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पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, भाग- 18

Posted on जुलाई 23, 2021अप्रैल 8, 2024

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में लिखा है कि जब अरबों ने ईरान पर कब्जा किया तो वहाँ की पुरानी नस्ल सामी, जो अरबों से बहुत दूर थी और उसकी भाषा भी आर्य थी को पूरी तरह अपने में मिला नहीं सके। ईरानियों ने इस्लाम में अपना ढंग बनाए रखा। इसी भेद की वजह से इस्लाम में दो फिरके पैदा हो गए- शिया और सुन्नी।आज भी ईरान शिया बहुल है। ईरान को पहले फारस कहते थे, पर अब इसका सरकारी नाम ईरान कर दिया गया है। पुस्तक The Strangling of Persia अर्थात् “ईरान का गला घोंटना”, अमेरिकी विद्वान मोर्गन शुस्टर की लिखी हुई पुस्तक है, जिसमें अंग्रेजों तथा रूसियों द्वारा ईरान की लूट का वर्णन है।

11 वीं सदी के शुरू में ईरान में महमूद गजनवी का उदय हुआ। इसी समय फारसी का कवि फिरदौसी भी हुआ। महमूद के कहने पर उसने ईरान का राष्ट्रीय महाकाव्य शाहनामा लिखा। इस पुस्तक में बयान की गई घटनाएं इस्लामी जमाने से पहले की हैं और इसका महान् नायक रूस्तम है। फिरदौसी का जन्म 932 ई. में हुआ था और मृत्यु 1032 में हुई। इसके कुछ दिन बाद ही ईरान में नैशापुर का रहने वाला ज्योतिषी शायर उमर खैयाम हुआ। उमर खैयाम के बाद शेख सादी हुआ, जो फारसी कवियों में गिना जाता है।

10 वीं सदी के अंत में बुखारा में मशहूर अरबी दार्शनिक इब्नसीना का जन्म हुआ था। इसके 200 साल बाद बलख में जलालुद्दीन रूमी नामक एक और फारसी शायर पैदा हुआ इसी ने रक्कास (नाचने वाले) दरवेशों का पंथ चलाया था। 13 वीं सदी में (1220 ई.) ईरानी- अरबी सभ्यता को चंगेज खान ने नष्ट कर दिया। ख़ारजम और ईरान दोनों नष्ट हो गए। कुछ साल बाद हलाकू ने बगदाद को नष्ट कर दिया। नादिरशाह, एक ईरानी ही था जिसने मुगलों के आखिरी दिनों में भारत पर हमला किया था। इसी ने दिल्ली वालों का कत्लेआम किया था और यही शाहजहाँ का तख्ते हाउस और बेशुमार दौलत लूट कर ले गया था।


तैमूर का मकबरा गोरे अमीर समरकंद में है। यह लुटेरा था। तैमूर का पुत्र शाहरुख था जिसने अपनी राजधानी हिरात में एक पुस्तकालय स्थापित किया था। भारत का पहला मुग़ल बादशाह बाबर समरकंद के इसी तैमूरिया राजवंश का एक शहजादा था। 20 वीं सदी के शुरू में ईरान में पेट्रोल मिल गया। 1901 में यहां तेल निकालने का ठेका डार्सी नामक अंग्रेज़ को काफ़ी रियायती दरों पर मिल गया। जिससे उसने खूब मुनाफा कमाया। 1906 में ईरान में लोकतंत्री सरकार क़ायम हुई तथा मजलिस नामक राष्ट्रीय विधानसभा बनी।

सन् 1848 ई. का साल, यूरोप में क्रांतियों का साल कहलाता है। इस वर्ष पोलैंड, इटली, बोहेमिया और हंगरी में बलवे हुए। पोलैंड का विद्रोह प्रशिया के खिलाफ था। बोहेमिया और इटली का विद्रोह आस्ट्रिया के खिलाफ था। लोयूस, कोसूथ और देयांक हंगरी के देशभक्त थे, जिन्होंने विद्रोह में अहम भूमिका निभाई थी। 1848 में जर्मनी में भी विद्रोह हुआ। इसी वर्ष इंग्लैंड में भी अधिकार पत्री आंदोलन हुआ। Garibaldi and the fight for the Roman Empire, Garibaldi and the thousand, Garibaldi and the making of Italy, यह तीनों पुस्तकें इटली की आजादी से सम्बंधित हैं, जिनके लेखक ट्रेविलियन हैं।

सन् 1815 ई. की वियना कांग्रेस में मित्र राष्ट्रों ने इटली को विभाजित कर आपस में बांट लिया था। जिसका एकीकरण करने के लिए ग्वीसेप मेजिनी नामक नवयुवक सामने आया।इसे इटली की राष्ट्रीयता का पैगम्बर कहा जाता है। इसी समय एक अन्य साहसी व्यक्ति और भी सामने आया, जिसका नाम गैरीबाल्दी था। इसने एक हजार लाल कुर्तों की चढ़ाई की थी। मैजिन, गैरीबाल्दी और कावूर की जोड़ी ने मिलकर इटली को आजाद कराया।

फिक्ते, एक जर्मन राष्ट्रवादी तथा दार्शनिक था, जो नेपोलियन के जमाने का था। इसने जर्मन राष्ट्रीयता को जगाने का कार्य किया। सन् 1825 में वाटरलू की लड़ाई के साल में जर्मनी में ओटोवान विस्मार्क का जन्म हुआ। वह प्रशिया का एक जमींदार था। 1862 में वह प्रशिया का प्रधानमंत्री बना।वह कहता था कि इस ज़माने की बड़ी समस्याएं भाषणों और बहुमत के प्रस्तावों से नहीं बल्कि लोहे और खून से हल होंगी। विस्मार्क ने उत्तर- जर्मन संघ का संविधान 5 घंटे में लिखवा दिया था। यही संविधान जर्मनी में 1918 तक चलता रहा। फर्दीनेंद लासाल, भी एक जर्मन व्यक्ति था, जो बड़ा होशियार था और 19 वीं सदी का सबसे बढ़िया भाषण देने वाला माना जाता है।


ग्यूत (गेटे), ने कालिदास के नाटक अभिज्ञान शाकुन्तलम् का जर्मन भाषा में अनुवाद किया था।उसका जन्म 1749 में जर्मनी में हुआ था। वह 86 वर्ष की उम्र तक जिया। उसकी सबसे मशहूर पुस्तक फास्ट है। इसी समय शिलर और हाइन भी हुए। गेटे, शिलर और हाइन तीनों प्राचीन यूनान की ऊंचे दर्जे की सभ्यता और संस्कृति में सराबोर थे। हीगल, कांट और मार्क्स भी जर्मन थे। रूस का सबसे नामी कवि पुश्किन इसी समय हुआ। कीट्स, शेली और बायरन तीनों अंग्रेज़ कवि हैं।कीट्स केवल 26 वर्ष की उम्र तक जिया।

विक्टर ह्यूगो, फ्रेंच साहित्यकार है। फ्रांस का उपन्यासकार आरें द बाल जाक था, जिसकी प्रसिद्ध रचना “मानवता का प्रहसन” है। नास्तिकता की जरूरत (The necessity of atheism), शेली की निबंध रचना है। पुस्तक, अराजकता का नकाब (The Mask of anarchy), कीट्स की रचना है। वर्ड्सवर्थ (1770-1850), अंग्रेजी का महाकवि है। 19वीं सदी के तीन अंग्रेज़ उपन्यासकार हैं- वाल्टर स्कॉट, थैकरे और डिकन्स। थैकरे का जन्म 1811 में कलकत्ता में हुआ था और वह 5-6 वर्ष यहीं पर रहा। आइजक न्यूटन, जो कि एक अंग्रेज था, का जन्म 1652 में हुआ था तथा 1727 में उसकी मृत्यु हुई। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण नियम की व्याख्या की, यानी यह बताया कि चीजें क्यों गिरती हैं।

सन् 1859 में एक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसका नाम था- ओरिजिन आफ स्पीशीज। यह चार्ल्स डार्विन द्वारा लिखी गई थी। इस पुस्तक में डार्विन ने नैसर्गिक वरण (Natural selection) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। डार्विन ने अनेक उदाहरण देकर साबित किया कि एक जाति, दूसरी जाति में बदलती है और विकास का यही कुदरती ढंग है। आगे उसने कहा कि दुनिया योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the fittest) की प्रक्रिया से आगे बढ़ती है।जो प्राणी मजबूत होता है और प्रकृति के अनुसार अपने को ढाल लेता है, वही जिंदा रहता है। इसके कुछ ही दिनों बाद डार्विन की दूसरी पुस्तक मनुष्य का वंश क्रम (The descent of man) प्रकाशित हुई। जिसमें उसने अपने पूर्व प्रतिपादित मत को मनुष्य जाति पर लागू करके दिखाया।

चीनी दार्शनिक त्सोन- त्से ने आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व कहा था कि, सभी प्राणियों की उत्पत्ति एक ही जाति से होती है। इस अकेली मूल जाति में धीरे- धीरे व लगातार परिवर्तन होते गए, जिसके सबब से प्राणियों के जुदा- जुदा रूप पैदा हुए।इन प्राणियों में फौरन ही भेदभाव पैदा नहीं हुआ था, बल्कि उन्होंने अलग- अलग भेद पीढ़ी दर पीढ़ी, धीरे-धीरे होने वाले परिवर्तनों से हासिल किए थे। बाइबिल के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति ईसा से ठीक 4004 वर्ष पहले हुई थी और हरेक पेड़ तथा जानवर अलग -अलग पैदा किया गया था। सबसे अंत में मनुष्य बनाया गया था।

अल्बर्ट आइंस्टीन एक जर्मन वैज्ञानिक थे। सापेक्षवाद, नामक क्रान्तिकारी सिद्धांत उन्हीं की देन है। यहूदी होने के कारण हिटलर ने इन्हें जर्मनी से निकाल दिया था। आइंस्टीन ने अमेरिका में जाकर शरण ली।इनकी मृत्यु 1955 में हुई। एडम स्मिथ, को अर्थशास्त्र का जनक माना जाता है। उसकी प्रारम्भिक पुस्तक राष्ट्रों की सम्पत्ति (Wealth of nations) है। यह राजनीति अर्थशास्त्र की पुस्तक है। टामस पेन, एक अंग्रेज था, जिसने फ्रांस की राज्य क्रांति की पैरवी में The Rights of man नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में उसने राजशाही पर हमला किया और लोकतंत्र की हिमायत की।पेरिस के जेलखाने में उसने The age of reason नामक पुस्तक लिखी।

आगस्त कौंत, एक फ्रांसीसी दार्शनिक था जिसका समय 1798 से 1857 है। उसने मानव धर्म (Religion of humanity) का प्रस्ताव किया और उसका नाम धनात्मक वाद (Positivism) रखा। इसके आधार थे- प्रेम, व्यवस्था और प्रगति। इसमें कोई अलौकिक बात नहीं थी। इसका आधार विज्ञान था। मानव समाज और संस्कृति से ताल्लुक रखने वाले समाजशास्त्र का अध्ययन इसी का शुरू किया हुआ समझना चाहिए।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी, फोटो गैलरी, डॉ. संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर- प्रदेश (भारत)

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2 thoughts on “पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, भाग- 18”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    जुलाई 24, 2021 को 11:42 अपराह्न पर

    समावेशी समीक्षा… सतत समीक्षात्मक अध्ययन करना एक दुरुह कार्य है।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      जुलाई 25, 2021 को 8:49 पूर्वाह्न पर

      Thanks again

      प्रतिक्रिया

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