अमेरिकी कालों के मसीहा और दासों के मुक्तिदाता- अब्राहम लिंकन …
परिचय
अब्राहम लिंकन का जन्म 12 फरवरी 1809 ई. को अमेरिका के केण्टुकी प्रान्त के हार्डिंन काउंटी में हुआ था। यह संयोग ही है कि इसी दिन चार्ल्स डार्विन का भी जन्म हुआ था। कार्ल मार्क्स उनके समकालीन थे। अब्राहम लिंकन के पिता का नाम थामस लिंकन तथा मां का नाम नैंसी हैक था। उनके दादा का नाम भी अब्राहम लिंकन था। अब्राहम लिंकन की एक बहन साराह थी। नैंसी हैक वर्जीनिया की रहने वाली थी। अब्राहम लिंकन के पिता थामस लिंकन अनपढ़ थे। किंतु वह मेहनती और ईमानदार थे। दिहाड़ी मजदूरी करके अपना भरण-पोषण करते थे। उनके घर में दरिद्रता की इतनी भरमार थी कि कयी बार नैंसी हैक्स को अपनी पोशाक सीने के लिए जब सूई भी नहीं मिल पाती थी तो वह बबूल के कांटों का प्रयोग कपड़ों को सीने के लिए कर लिया करती थीं और कांटों से बींध कपड़ों को पहनती थीं। अब्राहम लिंकन का जन्म जिस घर में हुआ था वह लकड़ी का एक केबिन था। जब अब्राहम लिंकन की उम्र केवल साढ़े नौ वर्ष की थी तभी दिनांक 5 अक्टूबर 1818 को उनकी ममतामयी मां की “मिल्क सिल्क”नामक बीमारी से अचानक मौत हो गई। इससे अब्राहम लिंकन को गहरा सदमा लगा।
निजी जीवन
अब्राहम लिंकन की स्मृति तेज़ थी।वह जिस चीज को एक बार पढ़ लेते थे, उसे कण्ठस्थ कर लेते थे। उनका शरीर 6 फुट 4 इंच लम्बा था।शरीर पर मांस कम था परन्तु ताकत बेपनाह थी। अब्राहम लिंकन को उनके घर वाले उनके संक्षिप्त नाम “अबे”कहकर पुकारते थे। उन्होंने अपने पहनावे की कभी परवाह नहीं किया। ग़रीबी के कारण वह अंकगणित की पुस्तक भी नहीं खरीद सकते थे। इसके लिए उन्होंने कागज़ की एक कापी बनायी और दोस्त से अंकगणित की पुस्तक लेकर उसे पूरा का पूरा उतार लिया।कापी पर बनी अंकगणित की यह पुस्तक उनके साथ अंतिम समय तक रही। शेक्सपियर और बर्सं उनके प्रिय थे। अपने जीवन में उन्होंने खेत जोते, सुअर मारे,नाव चलायी, मज़दूरी किया, चारदीवारी बनायी, व्यापार किया, सिपाही रहे,बढयीगीरी का काम किया,स्टोर क्लर्क रहे, वकील बने और राजनेता बन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। अब्राहम लिंकन बहुत प्रभावी वक्ता थे। उनको बोलते देख लोगों की भीड़ लग जाती थी। उनकी भाषा का प्रवाह नदी जैसा था।वह धर्म को प्रेरणा और शिक्षा के रूप में मानते थे,प्रार्थना के रूप में नहीं। यद्यपि दिखने में वह कुरूप थे परन्तु ज्ञानी,ओजपूरण, दृढ़ निश्चयी और दूरदर्शी इंसान थे। दिनांक 4 नवंबर 1842 दिन शुक्रवार को अब्राहम लिंकन का विवाह मैरी टोड के साथ सम्पन्न हुआ। जिनका बाद में नाम मैरी लिंकन हुआ। उन्होंने अपनी शादी की अंगूठी पर लिखवाया था कि “प्रेम शाश्वत है।”इस समय अब्राहम लिंकन की उम्र 33 साल की थी।
चुनावी रण
एक साधारण और गरीब परिवार में जन्म लेकर भी अब्राहम लिंकन अपनी मेहनत और लगन तथा ईमानदारी की बदौलत दो बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने। यद्यपि उनका रास्ता आसान नहीं था परन्तु उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 1860 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हेतु अब्राहम लिंकन रिपब्लिकन पार्टी के निर्विरोध प्रत्याशी चुने गए। उनके प्रतिद्वंद्वी सीवर्ट थे। 11 नवंबर 1854 को जब रिपब्लिकन पार्टी ने उन्हें नामांकित किया उस समय उस हाल में 10 हजार लोग उपस्थित थे तथा 30 हजार लोगों की भीड़ सड़कों पर उतर आयी थी। पेनसिल्वेनिया के 52 वोट पाकर अब्राहम लिंकन जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार घोषित हुए तब लोग उत्तेजना,हर्ष और उल्लास के जश्न में डूब गए। यह जश्न 24 घंटे तक निरंतर चलता रहा।इस विषय में शिकागो ट्रिब्यून ने लिखा था कि “ऐसा हंगामा कभी नहीं हुआ था”। यह लिंकन के 19 वर्षों तक निरंतर जीवन के संघर्षों में जूझते रहने का परिणाम था। इस चुनाव में अब्राहम लिंकन को 18 लाख, 66 हजार, 452 मत प्राप्त हुए। उन्हें 180 निर्वाचन क्षेत्रों में विजय मिली थी। उनके प्रतिद्वंद्वी डगलस को 13 लाख, 76 हजार, 957 मत मिले थे तथा 112 निर्वाचन क्षेत्रों में विजय मिली थी। राष्ट्रपति बनने के समय उनकी उम्र 51 वर्ष की थी। लिंकन को दक्षिणी राज्यों अलबामा, अर्कांसस, फ्लोरिडा,जारजिया, लुइसियाना, मिसीसिपी, उत्तरी कैरोलिना, तथा टैंक्सास से एक भी मत नहीं मिला। क्योंकि यही राज्य दास प्रथा के पक्ष में थे जिसका लिंकन विरोध करते थे।
ह्वाइट हाउस में प्रवेश
अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पूर्व 70 वर्षीय अपनी सौतेली मां से मिलने कोल्स काउण्टी गये।वह अपनी मां को “मम्मा” कहकर बुलाते थे। उनकी मां ने लिंकन को गले लगाते हुए कहा “मैंने कभी नहीं चाहा कि तुम राष्ट्रपति का चुनाव जीतो।पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि कोई अनहोनी घटना होने वाली है।अब हम शायद फिर कभी न मिलें। हमारी अगली मुलाकात शायद स्वर्ग में होगी।”दिनांक 4 मार्च 1861 को अब्राहम लिंकन ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लिया।उनको 84 वर्षीय मुख्य न्यायाधीश टैनी ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।उस अवसर पर लिंकन ने जो भाषण दिया था, उसके समापन पर उन्होंने कहा था कि “हम सब दोस्त हैं, दुश्मन नहीं।”अब्राहम लिंकन अपने गृहनगर स्प्रिंगफील्ड से राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण हेतु जिस ट्रेन से वाशिंगटन के लिए 11 फरवरी को रवाना हुए थे उसमें कुल 3 डिब्बे थे।उसे वाशिंगटन पहुंचने में 12 दिन लगे थे। रास्ते में जगह-जगह पर अपार भीड़ ने अपने प्रिय राष्ट्रपति का जमकर स्वागत और अभिनन्दन किया।
गृह -युद्ध
अब्राहम लिंकन के राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका में गृह युद्ध प्रारम्भ हो गया। दक्षिण के राज्यों ने विद्रोह कर दिया। लिंकन ने साहस और समझदारी के साथ इसका सामना किया। गृह युद्ध के पहले 9 महीने में ही 864 लोगों को बगैर मुकदमा चलाए नजर बन्द किया गया। 4 जुलाई 1863 को गृह युद्ध में लिंकन की जीत हुई। इस अवसर पर उन्होंने जो भाषण दिया उसमें उन्होंने कहा कि “अमेरिका सिर्फ संवैधानिक स्वतंत्रता का ही पक्षधर नहीं है बल्कि वह मानवीय समानता का भी पक्षधर है।”इस भाषण में कुल 272 शब्द थे। इसी भाषण में अब्राहम लिंकन की वह इतिहास प्रसिद्ध उक्ति है जिसमें उन्होंने कहा था कि “लोकतंत्र जनता की, जनता के लिए, जनता द्वारा निरूपित शासन प्रणाली है।”
मुक्ति की घोषणा
1 जनवरी 1863 ई.को अब्राहम लिंकन ने नव वर्ष के अवसर पर अमेरिका के दासों की मुक्ति का घोषणापत्र जारी किया। इससे लगभग 40 लाख दासों की मुक्ति के द्वार खुले। उन्हें मानवीय गरिमा और सम्मान मिला। लिंकन दुनिया के इतिहास में दासों के मुक्तिदाता बने। दासों ने रो-रो कर अपने मसीहा का अभिनंदन किया। ख़ुशी के छलकते आंसुओं ने मानवता पर लगे दासता के कलंक को धो दिया। अमेरिका में गुलामी का व्यापार 17 वीं सदी के प्रारंभ में शुरू हुआ था।यह गुलाम अफ्रीका के हब्शी होते थे।गोरा एक भी गुलाम नहीं था। यद्यपि अमेरिका की स्वाधीनता की घोषणा में कहा गया था कि “जन्म से सब मनुष्य बराबर होते हैं”पर यह बात गोरों पर ही लागू होती थी, कालों पर नहीं। अफ्रीका के जिस समुद्री तट से इन गुलामों को ले जाया जाता था उसे अब भी “गुलामों का तट”कहते हैं।जिम -क्रो गाड़ियां अमेरिका में रेल के वह डिब्बे थे जहां कालों तथा हब्शियों को यात्रा में बैठना पड़ता था।
उपन्यास “अंकल टाम्स केबिन”
संवाद की पहली पीठिका सम्पर्क है। बड़े काम के लिए जनशक्ति का नैतिक समर्थन जरूरी होता है। अमेरिका में दास प्रथा के विरुद्ध नैतिक समर्थन जुटाने में हैरियट बीचर स्टो के उपन्यास “अंकल टाम्स केबिन”ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यथार्थ के घनत्व पर,समय के केन्द्र में मनुष्य की चिंता के साथ लिखा गया यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास था।यह इतना भावनात्मक था कि इसने लाखों पाठकों की आंखों को भिगो दिया। 1852 में जब उक्त पुस्तक का अमेरिका में पहला संस्करण अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ तब अकेले अमेरिका में उसकी 3 लाख 13 हजार प्रतियां बिक गयीं और उसके बाद 10 वषों में इस पुस्तक के 1400 संस्करण प्रकाशित हुए। पुस्तक लिखने के 11 वर्ष बाद जब राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन उपन्यास की लेखिका बीचर स्टो से मिले, तो उन्होंने उनका अभिनंदन करते हुए कहा कि “अच्छा आप ही वह छोटी सी महिला हैं जिन्होंने ऐसी पुस्तक लिख दी जिसके कारण यह भयंकर गृह युद्ध हो गया”। कहा जाता है कि बाइबिल के बाद दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली और सबसे गहरा नैतिक प्रभाव डालने वाली यही पुस्तक है। इसमेें गुलामों की दर्द नाक कहानी है जो दक्षिण अमेरिका के हब्शी गुलामों पर केन्द्रित है। भारत में यह पुस्तक सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन द्वारा हिन्दी में “टाम काका की कुटिया”नाम से प्रकाशित की गई है।
दूसरी बार राष्ट्रपति
22 फरवरी 1864 को रिपब्लिकन पार्टी ने अब्राहम लिंकन को दोबारा राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित किया। इस बार भी 55 प्रतिशत मत पाकर वह चुनाव जीत गए। उनके विरोधी डेमोक्रेट उम्मीदवार मैकलेन को 45 प्रतिशत मत मिले। 5 मार्च 1865 को लिंकन ने दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ बाइबिल पर दाहिना हाथ रख कर लिया तथा ह्ववाइट हाऊस में प्रवेश किया।
प्राणांत
दिनांक 14 अप्रैल 1865 गुड फ्राइडे अर्थात् वह दिन जिस दिन ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था,रात 10 बजकर 13 मिनट पर एक थियेटर में, मेरी लैण्ड में एक दास स्वामी परिवार में जन्मे 26 वर्षीय जान विल्वीज बूथ ने इस मसीहा को गोली मार दी।वह वहीं गिर पड़े। पूरी रात वह जीवन और मृत्यु से संघर्ष करते रहे। अन्तत: 15 अप्रैल 1865 को प्रात: 7 बजकर 20 मिनट पर अब्राहम लिंकन के प्राण पखेरू उड़ गए।
संदेश
अब्राहम लिंकन का सम्पूर्ण जीवन एक जलती हुई मशाल है।उनका चिरंतन संदेश है कि योग्यता में अंतर मनुष्य को मनुष्य से अलग नहीं करता बल्कि योग्यता सिखाती है कि सब मनुष्य समान हैं। जनहित सदैव निजी हितों से ऊपर होता है और यदि नहीं होता है तो होना चाहिए। किसी व्यक्ति के निजी जीवन की अपेक्षा उसके सार्वजनिक जीवन, उनके अनुभव तथा विचारों को तरजीह दी जानी चाहिए। ईश्वर और मानवता को सभी की फ़िक्र करनी चाहिए, केवल विशेष लोगों की नहीं। तर्क पदेन लोगों का मोहताज नहीं होता। अंतिम विजय सिर्फ सत्य की होती है। ज्ञान अनन्त सौन्दर्य है जो कभी फीका नहीं पड़ता।
सार्थक सृजन एवम सारगर्भित अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद आपको सर
बहुत ही अच्छी जानकारी मिली सर,