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भारत की बेटी, बदायूं से सांसद, डॉ. “संघमित्रा मौर्या” ने बढ़ाया देश का मान

Posted on मार्च 26, 2020जुलाई 12, 2020

दिनांक 20 मार्च 2020 ई. को देश की सबसे बड़ी पंचायत अर्थात् लोकसभा में भारत के महानतम सम्राट “अशोका द ग्रेट” के जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश की मांग कर देश की बेटी,उ.प्र.के जनपद बदायूं से तेज़ तर्रार सांसद, डॉ. संघमित्रा मौर्या ने देश का ही मान बढ़ाया है। डॉ. संघमित्रा मौर्या ने अपने सम्बोधन में कहा कि सम्राट अशोक “सम्राटों के सम्राट” हैं। वह अखण्ड भारत के निर्माता थे। उन्होंने अपनी कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से अपार लोकप्रियता हासिल किया था। सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध की विभीषिका के बाद मानवता को “युद्ध से बुद्ध की ओर” चलने का रास्ता दिखाया था। बुद्धम शरणं गच्छामि का संकल्प लेकर सम्राट अशोक ने कहा कि वह अब जमीन पर ही नहीं वरन् लोगों के दिलों पर राज करना चाहते हैं।

डॉ. संघमित्रा मौर्या ने आगे कहा कि धारा 370 को हटाकर प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी अखण्ड भारत का निर्माण किया है।वह भी भारत को “विश्वगुरु” बनाना चाहते हैं, इसलिए सम्राट अशोक के जन्मदिन चैत मास की शुक्ल अष्टमी तिथि को अवकाश घोषित किया जाए। इससे सम्राट अशोक के गौरवमयी इतिहास को लोग जानेंगे। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 308 ईसा पूर्व चैत्र मास की शुक्ल अष्टमी तिथि को सम्राट अशोक का जन्म हुआ था।ज्ञातव्य है कि इसके मात्र एक सप्ताह पूर्व दिनांक 14 मार्च 2020 दिन शनिवार को अपने पैतृक गांव व पोस्ट- चकवड़, जनपद प्रतापगढ़ में अजय कुमार मौर्य द्वारा बनवाए गए भव्य और सुंदर, सम्राट अशोक स्तम्भ (लाट) का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा था कि “यह सम्राट अशोक के वंशजों की जिम्मेदारी है कि वह, उससे दो गुना स्मारकों का निर्माण कराएं जितने सम्राट अशोक ने अपने जीवन काल में किया था।” इतिहास में सम्राट अशोक द्वारा 84 हजार स्तूपों, चैत्यों, शिलालेखों, स्तम्भलेखों का प्रमाण मिलता है।

सम्राट अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे। उनकी मां का नाम कल्याणी तथा पिता बिंदुसार थे। 17 वर्ष की उम्र में विदिशा की श्रेष्ठी कन्या महादेवी से उनका प्रथम विवाह हुआ जिससे पुत्री संघमित्रा और पुत्र महेन्द्र का जन्म हुआ। 31 वर्ष की आयु में वह मगध के राजा बने। यह कार्तिक मास की अमावस्या थी। नगर वासियों ने दीपदान से अपने सम्राट का अभिनंदन किया था। लगभग 40 वर्ष तक अशोक ने मगध पर शासन किया।सम्राट अशोक ने सम्पूर्ण भारत और एशिया खण्ड में बौद्ध धर्म के व्यवहारिक रूप का प्रचार-प्रसार कर उसे सबके लिए उपयोगी, तथा लोक कल्याणकारी रूप प्रदान किया।वह सारे विश्व का शुभचिंतक, तथा विश्व शांति का अग्रदूत था।दिव्यावदान के अनुसार अशोक ने श्रीनगर का शिलान्यास किया था तथा वहां 500 विहार बनवाया था।दूसरा नगर देवपाटन बसाया था।अटक से कटक तक जाने वाली सड़क अशोक ने ही बनवाया था।कृतज्ञ राष्ट्र ने सम्राट अशोक की स्मृतियों को संजोया है और उन्हें सर्वोच्च सम्मान प्रदान कर उन्हीं के राजचिन्ह को भारत का राष्ट्रीय चिह्न बनाया है। यह अशोक स्तंभ सारनाथ के राजकीय संग्रहालय में सुरक्षित है। प्रारंभ में इसकी ऊंचाई 17.5 मीटर थी। वर्तमान समय में इसका केवल ऊपरी शिरा बचा है जिसकी ऊंचाई 2.03 मीटर अर्थात् 7 फुट 9 इंच है।

पूरे देश में मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी, समाज, सम्राट अशोक को अपना पूर्वज मानता है तथा उसी वंश से अपने आप को जोड़ता है। पूरे 20 वीं शताब्दी में चले उक्त समाज के सामाजिक आन्दोलन ने निरंतर सम्राट अशोक के विजन और मिशन को अपने केन्द्र में रखकर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक बेहतरी के लिए काम किया है। वर्ष 1988 ई.में उ.प्र.के जनपद फैजाबाद में स्थापित “अशोक शोध संस्थान,” साकेत,ने सम्राट अशोक की स्मृतियों को संजोने में महत्वपूर्ण कार्य किया है। एक समय में नेपाल के समानांतर फैले हुए घाघरा और गंडक नदियों के बीच के क्षेत्र को मिलाकर “बुद्धांचल” क्षेत्र की परिकल्पना भी की गई थी।

 

–  डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी


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