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विश्व इतिहास की झलक golden period of india

पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक (खंड-1), भाग-5

Posted on फ़रवरी 21, 2021दिसम्बर 10, 2024

प्राचीन भारत का गुप्त राजवंश – (पुस्तक का नाम- विश्व इतिहास की झलक (भाग- एक))

पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में लिखा है कि सम्राट अशोक की मृत्यु के 534 साल बाद 308 ई. में पाटलिपुत्र में मशहूर चंद्र गुप्त नाम का राजा हुआ। जिसने लिच्छवी वंश की कुमार देवी से विवाह किया। लगभग 12 वर्ष की लड़ाई के बाद वह उत्तर भारत पर कब्ज़ा कर सका। इसके बाद वह राज राजेश्वर की पदवी धारण करके सिंहासन पर बैठ गया। यहीं से गुप्त राजवंश प्रारम्भ हुआ। यह वंश करीब 200 वर्षों तक चलता रहा। यह जमाना जबर्दस्त हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का था। चन्द्रगुप्त का पुत्र समुद्रगुप्त था। उसने राजा बनने के बाद अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

समुद्रगुप्त का पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय था, जिसने काठियावाड़ और गुजरात को जीतकर साम्राज्य का विस्तार किया। इसने अपना नाम विक्रमादित्य रखा और इसी नाम से वह मशहूर है। दिल्ली में कुतुबमीनार के पास एक बहुत भारी लोहे की लाट है। यह लाट विक्रमादित्य ने विजय स्तंभ के रूप में बनवायी थी। इसकी चोटी पर कमल का फूल है जो गुप्त राजवंश का प्रतीक चिन्ह था। सांची के बौद्ध स्तूप के पश्चिम में सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय का एक लेख है। जिसमे गो हत्या को पाप माना गया है। इसमें 93 गुप्त संवत् सर दिया गया है जो 412 ई. के बराबर होता है। इस शिलालेख में ही चन्द्रगुप्त के एक अधिकारी के द्वारा किए गए दान का वर्णन है।

iron pillar delhi
दिल्ली में कुतुबमीनार के पास लोहे की लाट।

गुप्त काल भारत में हिन्दू साम्राज्यवाद का जमाना था। संस्कृत राजभाषा थी। लेकिन आम भाषा प्राकृत थी। यह संस्कृत से मिलती जुलती है। संस्कृत का अद्भुत कवि कालिदास इसी जमाने में हुआ जो उसके नवरत्नों में से एक था। समुद्रगुप्त अपने साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या ले गया। इसी समय लंका का राजा मेघवर्ण था,जिसकी समुद्रगुप्त से मित्रता थी। इसी जमाने में चीन का मशहूर यात्री फाहियान भारत में आया था। उसने लिखा है कि मगध के लोग खुशहाल और सुखी थे। न्याय का उदारता से पालन किया जाता था। मौत की सजा नहीं दी जाती थी। फाहियान भारत के बाद लंका गया तथा वहीं से चीन वापस चला गया।

चन्द्रगुप्त द्वितीय या विक्रमादित्य ने 23 वर्ष राज किया। उसके बाद उसका पुत्र कुमार गुप्त सिंहासन पर विराजमान हुआ जिसने 40 वर्ष राज किया। फिर 453 ई. में स्कंदगुप्त गद्दी पर बैठा। समुद्रगुप्त को कुछ लोग भारत का नेपोलियन भी कहते हैं। गुप्त काल में साहित्य और कला का पुनर्जागरण हुआ। हूणों ने भारत में गुप्त काल के पराभव में हमला किया। उनका मुखिया तोरमाण राजा बन गया। उसके बाद उसका पुत्र मिहिरकुल राजा बना,जो जंगली और शैतान किस्म का था। जिसका जिक्र कल्हण ने अपनी पुस्तक राजतरंगिणी में किया है। कालान्तर में गुप्त वंश के बालादित्य और मध्य भारत के राजा यशोवर्धन ने मिलकर हूणों को हराया।

महान् गुप्त वंश के अंतिम सम्राट बालादित्य की 530 ई. में मृत्यु हो गई। यह एक दिलचस्प बात है कि शुद्ध हिन्दू वंश का यह सम्राट खुद बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुआ और एक बौद्ध भिक्षु को अपना गुरु बनाया। गुप्त काल के 200 वर्षों बाद दक्षिण भारत में पुलकेशी नामक एक राजा ने, जो रामचन्द्र के वंशज होने का दावा करता था, एक साम्राज्य स्थापित किया जो चालुक्य साम्राज्य के नाम से जाना जाता है। अतिला यूरोप में हूणों का सबसे बड़ा नेता था। हूण शब्द लानत भरा है। शायद जर्मन लुटेरों के लिए इसका प्रयोग किया जाता था। वांडाल शब्द भी असभ्य और बर्बर का पर्याय है। गोथ, वांडाल और हूणों ने पश्चिम यूरोप को लूटा है।

Seville - Fresco of scene the Act of barbarian king Atilla with pope st. Leo the great
पोप सेंट के साथ राजा एटिला का दृश्य

भारत के पश्चिमी और मध्य में स्थित चालुक्य साम्राज्य की राजधानी बादामी थी। इसके उत्तर में हर्ष का साम्राज्य, दक्षिण में पल्लवों का साम्राज्य तथा पूर्व में कलिंग था। पांड्य राजाओं के समय में मदुरा (मद्रास) संस्कृति का बड़ा केन्द्र था। पल्लवों की राजधानी कॉचीपुर थी जिसे आजकल कांजीवरम कहते हैं

उत्तर प्रदेश का कन्नौज जिला कान्यकुब्ज के नाम से जाना जाता था। कान्यकुब्ज अर्थात् कुबडी कन्याओं का नगर। हूणों ने कन्नौज के राजा को मार डाला था और उसकी रानी राज्य श्री को कैद कर लिया था। राज श्री का भाई राजवर्धन भी मारा गया था। उसके बाद उसके छोटे भाई हर्ष वर्धन ने अपनी बहन राज श्री को बचाया। यही हर्षवर्धन है जो कालांतर में कन्नौज का शासक हुआ। हर्षवर्धन पक्का बौद्ध था। इसी के काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था और लगभग 8 वर्ष तक हर्षवर्धन का मेहमान रहा।

huen tsang in india king harshavardhan

पुराने भारत में गणित की उन्नति में एक स्त्री लीलावती का नाम लिया जाता है। उनके पिता भाष्कराचार्य और एक दूसरे व्यक्ति ब्रम्हगुप्त ने सबसे पहले दशमलव प्रणाली निकाली थी। बीजगणित भी भारत से ही निकला बताया जाता है। भारत से यह अरब गया और अरब से यूरोप पहुंचा। बीजगणित का अंग्रेजी नाम एलजेब्रा अरबी शब्द है।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत

पिछले भाग– विश्व इतिहास की झलक- पुस्तक समीक्षा भाग-१

– विश्व इतिहास की झलक- पुस्तक समीक्षा भाग-२

– विश्व इतिहास की झलक- पुस्तक समीक्षा भाग-3

– विश्व इतिहास की झलक- पुस्तक समीक्षा भाग-4

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5 thoughts on “पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक (खंड-1), भाग-5”

  1. Ayodhya Prasad कहते हैं:
    फ़रवरी 27, 2021 को 8:48 पूर्वाह्न पर

    गुप्त काल में साहित्य और कला का पुनर्जागरण हुआ।गुप्त कालमें संस्कृत के अद्भुत कवि कालिदास इसी जमाने में हुए जो उनके नवरत्नों में से एक थे।पुराने भारत में गणित की उन्नति में एक स्त्री लीलावती का नाम लिया जाता है। उनके पिता भाष्कराचार्य और एक दूसरे व्यक्ति ब्रम्हगुप्त ने सबसे पहले दशमलव प्रणाली निकाली थी। बीजगणित भी भारत से ही निकला बताया जाता है। भारत से यह अरब गया और अरब से यूरोप पहुंचा। बीजगणित का अंग्रेजी नाम एलजेब्रा अरबी शब्द है।यह तार्किक एवं समावेशी लेख ज्ञानवर्धक और मार्गदर्शक है।
    आप कोटि कोटि बधाई के पात्र है।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      फ़रवरी 27, 2021 को 10:41 पूर्वाह्न पर

      धन्यवाद आपको

      प्रतिक्रिया
  2. देवेंद्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    फ़रवरी 21, 2021 को 3:02 अपराह्न पर

    मौर्य साम्राज्य के बाद गुप्त वंश ही ऐसा है जिसने काफी बृहद स्तर पर सफल शासन किया है। ये काल आपने आपमे संपूर्ण कलाओं एवं शिल्प के परिष्कार के लिए जाना जाता है इस लिए ही इसको स्वर्ण युग की उपाधि भी दी जाती है।इस तार्किक एवं समावेशी लेख के लिये आपको बधाई।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      फ़रवरी 21, 2021 को 7:50 अपराह्न पर

      बहुत ही सुन्दर टिप्पणी की है आपने डॉ साहब। धन्यवाद आपको

      प्रतिक्रिया
    2. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      फ़रवरी 27, 2021 को 10:41 पूर्वाह्न पर

      बहुत सुन्दर समीक्षा, धन्यवाद आपको डॉ साहब

      प्रतिक्रिया

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