वार,भोई और लिगंन्नम जनजाति…
वार,भोई और लिगंन्नम जनजाति के लोग मेघालय में खासी जनजाति के अंतर्गत आते हैं। इन्हें उपरोक्त नाम उनके निवास स्थान के नाम से दिया गया है।
नृजातीय रुप से यह सब एक हैं। सभी हिन्नीयू टैप के वंशज हैं। अपने पूजा-पाठ में यह लोग अभी यही नाम प्रयुक्त करते हैं। वार जनजाति के लोग सुरमा घाटियों के ढलान क्षेत्र के दक्षिण पट्टी के वासी हैं। भोई और लिगंन्नम उत्तर के निम्न पहाड़ी प्रदेश, जिसका विस्तार ब्रम्हपुत्र घाटी तक हुआ है, में रहते हैं। ब्रिटिश काल में वे सब खासी और जयंतिया ही कहलाते थे जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें खासी जैन्तिया या खासी-प्नार कहा जाने लगा।आम बात -चीत में वे एक दूसरे के लिए यही नाम प्रयुक्त करते हैं। राष्ट्रीय महत्व के सभी मामलों में या जब भी उनके एक होकर संघर्ष करने का मामला हो, तो वे की हीन्नीयू टैप नाम इस्तेमाल करते हैं। की हीन्नीयू टैप का शाब्दिक अर्थ है- सात झोपड़ी। यह लोग भारतीय- चीनी जनजातियों से बहुत मिलते जुलते हैं, पर निश्चित रूप से वे विशुद्ध मंगोल नस्ल के नहीं हैं। ऐसा लगता है कि काफी समय पहले उनका सम्पर्क आस्टिक जाति के साथ हुआ होगा।
वार,भोई और लिगंन्नम जनजाति के लोग भी खासी लोगों की भांति रीति-रिवाजों, परम्पराओं तथा मान्यताओं का पालन करते हैं। यह सर्व शक्तिमान, सर्व व्यापी और सर्वज्ञ ईश्वर में आस्था रखते हैं। ईश्वर को किसी भी प्रतीक रूप में दिखाने या उसके चित्र बनाने को यह धर्म विरोधी मानते हैं। उनके अनुसार ईश्वर का आदेश है- सदाचारी बनो।सच बोलो।सम्यक आचरण और सम्यक व्यवहार करो। अपने विचारों और इच्छाओं में ईमानदार बनो। अन्य लोगों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करो। सभी के प्रति दया भाव रखो। अपने आनन्द के लिए किसी को चोट न पहुंचाओ।उनका कोई एक पूजा स्थल नहीं होता।सोरो थाम (1873-1940) खासी भाषा के स्वीकृत और प्रतिष्ठित बेताज कवि हैं। उनकी रचनाओं में खासी जीवन और व्यवहार प्रदर्शित होता है।
डॉ.राजबहादुर मौर्य,झांसी