गुरवाणी…आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब से…
संकलन : डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी (उत्तर-प्रदेश), भारत, email : drrajbahadurmourya@gmail.com, website : themahamaya.com
पवित्र गुरवाणी… संदेश ::
ओं सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु । अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरु प्रसादि ।।
(ओंकार एक सत्य है, सत्य उसका नाम है । वह सृष्टि का रचयिता पुरुष है । वह भय से रहित है, उसे किसी से वैर नहीं, (भय और वैर द्वैत की उत्पत्ति हैं), वह कालातीत (अर्थात् भूत, भविष्य, वर्तमान से परे) है, इसलिए नित्य है । वह अयोनी है अर्थात् जन्म- मरण के चक्र से मुक्त है, वह स्वयंभू है (स्वयं प्रकट होने वाला है), उसकी लब्धि मात्र सतिगुरु की कृपा से ही सम्भव है ।)
- आदि सचु जुगादि सचु । है भी सचु नानक होसी भी सचु ।।
- (वह प्रभु (वाहिगुरु) ही एकमात्र सत्यस्वरूप है । जब कुछ नहीं था, तो भी उसकी सत्ता थी, चारों युगों (सतियुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलियुग) से भी पूर्व वह सत्य स्वरूप परमात्मा विद्यमान था, आज भी (वर्तमान में) वही है और भविष्य में भी उसी की सत्ता स्थिर रहेगी ।)
- ‘सचहु ओरे सभु कोई, ऊपर सच आचार।’
- (सत्य महान् है किन्तु सत्याचरण महानतर है)
- परमात्मा के लोक : (नीचे से ऊपर) – धरमखंड, ज्ञानखंड, सरमखंड, करमखंड तथा सचखंड। (आत्मा परमात्मा के प्रति समर्पित होकर उसी का नाम स्मरण करते हुए धरमखंड से सचखंड तक की यात्रा पूर्ण करती और परमात्मा में लीन हो जाती है ।)
- सात द्वीप : जंबू, शालिमल, पलाक्ष्य, कोच, साक, कुश, पुष्कर ।
- सात लोक : भू:, भुव:, स्व:, मह:, जन:, तप:, सत्।
- सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, महातल, पाताल ।
- पॉंच गुण : सत्, संतोष, धैर्य, धर्म तथा दया ।
- पॉंच विषय : शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध ।
- पॉंच तत्व : आकाश, धरती, जल वायु और अग्नि ।
- पॉंच तत्वों के गुण : निवृत्ति, धैर्य, निर्मलता, समानता, यथालाभ संतोष ।
- पॉंच वासनाएँ : काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार
- नौ निधियाँ : पद्म, महापद्म, संख, मकर, कच्छप, कुन्द, नील, मुकुन्द, खरब ।
- अठारह सिद्धियाँ : अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशिता, वशिता, अनूरमि, दूर-श्रवण, दूर- दर्शन, मनोवेग, कामरूप, परकाय प्रवेश, स्वेच्छा मृत्यु, सुरक्रीडा, संकल्प सिद्धी, अप्रतिहत- गति ।
- तीन गुण : सत्, रज, तम ।
- तीन अवस्था : बचपन, जवानी, बुढ़ापा ।
- चार महापाप : सुरापान, स्वर्ण चोरी, गुरु- पत्नी गमन और ब्राह्मण हत्या ।
- द्वादश कर्म : स्नान, संध्या, जप, होम, अतिथि- सत्कार, देवार्चन, वेदाध्ययन- अध्यापन, यज्ञ करना- कराना, दान लेना- देना आदि ।
- नौ नाथ : गोरखनाथ, मछंदर नाथ, चरपट नाथ, मंगलनाथ, घुघुनाथ, गोपीनाथ, प्रान नाथ, सुरत नाथ और चंबा नाथ ।
- षट जती : गोरख जती, दत जती, हनुवंत जती, भैरव जती, लक्ष्मण जती और भीष्म जती ।
- चुरासी सिद्ध : झंगर, संगर, लंगर, झंगर, धूरम, हनीफा, लहुरीपा, सागर, मघर, राजी रत्न, पूरन, नासका, बिथालका, जालका, खिंढडा, निरता, शुरता, केवल करन, सिमता, गगन गल, अमर निध, चतुर बैन, राउ ऐन, मेल कर्म, ओगढ, परबत, ईसर, भरथरी, भूतवे, करनसं, शंभू, पलक निध, अछर दैन, पिपलका, सोरमा, गिर बोध, सालका, केसर करन, गैलसा, अग्निधार, मुक्तिसार, चलन नाचतो, सुर ऐन, सिध सैन, गिरवर, जोत लग्नी, जोत मग्नि, बिमल जोत, सीतल जल, अघर घर, तुलस जोर, प्रत पान, अकार निर, भोल सार, राम कुआर, क्रिश्न कुआर, बिशन पति, संकर जोग, ब्रहम जोग, मीर हुसैन, नीर जंबील, कलंदर नैन, तलिंद्र नैन, सुरसती, गुवरधन, लाशी, अकल नाशी, कलकसगी, एक संग, केवल करमी, कर्म नासी, कुल बिबासी, मूल मंत्री, जोग वंती, जोग रहे, ईसर पुंगी, आप रूपी, कले रूप, रहीम जोगी, सलास चौरासी, किदार जोगी, संभालका, जोगी बचित्र और सारद । यह सिद्ध कहे जाते हैं ।
- आज्ञा भई अकाल की तबी चलायो पंथ ।। सभ सिखन को हुकम है गुरु मानीयो ग्रन्थ ।।
- श्री वाहिगुरू जी का खालसा ।। वाहिगुरू जी की फ़तह ।।
- जो बोले सो निहाल ।। सत्य श्री अकाल ।।