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हिमाचल की खूबसूरत वादियों में बहुरंगी विविधता से सराबोर बौद्ध संस्कृति

Posted on जुलाई 26, 2020अगस्त 3, 2020

हिम के आंचल में बसा हुआ ख़ूबसूरत हिमाचल प्रदेश अपनी नदी, घाटी, पहाड़ों, कंदराओं और गुफाओं की बेनजीर सुंदरता के साथ बौद्ध धर्म की बहुरंगी संस्कृति को संजोए हुए है। 1960 से तिब्बत के बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा यहीं हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक शहर धर्म शाला के मैक्डोनाल्डगंज में रहते हैं। यही तिब्बती प्रशासन का मुख्यालय तथा निर्वासित तिब्बती सरकार की राजधानी है। तिब्बती समुदाय की बहुलता के कारण इसको “मिनी ल्हासा” भी कहते हैं। समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित धर्मशाला हिमाचल प्रदेश की शीतकालीन राजधानी भी है। यह कांगड़ा जिले का मुख्यालय है। कांगड़ा यहां से 16 किलोमीटर दूर है। मैक्डोनाल्डगंज में ही लार्ड एल्गिन का स्मारक है। यहीं पर बस स्टैंड से थोड़ी दूर पर “वार मेमोरियल” बना हुआ है जिसमें देश के लिए शहीद हुए जवानों की स्मृतियां हैं। धर्मशाला से थोड़ी दूर पर यहां की “डल झील” है। पठानकोट से धर्मशाला की दूरी 85 किलोमीटर है। पालमपुर को “कांगड़ा का दिल” कहते हैं।

vitoria bridge

रिवालसर तथा गोम्पा मठ

हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पिति व किन्नौर की घाटियों में बौद्ध धर्म की संस्कृति फैली हुई है।रिवालसर बौद्ध अनुयायियों का पवित्र स्थल है। यह मंडी जिले से 20 किलोमीटर उत्तर- पश्चिम में स्थित है। यहां से बौद्ध धर्म गुरु “पद्मसंभव” धर्म प्रचार के लिए तिब्बत गये थे। यहीं पर पास में ही एक झील के किनारे पर पैगोडा शैली का सुंदर मठ है। रिवालसर झील अपने बहते हुए “रीड के द्वीपों” के लिए प्रसिद्ध है।चंद्रभागा नदी के दाहिने तट पर लकड़ी से बना हुआ “गोम्पा मठ” है।इसे “गुरु घंटाल मठ” के नाम से जाना जाता है। यहां पर गुरु पद्मसंभव और ब्रिजेश्वरी देवी की मूर्तियां स्थापित हैं। गुरु पद्मसंभव के पद चिन्ह लौत्साबाद मठ में संग्रहीत हैं। केलांग से 5 किलोमीटर की दूरी पर “कर्दांग मठ” है। यहां पर एक विशाल पुस्तकालय है जहां पर “क्कन्ग्युर” लिपि तथा “त्न्ग्युर” लिपि में बौद्ध साहित्य से ताल्लुक रखने वाली पुस्तकें “भोटी लिपि” में लिखी गई हैं।

थांग-थुंग तथा धनखड़ मठ

केलांग से 3 किलोमीटर उत्तर पहाड़ी पर “शशुर” मठ है यहां पर स्थापित कला कृतियों में 84 बौद्धों का इतिहास दर्शाया गया है। केलांग से 6 किलोमीटर दूर त्यूल गोम्पा घाटी में पुराना मठ है जहां पर गुरु पद्मसंभव की 5 मीटर ऊंची प्रतिमा तथा क्यूंगर पुस्तकालय है। काजा से 12 किलोमीटर उत्तर में की मठ है जो पुराने मठों में शुमार किया जाता है। यह की गांव के ऊपर स्थित है। यह लामाओं के संगीत, नृत्य,वाद्य यंत्र तथा धार्मिक प्रशिक्षण का प्रमुख केन्द्र है। काजा से 13 किलोमीटर उत्तर में थांग-थुंग गोम्पा मठ है। यह एक संकरी तथा तंग घाटी में स्थित है। काजा से ही थोड़ी दूर पर “धनखड़” मठ है। यहां पर “वैरोचन” की प्रतिमा है जिसमें पीठ से पीठ जोडे हुए भगवान बुद्ध की चार आकृतियां बनी हुई हैं। इस मठ में भोटी भाषा के बौद्ध धर्म के साहित्य सुरक्षित हैं। यहां लामा रहते हैं। धनखड़ मठ 1000 साल पुराना है तथा 3,370 मीटर ऊंचाई पर स्थित है।

ताबो मोनेस्ट्री

काजा से 50 किलोमीटर दूर “ताबो मठ” है। यहां पर अजंता चित्र कलाओं से समानता रखने वाले बौद्ध साहित्य का बहुत बड़ा संग्रह है। ताबो मोनेस्ट्री को “हिमालय का अजंता” भी कहते हैं। इसमें 9 मंदिर तथा 23 बौद्ध स्थल और भिक्षुओं के रहने के लिए कक्ष हैं। ध्यान और साधना के लिए यहां पर कई गुफाएं हैं। वर्ष 1983 तथा 1996 में 14 वें दलाई लामा ने यहां पर कालचक्र पूजा का आयोजन किया था। कालचक्र पूजा का उद्देश्य मनुष्य के अन्दर समाहित बुद्धत्व को जगाना होता है। इसमें दीक्षा और पुनर्जन्म जैसे विषयों पर चर्चा की जाती है। इस मोनेस्ट्री का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है।

  • Big Bell, Rewalsar, Himachal Pradesh.

छोटी काशी या मंडी

मंडी जिले से 26 किलोमीटर दूर “सुंदरनगर” अपने मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। पहाड़ी के ऊपर सुकदेव वाटिका तथा “महामाया” देवी का मंदिर है। यहां पर एक स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय भी है।इसी जनपद में ही कमरूनाग नाम के पूजनीय देवता का मंदिर है। इसे “वर्षा का देवता” भी कहा जाता है। भुंतर हवाई अड्डा यहां का निकटतम हवाई अड्डा है। कीरतपुर निकटतम रेलवे स्टेशन है। सड़क मार्ग से मंडी चंडीगढ़, पठानकोट, शिमला, कुल्लू मनाली तथा दिल्ली से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। मंडी जिला अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि मेले के लिए प्रसिद्ध है। पहले मंडी की राजधानी व्यास नदी के दाहिने किनारे पर स्थित थी जिसे अब पुरानी मंडी भी कहा जाता है। मंडी को “वाराणसी आफ़ हिल्स” या “छोटी काशी” के नाम से भी जाना जाता है। सेपु बड़ी मंडी का आधिकारिक और मुख्य व्यंजन है जो दोपहर के भोजन में शामिल किया जाता है।

मनाली

हिमाचल प्रदेश का खूबसूरत हिल स्टेशन मनाली है जिसे “देवताओं की घाटी” के रूप में भी जाना जाता है। लेह तक जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 तथा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 1 से यह बहुत अच्छी तरह से जुडा हुआ है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन ऊना है जो मनाली से 250 किलोमीटर दूर है। मनाली के दक्षिण में स्थित नाग्गर किला, पाल साम्राज्य का स्मारक है। हिमाचल प्रदेश की कालका-शिमला छोटी रेल लाइन विश्व विरासत सूची में शामिल है।

बेताल की गुफ़ा

बेताल की गुफ़ा मंडी जिले के सुंदरनगर उपमंडल की ग्राम पंचायत कलौहर के भौणबाडी में स्थित है। गुफा की लम्बाई 50 से 60 मीटर और ऊंचाई लगभग १५ से २० फ़ीट है। यहां 15-20 मूर्तियां हैं जिन्हें बेताल भैरवी की माना जाता है। किंवदंती है कि पहले यहां की गुफ़ा की दीवारों से घी टपकता था। इस गुफा के अंदर से नाले का पानी भी बहता रहता है जिसकी आवाज किसी संगीत जैसी लगती है। स्थानीय लोग यहां पर अपने घरों में विवाह जैसे बड़े आयोजनों के लिए उपयोग में लाये जाने वाले बर्तनों की मांग करते हैं। हिमाचल प्रदेश के ही मसरूर मंदिर में एक ही स्थान पर चट्टान को काटकर बनाया गया मंदिरों का समूह है। यह कांगड़ा घाटी में एक चट्टान के टीले पर बना हुआ है। यहां के लोग इसे “हिमालय का पिरामिड” भी कहते हैं। इसकी वास्तुकला बहुत ही अद्भुत है। यहां पर पहाड़ को काटकर गर्भ गृह, मूर्तियां, सीढियां और दरवाजे बनाए गए हैं। सामने ही मसरूर झील है। यह हिमाचल प्रदेश की “छोटी एलोरा” गुफा कहलाती है।

पाण्डु गुफाएं, सोलन

“मशरूम शहर” के रूप में प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश का सोलन जिला अपनी खूबसूरत पहाड़ियों के लिए जाना जाता है।इसी जिले में करोल पहाड़ की चोटी पर पाण्डु गुफाएं स्थित हैं। इन गुफाओं की लम्बाई का अभी तक कोई निश्चित पता नहीं चल पाया। एक अनुमान के मुताबिक यह 28 से 30 किलोमीटर लंबी हो सकती हैं। इस गुफा का एक शिरा कालका के साथ लगते पिंजौर में निकलता है। कहते हैं कि यहां पर पहाड़ का पानी गुफा से होता हुआ पिंजौर तक पहुंच जाता है। गुफा तक पहुंचने के लिए करोल चोटी के शिखर पर जाना पड़ता है। यह ट्रैकिंग का रास्ता है। गुफा कई किलोमीटर चलकर मैदानी इलाकों में खत्म होती है। हिमालय में स्थित यह सबसे लम्बी, पुरानी और रहस्यमई गुफा आज भी एक अनसुलझी पहेली है जो अपने में कई राज़ समेटे हुए है। सोलन जिले में ही कुनिहार से लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर जाडली गांव की पहाड़ी में एक और रहस्यमई गुफा है। इसकी गलियां इतनी संकरी हैं कि उसके अंदर जाना नामुमकिन है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस गुफा का सम्बन्ध सोलन के राजवंश घराने से रहा होगा।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी

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2 thoughts on “हिमाचल की खूबसूरत वादियों में बहुरंगी विविधता से सराबोर बौद्ध संस्कृति”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    जुलाई 26, 2020 को 3:33 अपराह्न पर

    रोचक अभिव्यक्ति से पूर्ण इस लेख के लिए आप बधाई के पात्र है। आपका सतत श्रम सराहनीय है।

    प्रतिक्रिया
    1. अनाम कहते हैं:
      जुलाई 27, 2020 को 8:39 पूर्वाह्न पर

      Thank you very much Dr sahab

      प्रतिक्रिया

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