- डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी (उत्तर- प्रदेश) भारत । email : drrajbahadurmourya @ gmail.com, website : themahamaya.com
- परिचय
आज दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य के सम्राट, सबसे अमीर और ताकतवर मुल्क के बादशाह सम्राट अशोक का जन्मदिन है । आज से लगभग दो हज़ार साल पहले 304 ईसा पूर्व, चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिन पाटलिपुत्र में सम्राट अशोक का जन्म हुआ था । प्राचीन भारत में स्वतंत्रता, समानता और न्याय पर आधारित जिस भारत की कल्पना हम सब करते हैं वह सम्राट अशोक का प्रबुद्ध भारत था । कलम जब- जब इतिहास को ढूँढती है, टटोलती है, उसकी थाह लेती है तब- तब उसके गर्भ से सम्राट अशोक के स्वर्णिम भारत का अनमोल ख़ज़ाना मिलता है । तथ्य आपको चौंकायेंगे, संघर्ष की इबारत विस्मित करेगी बावजूद इसके आप उस मंजिल की ओर निरंतर अग्रसर होंगे जिसने दुनिया में सम्यक् क्रांति का जयघोष किया है । सम्राट अशोक इस देश के इतिहास की वह नींव हैं जिनके पुरातात्विक साक्ष्य और अवशेष आज उपलब्ध हैं । बुद्ध के धर्म को विश्व में संचारित करने का प्रबल श्रेय सम्राट अशोक को ही दिया जाता है । पूरी दुनिया में विशाल साहित्य के निर्माण का मूल स्रोत सम्राट अशोक के द्वारा स्थापित किए गए शिलालेख, स्तूप एवं संघाराम हैं । बुद्ध के धर्म को राज्याश्रय देने के बावजूद भी सम्राट अशोक ने राजपाठ नहीं छोड़ा बल्कि एक शासक के रूप में लगभग 39 वर्षों तक शासन किया । विश्व सभ्यता की बुनियाद और नैतिक मूल्यों की स्थापना करने में सम्राट अशोक की तुलना दुनिया के किसी भी मुल्क के शासक से नहीं की जा सकती । इसलिए वह ग्रेट हैं । सम्राट अशोक ने अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रयोग मानवीय जीवन मूल्यों को विकसित करने के लिए किया । अपनी व्यक्तिगत मान- प्रतिष्ठा, लाभ और हानि से ऊपर उठकर सम्राट अशोक ने अपने आप को समाज और देश के लिए खपा दिया । लगभग 39 साल के शासन के दौरान कोई विदेशी दुश्मन असोक के साम्राज्य की ओर ऑंख उठाकर देखने का साहस नहीं कर सका ।
शिलालेख
एशियाटिक सोसाइटी, कोलकाता के सचिव रहे अंग्रेज़ विद्वान् जेम्स प्रिंसेप ने 1837 में अशोक के शिलालेखों को पढ़ने में सफलता हासिल की । अशोक के लगभग 40 अभिलेख प्राप्त हुए हैं । यह लेख खरोष्ठी और आर्मेइक- ग्रीक लिपियों में लिखे हुए हैं । 12 वीं सदी के कुमार देवी के सारनाथ अभिलेख, 13 वीं सदी के बोधगया अभिलेख तथा 15 वीं सदी के कल्याणी अभिलेख में धम्म अशोक नाम मिलता है । बौद्ध धर्म की अनुयायी कुमार देवी गहडवाल नरेश गोविंदचंद्र की पत्नी और काशिराज जयचन्द्र की दादी थीं । सम्राट अशोक उनके प्रेरक थे । आन्ध्रप्रदेश में स्थित सालीहुण्डम एक बौद्ध विरासत है । वहाँ पर मिले शिलालेख में सम्राट अशोक के नाम के साथ सिरी शब्द पाया जाता है । यहीं कर्नाटक के रायचूर के एक छोटे से गाँव मस्की में मिले एक पुरातात्विक शिलालेख में अशोक में स लिखा हुआ मिला है । अफ़ग़ानिस्तान के शाहबाजगढी और मानसेहरा अभिलेख में खरोष्ठी और आर्मेइक लिपि का प्रयोग किया गया है । शिलालेख शब्द सम्राट अशोक के द्वारा पत्थरों तथा चट्टानों पर छोड़े गए लिखित मानव आदर्शों के मिलने के बाद प्रचलित हुआ है ।
सम्राट अशोक का राज्याभिषेक 269 ईसा पूर्व में हुआ था । सम्राट अशोक ने सत्ता सम्भालते ही पूर्व तथा पश्चिम, उत्तर और दक्षिण चारों दिशाओं के छोटे-छोटे भागों में बंटे हुए देश का सुदृढ़ एकीकरण किया । उन्होंने भारत की सीमाओं को अफ़ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, मंगोलिया, खोतान और कजाकिस्तान से लेकर मालदीव और ईरान की सीमा तक विस्तार दिया । सम्राट असोक ने देहली- टोपरा पृष्ठ अभिलेख में कहा कि, “मैं सभी वर्गों का ध्यान रखता हूँ, सभी सम्प्रदाय विविध प्रकार की पूजा से मेरे द्वारा पूजित हैं ।” इसी अभिलेख में आगे लिखा हुआ है कि, “मैं केवल अपने देश के ही लोगों का ध्यान नहीं रखता हूँ बल्कि उनका भी जो समीप हैं अथवा दूर हैं, जिन्हें मैं सुख पहुँचा सकूँ और मैं उन्हें वैसी ही व्यवस्था देता हूँ ।”
सम्राट अशोक ने प्रियदसिन की उपाधि धारण की थी । असोक ने अपने अभिलेखों में लिखवाया है देवानंपिय राजा । इसका अर्थ सम्मानसूचक है । प्रयाग में सम्राट अशोक के 6 स्तम्भ लेख प्राप्त हुए हैं । संगम तट पर क़िले में 10.6 मीटर ऊँचा अशोक स्तंभ 232 ईसा पूर्व का है । इस पर तीन शासकों के अभिलेख खुदे हुए हैं । 200 ईसवी में समुद्रगुप्त द्वारा इसे कौशाम्बी से प्रयाग लाया गया और उसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति इस पर खुदवाया गया । कालान्तर में 1605 ईसवी में इस स्तम्भ पर मुगल सम्राट जहांगीर के तख़्त पर बैठने का वाकिया भी खुदवाया गया । 1800 ईसवी में क़िले की दीवार को सीधी बनाने हेतु इस स्तम्भ को गिरा दिया गया और 1838 में अंग्रेज़ों ने इसे पुनः खड़ा किया । सम्राट अशोक ने पाटलिपुत्र में अशोकाराम महल बनवाया था जिसके वास्तुकार महास्थविर इंद्रगुप्त थे । असोक के शासनकाल में राज्याभिषेक के 18 वें वर्ष में कुक्कुटाराम नाम के उद्यान में मोगलीपुत्र तिष्य की अध्यक्षता में तीसरी बौद्ध संगीति हुई थी । गिरनार के रुद्रदामन अभिलेख से ज्ञात होता है कि 52 लाख वर्ग किलोमीटर अशोक के साम्राज्य का शासन पाटलिपुत्र से चलता था । सन् 630 से 645 तक भारत की यात्रा करने वाले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 638 ईसवी में पाटलिपुत्र में सैकड़ों टूटे- फूटे स्तूपों और शिलास्तंभों को देखा था । सन् 1953 में खुदाई में मौर्य प्रासाद के दक्षिण की ओर अशोक के समय निर्माण किए गए अस्पताल पाये गये हैं । यहाँ सेवा देने वाले डॉक्टर के लिए धन्वन्तरि शब्द अंकित है ।यहाँ रोगियों को निःशुल्क चिकित्सा उपलब्ध करायी जाती थी ।
गुजर्रा शिलालेख
सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 8 वें वर्ष 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया था । यद्यपि कलिंग युद्ध में सम्राट अशोक को विजय प्राप्त हुई थी बावजूद इसके सम्राट अशोक ने कलिंग राज्य के गुनाहों को माफ़ कर दिया था । उसे कर मुक्त कर दिया था तथा उसे स्वतंत्र राज्य का दर्जा भी दिया था । कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक बैराट जाते समय झाँसी के निकट गुजर्रा नाम के गाँव में 15 दिनों के लिए रुके थे । यहाँ पर स्थापित एक शिलालेख में सम्राट असोक ने संसार को अहिंसा का संदेश दिया था । सम्राट अशोक के शासनकाल में गुजर्रा नाम का स्थान भारत का मध्य बिंदु माना जाता था । कलिंग युद्ध के बाद 261 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक पाटलिपुत्र से सांची जाते समय पुनः इस स्थान पर रुके थे । यहाँ पर क़रीब 10 फ़ीट चौड़े शिलालेख में अशोक का नाम भी लिखा हुआ है । गुजर्रा नाम के गाँव से महास्थविर भिक्खु मोग्गिलपुत्र तिष्य के साथ बैराट में तीन माह तक बुद्ध की शिक्षा का गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया था । बैराट को वर्तमान में इसे विराट नगर कहते हैं और यह राजस्थान में जयपुर के निकट है । सन् 1837 में विराट नगर से 12 मील उत्तर में स्थित भाब्रु गाँव से सम्राट अशोक का शिलालेख प्राप्त हुआ है । सम्राट अशोक स्वयं बैराट आये थे ।गुजर्रा गाँव आज मध्य प्रदेश के जनपद दतिया के अन्तर्गत आता है । झाँसी से ग्वालियर के रास्ते (एन.एच. 44) से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।
परिनिर्वाण
237 ईसा पूर्व में कार्तिक पूर्णिमा को सम्राट अशोक का महापरिनिर्वाण हुआ । तिब्बती स्रोतों के अनुसार सम्राट अशोक की मृत्यु तक्षशिला में हुई थी । जबकि कुछ विद्वानों का मानना है कि पटना शहर के आस-पास एक मौर्य काल का स्तूप है जो सम्राट अशोक की स्मृति में बनवाया गया है । हिन्दी न्यूज़ राजस्थान पत्रिका द्वारा दिनांक 19 अगस्त, 2014 को एस. आर. वर्मा, उप संचालक मध्यप्रदेश के हवाले से ख़बर प्रकाशित की गई जिसमें कहा गया कि मध्यप्रदेश के शिवपुरी ज़िले की पिछोर तहसील से 30 किलोमीटर की दूरी पर राजापुर गाँव है जहां पर स्तूप मिला है जिसमें सम्राट अशोक की अस्थियाँ हो सकती हैं ।
संदेश
सम्राट असोक ने पूरी दुनिया को मानवता का संदेश दिया । उन्होंने देश के प्रमुख राजपथों और मार्गों पर स्तम्भ स्थापित किए । इनमें सारनाथ का सिंह शीर्ष स्तम्भ सबसे अधिक प्रसिद्ध है । सारनाथ की सिंह मुद्रा को संविधान सभा ने भारत के राजचिह्न के रूप में स्वीकार किया है । सम्राट असोक संसार के उन महान सम्राटों में से एक थे जिन्होंने धम्म विजय के द्वारा सम्पूर्ण देश और पड़ोसी देशों में अहिंसा, शांति और मानव कल्याण तथा मानव प्रेम का संदेश जन- जन तक पहुंचाया । वस्तुतः यह सांस्कृतिक सभ्यता किसी सम्प्रदाय से सम्बन्धित नहीं थी बल्कि यह विरासत सम्पूर्ण मानव समाज की है । सम्राट असोक के अभिलेख, प्राचीन अखंड प्रबुद्ध भारत के साम्राज्य के संविधान थे । सम्राट असोक की शासन व्यवस्था बुद्ध के विनयपिटक से प्रेरित थी । सम्राट असोक के द्वारा निर्मित उत्कृष्ट 84,000 स्तूप, गुफ़ा तथा शिलालेखों से यह ज्ञात होता है कि इनका निर्माण उस समय आवासीय क्षेत्रों के आस-पास किया गया रहा होगा । मानवीय जीवन के इन संदेशों को प्रचारित और प्रसारित करने में तथागत बुद्ध ने अपने जीवन के 45 साल, सम्राट असोक ने 40 साल तथा बाबा साहेब अम्बेडकर ने 36 साल खपा दिया । सम्राट असोक के शाहबाजगढी के 13 वें शिलालेख में लिखा हुआ है कि, “धम्म द्वारा विजय प्राप्त करने मुझे तृप्ति हुई है । जो धम्मरति है, वह अतिरति है ।”
सीख
समाज में जब भी इंसानियत के मूल्यों पर अन्याय, अत्याचार और शोषण बढ़ता है तभी समाज में व्याप्त कुरीतियों का अंत करने के लिए महापुरुषों का जन्म होता है । सम्राट असोक के जीवन से यह सीख मिलती है कि समाज की सच्ची और नि: स्वार्थ सेवा में अपने जीवन को समर्पित कर देना चाहिए । महान व्यक्ति वह होता है जो सबके कल्याण के लिए अपना जीवन अर्पित कर देता है और सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए निरंतर संघर्षशील रहता है । ऐसे व्यक्ति में असीम साहस और दृढ़ विश्वास होता है । वह युग प्रवर्तक एवं युग प्रकाश होता है । वह स्वयं संकटों का सामना कर जनता का मार्गदर्शन करता है । वस्तुतः महान् व्यक्ति मौज करने के लिए नहीं बल्कि महान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पैदा होते हैं तथा अपनी सारी शक्ति और साधन इसी दिशा में नियोजित करते हैं । सम्राट असोक के जीवन का लक्ष्य एक साफ़ सुथरी दुनिया का निर्माण करना था ।