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पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, भाग- 20

Posted on अगस्त 7, 2021अप्रैल 6, 2024

अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है कि अमेरिका में उत्तरी यूरोप के लोग, दक्षिण यूरोप से आए विशेष कर इटालियन लोगों को हिकारत की नजर से देखते थे और उन्हें डैगो कहकर पुकारते थे।अर्जेन्टीना, ब्राजील और चिली, दक्षिण अमेरिका के तीन बड़े देश हैं। इनको ए. बी. सी. देश कहते हैं, क्योंकि इनके नामों के पहले अक्षर ए.बी. सी. हैं। उत्तरी अमेरिका में मैक्सिको बड़े लातीनी अमेरिकी देशों में गिना जाता है।

पानामा नहर मध्य अमेरिका की एक पट्टी में है और प्रशान्त महासागर तथा अटलांटिक महासागर को मिलाती है। फ्रांसीसी इंजीनियर फर्दिनांद दे लसेप्स ने इसकी योजना बनाई थी। यह नहर पानामा के छोटे से गणराज्य के अंदर है लेकिन इस पर संयुक्त राज्य का अधिकार है। स्वेज नहर मिस्र की है जो 1869 में खुली। बुक ऑफ कैटल्स- कैल्त या सैल्त नस्ल, आर्य वंश की एक शाखा है, जो आयरलैंड में जाकर बसी। इनकी संस्कृति को गेली कहा जाता है। डेनमार्क निवासियों को डेनी तथा नार्वे- स्वीडन निवासियों को नॉर्स मैन कहा जाता था।

नार्मन, स्केन्दीनेविया की एक जाति है, जो दसवीं सदी की शुरुआत में उत्तरी फ्रांस में आकर बस गयी थी और जिसने वहां नार्म डी की डची का निर्माण किया था।नार्मनों ने आयरलैंड के जिस भाग को जीता था, उसका नाम पेल पड़ गया था।शिनफेन, एक आयरिश शब्द है जिसका अर्थ है- हम खुद। इस नई नीति का प्रारंभ आर्थर ग्रिफिथ नामक आयरिश व्यक्ति ने किया था। गुलीवर्स ट्रेवल्स का लेखक जोनाथन स्विफ्ट था।

ईसा पूर्व छठी शताब्दी में ईरानियों ने मिस्र को जीत लिया था। कालान्तर में सिकन्दर ने ईरानियों को परास्त किया। सिकन्दर की मौत के बाद मिस्र उसके सेनापति तालमी के कब्जे में आ गया था। क्लियोपैट्रा, तालमी वंश की आखिरी कडी थी। सातवीं शताब्दी में यहां इस्लाम आया। अरबी भाषा और अरबी संस्कृति आयी। यहां पर तुर्की से लाए गए गोरे गुलाम ममलूक कहलाते थे। अफ्रीका को अंधेरा महाद्वीप कहा जाता था क्योंकि वहां आने- जाने के रास्ते दुर्गम और कठिन थे।

पश्चिम के पाक ईसाई, तुर्कों को ख़ुदा का कहर समझते थे, जो ईसाई संसार को उसके पापों की सजा देने के लिए भेजा गया था। तुर्की के उस्मानी सुल्तानों की फौज की एक टुकड़ी का नाम जॉनिसार था, जिसमें ईसाई गुलाम भर्ती किए जाते थे। 1843 में तुर्की का जिक्र करते हुए रूस के जार ने कहा था कि हमारे हाथ में एक बीमार है, वह बहुत ज्यादा बीमार है, यह किसी समय हमारी गोद में मर सकता है। यह फिरका मशहूर हो गया और तुर्की तब से यूरोप का बीमार कहा जाने लगा। यूनान, रुमानिया, सर्बिया, बल्गारिया, मांटिनिग्रो और बोस्निया, यह सब बल्कानी देश थे। रूस स्लाव लोगों का देश है। बल्गारिया और सर्बिया भी इसी नस्ल के हैं।

रूस के जार को नन्हा गोरा पिता कहा जाता था। रूस का प्रतीक नाउट था और वह अक्सर प्रोग्रोम की कार्यवाइयॉं किया करता था। नाउट चाबुक को कहते थे जिससे खेतिहर गुलामों को सजा दी जाती थी और प्रोग्रोम का मतलब था- बर्बादी और बाकायदा अत्याचार। 1689 में जार, जिसे पीटर महान् कहा जाता था, रूस की गद्दी पर बैठा। 1725 में पीटर की मृत्यु हो गई। इसके 50-60 वर्ष बाद 1782 में कैथरीन द्वितीय नामक महिला रूस में शासक बनी। यह भी महान् कहलाती है। इसने 14 वर्ष राज़ किया। अपने पति की हत्या कर यह शासक बनी थी।


वामपंथी रूस में दो राजनीतिक दल थे- बोलशेविक और मेनशेविक। बोलशेविक का अर्थ था- बहुमत और मेनशेविक का अर्थ था- अल्पमत। लेनिन, बोलशेविक दल का नेता था। दूमा, सोवियत रूस की विधायिका का नाम है। खूनी रविवार, सोवियत रूस से सम्बन्धित है। 22 जनवरी 1905 ई. को जार की फौज ने एक शांत जुलुस पर गोलियां चलाई थीं, जो जार के पास रोटी मांगने आए थे। पुश्किन रूस का महान कवि था। उपन्यास लेखकों में गोगोल, तुर्कनेव, दोस्तोवस्की और चेखव मशहूर हैं। लियो तालस्ताय और मैक्सिम गोर्की प्रसिद्ध रूसी लेखक हैं।

हवा से भारी मशीन पर आकाश में उड़ने वालों में सबसे पहले व्यक्ति दो अमेरिकी भाई विल्बर राइट और ओरेविले राइट थे। आजकल का हवाई जहाज इसी मशीन की औलाद है। 1903 में वे 300 गज से कम उड़े थे। 1909 में ब्लेरियो नामक फ्रांसीसी, इंग्लिश चैनल के ऊपर उड़कर फ्रांस से इंग्लैंड पहुंचा। 1927 में चार्ल्स लिंडबर्ग अटलांटिक सागर को पार कर पेरिस आया। कट एंड माउस एक्ट, ब्रिटिश पार्लियामेंट का कानून था जो नारी आंदोलन से सम्बंधित था। इंग्लैंड अहंकार में अपने को गोरे आदमी का बोझ तथा फ्रांस सभ्यता सिखाने वाला मिशन मानते थे।

विल्बर राइट और ओरेविले राइट

सन् 1899 में तथा 1907 में हालैण्ड के हेग नगर में शांति सम्मेलन बुलाए गए थे जो असफल रहे। वाटरलू बेल्जियम में है। इसी कारण से बेल्जियम यूरोप का अखाड़ा कहलाता है। सन् 1875 में लार्ड सेलिसबरी ने, जो उस समय भारत मंत्री था, कहा था, कि चूंकि भारत का खून खींचना जरूरी है, इसीलिए नश्तर उन अंगों में लगाना चाहिए, जहां खून जमा हो रहा हो, या कम से कम काफी हो। उन अंगों में नहीं जो खून की कमी से पहले ही कमजोर हैं।

दिनांक 28 जून 1914 ई. को आर्कड्यूक फ्रांसिस फर्दिनेंद जो आस्ट्रिया की राजगद्दी का वारिस था, बोस्निया की राजधानी सिराजेवो की यात्रा पर था। यहीं पर एक संगठन जिसको काला हाथ के नाम से जाना जाता था, के लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी। 23 जुलाई 1914 को आस्ट्रिया ने सर्बिया को युद्ध का आखिरी पैगाम भेजा। 5 दिन बाद 28 जुलाई को आस्ट्रिया ने सर्बिया के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। 2 दिन बाद 1 अगस्त को जर्मनी ने भी रूस व फ्रांस के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। 4 अगस्त को आधी रात के बाद इंग्लैंड ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। यही प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि थी।


मई 1915 में एक जर्मन पनडुब्बी ने अटलांटिक महासागर में चलने वाले बड़े यात्री जहाज लुसिटैनिया को डुबो दिया। इससे अमेरिका में गुस्सा बढ़ा। अप्रैल 1917 में वह भी युद्ध में सम्मिलित हो गया। पश्चिम में सारी मित्र राष्ट्रों की सेना का महासेनापति फ्रांस के मार्शल फॉस को बनाया गया था। 11 नवम्बर 1918 को प्रथम विश्व युद्ध का अंत हुआ। इस सुलहनामे का आधार वह 14 शर्तें थीं, जो अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन ने तैयार की थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जापान ने चीन से अपनी 21 मांगें मनवाने की कोशिश किया, जिसको लेकर पूरे विश्व में हाय तौबा मची और जापान को अपने कदम पीछे हटाने पड़े।

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उत्तरी फ्रांस के कौंप्येन के वन में सुलहनामे पर दस्तखत हुए। यहां पर एक स्मारक बना हुआ है, जिस पर लिखा गया है कि ‘‘यहां 11 नवम्बर 1918 को जर्मन साम्राज्य का पापी घमंड चूर हो गया था, जिसे उन आजाद कौमों ने नीचा दिखाया, जिन्हें उसने गुलाम बनाना चाहा था। विजयी मित्र राष्ट्रों ने 1919 में पेरिस में एक सुलह सम्मेलन किया। यह बैठक वार्साई के उसी भवन में हुई जहां 48 साल पहले जर्मन साम्राज्य की घोषणा की गई थी। सम्मेलन की बागडोर मित्र राष्ट्रों की 10 की कौंसिल के हाथों में थी। यहां 440 पेज के दस्तावेज पर दस्तखत किए गए। इसे ही वार्साई की संधि कहते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन, इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लॉयड जार्ज तथा फ्रांस के राष्ट्रपति क्लैमैंशो यहां पर उपस्थित थे।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी, फोटो गैलरी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर प्रदेश, (भारत)

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3 thoughts on “पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, भाग- 20”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    अगस्त 8, 2021 को 5:42 अपराह्न पर

    इतिहास सबसे अपूर्ण और जटिल विषय है… ज्ञानवर्धक और सारगर्भित समीक्षा ।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      अगस्त 8, 2021 को 8:51 अपराह्न पर

      जी, बिल्कुल। बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब।

      प्रतिक्रिया
    2. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      अगस्त 13, 2021 को 10:50 पूर्वाह्न पर

      बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब

      प्रतिक्रिया

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