अलास्का से बाक़ी अमेरिका के बीच का रास्ता हिमनदों ने रोका था । लगभग 12 हज़ार ईसा पूर्व की विश्वव्यापी स्तर की तापमान वृद्धि ने हिम को पिघला दिया और एक अपेक्षाकृत आसान भू- मार्ग खोल दिया । इससे साइबेरिया के वंशज पूर्वी संयुक्त राज्य के घने जंगलों, मिसीसिपी डेल्टा के दलदलों, मैक्सिको के रेगिस्तानों और मध्य अमेरिका के भाप छोड़ते जंगलों में बस गए । एक हज़ार ईसा पूर्व तक आते- आते मनुष्य अमेरिका के सबसे दक्षिणी सिरे पर टियरा डेल फ्योगो के द्वीप में बस चुके थे । अमेरिका का प्राणी जगत 14 हज़ार साल पहले आज के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा समृद्ध था । इनमें भयानक लम्बे घुमावदार दांतों वाली बिल्लियाँ और मैमथ, मास्टोडॉनों,भालू के आकार के रोडेंटों शामिल थे ।


25- तत्कालीन समय में अमेरिका में विशालकाय स्लॉथ (मैगाथेरियम) और भीमकाय वर्मी (ग्लप्टोडॉन) पाये जाते थे । अब लुप्त हो चुके ये भीमकाय वर्मी जहां तीन मीटर लम्बे और दो टन वज़नी हुआ करते थे, वहीं ज़मीन पर रहने वाले भीमकाय स्लॉथों की ऊँचाई छह मीटर तक होती थी और वजन आठ टन तक होता था । शोधकर्ताओं को क्यूबा और हिस्पानिओला में लगभग 5 हज़ार ईसा पूर्व के ज़मीनी स्लॉथ की पाषाणीकृत लीद प्राप्त हुई है । अमेरिका के मुख्य भू- भाग से लगभग 400 किलोमीटर पूर्व में स्थित मैडागास्कर द्वीप में गज पक्षी अथवा एलीफ़ेंट बर्ड नामक तीन मीटर ऊँचा और लगभग आधे टन वजन वाला उड़ने में असमर्थ एक प्राणी- दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी पाया जाता था ।

26- सेपियन्स पुस्तक में ज़िक्र है कि गेहूँ के उत्पादन और बकरियों को पालने की शुरुआत लगभग 9 हज़ार ईसा पूर्व में हुई । मटर और मसूर की खेती की शुरुआत लगभग 8 हज़ार ईसा पूर्व में, ज़ैतून की 5 हज़ार ईसा पूर्व में और अंगूरों की 3,500 ईसा पूर्व में हुई । हमने गेहूँ को घरेलू नहीं बनाया बल्कि उसने हमें घरेलू बनाया । मनुष्य सर्वभक्षी वानर है । अनाजों पर आधारित आहार खनिजों और विटामिनों की दृष्टि से कमज़ोर, पचाने की दृष्टि से मुश्किल और आपके दांतों और मसूड़ों के लिए वाक़ई बुरा होता है । समकालीन न्यू गिनी में हिंसा से 30 प्रतिशत पुरुषों की मौतें एक खेतिहर जनजाति समाज डानी और 35 प्रतिशत एक अन्य जनजातीय समाज ऐंगा में होती है । इक्वाडोर में शायद 50 प्रतिशत वोरानी अन्य मनुष्यों के हाथों मरते हैं ।

27- लेवान्त में, जहां 12,500 ईसा पूर्व से 9,500 ईसा पूर्व के बीच नातूफियाई संस्कृति विकसित हुई थी । नातूफियाई शिकारी और भोजन संग्रह कर्ता थे जो अपने उदर पोषण के लिए दर्जनों जंगली प्रजातियों पर निर्भर करते थे । वस्तुतः विलासिताएँ ज़रूरतें बनने की ओर प्रवृत्त होती हैं और नई ज़िम्मेदारियों का कारण बनती हैं । एक बार जब लोग किसी ख़ास विलासिता के अभ्यस्त हो जाते हैं, तो उस वक़्त वे उसके महत्व को नहीं समझते । इसके बाद वे उस पर निर्भर करने लगते हैं । अन्त में वे ऐसे मुक़ाम पर पहुँच जाते हैं, जहाँ वे उसके बिना नहीं रह सकते ।

28- पुरातत्वविदों ने 1995 में दक्षिण- पूर्वी तुर्की में गोबेक्ली तेपे नामक स्थान पर खुदाई की । यहाँ पर असाधारण उत्कीर्णनों से सज्जित विशालकाय स्तम्भों वाले ढाँचे मिले । पत्थर का प्रत्येक स्तम्भ सात टन तक वजन का और पॉंच मीटर ऊँचा था । पास की ही एक खदान में उन्हें आधा तराशा गया एक स्तम्भ मिला, जिसका वजन 50 टन था ।कुल मिलाकर उन्होंने दस से अधिक विशाल ढाँचों को खोद निकाला, जिनमें सबसे बड़ा लगभग तीस मीटर का था । गोबेक्ली तेपे के ढाँचे 9,500 ईसा पूर्व के हैं । कृषि उत्पादित गेहूँ की कम से कम एक क़िस्म एन्कॉर्न ह्वीट का उद्गम काराजेदाग हिल्स में है, जो गोबेक्ली तेपे से लगभग तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।

29- आज दुनिया में एक अरब भेड़ें, एक अरब सुअर, एक अरब से ज़्यादा गाय-बैल, और पचीस अरब से ज़्यादा मुर्ग़े हैं, जो समूचे भूमण्डल में फैले हुए हैं । पालतू मुर्ग़ा अब तक का सबसे ज़्यादा व्यापक पालतू पक्षी है । होमो सेपियन्स के बाद पालतू गाय- बैल, सुअर और भेडें दुनिया के दूसरे, तीसरे और चौथे नम्बर के सर्वाधिक व्यापक बड़े स्तनधारी हैं । अनेक न्यू गिनियाई समाजों में पारम्परिक रूप से किसी व्यक्ति की संवृद्धि का निर्धारण इस बात से होता था कि उसके पास कितने सुअर थे । सुअर सूंघे बग़ैर अपना भोजन, यहाँ तक कि अपना रास्ता भी नहीं खोज सकते ।

30- 8,500 ईसा पूर्व के आस-पास की सबसे बड़ी बस्तियाँ जेरिको जैसे उन ग्रामों के रूप में उभरीं, जिनमें कुछ सौ व्यक्ति रहा करते थे । 7 हज़ार ईसा पूर्व तक आते-आते अनातोलिया के कैटलहोयुक नगर में 5,000 और 10 हज़ार के बीच व्यक्ति रहते थे । 3,100 ईसा पूर्व में समूची निचली नील घाटी मिस्र राज्य के रूप में संगठित हो गई थी । 2250 ईसा पूर्व के आस-पास सरग्रॉन द ग्रेट ने अक्कादियान नामक पहला साम्राज्य खड़ा किया । इस साम्राज्य के अधीन दस लाख से ज़्यादा प्रजा थी और 5,400 सैनिकों की फ़ौज थी । 1,000 ईसा पूर्व और 5,00 ईसा पूर्व के दरम्यान मध्य पूर्व में विशाल साम्राज्य प्रकट हुए : उत्तर असीरियाई साम्राज्य, बेबीलोनियाई साम्राज्य और फ़ारसी साम्राज्य ।


31- 221 ईसा पूर्व में चिन राजवंश ने चीन को एकीकृत किया और इसके कुछ ही समय बाद रोम ने भूमध्य सागरीय बेसिन को एकीकृत किया । 400 लाख चिन प्रजा से वसूले जाने वाले कर का भुगतान सैकड़ों हज़ारों सैनिकों की फ़ौज और 1 लाख से ज़्यादा कर्मचारियों वाली जटिल नौकरशाही को किया जाता था । रोमन साम्राज्य अपने उत्कर्ष के काल में अपनी एक हज़ार लाख की प्रजा से कर प्राप्त करता था । इस राजस्व से 250,000-500,000 सैनिकों की फ़ौज, सड़कों के उस नेटवर्क का जिसे 1,500 साल बाद आज भी इस्तेमाल किया जाता है और उन रंगशालाओं तथा मुक्ताकाशी मंचों का खर्च चला करता था, जहाँ आज के दिन तक प्रदर्शन होते हैं । प्रसिद्ध रोमन मुक्ताकाशी मंच ज़्यादातर गुलामों के द्वारा तैयार किए जाते थे ।

32- 1776 ईसा पूर्व में बेबीलोन दुनिया का सबसे बड़ा नगर था । बेबीलोनियाई साम्राज्य शायद दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य था, जिसकी प्रजा की संख्या दो लाख थी । इसकी हुकूमत मेसोपोटामिया के ज़्यादातर हिस्सों में थी, जिनमें आधुनिक ईराक़ का अधिकांश भाग और आज के सीरिया और ईरान के कुछ हिस्से शामिल थे । बेबीलोन का राजा हम्मूराबी था जो आज सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है । उसकी प्रसिद्धि मुख्यतः उस मज़मून की वजह से है जिसमें उसका नाम अंकित है : हम्मूराबी की विधि संहिता । 1776 ईसा पूर्व का द कोड ऑफ हम्मूराबी, जिसने सैंकड़ों हज़ारों की संख्या में प्राचीन बेबीलोनियाइयों के लिए सहकार नियमावली की भूमिका निभाई थी और 1776 ईसवी की अमेरिकन डिक्लेयरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस जो आज भी लाखों आधुनिक अमेरिकी लोगों के लिए सहकार नियमावली की भूमिका निभाती है ।

33- हम्मूराबी की मृत्यु के लगभग 3,500 साल बाद उत्तरी अमेरिका के तेरह ब्रितानी उपनिवेशों के निवासियों ने महसूस किया कि इंग्लैंड का सम्राट उनके साथ अन्याय बरत रहा है । इन निवासियों के प्रतिनिधि फ़िलेडेल्फ़िया नगर में एकत्र हुए और 4 जुलाई, 1776 को इन उपनिवेशों ने घोषणा कर दी कि उनके बाशिंदे अब के बाद से ब्रितानी हुकूमत के अधीन नहीं होंगे । अमेरिकी स्वाधीनता का घोषणा पत्र दावा करता है कि : हम इन वास्तविकताओं को स्वत: सिद्ध मानते हैं कि सारे मनुष्यों की रचना उन्हें समान मानकर की गई है, उनके सृजनकर्ता ने उन्हें कुछ ख़ास अंतर्निहित अधिकार प्रदान किए हैं । इनमें जीवन, स्वतंत्रता और सुख की खोज के अधिकार शामिल हैं ।

34- किसी वस्तुपरक तथ्य का अस्तित्व मानवीय चेतना और मानवीय विश्वासों से स्वतंत्र रूप में होता है । आत्मपरक वह चीज़ है, जिसका अस्तित्व किसी एक व्यक्ति की चेतना और विश्वासों पर निर्भर करता है । अन्तर आत्मपरक वह चीज़ है, जिसका अस्तित्व बहुत सारे व्यक्तियों की आत्मपरक चेतना को आपस में जोड़ने वाले सम्प्रेषण तंत्र के भीतर होता है । कल्पित व्यवस्थाएँ अंतर- आत्मपरक होती हैं, इसलिए उन्हें बदलने के लिए हमें एक साथ अरबों लोगों की चेतना को बदलना अनिवार्य है, जो आसान का काम नहीं है । हरारी ने कहा है कि अपनी दिनचर्या के ढर्रे से आज़ाद होने का एक सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि हम अपने चिर-परिचित माहौल को पीछे छोड़कर दूर देशों की यात्रा पर निकल जाएँ, जहाँ हम दूसरे समाजों की संस्कृतियों, स्वादों और मानकों को अनुभव कर सकें ।

35- 3,500 ईसा पूर्व और 3000 ईसा पूर्व के बीच के वर्षों में कुछ अज्ञात सुमेरियाई धुरंधरों ने मानव- मस्तिष्क से बाहर सूचना को संचित और प्रोसेस करने की एक पद्धति ईजाद कर ली थी । एक ऐसी पद्धति जो गणितीय ऑंकडों का बड़ी तादाद में प्रबंधन करने के लिए ही विशेष रूप से बनी थी । सुमेरियाई लोगों के द्वारा ईजाद इस डेटा प्रोसेसिंग पद्धति का नाम था : लेखन । सुमेरियाई लेखन पद्धति में दो तरह के संकेत चिन्हों का संयोजन करके किया जाता था और उन्हें मिट्टी की पट्टियों पर धँसा दिया जाता था । 1, 10, 60, 600, 3,600, 36,000 के संकेत थे । सुमेरियाइयों ने आधार-6, और आधार- 10 की संख्यावाचक पद्धतियों के संयोजन का प्रयोग किया था । उनकी बेस -6, पद्धति ने हमें अनेक महत्वपूर्ण विरासतों से नवाज़ा है, जिनमें 24 घंटों के दिन का विभाजन और 360 डिग्रियों में वृत्त का विभाजन शामिल है ।

36- सबसे आरम्भिक दौर का सुमेरियाई लेखन पूर्ण लिपि होने के बजाय आंशिक लिपि है । पूर्ण लिपि उन भौतिक संकेत चिन्हों की व्यवस्था है, जो बोलचाल की भाषा को पूरी तरह से प्रतिबिंबित करते हैं । लैटिन लिपि, प्राचीन मिस्र की चित्रलिपि (हाइरोग्लिफिक्स) और उत्कीर्ण लिपि (ब्रेल) पूर्ण लिपियाँ हैं । एंडियाई लिपि सुमेरियाई लिपि से काफ़ी भिन्न थी । वह कीपो नामक रंगीन डोरियों में गाँठें लगाकर लिखी जाती थी । हर कीपो में ऊन या सूत से बनी विभिन्न रंगों की कई डोरियाँ होती थीं । हर डोरी में अलग-अलग जगहों पर कई गाँठें लगायी जाती थीं । अकेली एक कीपो में सैकड़ों डोरियाँ और हज़ारों गाँठें हो सकती थीं । विभिन्न रंगों की, विभिन्न डोरियों की, विभिन्न गाँठों के संयोजन से कर संग्रह और सम्पत्ति के मालिकाना हक़ जैसी चीजों से सम्बन्धित आँकड़ों की बड़ी तादाद का रिकॉर्ड रखा जा सकता था ।


37- हज़ारों सालों तक कीपो नगरों, हुकूमतों और साम्राज्यों के कारोबार के लिए अनिवार्य थी । प्राचीन इंका साम्राज्य ने इसी कीपो लिपि को अपनाया था । इंका साम्राज्य 100-120 लाख लोगों पर शासन करता था और जिसके विस्तार में आज के समय के पेरू, इक्वाडोर और बोलीविया के साथ-साथ चिली, अर्जेंटीना और कोलम्बिया के हिस्से शामिल थे । कीपो की वजह से ही इंका बड़ी तादाद में आँकड़ों को संचित और प्रोसेस कर सके । कीपो इतनी कारगर और अचूक थी कि दक्षिण अमेरिका की स्पेनी फ़तह के बाद के शुरुआती वर्षों में स्वयं स्पेनी लोगों ने अपने नए साम्राज्य के प्रबंधन में कीपो का प्रयोग किया था । दुर्भाग्य से कीपो को पढ़ने की कला लुप्त हो चुकी है । दूसरी पूर्ण लिपियाँ चीन में 1200 ईसा पूर्व के आस-पास और मध्य अमेरिका में 1000-500 ईसा पूर्व के आस-पास विकसित हुई ।

38- हिब्रू, बाइबिल, ग्रीक, इलियड, हिन्दू महाभारत और बौद्ध त्रिपिटक सबकी शुरुआत मौखिक कृतियों के रूप में हुई । कई पीढ़ियों तक यह मौखिक रूप से प्रसारित होती रहीं । अभी हाल में ही गणितीय लिपि ने एक और भी क्रांतिकारी लेखन पद्धति को जन्म दिया है, जो कम्प्यूटरीकृत बायनरी लिपि है, जिसमें सिर्फ़ दो ही संकेत चिन्ह होते हैं : 0 और 1. वस्तुतः लेखन का जन्म मानव चेतना की नौकरानी के रूप में हुआ था, लेकिन वह उत्तरोत्तर उसकी मालकिन बनती जा रही है । कुछ दुर्लभ अपवादों को छोड़ दें, तो इंसानी मस्तिष्क सापेक्षता और मात्रात्मक यांत्रिकी जैसी अवधारणाओं के बारे में सोचने के लिए अक्षम है ।

39- 1865 में संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में तेरहवें संशोधन के माध्यम से ग़ुलामी को ग़ैरक़ानूनी घोषित कर दिया गया और चौदहवें संशोधन ने व्यवस्था दी कि नस्ल के आधार पर किसी को नागरिकता और क़ानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता है । क्लेनॉन किंग नामक एक काले छात्र ने 1958 में मिसिसिपी यूनिवर्सिटी में दाख़िले के लिए आवेदन किया था । उसे जबरन पागलखाने भेज दिया गया था । उसके प्रकरण की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश ने निर्णय दिया कि अगर एक काला व्यक्ति यह सोचता है कि उसे मिसीसिपी यूनिवर्सिटी में दाख़िला मिल सकता है, तो उसे निश्चय ही पागल होना चाहिए । अमेरिका का एक ख़ुफ़िया संगठन कू क्लक्स क्लान गोरों की नस्लपरक श्रेष्ठता में विश्वास रखता है ।

40- पैसा, पैसे के पास भागता है और ग़रीबी, ग़रीबी के पास । शिक्षा, शिक्षा के पास भागती है और अज्ञान, अज्ञान के पास । जो लोग एक बार इतिहास द्वारा शिकार बनाए जा चुके होते हैं, उनके दोबारा शिकार बनाए जाने की पूरी सम्भावना होती है और जिन्हें इतिहास ने सुविधाएँ बख़्शीं हैं, उनके और भी सुविधा सम्पन्न होने की सम्भावनाएँ होती हैं । जैविकी सक्षम बनाती है, संस्कृति वर्जित करती है । जैविकी सम्भावनाओं के एक बहुत व्यापक परिदृश्य के प्रति सहिष्णु होने की इच्छुक होती है । यह संस्कृति है जो लोगों को कुछ सम्भावनाओं को साकार करने की गुंजाइश देती है, जबकि कुछ को वर्जित करती है । जैविक तौर पर मनुष्य नर और मादाओं में विभाजित है । नर होमों सेपियन्स वह है जिसमें एक X क्रोमोजोन और एक Y क्रोमोजोम होता है । मादा वह है जिसमें दो X क्रोमोजोम होते हैं ।

41- पुरुष वर्चस्व ताक़त का नहीं, बल्कि आक्रामकता का परिणाम है । विकास प्रक्रिया के लाखों वर्षों ने पुरूषों को स्त्रियों के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा हिंसक बना दिया है । इस परिकल्पना के मुताबिक़, जब तक नफ़रत, लालच और दुर्व्यवहार का प्रश्न होता है, स्त्रियाँ पुरूषों की बराबरी कर सकती हैं, लेकिन जब कोई विकल्प शेष नहीं रह जाता तो पुरुष कठोर शारीरिक हिंसा में लिप्त होने के प्रति कहीं ज़्यादा उत्साहित होते हैं । यही वजह है कि समूचे इतिहास के दौरान युद्ध पर पुरूषों का परमाधिकार रहा है । एक चीनी कहावत है कि, “कीलें बनाने के लिए आप अच्छा लोहा बर्बाद नहीं करते।” इसका मतलब होता है कि असल प्रतिभाशाली लोग असैनिक नौकरशाही में काम करते हैं, न कि सेना में ।

42- तस्मानिया, दक्षिण आस्ट्रेलिया का एक मझोले आकार का द्वीप है । लगभग ईसा पूर्व 10 हज़ार साल पहले जब हिम युग के अंत ने समुद्र के स्तर को ऊँचा उठा दिया था, तब यह द्वीप आस्ट्रेलिया के मुख्य भू-भाग से कट गया था । कुछ हज़ार शिकारी-भोजन खोजी इस द्वीप पर छूट गए थे और उन्नीसवीं सदी में यूरोपीय लोगों के आगमन के समय तक उनका किन्हीं भी दूसरे मनुष्यों से कोई सम्पर्क नहीं था । 12 हज़ार सालों तक कोई भी नहीं जानता था कि तस्मानियाई वहाँ रहते हैं और वे यह नहीं जानते थे कि दुनिया में किसी और का भी अस्तित्व है । 378 ईसवी में रोमन सम्राट वालेंस, एड्रयनोपल के युद्ध में गोथों के हाथों पराजित होकर मारा गया । उसी साल माया सभ्यता के नगर तिकाल का राजा चक टोक इचाक, तियोतिआकन की सेना के हाथों पराजित होकर मारा गया ।


43- युवाल नोआ हरारी ने लिखा है कि, “सभ्यताओं का संघर्ष, वास्तविक रूप से बहरों के बीच के संवाद जैसा है । इसमें कोई नहीं समझ पाता कि दूसरा क्या कह रहा है ।” समूचे अफ़्रीका, दक्षिण एशिया और समुद्री महाद्वीपों में 4 हज़ार वर्षों तक पैसे के रूप में कौड़ियों का इस्तेमाल होता रहा है । प्राचीन चीन की लिपि के अनुसार कौड़ी पैसे का प्रतीक थी, जिसका आशय विनिमय और पुरस्कार से समझा जाता था । बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों तक युगांडा में कौड़ियों में करों का भुगतान किया जा सकता था । 2006 में दुनिया में कुल पैसा 4730 खरब डॉलर था, जबकि कुल सिक्के और बैंक नोट 470 खरब डॉलर के थे । ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के मध्य में प्राचीन मेसोपोटामिया में पैसा सामने आया । यह पैसा था चाँदी का शेकल ।

44- क़ीमती धातुओं के निर्धारित वजन ने अन्ततः सिक्कों को जन्म दिया । इतिहास के पहले सिक्के लगभग 640 ईसा पूर्व में पश्चिम अनातोलिया में लीडिया के राजा अलियाटीस द्वारा ईजाद किए गए थे । इन सिक्कों का सोने या चाँदी का एक मानक वजन हुआ करता था और इन पर एक पहचान चिन्ह मुद्रित होता था । यह चिन्ह दो चीजों को प्रमाणित करता था । पहली, यह इस बात को दर्शाता था कि सिक्के में मूल्यवान धातु की कितनी मात्रा समाहित है । दूसरी, यह उस अधिकारी की शिनाख्त करता है, जिसने वह सिक्का जारी किया होता था और जो उसमें निहित मूल्य की गारंटी देता था । आज इस्तेमाल में आने वाले लगभग सारे सिक्के इन्हीं लीडियाई सिक्कों के वंशज हैं ।

45- रोम का सिक्का डिनारियस नाम से जाना जाता था, जिसकी बहुत लोकप्रियता थी । कालान्तर में डिनारियस नाम सिक्कों के लिए जातिवाचक संज्ञा बन गया था । मुस्लिम ख़लीफ़ाओं ने इस नाम का अरबीकरण करते हुए दीनार जारी किए । दीनार आज भी जॉर्डन, इराक़, सर्बिया, मैसेडोनिया, ट्यूनीशिया और अनेक दूसरे देशों में मुद्रा के लिए प्रयुक्त होने वाला अधिकृत नाम है । वस्तुतः पैसा मनुष्य के द्वारा रची गई भरोसे की एकमात्र ऐसी व्यवस्था है, जो लगभग कैसे भी सांस्कृतिक अन्तराल को पाट सकती है और जो धर्म, लिंग, नस्ल, उम्र या यौनपरक मनोवृत्ति के आधार पर पक्षपात नहीं करती । यह पैसे की ही बदौलत है कि ऐसे लोग जो एक दूसरे को नहीं जानते और एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते, वे भी कारगर ढंग से परस्पर सहयोग कर सकते हैं ।

46- जब रोमनों ने 83 ईसवी में स्कॉटलैंड पर हमला किया था, तो उन्हें स्थानीय सेलेडोनियाई जनजातियों के उग्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था और प्रतिक्रिया में उस देश को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था । रोमन शांति प्रस्तावों के जबाब में कबीले के सरदार कैलगाकस ने रोमनों को दुनिया के गुण्डे की संज्ञा दी थी और कहा था, “वे लूटमार, नरसंहार और डकैती को साम्राज्य का झूठा नाम देते हैं, वे मरुस्थल तैयार करते हैं और उसे शांति का नाम देते हैं ।” जिस प्रथम साम्राज्य के बारे में हमें पक्की जानकारी मिलती है वह ईसा पूर्व 2250 का सारगोन द ग्रेट का अक्कादिआई साम्राज्य था । इसके बाद 550 ईसा पूर्व के आस-पास फ़ारस का सायरस द ग्रेट साम्राज्य सामने आता है ।

47- सूडान के डिंका समाज की भाषा में, डिंका का सीधा मतलब लोग होता है । जो डिंका नहीं हैं वे भी लोग हैं । डिंकाओं के सबसे कट्टर शत्रु हैं नूअर । इसका मतलब है असली लोग ।सूडान के रेगिस्तानों से हज़ारों किलोमीटर दूर अलास्का और उत्तर- पूर्वी साइबेरिया की बर्फ़ानी भूमि में यूपिक रहते हैं । यूपिक भाषा में इसका मतलब है वास्तविक लोग । संयुक्त चीनी साम्राज्य के प्रथम सम्राट चिंग शी हुआंग्दी डींग हाँकता था कि, “विश्व की छहों दिशाओं की हर चीज सम्राट की है… जहाँ कहीं भी मनुष्य के पैरों के निशान हैं, वहाँ पर ऐसा कोई नहीं है, जो सम्राट की प्रजा नहीं है । उसकी दयालुता बैलों और घोड़ों तक भी पहुँचती है । ऐसा कोई नहीं, जिसका कल्याण नहीं हुआ । हर व्यक्ति अपने ख़ुद के छप्पर तले सुरक्षित है ।”

48- बार्थोलोम्यूज डे नरसंहार : 23 अगस्त, 1572 को सत्कर्मों के महत्व पर बल देने वाले फ़्रांसीसी कैथोलिकों ने फ़्रांस के उन प्रोटेस्टेंटों के समुदायों पर हमला कर दिया था, जो मानव जाति के प्रति ईश्वर के प्रेम पर बल देते थे । सेंट बार्थोलोम्यूज डे नरसंहार नामक इस हमले में चौबीस घंटे से भी कम के वक़्त में 5 हज़ार से 10 हज़ार के बीच प्रोटेस्टेंटों का कत्लेआम हुआ था । इस नरसंहार पर रोम में बैठे पोप ने जश्न मनाया था । ब्रिजिड ईसाइयत के आगमन से पहले सेल्टिक आयरलैण्ड की प्रमुख देवी हुआ करती थी । जब आयरलैण्ड का ईसाईकरण हुआ तो ब्रिजिड को भी बपतिस्मा दिया गया । वह सेंट ब्रिजिड बन गईं, जो आज के दिन तक कैथोलिक आयरलैण्ड की सर्वाधिक श्रद्धेय संत हैं ।


49- जिस तरह से जुपिटर रोम के देवता थे और ह्युट्जिलोपोट्ल्जी ने एज्टेक साम्राज्य की रक्षा की थी उसी तरह से इंग्लैंड सेंट जॉर्ज से रक्षित था । स्कॉटलैंड सेंट एंड्रयू, हंगरी सेंट स्टीफ़न और फ़्रांस सेंट मार्टिन से रक्षित था । सेंट एम्ब्रोस मिलान के संत थे । सेंट मार्क वेनिस की निगहबानी करते थे । सेंट एल्मो चिमनी साफ़ करने वालों की रक्षा करते थे तो सेंट मैथ्यू विपत्ति की दशा में महसूल इकट्ठा करने वालों की सहायता करते थे । सेंट अगाथियस सिर दर्द, सेंट अपोनिया दाँत दर्द की फ़रियाद सुनते थे । 1500 ईसा पूर्व के बीच कभी जोरोआस्टर (जरथुष्ट्र) नामक एक पैग़म्बर मध्य एशिया में कहीं सक्रिय थे । जरथुष्ट्रवादियों ने दुनिया को शुभ देवता अहुरा माज्डा और अशुभ देवता ऐंग्रा मेनियू के बीच जागतिक युद्ध के रूप में देखा । जरथुष्ट्रवाद 550-330 ईसा पूर्व अखीमेनिड फ़ारसी साम्राज्य के दौरान एक महत्वपूर्ण मज़हब था और बाद में सासानिक फ़ारसी साम्राज्य (224-651) का अधिकृत मज़हब बन गया ।

50- बौद्ध धर्म की केन्द्रीय शख़्सियत कोई देवता नहीं, बल्कि मनुष्य है- सिद्धार्थ गौतम । उनकी अंतर्दृष्टि थी कि दुख का कारण दुर्भाग्य, अन्याय या ईश्वर की मर्ज़ी नहीं बल्कि व्यक्ति की अपनी मनोवृत्ति ही दुख का कारण है । सिद्धार्थ गौतम के अनुसार मस्तिष्क कुछ भी क्यों न अनुभव करता हो, उसकी प्रतिक्रिया तृष्णा की होती है और तृष्णा में सदा असंतोष निहित होता है । जब मस्तिष्क कुछ अप्रिय अनुभव करता है तो वह उससे उत्पन्न क्रोध से छुटकारा पाने की तृष्णा करता है । जब मस्तिष्क कुछ अच्छा अनुभव करता है, तो वह उससे उत्पन्न सुख के बने रहने तथा प्रगाढ़ होने की तृष्णा करता है । इसलिए मस्तिष्क हमेशा असंतुष्ट और व्याकुल बना रहता है । यह बात उस वक़्त बहुत स्पष्ट होती है, जब हम अप्रिय चीजों, जैसे कि पीड़ा का अनुभव करते हैं ।

51- सिद्धार्थ गौतम ने देखा कि जब तक पीड़ा जारी रहती है, तब तक हम असंतुष्ट बने रहते हैं और उससे बचने के सारे सम्भव उपाय करते हैं । सुख समाप्त होने का भय, प्रेम के खोने का भय, मनुष्य को बेचैन करते रहते हैं । सामाजिक संस्थाएँ न्याय और अच्छी चिकित्सा उपलब्ध करा सकते हैं और सौभाग्यशाली संयोग हमें करोड़पति बना सकते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी चीज हमारी बुनियादी दिमाग़ी बनावट को नहीं बदल सकती । इसलिए बड़े से बड़े सम्राट चिंतित बने रहने को अभिशप्त रहते हैं और हमेशा और बड़े सुख का पीछा करते हुए लगातार दुखी और सन्तप्त बने रहते हैं ।गौतम बुद्ध ने पाया कि जिस समय मस्तिष्क किसी प्रिय या अप्रिय चीज़ का अनुभव करे, उस समय यदि वह उन चीज़ों को उनके यथार्थ रूप में समझ ले, तो कोई दुख नहीं होगा । अगर आप उदासी को उस उदासी के मिट जाने की मिट जाने की तृष्णा से मुक्त होकर अनुभव करते हैं, तो आप उदासी तो अनुभव करेंगे लेकिन उसकी पीड़ा नहीं भोगेंगे ।

52- सिद्धार्थ गौतम ने ध्यान की ऐसी तकनीकें विकसित कीं, जिससे मस्तिष्क तृष्णा का शिकार हुए बिना यथार्थ को उसके मूल रूप में अनुभव कर सके । यह साधनाएँ मस्तिष्क को अपना पूरा ध्यान इस प्रश्न पर केन्द्रित करने के लिए प्रशिक्षित करती हैं कि, “मैं इस समय क्या अनुभव कर रहा हूँ” ।मस्तिष्क की ऐसी अवस्था को हासिल करना मुश्किल है, लेकिन असम्भव नहीं । उन्होंने अपने अनुयायियों को हत्या, स्वच्छन्द सम्भोग और चोरी से बचने के निर्देश दिए क्योंकि इस तरह के कृत्य अनिवार्यत: लालसा की आग भड़काते हैं । जब यह लपटें पूरी तरह से बुझ जाती हैं तो लालसा की जगह पूर्ण संतोष और पूर्ण शांति की अवस्था आ जाती है जिसे निर्वाण कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है आग का बुझ जाना ।जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया है, वे दुख से पूरी तरह से मुक्ति पा जाते हैं ।


53- युवाल नोआ हरारी ने बताया है कि पिछले 500 वर्ष मानवीय शक्ति में एक असाधारण और अपूर्व वृद्धि के साक्षी रहे हैं । वर्ष 1500 में दुनिया में लगभग 50 करोड़ होमो सेपियन्स थे । आज 7 अरब हैं । वर्ष 1500 में मानव जाति के द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य आज के डॉलर में 250 अरब था । आज एक वर्ष के मानवीय उत्पादन का मूल्य 6000 अरब डॉलर है । वर्ष 1500 में मनुष्यता प्रतिदिन ऊर्जा की खपत लगभग 13000 अरब कैलोरी का उपभोग करती थी । आज हम एक दिन में 15 लाख अरब कैलोरी का उपभोग करते हैं । 1500 में ऐसे बहुत थोड़े से नगर थे, जिनमें एक लाख से ज़्यादा बाशिंदे थे । लेकिन पिछले 500 सालों का अकेला सबसे बड़ा और चरमोत्कर्ष का क्षण 16 जुलाई, 1945 को सुबह 05:29:45 बजे आया । इस इस क्षण में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अलामोगोर्डो, न्यू मैक्सिको में पहले एटम बम का विस्फोट किया ।

54- सन् 1522 में मैगलेन का जहाज़ तीन वर्ष बाद 72 हज़ार किलोमीटर की यात्रा कर वापस स्पेन लौटा । इसमें मैगलेन सहित लगभग सभी यात्रियों की मौत हो गई । 20 जुलाई, 1969 को पहली बार इंसान के पैर चंद्रमा पर पड़े । 1674 में इंसानी निगाह ने पहली बार एक सूक्ष्म जीव को देखा, जब एंटन वान लीवेन होक ने अपने घर में बनी खुर्दबीन से झांककर देखा और वह चमत्कृत रह गया, जब उसने देखा कि एक बूँद भर पानी में सूक्ष्म जंतुओं की एक समूची दुनिया कुलबुला रही थी । वैज्ञानिक क्रांति ज्ञान की क्रांति नहीं रही। यह ख़ास कर अज्ञान की क्रांति रही है । जिस सबसे महान खोज ने वैज्ञानिक क्रांति का सूत्रपात किया वह यह खोज थी कि मनुष्य अपने सबसे महत्वपूर्ण सवालों के जवाब नहीं जानता । वस्तुतः आधुनिक विज्ञान लैटिन हिदायत “हम नहीं जानते” पर आधारित है ।

55- आइजैक न्यूटन ने 1687 में द मैथामेटिकल प्रिंसिपल्स ऑफ नेचुरल फिलॉसफी पुस्तक प्रकाशित की, जिसे तर्कसंगत ढंग से आधुनिक इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ कहा जा सकता है । न्यूटन ने गति और परिवर्तन का एक सामान्य सिद्धांत प्रतिपादित किया था । न्यूटन के सिद्धांत की महानता इस बात में थी कि वह तीन अत्यंत सरल गणितीय नियमों के सहारे पेड़ से गिरते सेब से लेकर उल्कापात समेत ब्रम्हाण्ड के सारे पिंडों की गति को समझाने और उसका पूर्वानुमान करने में सक्षम था । पिछले लगभग 200 वर्षों में गणित की एक नई शाखा विकसित हुई है : सांख्यिकी । 1620 में फ़्रांसिस बेकन ने द न्यू इन्स्ट्रूमेंट नाम से एक वैज्ञानिक घोषणा पत्र प्रकाशित किया था । जिसमें उन्होंने दावा किया कि “ज्ञान शक्ति है ।”

56- सन् 1775 में एशिया दुनिया के अर्थव्यवस्था के 80 प्रतिशत की भागीदार हुआ करती थी । अकेले हिन्दुस्तान और चीन की संयुक्त अर्थव्यवस्थाएँ वैश्विक उत्पादन के दो तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करती थीं । इनके मुक़ाबले यूरोप एक आर्थिक बौना था । 1900 तक आते- आते यूरोपीय लोगों ने विश्व की अर्थव्यवस्था और इसके ज़्यादातर इलाक़ों पर अपना नियंत्रण मज़बूत कर लिया । 1950 में पश्चिमी यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका मिलकर वैश्विक उत्पादन के आधे से ज़्यादा के हिस्सेदार थे, जबकि चीन का अनुपात 5 प्रतिशत पर सिमट चुका था । आज सारे के सारे मनुष्य वेशभूषा, विचारों और अभिरुचियों में उससे कहीं ज़्यादा यूरोपीय हैं जितना वे आमतौर पर स्वीकार करना चाहते हैं ।

57- दुनिया का पहला वाणिज्यिक रेल मार्ग 1830 में ब्रिटेन में व्यापार के लिए खुला था । 1850 तक आते-आते पश्चिमी राष्ट्रों में लगभग 40 हज़ार किलोमीटर रेलमार्गों का जाल बिछ चुका था, लेकिन समूचे एशिया, अफ़्रीका और लैटिन अमेरिका में मात्र 4000 किलोमीटर पटरियाँ थीं । 1880 में पश्चिम के पास गर्व करने के लिए 3 लाख, 50 हज़ार किलोमीटर रेलमार्ग थे, जबकि बाक़ी दुनिया में महज़ 35 हज़ार किलोमीटर की रेल लाइन थी । चीन में पहला रेल मार्ग 1876 में जाकर खुल सका जो मात्र 25 किलोमीटर लम्बा था । फ़ारस में पहला रेल मार्ग 1880 में बना और यह तेहरान को उस एक मुस्लिम तीर्थ स्थल से जोड़ता था, जो राजधानी के दक्षिण में दस किलोमीटर दूर स्थित था । इसका निर्माण और संचालन एक बेल्जियाई कम्पनी करती थी ।

58- जब 1798 में नेपोलियन ने मिस्र पर चढ़ाई की थी, तो वह अपने साथ 165 अध्येताओं को लेकर गया था । दूसरे काम करने के साथ- साथ उन्होंने इजिप्टोलॉजी नामक ज्ञान के एक पूरे तरह से नए अनुशासन की स्थापना की थी । सन् 1831 में ब्रिटेन की रॉयल नेवी ने दक्षिण अमेरिका के तटों, फाकलैन्ड्स के द्वीपों और गलापगोस द्वीपों के नक़्शे तैयार करने के लिए एच एम एस बीगल नामक जहाज़ भेजा था । इसमें भूगर्भशास्त्र के अध्ययन के लिए चार्ल्स डार्विन को रख लिया था जो इस समय 21 साल के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के स्नातक थे । उस दौरान डार्विन ने वे आनुभाविक सूचनाएँ एकत्र कीं और उन निरीक्षणों को सूत्रबद्ध किया, जो अन्त में जाकर विकासवाद के सिद्धांत के रूप में सामने आने वाले थे ।

59- 20 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रांग और बज ऑल्ड्रिन चन्द्रमा की सतह पर उतरे । इस अभियान दल के पहले के महीनों में अपोलो 11 के अंतरिक्ष यात्रियों को पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका के एक सुदूर चन्द्रनुमा रेगिस्तान में प्रशिक्षण दिया गया था । यह इलाक़ा कई मूल अमेरिकी समुदायों का घर है । 1492 में क्रिस्टोफ़र कोलंबस पूर्वी एशिया के नए रास्ते की तलाश करता हुआ 12 अक्तूबर, 1492 को रात के लगभग दो बजे एक अज्ञात महाद्वीप से टकराया । पिंटा जहाज़ के मस्तूल से निरीक्षण कर रहे जुआन रोड्रिगेज बर्मेजो ने एक द्वीप को देखा और चिल्लाकर कहा.. ज़मीन, ज़मीन ! इसे हम आज बहामास के नाम से पुकारते हैं । वहाँ उसे जो लोग मिले, उन्हें उसने इंडियन कहा क्योंकि उनका ख़्याल था कि वह इंडीज़- जिसे हम आज ईस्ट इंडीज़ या इंडोनेशियाई द्वीप कहते हैं- में उतरा था ।

60- पहला आधुनिक आदमी था अमेरिगो वेसपूची । वह एक इतालवी समुद्री यात्री था, जिसने 1499-1504 में अमेरिका गए कई अभियानों में हिस्सा लिया था । 1502 और 1504 के बीच इन अभियानों का वर्णन करने वाले दो मज़मून यूरोप में प्रकाशित हुए थे ।इनका श्रेय वेसपूची को दिया गया था । इन मजमूनों का कहना था कि कोलम्बस द्वारा खोजे गए नए भूभाग पूर्वी एशियाई तट के द्वीप नहीं थे बल्कि वह एक समूचा महाद्वीप था । 1507 में इन तर्कों से सहमत होकर मार्टिन वाल्ड्सेमुलर नामक एक प्रतिष्ठित व्यक्ति ने विश्व का एक नक़्शा प्रकाशित किया । इस नक़्शे को तैयार करने के बाद वाल्ड्सेमुलर को उस महाद्वीप का नाम देना ज़रूरी था जहां यूरोप के जहाज़ उतरे थे । वाल्ड्सेमुलर ने अमेरिगो वेसपूची के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इस महाद्वीप का नाम अमेरिका रख दिया ।


61- इतिहास हमें सिखाता है कि जो चीज हमें बहुत क़रीब की नज़र आती है, वह बहुत मुमकिन है कि अप्रत्याशित रूकावटों की वजह से कभी भी सामने न आ सके और यह कि उनकी जगह दूसरी अप्रत्याशित स्थितियाँ सामने आ सकती हैं । युवाल नोआ हरारी कहते हैं कि जिस विचार को हमें गम्भीरता से लेने की ज़रूरत है, वह यह कि इतिहास के अगले चरण में न सिर्फ़ टेक्नोलॉजी और संरचनात्मक रूपांतरण शामिल होंगे, बल्कि मनुष्य की चेतना और उसकी पहचान में बुनियादी रूपांतरण भी शामिल होंगे । यह रूपांतरण इस क़दर बुनियादी प्रकृति के हो सकते हैं कि वे “मनुष्य शब्द को ही संदेहास्पद बना देंगे ।”

पुस्तक के उपसंहार में युवाल नोआ हरारी लिखते हैं कि “हमने अपने परिवेशों को नियंत्रित किया है, खाद्यान्न के उत्पादन में इज़ाफ़ा किया है, नगरों का निर्माण किया है और व्यापार के व्यापक नेटवर्क तैयार किए हैं, लेकिन क्या हम इस दुनिया में व्याप्त दु:ख की मात्रा को कम कर सके हैं ? मनुष्य की शक्ति में अक्सर जो अपरिमित वृद्धि हुई है, उसने अनिवार्यत: सेपियन्स की व्यक्तिगत ख़ुशहाली में इज़ाफ़ा नहीं किया और आमतौर से दूसरे प्राणियों को भारी दु:ख पहुँचाया है । हम पहले के किसी भी वक़्त के मुक़ाबले ज़्यादा ताक़तवर हैं, लेकिन इस ताकत का हम क्या करें, इसकी कोई ख़ास योजना हमारे पास नहीं है । हम अपनी सुख– सुविधाओं और मौज-मस्ती में कुछ और इज़ाफ़े की तलाश में लगे हुए हैं और कभी संतुष्ट न होते हुए, अपने सहचर प्राणियों और चारों ओर व्याप्त पारिस्थितिकी पर क़हर बरपा रहे हैं ।”

नोट : उपरोक्त सभी तथ्य, युवाल नोआ हरारी की पुस्तक, अ ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ ह्यूमनकाइंड, के मदन सोनी द्वारा किए गए हिन्दी अनुवाद “सेपियन्स- मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास”, प्रकाशन : मंजुला पब्लिकेशन हाउस, भोपाल, सातवें संस्करण, 2021, ISBN : 978-93-88241-17-5 से साभार लिए गए हैं ।

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7 thoughts on “सेपियन्स : पुस्तक समीक्षा / महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ”

  1. अनाम कहते हैं:
    जनवरी 6, 2024 को 1:13 अपराह्न पर

    Beautiful content

    प्रतिक्रिया
  2. Dr Amit , Assistant Professor कहते हैं:
    सितम्बर 15, 2023 को 12:45 अपराह्न पर

    The book is really unique in its own way.
    It gives a new perspective to understand our history and evolvement of Human Sapiens. Your review really gives us new insight to look into this book..kudos to you

    प्रतिक्रिया
  3. Sapna maurya कहते हैं:
    मई 26, 2023 को 6:37 अपराह्न पर

    Wonderful website ,very resourceful and knowlegdeable content.Keep up the good work.

    प्रतिक्रिया
  4. KAPIL SHARMA कहते हैं:
    मई 7, 2023 को 8:08 अपराह्न पर

    Unique knowledge
    Thanks sir 🙏🙏

    प्रतिक्रिया
  5. Anitya Kumar Jain कहते हैं:
    मई 1, 2023 को 5:14 अपराह्न पर

    शानदार किताब और उतना ही खूबसूरत रिव्यू, पढ़ कर बहुत अच्छा लगा आपने जिस दृष्टि से इसे समझ कर जिस तरह से व्यक्त किया वह तारीफ के काबिल है।

    प्रतिक्रिया
  6. Rajat Kushwaha कहते हैं:
    अप्रैल 20, 2023 को 1:05 अपराह्न पर

    unique and wonderful knowledge.

    प्रतिक्रिया
    1. अनाम कहते हैं:
      अप्रैल 28, 2023 को 10:36 अपराह्न पर

      Thank you so much Dr. Sahab

      प्रतिक्रिया

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