समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के रहनुमा थे- सचिव श्री राजबहादुर मौर्य (09.05.1956 – 16.06.2020)
श्रद्धांजलि
दिनांक 16.06.2020 ई. को इस दुनिया को अलविदा कह सबसे अंतिम विदा लेकर चिरनिंद्रा में लीन हुए सचिव श्री राजबहादुर मौर्य समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के रहनुमा थे। उनकी असामयिक मृत्यु ने मेरे जैसे अनगिनत लोगों को असहनीय दर्द दिया। कितनी ही आंखों को रूला दिया। अगर यह विधि का विधान है तो मैं इससे असहमत हूं। अभी उनकी गृहस्थी कच्ची थी।एक बेटी और दो बेटों की शादी की जिम्मेदारी भी नहीं पूरी कर पाये थे वह। पिछले लगभग 30 वर्षो से मैं उनसे जुड़ा हुआ था। अभाव का जीवन जीते हुए भी उन्होंने कभी सार्वजनिक रूप से अपने दर्द को बयां नहीं किया बल्कि दूसरों के कष्टों को कम करने में लगे रहे। विनम्रता, सहजता और सरलता उनके निजी गुण थे। गुस्से में होने पर वह अक्सर चुप हो जाते थे।उनका निधन स्तब्धकारी है तथा समाज की अपूर्णनीय क्षति है।
दिनांक 9 मई 1956 ई. को ग्राम पूरे कनपुरियन, पोस्ट-लोधवारी, जनपद- रायबरेली में जन्मे राजबहादुर मौर्य ने लगभग 3 दशक तक उत्तरपारा साधन सहकारी समिति में अपनी सेवाएं दीं। यहीं पर वह उन लोगों के सम्पर्क में आए जो समाज के अंतिम पायदान पर खड़े हैं तथा गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीते हैं तथा जिनके लिए आज भी जीवन की जद्दोजहद है तथा जो आज भी सरकारी मदद के मोहताज हैं। सचिव साहब ने इन्हीं मजलूमों के बीच में अपने जीवन को खपा दिया। लगभग अवैतनिक सी नौकरी थी उनकी, लेकिन न कोई शिकवा न कोई गिला ,जो मिला सो ठीक और जो नहीं मिला वह उनके मन की दौड़ नहीं थी। पिता गजाधर प्रसाद मौर्य से मिले परोपकारी संस्कारों का उन्होंने पूरी निष्ठा से ताउम्र पालन किया।
सचिव साहब की धर्मपत्नी श्रीमती सुखरानी मौर्या हैं। उनके 3 बेटे तथा एक बेटी है। बड़ा बेटा आदित्य कुमार मौर्य जनपद रायबरेली में ही राजस्व अधिकारी ( लेखपाल कानूनगो) है।छोटा बेटा संदीप कुमार मौर्य ग्राम विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत है और मंझला बेटा बृजेंद कुमार मौर्य,साधन सहकारी समिति, उत्तर पारा में कार्यरत है। बेटी अर्चना पढ़ाई कर रही है। बड़ा बेटा आदित्य कुमार मौर्य बहुत ही जिम्मेदार और गंभीर है। सम्प्रति बस्तेपुर, रायबरेली में आवास बना लिया है।
सचिव साहब को बचपन से ही सामाजिक कार्यों में रुचि थी। फ़ीरोज़ गांधी कालेज, रायबरेली से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद ही वह सार्वजनिक जीवन में आ गए थे। 2 वर्ष गांव में रहने के बाद 1978 में वह जमशेदपुर, बिहार चले गए। 1981 में वहां से आने के बाद एक वर्ष तक गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कालेज, कानपुर में रहकर जनसेवा का कार्य किया। 1983 में लखनऊ के एक निजी अस्पताल में रहकर जनसेवा किया। 1984 में वापस गांव लौट आए। 1986 से निरंतर साधन सहकारी समिति उत्तर पारा, जनपद रायबरेली में अपनी सेवाएं दीं। यहीं से सेवानिवृत्त हुए।
आज जब वह हमारे बीच नहीं हैं तब मन बहुत उदास है। लगता है कुछ रिक्तता आ गयी, परंतु बड़ी मुसीबत उनके बच्चों और परिवार पर आयी है।मेरी संवेदनाएं, सहयोग और सम्बल उनके साथ है। यदि मैं उनके किसी काम आ सकूंगा तो अपने को कृतार्थ समझूंगा। बहुत दुखी मन से विनम्र श्रद्धांजलि।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, श्रीमती कमलेश मौर्या, झांसी
Sat Sat Naman Mahan vyaktitva
विनम्र श्रद्धांजलि
Bahut dukhad..
I miss u papa
बप्पाआप के बिना हम सब घोर अंधकार में चले गए है।जहाँ से कुछ भी न दिखाई देता है और न ही कुछ समझ में आता है।मेरे पास अपने अन्दर पनपे दर्द को बताने के लिए शब्द नहीं है ।
साहस और एकजुटता के साथ आगे चलना होगा
श्रद्धेय राजबहादुर मौर्य जी ने अपने अल्प जीवन काल में समाज के दलित शोषित समाज के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण व अनुकरणीय कार्य किया …उन्हें कोटि-कोटि विनम्र श्रद्धांजलि 💐💐🙏🙏
समाज की अपूरणीय क्षति हुई है ईश्वर परिवार को दुख सहने की शक्ति प्रदान करें
समाज की सेवा करते हुए दिवंगत आदरणीय मौर्य साहब को शत शत नमन। तथागत दुख की इस घड़ी में उनके परिवार को सहनशक्ति प्रदान करें।
नमन एवं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
डा. रमेश शुक्ला
अनुग्रहीत हूं
दुःखद