ह्वेनसांग की भारत यात्रा- भरुच, मालवा,वल्लभी और कच्छ…
भरूकछ
अजंता की गुफाओं से आगे पश्चिम में चलकर ह्वेनसांग ने नर्मदा नदी को पार किया और “पोलकयीचोपो” अर्थात् “भरूकछ” या “भरोच” राज्य में आया। आज यह दक्षिणी गुजरात में स्थित एक प्रमुख औद्योगिक शहर है। इसे देश का दूसरा सबसे पुराना शहर माना जाता है।
नर्मदा नदी पास से बहती है। उसने लिखा है कि इस राज्य का क्षेत्रफल 24 या 25 सौ ली और इसकी राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 20 ली है। भूमि नमक से गर्भित है वृक्ष और झाड़ियां बहुत कम हैं। प्रकृति गर्म और वायु सदा आंधी के समान चला करती है। समुद्र यहां के लोगों की आमदनी का मुख्य आधार है। कोई 10 संघाराम लगभग 200 साधुओं सहित हैं। यह साधु स्थविर संस्था के महायान सम्प्रदाय के अनुयाई हैं।(पेज नं 391)
मालवा
वहां से उत्तर- पश्चिम लगभग 2 हजार ली चलकर ह्वेनसांग “मालपा” अर्थात् “मालवा’ राज्य में आया। उसने लिखा है कि इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग 6 हजार ली और राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 30 ली है। इसके पूर्व तथा दक्षिण में माही नदी प्रवाहित है। भूमि उत्तम और उपजाऊ है तथा फसलें अच्छी होती हैं। यहां के लोग पूरी और सत्तू अधिक खाते हैं। गेहूं की फसल अधिक होती है। उसने विद्वता के क्षेत्र में मालवा की तुलना मगध से की है। उस समय यहां पर कोई 100 संघाराम थे जिसमें 2 हजार साधु निवास करते थे। यहीं 60 वर्ष पूर्व शिलादित्य नामक राजा हुआ था जो बहुत विद्वान था। बुद्ध, धम्म और संघ का भक्त था। जन्म से लेकर मरण पर्यंत तक उसके मुख पर कभी क्रोध की झलक दिखाई न पड़ी। उसके हाथ से कभी किसी प्राणी तक को कष्ट नहीं हुआ।(पेज नं 393) वह प्रत्येक वर्ष मोक्ष महा परिषद नाम की सभा बुलाता था। राजधानी के उत्तर- पश्चिम 200 ली पर एक स्तूप है।(पेज नं 393) ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में मालवा क्षेत्र “अवंति” के नाम से जाना जाता था और “मौर्य साम्राज्य” के अंतर्गत आता था। तथागत भगवान् बुद्ध के समय अवंति उत्तर के चार शक्तिशाली राज्यों में से एक था। चंद्रगुप्त मौर्य ने “अवंति” को जीतकर “मगध” देश में मिला लिया था। वर्तमान समय में यह पश्चिमी मध्य भारत में आता है। इसका विस्तार पश्चिम- मध्य, मध्य प्रदेश, दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी महाराष्ट्र तक है।
कच्छ
मालवा देश से उत्तर- पश्चिम लगभग 300 ली चलकर ह्वेनसांग “कईचअ” अर्थात् “कच्छ” देश में आया। उस समय यह मालवा के अधीन था। उसने लिखा है कि यहां पर कोई 10 संघाराम और लगभग एक हजार साधु निवास करते हैं जो हीन और महा दोनों यानों का अनुगमन करते हैं। इस राज्य की आबादी घनी तथा लोग सम्पत्तिशाली हैं। राज्य का क्षेत्रफल लगभग 3 हजार ली और राजधानी 20 ली के घेरे में है।(पेज नं 396) आजकल कच्छ पश्चिमी भारत के गुजरात राज्य का एक जिला है जो 45,675 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह देश का सबसे बड़ा जिला है जिसकी आबादी 20 लाख, 92 हजार, 371 है। इसमें 10 तालुका, 939 गांव तथा 6 म्युनिसिपैलिटी हैं। कच्छ में ही देश का व्यापारिक पोत “कांडला’ है। भारत और पाकिस्तान की सीमा भी यहां पर मिलती है। “गांधी धाम” यहां का आखिरी रेलवे स्टेशन है। यहां से 1000 ली उत्तर दिशा में चलकर व्हेनसांग “वलभी” राज्य में आया।
वल्लभी
यात्री ने लिखा है कि “फलपी” अथवा “वलभी” राज्य का क्षेत्रफल लगभग 6 हजार ली और राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 30 ली है। भूमि की दशा, प्रकृति और लोगों का चाल- चलन, व्यवहार आदि मालवा राज्य के समान है। आबादी बहुत घनी और निवासी धनी तथा सुखी हैं। कोई 100 परिवार तो ऐसे हैं जिनके पास 1 करोड़ से अधिक द्रव्य है। कोई 100 संघाराम हैं जिनमें लगभग 6 हजार साधु निवास करते हैं।इन लोगों में से अधिकतर समातीय संस्थानुसार हीनयान सम्प्रदाय का अनुशीलन करते हैं। जिन दिनों तथागत भगवान् जीवित थे,वे बहुधा इस देश में यात्रा किया करते थे। इस कारण से अशोक राजा ने उन सब स्थानों पर जहां- जहां पर वह ठहरे अथवा गये थे स्मारक या स्तूप बनवा दिए गए हैं। इन स्थानों में अनेक ऐसे भी हैं जहां पर गत चारों बुद्ध उठते बैठते अथवा धर्मोपदेश करते रहे हैं। वर्तमान नरेश जाति का क्षत्रिय और मालवा के शिलादित्य राजा का भतीजा तथा कान्यकुब्ज के वर्तमान नरेश शिलादित्य का दामाद है। इसका नाम “ध्रुवपट” है। यह रत्न त्रयी का भक्त है।(पेज नं 397)
नगर से थोड़ी दूर पर एक संघाराम बना हुआ है जिसको आचार नाम के अरहत ने बनवाया है। इस स्थान पर गुणमति और स्थिरमति महात्माओं ने यात्रा करते हुए आकर कुछ दिन तक निवास किया था तथा उत्तम ग्रंथों का निर्माण किया था। स्थिरमति स्थविर बसबन्धु का प्रसिद्ध शिष्य था तथा अपने गुरु की पुस्तक पर टीकाएं लिखी थीं। धारमन प्रथम के दान पत्र में लिखा है कि आचार्य महन्त स्थिरमति ने “वासपाद” नाम का विहार “वल्लभी’ में बनवाया था।(पेज नं 398) आजकल वलभी को “वल्लभपुर” के नाम से जाना जाता है। यह भी गुजरात राज्य के भावनगर जनपद में आता है। यहां प्राचीन “ब्राम्ही लिपि” के साक्ष्य मिले हैं। यहां का प्राचीन “वलभी” विश्वविद्यालय हीनयान सम्प्रदाय के बौद्ध अध्ययन का बड़ा केन्द्र था। जिसकी प्रसिद्धि “नालंदा” तथा “तक्षशिला’ विश्वविद्यालय जैसी थी।नीति (राजनीति), वार्ता, (कृषि, व्यापार) प्रशासन, कानून, अर्थशास्त्र तथा धर्म शास्त्र यहां पढाये जाने वाले प्रमुख विषय थे।
अनुपम ऐतिहासिक जानकारी है।
धन्यवाद आपको
सर..बहुत ही अद्भुत, ऐतिहासिक जानकारी आप के साथ मिल रही है बहुत बहुत आभार 🙏🙏🙏
आप को भी धन्यवाद भाई जी
Sir wonderful knowledge with you..
So many many thanks..Sir 🙏🙏🙏
Thank you sir
सराहनीय जानकारियां सम्मिलित है आपकी समीक्षा में।
निरंतर उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद आपको
Ji sir
Ok
बहूत ही ऐतिहासिक जानकारियाँ इस पुस्तक समीक्षा मे दी गयी है जो बुध्द के धम्म के विस्तार को वर्णित कर रहा है कि बुध्द का धम्म किस तरह से जन जन मे ब्याप्त था
जी,सर