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ह्वेनसांग की भारत यात्रा- श्रावस्ती और कपिलवस्तु…

Posted on अप्रैल 29, 2020जुलाई 13, 2020

श्रावस्ती

साकेत की अपनी यात्रा को सम्पन्न कर ह्वेनसांग वहां से चलकर “शीलोफुसीटी” अर्थात् श्रावस्ती आया। प्राचीन समय में इसका नाम “सहेट-महेट” गांव था। यह अयोध्या से 58 मील उत्तर राप्ती नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित था। उसने लिखा है कि यहां कई सौ संघाराम हैं, परंतु अब सब उजाड़ हैं। भगवान बुद्ध के समय राजा प्रसेनजीत यहां के राजा थे।

प्राचीन राजधानी के अंतर्गत प्रसेनजित राजा के निवास भवन इत्यादि की थोड़ी बहुत नींव अब तक है। इसके निकट ही एक भग्न स्थान पर एक छोटा सा स्तूप बना हुआ है। पहले इस स्थान पर प्रसेनजित राजा ने बुद्ध देव के लिए सद्धर्म महाशाला नामक विशाल भवन बनवाया था। कालांतर में उस स्तूप के धराशायी हो जाने पर यह स्तूप स्मारक स्वरूप बना दिया गया है। इस स्थान के निकट ही एक और भग्नावशेष पर एक छोटा सा स्तूप बना हुआ है, जहां पर प्रसेनजीत राजा ने बुद्ध देव की चाची प्रजापति भिक्षुणी के रहने के लिए विहार बनवाया था। इसके पूर्व में भी एक और स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर सुदत्त (अनाथपिंडक) का निवास भवन था। सुदत्त के मकान के निकट ही एक और स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर अंगुलिमाल ने अपने विरूद्ध धर्म को परित्याग करके बौद्ध धर्म को अंगीकार किया था।(पेज नं 177,178)

mulagandha kuti jetavan
मूलगंधकुटी,जेतवन मठ में बुद्ध की कुटिया के अवशेष।

नगर के दक्षिण भाग में 5 या 6 ली पर “जेतवन” है। यह वह स्थान है जहां पर प्रसेनजीत राजा के प्रधानमंत्री अनाथपिंडक अथवा सुदत्त ने बुद्ध देव के लिए एक विहार बनवाया था। परंतु आज कल यह सब उजाड़ है। पूर्वी फाटक के दाहिने और बांए 70 फ़ीट ऊंचे स्तम्भ बनाए गए हैं। बांई ओर के खंभे पर एक चक्र का चित्र खोदकर बनाया गया है और दाहिने ओर के स्तम्भ की चोटी पर बैल का चित्र है। यह दोनों स्तम्भ अशोक राजा के बनवाए हुए हैं। पास में एक ईंटों की कोठरी है जिसके मध्य खण्ड़हर में अवशेष है। इसमें बुद्ध देव का चित्र बना हुआ है। मूर्ति राजा प्रसेनजीत की बनवायी हुई है।(पेज नं 179)

anand bodhi tree
आनंद-बोधि वृक्ष , जेतवन

अनाथपिंडक के वाटिका के उत्तर- पूर्व दिशा में एक स्तूप है। इस स्तूप के निकट ही एक कूप है, जिसमें से तथागत भगवान् अपनी आवश्यकता के लिए जल लिया करते थे। इसी के निकट एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है जिसमें तथागत भगवान् का शरीरावशेष सुरक्षित रखा हुआ है। यहां पर और भी बहुत से स्थान हैं जहां पर बुद्ध देव के इधर -उधर चलने फिरने और धर्मोंपदेश करने के चिन्ह हैं। इस स्थान की इन्हीं सब बातों की स्मृति के लिए एक स्तम्भ और एक स्तूप यहां पर बना हुआ है।(पेज नं 181) यहीं पर वह स्थान भी है जहां पर देवदत्त ने विशैली औषधि देकर बुद्ध देव को मारना चाहा था। यहीं एक संघाराम के पूर्व 60,70 पग की दूरी पर एक विहार 60 फ़ीट ऊंचा बना हुआ है जिसमें पूर्वाभिमुख बैठी हुई भगवान बुद्ध की एक मूर्ति है। बुद्ध देव ने यहां पर विरोधियों से शास्त्रार्थ किया था।

इस विहार से 3,4 ली दूर पूर्व दिशा में एक स्तूप बना हुआ है। इस स्थान पर तथागत भगवान् ने विशाखा को देशना दिया था।(पेज नं 184) यहीं एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां राजा विरूद्धक के आदेश से शाक्य वंश की 500 स्त्रियों का वध कर दिया गया था।(पेज नं 185) राजधानी के उत्तर-पश्चिम 16 ली की दूरी पर एक प्राचीन नगर है। इसी नगर में काश्यप बुद्ध का जन्म हुआ था। नगर के दक्षिण में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां काश्यप बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करके अपने पिता से भेंट की थी। नगर के उत्तर में एक स्तूप है जिसमें काश्यप बुद्ध का सम्पूर्ण शरीर बन्द है। यह दोनों स्तूप अशोक राजा के बनवाए हुए हैं।(पेज नं 186, 187)

कपिलवस्तु

श्रावस्ती से आगे निकल कर ह्वेनसांग “कयीपीली फास्सीटी” अर्थात् कपिलवस्तु आया। बुद्ध देव का जन्म स्थान यही देश है। यह घाघरा और गंडक नदियों के बीच बसा हुआ है। कार्लायल ने इसकी राजधानी “भुइला” नामक ग्राम को लिखा है जो फैजाबाद से 25 मील पूर्वोत्तर बस्ती जिले में है। उसने लिखा है कि यहां 1,000 से अधिक उजड़े हुए संघाराम हैं जिनमें राज्य स्थान के निकट वाले संघाराम में 3,000 बौद्ध भिक्षु हीनयान सम्प्रदाय के सम्मतीय संस्था अनुयाई हैं। राजभवन के भीतर टूटी-फूटी दीवारों की बहुत सी नीवें पायी जाती हैं।

यह सब राजा शुद्धोधन के निवास भवन की हैं। इसके ऊपर अब एक विहार बनाया गया है जिसके भीतर राजा की मूर्ति स्थापित है। इसी के निकट एक और खंडहर महामाया रानी के शयन गृह का है जिसके ऊपर एक विहार बनाया गया है। इसके अंदर महामाया रानी की मूर्ति स्थापित है। इसके पास एक विहार उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर बोधिसत्व भगवान् आध्यात्मिक रूप से अपनी माता के गर्भ में पधारे थे। इस विहार में इसी दृश्य का चित्र बनाया गया है। गर्भ वाले भवन के उत्तर पूर्व में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर असित ऋषि ने राजकुमार का भावी फल बताया था।(पेज नं 187,188) नगर के दक्षिणी फाटक पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर राजकुमार ने शाक्य वंशीय अन्य कुमारों से बराबरी करके एक हाथी को उठाकर फेंक दिया था।(पेज नं 189)

birth palace lord buddha
शुद्धोधन पैलेस, पिपरहवा.

इसके निकट ही एक विहार उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर राजकुमार तथा राजकुमारी का शयन गृह था। नगर के दक्षिण-पूरब के कोने पर एक विहार बना है जिसमें राजकुमार का घोड़े की सवारी का चित्र है। यही वह स्थान है जहां से उन्होंने नगर का परित्याग किया था।(पेज नं 190) नगर के दक्षिण 50 ली की दूरी पर एक प्राचीन नगर है जिसमें एक स्तूप बना हुआ है। यहां क्रकुच्छन्द बुद्ध का जन्म हुआ था। नगर के दक्षिण दिशा में एक स्तूप है। यह वह स्थान है जहां पर बुद्ध देव सिद्धावस्था प्राप्त कर अपने पिता से मिले थे। नगर के दक्षिण- पूर्व में एक स्तूप बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् का शरीरावशेष रखा हुआ है। इसके सामने एक पत्थर का खम्भा 30 फ़ीट ऊंचा बना हुआ है जिसके शिरे पर सिंह की मूर्ति स्थापित है। यह स्तम्भ अशोक राजा का बनवाया हुआ है। इसके चारों ओर बुद्ध देव के निर्वाण का वृत्तांत अंकित है। इस नगर के पूर्वोत्तर में लगभग 30 ली चलकर एक स्तूप मुनि बुद्ध का बना हुआ है।(पेज नं 191)

stupa kapilvastu
पिपरहवा स्तूप पिपरहवा

नगर के निकट पूर्वोत्तर दिशा में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर राजकुमार वृक्ष की छाया में बैठकर खेती की जुताई का निरीक्षण करते थे। राजधानी के उत्तर- पश्चिम की ओर सैकड़ों- हजारों स्तूप बने हुए हैं। यहां शाक्य वंश के लोग मारे गए थे। इसके दक्षिण- पश्चिम में 4 छोटे- छोटे स्तूप हैं।(पेज नं 192) यहीं एक संघाराम है। इसके पास थोड़ी दूर पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां तथागत भगवान् ने एक बड़े वृक्ष के नीचे पूर्वाभिमुख बैठ कर अपनी मौसी से काषाय वस्त्र ग्रहण किया था। नगर के पूर्वी द्वार के निकट सड़क के बांयी भाग में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां तथागत भगवान् ने एक बड़े वृक्ष के नीचे बैठ कर कला – कौशल का अभ्यास किया था।(पेज नं 194)

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी

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4 thoughts on “ह्वेनसांग की भारत यात्रा- श्रावस्ती और कपिलवस्तु…”

  1. Dr Brijendra Boudha कहते हैं:
    अप्रैल 30, 2020 को 12:34 अपराह्न पर

    दूरी में ‘ ली ‘ लिखा है । यह त्रुटि है क्या ?
    आपके द्वारा मन को ख़ुश करने वाली जानकारी दी गई । बुद्धिस्ट्स को ख़ुशी का ज़रूर संचार करेंगी ।
    आपको सादर
    जय भीम , नमो बुद्धाय , जय ज्योतिबा ।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      अप्रैल 30, 2020 को 4:16 अपराह्न पर

      सर,ली दूरी मापने का प्राचीन चीनी पैमाना था। यात्री ने इसी का प्रयोग किया है।

      प्रतिक्रिया
  2. Dr.Lovely maurya कहते हैं:
    अप्रैल 30, 2020 को 9:12 पूर्वाह्न पर

    Very valuable information by you sir.thanks a lot.apki kalm uhi chalti rahe.sadhuwad.

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      अप्रैल 30, 2020 को 4:17 अपराह्न पर

      Thank you very much Dr sahab

      प्रतिक्रिया

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