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srilanka buddhism

महेंद्र और संघमित्रा की कर्मभूमि- श्री लंका(भाग-१)

Posted on दिसम्बर 26, 2020दिसम्बर 26, 2020

दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित श्री लंका, सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा की कर्मभूमि है। इस द्विपीय देश में भिक्खु महेंद्र और भिक्खुनी संघमित्रा ने बुद्ध के संदेशों के प्रचार प्रसार में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिया। यह ईसा पूर्व तीसरी सदी की घटना है।

यहां से २९ ईसा पूर्व में चतुर्थ बौद्ध संगीति के समय रचित बौद्ध ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं। मानव बसाहट के सबूत यहां पर लाखों वर्ष पहले के प्राप्त हुए हैं। श्री लंका का पिछले ५ हजार वर्ष का लिखित इतिहास उपलब्ध है। १९७२ ई. तक इसका नाम सीलोन था। १९७२ में लंका तथा १९७८ में श्री लंका किया गया। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है।

mahendra
अर्हत महिंदा की प्रतिमा, श्रीलंका।
sanghmitra buddhist
अर्हत संगमित्ता की प्रतिमा, श्रीलंका।

संवैधानिक रूप से श्री लंका को ‘श्री लंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य, के नाम से जाना जाता है। कोलम्बो यहां का सबसे बड़ा नगर है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ४ फरवरी सन् १९४८ को ग्रेट ब्रिटेन से श्री लंका को डोमिनियन स्टेट के रूप में आजादी मिली। लगभग २४ वर्षों तक डोमिनियन स्टेट में रहने के बाद दिनांक २२ मई सन् १९७२ को श्री लंका गणराज्य बना। लगभग २ करोड़ की आबादी वाले इस देश का क्षेत्रफल ६५ हजार ६१० वर्ग किलोमीटर है। यहां की राजभाषा सिंहला तथा तमिल है। यहां की लिपि ब्राम्ही लिपि का परिवर्तित एवं विकसित रूप है। श्री लंका की मुद्रा, श्री लंकाई रुपिया है।

श्री लंका बहुजातीय एवं बहु धार्मिक देश है। यहां की आबादी में ७५ प्रतिशत सिंहली, ७.५ प्रतिशत मूर, १८ प्रतिशत तमिल तथा शेष अन्य समुदाय हैं। सन् १९८३ से २००९ तक, लगभग २५ वर्षों तक श्री लंका में गृह युद्ध का दौर था जिसमें लगभग ८० हजार लोग मारे गए। ऐसा माना जाता है कि राजकुमार विजय और उनके ७०० अनुयाई ईसा पूर्व ५४३ में श्री लंका आए थे। ‘श्री लंका माता आपा, यहां का राष्ट्र गान है जिसकी शब्द और संगीत रचना श्री आनन्द समाराकून ने सन् १९४० में किया था। १९५१ में यह श्री लंका का राष्ट्र गान बना। श्री आनन्द समाराकून विश्व भारती के छात्र थे।

श्री लंका के लगभग ७० फ़ीसदी लोग बौद्ध धर्म की थेरवादी शाखा के अनुयाई हैं। यहां पर लगभग ६ हजार बौद्ध मठ और लगभग १५ हजार बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियां हैं। अनागारिक धम्मपाल तथा गुणानंद थेरो जैसे विश्व प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान श्री लंका की शान हैं। अनुराधापुर का महान स्तूप, अबूकाना की विशाल बुद्ध प्रतिमा, तारा बोधिसत्व तथा अवलोकितेश्वर बोधिसत्व की की प्रतिमाएं यहां की विरासत हैं। श्री लंका में ब्राम्ही लिपि में लिखे हुए बहुत से शिलालेख प्राप्त हुए हैं जो ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के हैं। यहां के दो ऐतिहासिक ग्रंथ दीपवंश और महावंश हैं।

srilanka stupa
अभयगिरि विहार, अनुराधापुरा, सिरि लंका

भारत से ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बुद्ध देव का भिक्षा पात्र तथा अस्थि अवशेष श्री लंका ले जाए गए। मान्यता है कि भगवान बुद्ध तीन बार श्री लंका गए थे। सम्राट अशोक के समय श्री लंका का नाम ताम्रपर्णी था। बुद्ध के परिनिर्वाण के २०० वर्षों बाद सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा के द्वारा भारत के बुद्ध गया में स्थित महान बोधिवृक्ष की एक शाखा श्री लंका ले जाई गई। यह बोधिवृक्ष आज भी वहां पर अच्छी दशा में है।

इसे सम्मान पूर्वक वहां पर जय श्री बोधिवृक्ष कहा जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह विश्व का प्राचीनतम प्रमाणित वृक्ष है। इसके चारों ओर से दीवार बना कर इसे सुरक्षित कर दिया गया है। वनस्पति वैज्ञानिक दिन में दो बार इसके स्वास्थ्य की जांच पड़ताल करते हैं। शाखाओं को स्वर्ण जड़ित खम्भों से सहारा दे दिया गया है। महाबोधि वृक्ष के पास ही महाविहार संग्रहालय स्थित है।

mahabodhi tree
महा-बोधि वृक्ष, अनुराधापुरा, श्रीलंका।

चौथी शताब्दी में सिंहल के राजा बुद्ध दास ने वहां पर प्रत्येक गांव में चिकित्सा भवन स्थापित किया था तथा उसमें चिकित्सकों की तैनाती किया था। वहां के शासक हमेशा आध्यात्मिक विषयों पर बौद्ध भिक्षुओं से परामर्श करते रहे हैं। बुद्ध के दांत और बाल के अवशेष भी सिंहल लाए गए थे। आज भी सिंहलियों में इनका बड़ा आदर और सम्मान है।

बौद्ध धर्म ने यहां अथाह मानवतापूर्ण प्रभाव डाला है। श्री लंका के महाराजा दत्त गामिनी द्वारा दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित अनुराधा पुरा यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है। यहां श्री लंका की सभ्यता के भग्नावशेष सुरक्षित रखे हुए हैं। मालवातु ओया के किनारे स्थित यह नगर कोलम्बो से २०० किलोमीटर दूर है।

अनुराधा पुरा में दो मुख्य स्तूप (दबगा) हैं। रुवन्वेली दबगा अथवा श्वेत स्तूप। इसके प्रवेश द्वार पर नागराज की पत्थर से बनी रक्षक प्रतिमा स्थापित है। महास्तूपा, स्वर्ण माली चैत्य, रत्नमाली इस स्तूप के अन्य नाम हैं। यहीं पर जेतवन रम्या दबगा भी है। तीसरी शताब्दी में निर्मित यह अति विशाल स्तूप मिस्र के पिरामिडों के पश्चात् दूसरी सर्वाधिक विशाल संरचना है। यहां का अभयगिरि विहार भी ईंटों से निर्मित अनुराधा पुरा के विशाल स्तूपों में से एक है। यही वह विहार है जहां के भिक्षुओं ने सर्वप्रथम बुद्ध के पवित्र दन्त को स्वीकार किया था। यहां पर छत्र धारण किए हुए बुद्ध की एक सुंदर प्रतिमा है।

srilanka stupa
जेतवनारमय स्तूप, अनुराधापुरा, श्रीलंका।

भारत का पड़ोसी देश श्री लंका भगवान बुद्ध की संस्कृति में रचा बसा हुआ है। यहां पर बुद्ध के संदेशों का प्रभाव प्रत्येक स्थान पर नजर आता है। लोगों में असाधारण सहजता और सरलता है।प्रतिपल अतिथियों के स्वागत को तत्पर रहते हैं।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ अध्ययन रत,एम.बी.बी.एस., झांसी, उत्तर प्रदेश

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9 thoughts on “महेंद्र और संघमित्रा की कर्मभूमि- श्री लंका(भाग-१)”

  1. Dhammdev bhartiye कहते हैं:
    दिसम्बर 26, 2022 को 1:08 अपराह्न पर

    बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी
    सिरी लंका के इतिहास और संस्कृति के बारे में समाज में केबल भ्रांतियां ही फैली है।आपके लेखन और अथक प्रयास से हम उन महत्वपूर्ण जानकारी से रूबरू हुए आपको बहुत बहुत साधुवाद🙏

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 26, 2022 को 5:40 अपराह्न पर

      जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपको

      प्रतिक्रिया
  2. रामदेव कहते हैं:
    सितम्बर 14, 2021 को 2:42 अपराह्न पर

    आप के द्वारा बौद्ध धम्म के विषय में उपलब्ध कराई गई विशिष्ट जानकारी वन्दिनीय है

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      सितम्बर 14, 2021 को 4:33 अपराह्न पर

      धन्यवाद आपको

      प्रतिक्रिया
  3. देवेंद्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    दिसम्बर 26, 2020 को 4:09 अपराह्न पर

    बेहद समृद्ध और सारगर्भित अभिव्यक्ति के लिये आपको बहुत बहुत साधुवाद।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 26, 2020 को 6:28 अपराह्न पर

      बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब

      प्रतिक्रिया
  4. आप यल मौर्य कहते हैं:
    दिसम्बर 26, 2020 को 12:00 अपराह्न पर

    बहूत ही अद्भुत जानकारी के रूप मे यह लेख बोध्दिष्ट गड एवं अन्य के लिये उपयोगी है डा राजबहादुर जी को इस कृति के लिये आभार

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 26, 2020 को 6:28 अपराह्न पर

      धन्यवाद आपको सर

      प्रतिक्रिया
  5. आप यल मौर्य कहते हैं:
    दिसम्बर 26, 2020 को 11:59 पूर्वाह्न पर

    बहूत ही अद्भुत जानकारी के रूप मे यह लेख बोध्दिष्ट गड एवं अन्य के लिये उपयोगी है डा राजबहादुर जी को बहूत बहूत धन्यवाद

    प्रतिक्रिया

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