माडा तथा बादामी की गुफाएं
माडा की गुफाएं
लगभग 8 किलोमीटर की रेंज में फैली हुई माडा की गुफाएं देश के छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा पर स्थित सिंगरौली जिले में हैं। माडा सिंगरौली जिले की एक तहसील है। अनुमानतः सातवीं और आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व निर्मित की गई यह गुफाएं पहाड़ों को काटकर बनाई गई हैं। बैढ़न शहर से इनकी दूरी लगभग 32 किलोमीटर की है। माडा की गुफाएं राक कट शैली का अद्भुत नमूना पेश करती हैं।
माडा तहसील पहुंचने पर, पुलिस थाना पार करने के बाद यह गुफाएं प्रारम्भ हो जाती हैं। यह गुफाएं ऊंचे पहाड़ों तथा झरनों के बीच रोमांचक दृश्य उपस्थित करती हैं। यहां मौजूद शैल चित्र तथा पत्थरों को काटकर बनाई गई मूर्तियां इतिहास को परखने और समझने का बेहतरीन माध्यम हैं। यहां गुफाओं को अलग अलग नाम दिया गया है, जैसे- विवाह माडा, गणेश माडा, शंकर माडा तथा रावण माडा। रावण माडा गुफा में जाने के लिए बाकायदा पहाड़ पर सीढियां बनाई गई हैं। गुफा के अंदर कई कक्ष हैं।
विवाह माडा गुफा एक विशाल काय पहाड़ को काटकर बनाई गई है। इस गुफा के तीन हिस्से हैं। गुफा के खम्भों में शैल चित्रों की अद्भुत कारीगरी है। गणेश माडा गुफा और शंकर माडा गुफा एक ही पहाड़ में स्थित हैं। इन गुफाओं में पहाड़ को काटकर नीचे ही नीचे से रास्ते बनाए गए हैं परंतु यह कहां पर निकलते हैं यह आज़ तक रहस्य है। घने जंगलों में स्थित माडा की गुफाएं आदि मानव काल के इतिहास तथा सभ्यता के अवशेषों को संजोए हुए हैं। इसी प्रकार से सिंगरौली के चित्रांगी तहसील में रानी मची, ढोल गिरि और गौरा पहाड़ झूठ हैं। यह पेंटिंग राक आश्रय मायक्रॉलिथिक औजार संस्कृति के मेसोथोथिक युग से संबंधित हैं।
सिंगरौली मध्य प्रदेश का एक जिला है जिसे 24 मई 2008 को सीधी जिले से विभाजित करके बनाया गया है। ऐतिहासिक रूप से सिंगरौली रीवां की एक रियासत थी जो बघेलखंड क्षेत्र का हिस्सा थी। खनिज संसाधनों और तापीय विद्युत संयंत्रों की प्रचुरता के कारण इसे “ऊर्जांचल” का नाम दिया गया है। माडा अच्छी तरह से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। बैढ़न से टैक्सी या बस से यहां पर पहुंचा जा सकता है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन बरगवां और सिंगरौली है जबकि निकटतम हवाई अड्डा लालबहादुर शास्त्री एयरपोर्ट बाबतपुर, वाराणसी है।
बादामी की गुफाएं
भारतीय राक कट वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण बादामी की गुफाएं भी हैं। यह भारत के कर्नाटक राज्य के उत्तरी भाग में बागलकोट जिले के शहर बादामी में स्थित हैं। ऐतिहासिक ग्रंथों में बादामी को वातापी, वातपीपुरा, वातपी नगरी और अग्याति तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। बादामी 540 ई.से 757 ई. तक चालुक्य वंश की राजधानी थी। बादामी की गुफाओं में चालुक्य वास्तुकला की सुंदर झलक है। यह मानव निर्मित झील के पश्चिमी तट पर स्थित हैं जो पत्थर की सीढ़ियों के साथ ही एक दीवार से घिरा हुआ है। शहर के दक्षिण-पूर्व में नरम बादामी बलुआ पत्थर से बनी हुई इन गुफाओं की संख्या चार है। माल प्रभा नदी यहां से तीन मील दूर है।
यहां की गुफ़ा नं 3 में एक शिलालेख है जो पुरानी कन्नड़ भाषा में लिखा हुआ है। इसमें मांगलेखा द्वारा समर्पण का उल्लेख है। इसमें उत्तरी नागरा तथा दक्षिणी द्रविडा शैली मिलती है। यहीं पर वेसारसा शैली का भी संयोजन है। गुफा नं. 1 और 2 में मौजूद कलाकृतियां छठीं और सातवीं शताब्दी की उत्तरी डेक्कन शैली से प्रभावित हैं। यह जमीन से लगभग 59 फ़ीट ऊपर है। इसके प्रवेश द्वार पर नटराज की मूर्ति स्थापित है।
एहोल
इन गुफाओं के अलावा बादामी कई अन्य गुफा स्मारकों का घर है। यहीं पर झील के दूसरी तरफ भूटान मंदिर के पास छोटे आकार की एक सातवीं, आठवीं शताब्दी की चालुक्य कालीन गुफा है। इस गुफा के अंदर एक मूर्ति सिंहासन पर विराजमान है। जार्ज माइकल मानते हैं कि यह मूल रूप से एक बुद्ध प्रतिमा थी। बागलकोट जिले में ही एहोल नामक एक पुरातात्विक स्थल है। यहां पर भी प्राचीन स्मारक हैं जिन्हें राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जा चुका है। इसे आइहोल के नाम से भी जाना जाता है। यहां से चालुक्य नरेश पुलकेशन द्वितीय का 634 ई. का एक अभिलेख पाया गया है। अभिलेख से पुलकेशी द्वितीय के हाथों हर्षवर्धन के पराजय की जानकारी मिलती है। एहोल को स्थापत्य कला का विद्यालय तथा बादामी को महाविद्यालय माना जाता है। चालुक्य शैली का उद्गम स्थल एहोल ही है।
पत्तदकल
बादामी से लगभग 22 किलोमीटर दूर मलय प्रभा नदी के तट पर ही “पत्तदकल” शहर बसा हुआ है। यह भी बागलकोट जिले में ही आता है। एहोल से इसकी दूरी लगभग 10 किलोमीटर है। यहां पर कुल 10 मंदिर हैं, जिनमें चैत्य, पूजा स्थल तथा अपूर्ण आधार शिलाएं हैं। पत्तदकल को 1987 में यूनेस्को के द्वारा “विश्व विरासत स्थल” घोषित किया जा चुका है।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, झांसी
हर पत्थर अपने आप मे एक इतिहास है। ऐतिहासिक विवरण और स्थापत्य की जानकारी के लिये आपका आभार।
आभार आपका डॉ साहब