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तुलनात्मक राजनीति / राजनीति विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग -4), (अमेरिका, फ़्रांस, जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड, रूस और चीन की राजनीतिक प्रणाली)

Posted on अगस्त 27, 2023सितम्बर 2, 2023

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज झाँसी, (उत्तर – प्रदेश) भारत । email : drrajbahadurmourya @ gmail.com, website : themahamaya.com

1- संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्यक्षीय शासन प्रणाली है । यहाँ पर राष्ट्रपति राज्य और शासन दोनों का अध्यक्ष होता है । राष्ट्रपति और विधानमंडल दोनों जनसाधारण के प्रतिनिधि होते हैं, परन्तु उनका चुनाव अलग-अलग और निश्चित अवधि के लिए होता है । राष्ट्रपति के मंत्रिमंडल का गठन उसके प्रति निष्ठा वाले विशेषज्ञों से किया जाता है, विधानमंडल के सदस्यों में से नहीं किया जाता । कार्यपालिका के सदस्य न तो विधानमंडल के सदस्य होते हैं और न उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं । राष्ट्रपति विधानमंडल को समयपूर्व भंग नहीं कर सकता । राष्ट्रपति अपने निर्णयों के लिए मंत्रिमंडल से सलाह लेने के लिए बाध्य नहीं होता ।

2- अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव चार वर्ष की निश्चित अवधि के लिए किया जाता है । उसे केवल महाभियोग की प्रक्रिया के द्वारा अपने कार्यकाल की समाप्ति से पहले इस पद से हटाया जा सकता है । महाभियोग के तीन आधार हैं : देश द्रोह, भारी भ्रष्टाचार, जघन्य अपराध या दुष्कर्म का आरोप । महाभियोग की कार्रवाई की शुरुआत प्रतिनिधि सभा में की जाती है । यदि प्रतिनिधि सभा बहुमत से राष्ट्रपति को दोषी ठहराती है तो सीनेट में उस पर मुक़दमा चलाया जाता है । ऐसी स्थिति में सीनेट एक न्यायालय का रूप धारण कर लेती है और सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश उसकी अध्यक्षता करता है । यदि सीनेट दो तिहाई बहुमत से राष्ट्रपति के दोष की पुष्टि कर दे तो उसे अपने पद से हटना पड़ेगा ।

3- अमेरिका में यदि समय से पहले राष्ट्रपति की मृत्यु, त्यागपत्र या पदच्युति के कारण पद रिक्त हो जाए तो शेष अवधि के लिए उपराष्ट्रपति इस पद को ग्रहण कर लेता है । यदि किसी कारण से उपराष्ट्रपति न ग्रहण करे तो क्रमशः प्रतिनिधि सभा का अध्यक्ष, सीनेट का अल्पकालीन अध्यक्ष, विदेश मंत्री, वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और महान्यायवादी उक्त पद को धारण करता है । अमेरिका में कोई भी व्यक्ति अपने जीवन काल में दो बार से ज़्यादा राष्ट्रपति पद के लिए नहीं चुना जा सकता है । यह व्यवस्था वहाँ पर 1951 के 12 वें संविधान संशोधन के द्वारा क़ानूनी तौर पर लागू कर दी गई है ।

4- अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक- गण के माध्यम से होता है जिसमें 538 सदस्य होते हैं । पहले अमेरिकी नागरिक अपनी ओर से निर्वाचक- गण के सदस्यों का चुनाव करते हैं, फिर उनके यह विशेष प्रतिनिधि राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं । राष्ट्रपति का चुनाव हो जाने के बाद निर्वाचक मण्डल भंग कर दिया जाता है । अमेरिकी राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रथम नागरिक होता है । राष्ट्रपति के मंत्री उसके सहायक होते हैं, सहयोगी नहीं । प्रशासन के सम्बन्ध में सारे महत्वपूर्ण और अंतिम निर्णय राष्ट्रपति अपने विवेक से करता है, किसी की सलाह से नहीं । उच्च अधिकारियों की नियुक्तियाँ भी राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में आती हैं । परन्तु इन सभी नियुक्तियों के लिए सीनेट का अनुसमर्थन आवश्यक होता है ।

5- अमेरिकी राष्ट्रपति को निषेधाधिकार प्राप्त है । इसके अंतर्गत राष्ट्रपति कांग्रेस के द्वारा पारित किसी विधेयक को क़ानून बनने से रोक सकता है । साधारणतः राष्ट्रपति को दस कार्य दिवसों में विधेयक पर हस्ताक्षर करके कांग्रेस के पास वापस भेजना होता है परन्तु यदि कोई विधेयक राष्ट्रपति को स्वीकार न हो तो तो राष्ट्रपति दो तरह से उसे क़ानून बनने से रोक सकता है : निलम्बन निषेधाधिकार और अवरोधन निषेधाधिकार । निलम्बन निषेधाधिकार के अंतर्गत राष्ट्रपति उस विधेयक पर अपनी आपत्तियाँ व्यक्त करके दस कार्य दिवसों के भीतर इसे कांग्रेस के उस सदन को लौटा देता है जहाँ उसे पहले- पहल प्रस्तुत किया गया था । यदि कांग्रेस उसे फिर भी पारित करना चाहे तो उसके लिए उसे दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से दुबारा पारित करना पड़ेगा ।

6- अमेरिकी राष्ट्रपति का अवरोधन या जेबी निषेधाधिकार यह कहता है कि यदि 10 कार्यदिवस पूरे होने से पहले कांग्रेस का अधिवेशन अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो जाए तो राष्ट्रपति किसी विधेयक को अपनी जेब में डालकर आगे बढ़ने से रोक सकता है और वह अपने आप रद्द माना जाएगा । इस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति अत्यंत सम्मानित और शक्तिशाली व्यक्ति है । वह अमेरिका की थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के नाते सैनिक उच्चाधिकारियों की नियुक्ति करता है । राष्ट्रपति अपराधियों के दण्ड को क्षमा कर सकता है, दण्ड को कम कर सकता है, निलम्बित कर सकता है या सर्वक्षमा की घोषणा कर सकता है । वह कांग्रेस के नाम अपने वार्षिक संदेश के अंतर्गत विधि निर्माण के अनेक प्रस्ताव भेजता है और वित्तीय विवरण के अंतर्गत बजट प्रस्ताव प्रस्तुत करता है ।

7- संयुक्त राज्य अमेरिका के विधानमंडल को कांग्रेस कहा जाता है । चूँकि अमेरिका में संघीय शासन प्रणाली है इसलिए उसी के अनुरूप कांग्रेस के दो सदन ; प्रतिनिधि सभा और सीनेट हैं । प्रतिनिधि सभा सम्पूर्ण राष्ट्र के जनसाधारण का प्रतिनिधित्व करती है और सीनेट अलग-अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है । प्रतिनिधि सभा को निम्न सदन या अवर सदन कहा जाता है । सीनेट को उच्च सदन, ऊपरला सदन या दूसरा सदन कहा जाता है । प्रतिनिधि सभा के सदस्य को कांग्रेस सदस्य और सीनेट के सदस्यों को सीनेटर कहा जाता है । प्रतिनिधि सभा में 435 सदस्य होते हैं जबकि सीनेट में 100 सदस्य होते हैं । प्रतिनिधि सभा के सदस्य पूरे देश की जनता के द्वारा चुने जाते हैं जबकि सीनेट में प्रत्येक राज्य से 2 सदस्य आते हैं ।

8- प्रतिनिधि सभा के सदस्यों का कार्यकाल 2 वर्ष का होता है । इस अवधि को किसी भी तरह घटाया और बढ़ाया नहीं जा सकता है । प्रतिनिधि सभा अपने अध्यक्ष का चुनाव स्वयं करती है । सीनेट के सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं । दो- दो वर्ष बाद सीनेट के एक तिहाई सदस्य सेवा निवृत्त हो जाते हैं । इस तरह पूरी सीनेट कभी भी भंग नहीं होती । यह एक स्थायी सदन है । संयुक्त राज्य अमेरिका का उपराष्ट्रपति सीनेट का सभापति होता है । सदन में वह केवल निर्णायक मत का प्रयोग करता है । राष्ट्रपति की ही तरह अमेरिका के उप राष्ट्रपति का चुनाव भी जनसाधारण के द्वारा निर्वाचक मण्डल के माध्यम से चार वर्ष की नियत समय के लिए होता है ।

9- संयुक्त राज्य अमेरिका में लिखित संविधान अपनाया गया है । इसके अंतर्गत विधि निर्माण के विषयों की दो सूचियाँ बनाई गई हैं : संघीय विषय और राज्य विषय । जो विषय इनमें से किसी सूची के विचार क्षेत्र में नहीं आते, उन्हें अवशिष्ट विषय कहा जाता है । इन विषयों पर क़ानून बनाने की शक्तियाँ राज्यों के पास रहती हैं । अमेरिकी कांग्रेस को केवल संघीय विषयों पर क़ानून बनाने का पूरा अधिकार है । अमेरिका में निहित शक्तियों के सिद्धांत को मान्यता दी गई है । जिसके अंतर्गत कांग्रेस तथा राष्ट्रपति ने कई ऐसी शक्तियाँ प्राप्त कर ली हैं जो स्वयं संविधान के अंतर्गत उन्हें व्यक्त रूप से नहीं सौंपी गई थीं ।

10- अमेरिका में वित्त विधेयक केवल प्रतिनिधि सभा में ही शुरू किए जा सकते हैं । परन्तु उनके लिए सीनेट का अनुसमर्थन ज़रूरी होता है । इस दृष्टि से विधानमंडल के दूसरे सदन के रूप में सीनेट की शक्ति बेजोड़ है । यही कारण है कि अमेरिकी सीनेट को विश्व का सबसे ज़्यादा शक्तिशाली दूसरा सदन कहा जाता है । वित्त विधेयक के अतिरिक्त अन्य कोई भी विधेयक किसी भी सदन से आरम्भ किये जा सकते हैं । कांग्रेस को संविधान के संशोधन का पूर्ण अधिकार है । इसके लिए प्रत्येक सदन का दो तिहाई बहुमत अपेक्षित है । परन्तु कांग्रेस में पारित होने के बाद इसके लिए कम से कम तीन चौथाई राज्यों के विधानमंडलों का अनुसमर्थन ज़रूरी है ।

11- अमेरिकी कांग्रेस में क़ानून के निर्माण में समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इसलिए कांग्रेस की समिति को आम तौर पर लघु विधानमंडल की संज्ञा दी जाती है । कांग्रेस की मुख्य समितियों में स्थायी समिति, प्रवर समिति, संयुक्त समिति, सम्मेलन समिति और सदन नियमावली समिति प्रमुख हैं । कभी-कभी सम्मेलन समिति को अमरीकी कांग्रेस का तीसरा सदन कहा जाता है । अमेरिकी व्यवस्था में शक्ति पृथक्करण अवरोध और संतुलन के सिद्धांत को मान्यता दी गई है । ताकि शक्ति के जमाव को रोका जा सके और शासन का कोई भी अंग निरंकुश न हो जाए ।

12- सीनेट- सौजन्य अमेरिकी संविधान की एक महत्वपूर्ण प्रथा है । इसका मतलब यह है कि यदि राष्ट्रपति को किसी राज्य विशेष से जुड़े संघीय पद पर जैसे कि- जिला न्यायवादी के पद पर नियुक्ति करनी हो और उस राज्य का एक या दोनों सीनेट सदस्य राष्ट्रपति के अपने राजनीतिक दल के हों तो राष्ट्रपति ऐसी नियुक्ति करने से पहले उस एक या दोनों सीनेट सदस्यों से परामर्श कर लेता है । यदि वे प्रस्तावित नियुक्ति का अनुमोदन कर दें तो सीनेट उस नियुक्ति की पुष्टि कर देगी । इसके विपरीत, यदि उन्हें इस पर आपत्ति हो तो सीनेट भी उनकी पुष्टि नहीं करेगी ।

13- अमेरिकी संविधान के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय संघ सरकार की न्यायिक शाखा का सर्वोच्च अंग है । सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार अमेरिकी राष्ट्रपति को है परन्तु इसके लिए सीनेट का अनुसमर्थन ज़रूरी है । यदि न्यायाधीशों को महाभियोग की प्रक्रिया से न हटाया जाए तो यह आजीवन अपने पद पर बने रह सकते हैं । कम से कम 10 वर्ष की सेवा या 70 वर्ष की आयु पूरी करने पर वह स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले सकते हैं । ऐसी स्थिति में उन्हें आजीवन पूरा वेतन मिलता रहता है । अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने धीरे-धीरे संविधान के संरक्षक की भूमिका सम्भाल ली है ।

14- न्यायिक पुनरीक्षण अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय की संविधान के संरक्षक के रूप में पहली महत्वपूर्ण शक्ति है । इसका अर्थ है, यह निर्णय करने की शक्ति कि कोई विधायी अधिनियम या कार्रवाई संविधान सम्मत है या नहीं, और यदि वह संविधान के विरूद्ध हो तो उसे अमान्य घोषित कर दिया जाए । इसके अतिरिक्त पुनरीक्षण का यह भी मतलब है कि ऊँचा न्यायालय निचले न्यायालय के निर्णयों पर पुनर्विचार करके उनके विरुद्ध व्यवस्था दे सकता है । अमेरिकी संविधान में न्यायिक पुनरीक्षण की शक्ति का कोई स्पष्ट उल्लेख तो नहीं है परन्तु न्यायालय को यह ताक़त अनुच्छेद 6 से प्राप्त है । संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के अलावा वहाँ राज्यों के अपने- अपने संविधान भी हैं । वर्ष 1803 में मार्बरी बनाम मैडीसन के मामले में सबसे पहले अमेरिकी न्यायालय ने इस शक्ति का प्रयोग किया था ।

15- न्यायिक अधिनिर्णयन अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय की संविधान के संरक्षक के रूप में दूसरी महत्वपूर्ण शक्ति है । अपने इस अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय प्रस्तुत क़ानूनी विवादों के सन्दर्भ में यह निर्णय देता है कि संविधान की मूल चेतना के अनुरूप प्रस्तुत क़ानून का वास्तविक अर्थ क्या है और क़ानून का व्यावहारिक प्रयोग किस रूप में होना चाहिए । दूसरे शब्दों में यहाँ यह न्यायालय किसी क़ानून की सांविधानिक प्रामाणिकता की जॉंच नहीं करता, बल्कि क़ानून को ज्यों का त्यों स्वीकार करते हुए संविधान की मूल चेतना के अनुसार उसके सही सही अर्थ और प्रयोग क्षेत्र को निर्दिष्ट करता है । यहाँ पर न्यायालय एक तरह से विधानमंडल की पूरक भूमिका निभाता है ।

16- संयुक्त राज्य अमेरिका एक विशाल और समृद्ध देश है । इसका क्षेत्रफल 95, 26, 468 वर्ग किलोमीटर है । इसकी जनसंख्या 32 करोड़, 71 लाख के क़रीब है ।यहाँ पर शहरी जनसंख्या लगभग 81 प्रतिशत है । यहाँ की साक्षरता दर 99 प्रतिशत है । संयुक्त राज्य अमेरिका को उदार लोकतंत्र का गढ़ माना जाता है । अमेरिका का संविधान दुनिया का सबसे पहला लिखित संविधान है जो लगभग 230 साल पुराना हो चुका है । अमेरिका में प्रेस और अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी है । अमेरिका को विश्व का प्रमुख पूँजीवादी राष्ट्र माना जाता है । यहाँ की बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ लगभग पूरी दुनिया में फैली हुई हैं । अमेरिकी अर्थशास्त्री जे. के. गैल्ब्रैथ की वर्ष 1958 में प्रकाशित पुस्तक द एफ्लुएंट सोसाइटी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को समझने की महत्वपूर्ण कृति है ।

17- संयुक्त राज्य अमेरिका में अफ्रीकी मूल के अश्वेतों की वर्तमान संख्या कुल जनसंख्या की 11.1 प्रतिशत है । कुल जनसंख्या का लगभग 8 प्रतिशत स्पेनिश भाषी लोगों का अल्पसंख्यक समुदाय है । इसमें क़रीब 90 लाख लोग मैक्सिको के हैं बाक़ी मध्य और दक्षिणी अमरीकी महाद्वीप से आए हैं । अमेरिका में आदिवासी समुदाय की आबादी लगभग 15 लाख है । अमेरिका में काले- गोरे रंगभेद के खिलाफ मार्टिन लूथर किंग जूनियर (1928-68) ने बड़ा जनआंदोलनों किया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1964 में नागरिक अधिकार अधिनियम पारित किया गया और अश्वेतों को पूर्ण नागरिकता के अधिकार दिए गए ।

18- फ़्रांसीसी गणराज्य उदार लोकतंत्र का एक उदाहरण है । फ़्रांस का क्षेत्रफल 6 लाख, 41 हज़ार वर्ग किलोमीटर के क़रीब है । फ़्रांस की जनसंख्या लगभग 6 करोड़, 50 लाख है । इसमें लगभग 60 लाख अप्रवासी हैं । फ़्रांस में साक्षरता की दर 99 प्रतिशत है । यहाँ की प्रधान भाषा फ़्रेंच है । फ़्रांस के लोकतंत्र की बुनियाद इतिहास प्रसिद्ध फ़्रांसीसी क्रांति (1789-99) के बाद रखी गई थी । इस क्रांति पर मांतेस्क्यू (1689-1755) तथा रूसो (1712-78) का प्रभाव था । इसके अतिरिक्त अमेरिकी क्रांति (1776) का भी उदाहरण उनके सामने था । फ़्रांसीसी क्रांति ने पूरी दुनिया को स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का नारा दिया जिसने लोकतंत्र के सिद्धांतों को पर्याप्त बढ़ावा दिया ।

19- फ्रांस का पंचम गणराज्य द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) के प्रसिद्ध सैन्य नायक जनरल चार्ल्स द गॉल (1890-1970) के नेतृत्व में स्थापित किया गया था । वह 1959 से 1969 तक फ़्रांस के राष्ट्रपति रहे । फ़्रांस के पंचम गणराज्य के संविधान (1958) के अंतर्गत एकात्मक शासन प्रणाली अपनायी गयी है । अत: वहाँ पर एक ही राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की गई है । इसके अलावा फ़्रांस की जनता 22 क्षेत्रीय परिषदों, 96 महानगर विभागीय परिषदों और 36,673 नगरपालिका परिषदों या कम्यूनों का भी चुनाव करती है । अन्ततः यह सब परिषदें वहाँ की सीनेट के चुनाव में भाग लेती हैं ।

20- फ्रांस के पंचम गणराज्य के संविधान के अंतर्गत दो सदनीय संसद और दोहरी कार्यपालिका की व्यवस्था की गई है । यह व्यवस्था फ़्रांसीसी राजनीतिक प्रणाली को साधारण संसदीय प्रणाली से अलग करती है । फ़्रांस में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मिल बाँटकर कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करते हैं । फ़्रांस की संसद के उच्च सदन सीनेट के 321 सदस्य एक निर्वाचकगण के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं । निर्वाचक मण्डल में नेशनल असेम्बली के स्थानीय सदस्य, मेयर, विभागीय परिषदों के सदस्य और नगरपालिका परिषदों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं । सीनेट के सदस्य 9 वर्ष के लिए चुने जाते हैं । इसके लिए तीन– तीन वर्ष बाद तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं और उनकी जगह नए सदस्यों का चुनाव होता है ।

21- फ़्रांसीसी संसद के निचले सदन को राष्ट्रीय सभा या नेशनल असेंबली कहा जाता है । नेशनल असेंबली में 577 सदस्य होते हैं जो 5 वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं । नेशनल असेंबली के सदस्य जनता के द्वारा एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों से चुने जाते हैं । इनके चुनाव में द्वितीयक बहुमत प्रणाली का प्रयोग होता है । नेशनल असेंबली के 22 सदस्य और सीनेट के 13 सदस्य समुद्र पार के विभागों और क्षेत्रों के द्वारा चुने जाते हैं । सीनेट के 12 सदस्य विदेशों में रहने वाले फ़्रांसीसी राष्ट्रजनों के द्वारा चुने जाते हैं । प्रधानमंत्री इसी सदन से चुना जाता है और इसी सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आता है । नेशनल असेंबली अपने निश्चयात्मक मत का प्रयोग करके सीनेट के निषेधाधिकार को रद्द कर सकती है ।

22- फ़्रांसीसी गणराज्य में दोहरी कार्यपालिका एक विलक्षण व्यवस्था है । इसमें जनता के द्वारा राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष चुनाव होता है और संसद में बहुमत प्राप्त करने वाले नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है । राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मिल बाँटकर कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करते हैं । इन शक्तियों का विभाजन इस ढंग से होता है कि शासन के कार्य में – विशेषत: विदेश नीति के क्षेत्र में प्रधानमंत्री की तुलना में राष्ट्रपति अधिक विस्तृत सत्ता और प्रभाव का प्रयोग करता है । फ़्रांस का राष्ट्रपति बहुमत प्राप्त कर चुनाव जीतता है । यदि किसी उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत प्राप्त न हो तो जिन दो उम्मीदवारों को पहला और दूसरा स्थान हासिल होता है, उनमें दुबारा मुक़ाबला कराया जाता है । इसमें जो प्रथम स्थान प्राप्त करता है, उसे निर्वाचित मान लिया जाता है ।

23- द्वितीयक पूर्ण बहुमत प्रणाली या दुबारा मतदान प्रणाली फ़्रांस के नेशनल असेंबली के चुनाव में प्रयुक्त एक विधि है । इसके अंतर्गत एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव जीतने के लिए पूर्ण बहुमत ज़रूरी होता है, अर्थात् चुनाव में डाले गए कुल मान्य वोटों में से उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त होने चाहिए । यदि पहली बार किसी भी उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो जिन उम्मीदवारों को पंजीकृत निर्वाचन मंडल के कम से कम 12.5 प्रतिशत वोट मिले हों, उनके बीच एक सप्ताह बाद दुबारा मुक़ाबला कराया जाता है, चाहे उसे पूर्ण बहुमत प्राप्त हो या नहीं । साधारणतः फ़्रांस की नेशनल असेंबली के तीन चौथाई स्थान दुबारा मतदान प्रणाली से भरे जाते हैं ।

24- गिलोटीन, मूलतः यह शब्द फ़्रांस में ऐसे यन्त्र के लिए प्रयुक्त होता है जिससे किसी का शिर काट देते थे । लाक्षणिक अर्थ में, यह संसदीय प्रणाली के अंतर्गत वाद- विवाद को बीच में ही काटकर ख़त्म कर देने की विधि का संकेत देता है । जब किसी विधेयक पर वाद- विवाद लम्बा खिंच रहा हो और सरकार उस पर यथाशीघ्र निर्णय चाहती हो तो इस प्रक्रिया के अंतर्गत सरकार के कहने पर विधेयक को अनेक परिच्छेदों में बाँट दिया जाता है और प्रत्येक परिच्छेद के लिए वाद- विवाद का समय नियत कर दिया जाता है । इस समय सारणी का पालन कठोरता से किया जाता है । समय समाप्त होने पर वह विधेयक मत- विभाजन के लिए प्रस्तुत कर दिया जाता है ।

25- संविधान परिषद, फ़्रांस के संविधान की एक महत्वपूर्ण व्यवस्था जो मोटे तौर पर अमरीकी सर्वोच्च न्यायालय से मिलती जुलती है । इस परिषद में 9 सदस्य होते हैं । प्रत्येक सदस्य 9 वर्ष के लिए चुना जाता है । इसके बाद उसे दुबारा नियुक्त नहीं किया जा सकता है । इनमें से तीन- तीन सदस्य तीन- तीन वर्ष के अंतर से नियुक्त किए जाते हैं । तीन सदस्यों का चयन गणराज्य के राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है । तीन सदस्य सीनेट के अध्यक्ष के द्वारा चुने जाते हैं और शेष तीन सदस्य नेशनल असेंबली के अध्यक्ष द्वारा चुने जाते हैं । संविधान परिषद का मुख्य कार्य यह देखना है कि सरकार और संसद जो आज्ञप्तियां या विधान जारी करने का प्रस्ताव रखे, वे संविधान में निहित मान्यताओं के अनुरूप हों । इसे न्यायिक पुनरीक्षण का अधिकार नहीं है ।

26- राज्य परिषद, फ़्रांस की एक और महत्वपूर्ण और पुरानी संस्था है, जिसे न्यायिक पुनरीक्षण का अधिकार प्राप्त है । इसके सदस्य वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी होते हैं । संसद में जो विधेयक प्रस्तुत किए जाते हैं उनकी सांविधानिकता के बारे में यह परिषद सलाह देती है । परन्तु यह सलाह बाध्यकारी नहीं होती । जब किसी नागरिक और प्रशासन के बीच कोई विवाद पैदा हो जाए तो उस पर यह परिषद अंतिम अपील न्यायालय का कार्य करती है । निर्वाचित पद संचय भी फ़्रांस की राजनीतिक प्रणाली की एक विलक्षण प्रथा है । इसके अंतर्गत कोई व्यक्ति एक साथ अनेक निर्वाचित पदों पर बना रहता है । जैसे कोई व्यक्ति संसद सदस्य के साथ मेयर पद पर भी साथ- साथ रह सकता है ।

27- वस्तुतः फ़्रांस गणराज्य के अंतर्गत संसदीय प्रणाली को संशोधित रूप में अपनाया गया है । साधारणतः संसदीय प्रणाली दो दलीय प्रणाली के अंतर्गत सुचारू रूप से काम करती है । दूसरी ओर बहुदलीय प्रणाली अस्थिर सरकार को जन्म देती है । फ़्रांस में बहुदलीय प्रणाली प्रचलित है । अत: वहाँ शासन में स्थिरता लाने के लिए संसदीय प्रणाली के साथ ही साथ अध्यक्षीय प्रणाली की कुछ विशेषताओं को मिलाने का प्रयास किया गया है । इसे आम बोलचाल की भाषा में हाईब्रिड सिस्टम भी कहते हैं ।

28- दो वोट मतदान पद्धति, जर्मन संघीय गणराज्य में बुंदेश्टाग के सदस्यों की निर्वाचन पद्धति है । इसमें प्रत्येक मतदाता के दो वोट होते हैं । पहला वोट मतदाता के जनपद का प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवार को दिया जाता है । यह एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र के लिए होता है जिसमें विजय का निर्णय सरल बहुलमत प्रणाली के आधार पर किया जाता है, अर्थात् जिस उम्मीदवार को सबसे ज़्यादा वोट मिलते हैं उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है । दूसरा वोट राज्य की दलीय सूची के लिए होता है । इस सदन के आधे स्थान निर्वाचन क्षेत्रीय सदस्यों से भरे जाते हैं । बुंदेश्टाग के आधे स्थान इस ढंग से वितरित किये जाते हैं कि प्रत्येक दल के हिस्से में आने वाले स्थान मतदाताओं के दूसरे वोट में व्यक्त की गई पसंद के तुल्य हों ।

29- वाइमार गणराज्य, 1918 से 1933 तक के जर्मन गणराज्य का संविधान था । यह संविधान सम्राट विलियम द्वितीय के वर्ष 1918 में सिंहासन त्याग के बाद वाइमार नामक नगर में बनाया गया था । इसके अंतर्गत जर्मन साम्राज्य को राज्यों की तुलना में सर्वोच्च स्थान दिया गया था । यहाँ पर राष्ट्रपति का चुनाव 7 वर्ष के लिए होता था । वह समस्त सशस्त्र सेनाओं का सेनापति होता था । उसकी शक्तियाँ सम्राट की शक्तियों से भी विस्तृत थीं । 1933 में जब हिटलर ने चांसलर का पद प्राप्त कर लिया तो उसने वाइमार संविधान को निलम्बित करके नाजी अधिनायकतंत्र स्थापित कर लिया । हिटलर के पतन के बाद 1945-1949 तक जर्मनी पर मित्र राष्ट्रों का क़ब्ज़ा रहा था ।

30- वर्ष 1949 में जर्मनी को दो हिस्सों में बाँट दिया गया । पूर्वी जर्मनी तत्कालीन सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ के क़ब्ज़े में रहा, जिसे एक समाजवादी संविधान के अंतर्गत जर्मन लोकतत्रीय गणराज्य के रूप में संगठित किया गया । पश्चिमी जर्मनी का क्षेत्र अमरीका, ब्रिटेन और फ़्रांस के क़ब्ज़े में रहा और उसे जर्मन संघीय गणराज्य के रूप में संगठित किया गया । 1990 में पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हो गया । पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी को अलग-अलग करने वाली बर्लिन की दीवार गिरा दी गई ।आज जर्मनी संघीय प्रणाली का देश है जहाँ संसदीय प्रणाली प्रचलित है । मूलतः जर्मनी में 10 राज्य थे जो 1990 के बाद अब 16 हो गए हैं ।

31- जर्मनी का वर्तमान क्षेत्रफल 3 लाख, 57 हज़ार वर्ग किलोमीटर है । इसकी जनसंख्या 8 करोड़, 11 लाख के ऊपर है । यहाँ लगभग 78 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं । जर्मनी की साक्षरता दर 99 प्रतिशत है ।यहाँ की अर्थव्यवस्था उच्च आय वर्ग में आती है । जर्मनी के राज्याध्यक्ष को राष्ट्रपति कहा जाता है और शासनाध्यक्ष को चांसलर कहा जाता है । जर्मनी के प्रत्येक राज्य का अपना- अपना संविधान है जिसमें एक सदनीय विधानसभा की व्यवस्था है । केवल बावेरिया राज्य में दो सदनीय विधानसभा का प्रावधान किया गया है । 1949 में निर्मित और 1990 में संशोधित संविधान के अंतर्गत जर्मनी में केन्द्र स्तर पर एक सुदृढ़ संसदीय लोकतंत्र स्थापित किया गया है जिसमें दो सदनीय विधानमंडल की व्यवस्था की गई है ।

32- जर्मनी के केन्द्रीय विधानमंडल में दो सदन हैं । जर्मनी के निम्न सदन को बुंदेश्टाग अर्थात् संघीय सभा कहा जाता है ।इसमें कम से कम 656 सदस्य होते हैं । यह सदस्य सार्वजनीन वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष निर्वाचन की विधि से चार वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं । जर्मनी के उच्च सदन को बुंदेस्रात अर्थात् संघीय परिषद कहा जाता है । इसमें 69 सदस्य होते हैं जो अप्रत्यक्ष निर्वाचन की विधि से चुने जाते हैं । भिन्न-भिन्न राज्यों की सरकारें अपनी- अपनी जनसंख्या के अनुसार बुंदेस्रात के लिए अपना- अपना दलीय प्रतिनिधि मंडल मनोनीत करती हैं, जिनकी सदस्य संख्या तीन से छह तक होती है । बुंदेस्रात कभी भंग नहीं होती । जर्मन संसद के दोनों सदनों में बुंदेश्टाग अधिक शक्तिशाली सिद्ध होती है ।

33- जर्मनी में राज्याध्यक्ष को संघीय राष्ट्रपति कहा जाता है जिसका चुनाव पाँच वर्षों के लिए होता है । उसे केवल एक बार दुबारा इस पद के लिए चुना जा सकता है । जर्मनी में राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए एक विशेष संघीय समागम बुलाया जाता है । इसमें बुंदेश्टाग के सारे सदस्य सम्मिलित होते हैं और राज्यों के उतने ही विधायक भी सम्मिलित होते हैं , जिन्हें आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर चुनकर भेजा जाता है । यदि दो बार मतदान कराए जाने पर किसी उम्मीदवार को बहुमत न मिले तो तीसरी बार जिस उम्मीदवार को सबसे ज़्यादा वोट मिलते हैं उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है ।

34- जर्मनी में संसदीय प्रथा के अनुसार चांसलर का चयन केवल संसद के निम्न सदन अर्थात् बुंदेश्टाग से ही किया जाता है । इस सदन में जिस दल या गठबंधन का बहुमत होता है उसके सदस्यों में से यह सदन चांसलर का चुनाव करता है । मंत्रिमंडल के सदस्य चांसलर की संस्तुति के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और पद से हटाए जाते हैं । जब कोई चांसलर एक बार निर्वाचित हो जाता है तो बुंदेश्टाग के सदस्य उसे केवल रचनात्मक अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा ही उसे पद से हटा सकते हैं । इस प्रक्रिया के अंतर्गत किसी वैकल्पिक कार्यकारी के पक्ष में बहुमत का समर्थन आवश्यक होगा । शासन की अस्थिरता को रोकने के लिए जर्मन संविधान का यह एक विलक्षण तरीक़ा है ।

35- जर्मनी के 1949 और 1990 के संविधान में, संविधान को देश के सर्वोच्च क़ानून के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से एक विशेष स्वाधीन संघीय सांविधानिक न्यायालय की व्यवस्था की गई है । इसका कार्यालय कार्लस्रूह में है । इस न्यायालय में 16 न्यायाधीश रखे गए हैं । इनमें से आधे न्यायाधीशों का चयन बुंदेश्टाग के द्वारा किया जाता है और आधे न्यायाधीशों का चयन बुंदेस्रात के द्वारा किया जाता है । दोनों सदनों की संतुलित सर्वदलीय समितियाँ इन पदों के उम्मीदवार मनोनीत करती हैं । न्यायाधीशों का कार्यकाल 12 वर्ष होता है । यह न्यायालय नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा करता है और राज्यों एवं संघ के परस्पर विवादों में अधिनिर्णायक की भूमिका निभाता है ।

36- स्विट्ज़रलैंड लगभग 41 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ पश्चिमी यूरोप का प्रमुख देश है । स्विट्ज़रलैंड की जनसंख्या लगभग 85 लाख के क़रीब है । यहाँ की साक्षरता दर 99 प्रतिशत है । स्विट्ज़रलैंड की अर्थव्यवस्था उच्च आय वर्ग में आती है । स्विट्ज़रलैंड की राजनीतिक व्यवस्था उदार लोकतंत्रीय है और इसकी राजनीतिक संरचना संघात्मक है । इस देश का राजनीतिक नाम स्विस परिसंघ है । स्विट्ज़रलैंड की गणना तटस्थ देश में होती है । लम्बे अरसे बाद वर्ष 2002 में स्विट्ज़रलैंड 190 सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना । यहाँ वर्ष 1971 में महिलाओं को मताधिकार प्रदान किया गया । इसके पहले स्विट्ज़रलैंड में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था ।

37- स्विट्ज़रलैंड अनेक राजनीतिक प्रभागों में बँटा हुआ है जिन्हें कैंटन कहा जाता है ।स्विस परिसंघ 20 कैंटनों और 6 अर्ध- कैंटनों का संघ है । यहाँ का संविधान 1874 से लगातार चला आ रहा है । प्रत्येक कैंटन का अपना- अपना संविधान, अपनी- अपनी विधानसभा और अपनी- अपनी सरकार है । कैंटनों से निचले स्तर पर 3,000 से ज़्यादा कम्यून हैं । इनकी जनसंख्या 20 से लेकर 3,50,000 तक है । कम्यून सभाओं और परिपृच्छा के माध्यम से वहाँ प्रत्यक्ष लोकतंत्र को बढ़ावा दिया जाता है । स्विट्ज़रलैंड में संघीय सरकार को विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान की गई हैं और अविशिष्ट शक्तियाँ कैंटनों के पास हैं ।

38- स्विट्ज़रलैंड की केन्द्रीय विधायिका को संघीय सभा कहते हैं जिसमें दो सदन हैं । निम्न सदन को राष्ट्रीय परिषद कहा जाता है और उच्च सदन को राज्य परिषद या राज्य सभा कहा जाता है । राष्ट्रीय परिषद में 200 सदस्य होते हैं जो सार्वजनीन वयस्क मताधिकार के आधार पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के अनुसार दलीय सूची प्रणाली से चार वर्ष के लिए चुने जाते हैं । राज्य परिषद में 46 सदस्य होते हैं । इनमें प्रत्येक कैंटन के दो- दो प्रतिनिधि औ प्रत्येक अर्ध- कैंटन का एक- एक प्रतिनिधि होता है । राज्य परिषद के सदस्य तीन या चार वर्ष के लिए चुने जाते हैं । इनका कार्यकाल सम्बद्ध कैंटन के अपने संविधान से निर्धारित होता है ।

39- स्विट्ज़रलैंड में संघीय सरकार की कार्यकारी शक्तियाँ संघीय परिषद के हाथों में रहती हैं । इसमें सात सदस्य होते हैं । इन सदस्यों का चुनाव संघीय सभा के द्वारा इसके दोनों सदनों, राष्ट्रीय परिषद और राज्य परिषद के संयुक्त अधिवेशन में चार वर्ष के लिए होता है । इसका प्रत्येक सदस्य किसी एक संघीय विभाग का अध्यक्ष होता है । संघीय परिषद इनमें से एक- एक सदस्य को एक- एक वर्ष के लिए अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनती है । परम्परा यह है कि किसी भी संघीय परिषद के सदस्य को लगातार दो बार अध्यक्ष नहीं चुना जा सकता । एक अन्य प्रथा के अनुसार, अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हो जाने पर पिछले उपाध्यक्ष को नया अध्यक्ष चुन लिया जाता है ।स्विस परिसंघ का अध्यक्ष ही राष्ट्रपति कहा जाता है ।

40- स्विट्ज़रलैंड की कार्यपालिका को बहुल कार्यपालिका माना जाता है क्योंकि अपने एक वर्ष के कार्यकाल में संघीय परिषद के अध्यक्ष को अपने छहों सहयोगियों के समकक्ष माना जाता है । उसे कुछ अतिरिक्त वेतन और भत्ते तो मिलते हैं परन्तु वह केवल सांकेतिक राज्याध्यक्ष की भूमिका निभाता है । उसकी कार्यकारी शक्तियाँ अपने सहयोगियों के समतुल्य होती हैं । स्विट्ज़रलैंड को प्रत्यक्ष लोकतंत्र का घर माना जाता है । यहाँ पर राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया में नागरिकों की प्रत्यक्ष सहभागिता देखने को मिलती है । इसके लिए साधारणतः दो विधियों का प्रयोग किया जाता है : उपक्रम और परिपृच्छा ।

41- सोवियत संघ के पतन के बाद रूसी संघ ने उसका स्थान लिया है । इसमें 21 गणराज्य, एक स्वायत्त अंचल, 49 प्रशासनिक अंचल, 6 प्रान्त, 10 स्वायत्त जनपद और दो संघीय नगर- मास्को तथा सेंट पीटर्सबर्ग सम्मिलित है । इस तरह रूसी संघ 89 प्रशासनिक इकाइयों से बना है । रूसी संघ में रूस सबसे बड़ा देश है, जो एशिया से लेकर यूरोप महाद्वीप तक फैला है । यह पूर्व से पश्चिम की ओर 9600 किलोमीटर की लम्बाई में फैला है और उत्तर से दक्षिण की ओर इसकी लम्बाई 4800 किलोमीटर है । रूस का कुल क्षेत्रफल 170 लाख, 98 हज़ार वर्ग किलोमीटर है । रूसी संघ की वर्तमान जनसंख्या 14 करोड़, 40 लाख से अधिक है । पूर्व सोवियत संघ का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा रूस के क्षेत्र में आता है ।

42- रूस की वर्तमान शासन प्रणाली में अध्यक्षीय प्रणाली और संसदीय प्रणाली का मिश्रण तैयार करने की कोशिश की गई है । अध्यक्षीय प्रणाली की तरह यहाँ पर एक शक्तिशाली राष्ट्रपति की व्यवस्था की गई है और संसदीय प्रणाली की तरह यहाँ एक शक्तिशाली संसद की व्यवस्था की गई है । राष्ट्रपति राज्य का अध्यक्ष होता है जो सीधे जनता द्वारा चुना जाता है । वर्ष 2012 से राष्ट्रपति का कार्यकाल 6 वर्ष कर दिया गया है जबकि पहले यह 4 वर्ष था । राष्ट्रपति संविधान का संरक्षक और सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर है । वह प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की नियुक्ति करता है । इस नियुक्ति को संसद का अनुमोदन ज़रूरी होता है ।

43- रूस की विधायिका को संघीय सभा कहा जाता है । इसके दो सदन होते हैं : निम्न सदन को स्टेट ड्यूमा तथा उच्च सदन को संघीय परिषद कहा जाता है । स्टेट ड्यूमा में 450 सदस्य होते हैं तथा संघीय परिषद में 178 सदस्य होते हैं । स्टेट ड्यूमा के 225 सदस्य सीधे एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों से 4 वर्ष के चुने जाते हैं । इस चुनाव में बहुलमत प्रणाली अपनायी जाती है- अर्थात् जो सबसे आगे, जीत उसकी। शेष 225 सदस्य राष्ट्रीय दल सूचियों से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर चुने जाते हैं । इस तरह प्रत्येक मतदाता के दो वोट होते हैं – एक स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र के लिए, दूसरा राष्ट्रीय दल सूची के लिए । स्टेट ड्यूमा के उम्मीदवार की न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए ।

44- संघीय परिषद के अंतर्गत रूसी संघ की 89 प्रशासनिक इकाइयों में से प्रत्येक के दो- दो प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं जिससे इस परिषद के सदस्यों की संख्या 178 हो जाती है । रूस के संविधान के अनुसार वहाँ एक सांविधानिक न्यायालय की स्थापना की गई है जिसे न्यायिक पुनरीक्षण की शक्ति प्राप्त है । इसमें 19 सदस्यों की व्यवस्था की गई है । यह सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं परन्तु इनकी नियुक्ति के लिए संघीय परिषद की पुष्टि आवश्यक है । दिसम्बर, 1995 के संसदीय चुनाव में रूस में लगभग 250 राजनीतिक दलों ने अपना पंजीकरण कराया था लेकिन इसमें केवल 43 दलों ने चुनाव में हिस्सा लिया था ।

45- चीन में वर्ष 1949 की साम्यवादी क्रान्ति के बाद जनवादी चीन गणराज्य की स्थापना हुई । 1954 में वहाँ पर पहली बार समाजवादी संविधान लागू किया गया । बाद में 1975, 1978 और 1982 में नए संविधान लागू किए गए । चीन का वर्तमान संविधान 1982 का संविधान है । चीन का 1954 का संविधान साम्यवादी क्रान्तिकारियों की आकांक्षाओं को व्यक्त करता था । वर्ष 1965 से 1969 तक चीन में सांस्कृतिक क्रांति का दौर चला जिसका नेतृत्व तत्कालीन चीन के सर्वोच्च नेता स्वयं माओ- त्से- तुंग ने किया था । इस क्रान्ति के पीछे यह मान्यता निहित थी कि समाजवादी व्यवस्था के अंतर्गत जनसाधारण के मन में बुर्जुआ संस्कारों सांस्कृतिक परम्पराओं की जड़ें गहरी जमी होती हैं ।

46- चीन में सांस्कृतिक क्रांति की उपलब्धियों को समेकित करने के लिए 1975 में नया संविधान लागू किया गया । इसमें कम्युनिस्ट पार्टी की स्थिति को और अधिक मज़बूत किया गया । सेना को राज्य के नियंत्रण से हटाकर कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष के नियंत्रण में लाया गया । साथ ही चीन की सर्वोच्च विधायी संस्था राष्ट्रीय जन कांग्रेस को कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में कार्य करने के निर्देश दिए गए । 1975 के चीन के इस संविधान में अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में चीन को सोवियत रूस के साम्यवादी नेतृत्व और उनके प्रभाव से भी मुक्त करने की कोशिश की गई । इस संविधान के तहत राष्ट्रपति का पद समाप्त कर दिया गया । वर्ष 1976 में माओ- त्से- तुंग का देहांत हो गया ।

47- चीन का वर्तमान संविधान 1982 में अपनाया गया । इसमें 138 अनुच्छेद हैं । यह संविधान सार्वजनिक नीति की नई पूर्वताओं पर आधारित है जिसमें आधुनिकीकरण पर ज़ोर दिया गया है । संविधान के अंतर्गत लोकतंत्रीय केन्द्रवाद में प्रबल आस्था व्यक्त की गई है ।राष्ट्रपति के पद को पुनः जीवित किया गया साथ ही संविधान को राज्य का बुनियादी क़ानून घोषित किया गया । चीन में एकात्मक शासन प्रणाली अपनायी गयी है। शासन के अंगों में राष्ट्रीय स्तर पर विधायी शक्तियों का मुख्य केन्द्र राष्ट्रीय जन कांग्रेस है जो एकसदनीय है । इसकी प्रतिनिधि संख्या लगभग 3,000 है तथा कार्यकाल 5 वर्ष होता है ।

48- चीन की वर्तमान जनसंख्या लगभग 140 करोड़ है । चीन का क्षेत्रफल लगभग 95 लाख, 73 हज़ार वर्ग किलोमीटर है । जनसंख्या की दृष्टि से चीन विश्व का सबसे बड़ा देश है जबकि क्षेत्रफल के हिसाब से रूस और कनाडा के बाद तीसरा सबसे बड़ा देश है । प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से इसे 22 प्रान्तों, 5 स्वायत्त अंचलों और 3 केन्द्र शासित नगरपालिकाओं में विभाजित किया गया है । स्वायत्त अंचलों में गैर चीनी अल्पसंख्यकों की आबादी है । चीन की राजधानी पेइचिंग केन्द्र शासित क्षेत्र में आती है । चीन की 94 प्रतिशत आबादी हान जाति के चीनियों की है । चीन बहुराष्ट्रजातीय राज्य है जिसमें लगभग 56 राष्ट्र- जातियाँ रहती हैं ।

49- चीन में कार्यकारी शक्ति राज्य परिषद में निहित है जो प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है । इस राज्य परिषद की तुलना मंत्रिमंडल से की जा सकती है । इसके सदस्यों की संख्या लगभग 40 के आस-पास होती है । चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1921 में की गई थी । 1949 से यह जनवादी चीन गणराज्य में लगातार सत्तारूढ़ रही है । यहाँ पर कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा आठ छोटे-छोटे दलों को काम करने की अनुमति दी गई है । परन्तु व्यवहार के धरातल पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ही सम्पूर्ण राजनीति की धुरी है । इसकी सर्वोच्च निर्णयन संस्था राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस है । पार्टी कांग्रेस केन्द्रीय समिति का चुनाव करती है और फिर केन्द्रीय समिति पोलित व्यूरो का चुनाव करती है । पार्टी का सबसे महत्वपूर्ण पद महासचिव है । साधारणतः कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव ही चीन का राष्ट्रपति भी होता है ।

50- चीन में वर्ष 1949 में लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या निरक्षर थी लेकिन वर्तमान साक्षरता दर लगभग 96 प्रतिशत से अधिक है । चीन ने अपने यहाँ प्रचलित रखैल प्रथा, बाल- विवाह तथा बधू- शुल्क जैसी प्रथाओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया । माओ ने चीन जैसे कृषि प्रधान देश के सन्दर्भ में यह मान्यता रखी कि यहाँ कृषक वर्ग क्रान्ति का माध्यम बनेगा । माओ का दृढ़ विश्वास था कि क्रान्ति को सार्थक करने का सबसे उपयुक्त माध्यम राजनीति है । जहॉं राजनीति और आर्थिक नीति में संघर्ष पैदा हो जाए, वहाँ राजनीति को प्रधानता मिलनी चाहिए । माओ के अनुसार विचारधारात्मक दृष्टि से हाथ के काम की तुलना में बौद्धिक कार्य गौण है ।

51- चीन के नेता माओ ने वर्ष 1956 में एक अभियान चलाया था जिसे सत पुष्प अभियान की संज्ञा दी जाती है । इसके अंतर्गत माओ ने चीन के राजनीतिक जीवन पर कठोर नियंत्रण में कुछ ढील देने और अधिकारी तंत्र को झिंझोड़ने का प्रयत्न किया । उसने सब तरह के विचारों को अभिव्यक्ति का अवसर देने के उद्देश्य से यह संदेश दिया : सौ फूल खिलने दो । परन्तु जब लोगों ने खुलकर सरकार की आलोचना शुरू कर दी तब उसने अधिकारितंत्र को यह अनुमति दी कि असहमति को बुरी तरह से कुचल डाले । माओ ने 1957 में दक्षिणपंथ विरोधी अभियान चलाया जिसमें लाखों बुद्धिजीवियों को देशद्रोही करार दिया गया । माओ ने वर्ष 1958-60 के दौरान चीन के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए लम्बी छलांग की नीति अपनाई ।

52- माओ- त्से- तुंग को आधुनिक चीन का राष्ट्र- निर्माता माना जाता है । उसने वर्ष 1965 से 1969 तक चीन में सांस्कृतिक क्रांति का नेतृत्व किया । इस क्रांति ने चार पुराने तत्वों अर्थात् पुराने विचारों, पुरानी संस्कृति, पुराने रीति- रिवाज और पुरानी आदतों पर प्रहार किया । चीन में वर्ष 1950-76 तक के दुर्भिक्ष और उत्पीडन में क़रीब आठ करोड़ लोगों की जान चली गई । माओ की मृत्यु के बाद जब वहाँ की सत्ता देंग जियाओपिंग के हाथ में आयी तब उन्होंने चीन की समाजवादी व्यवस्था के साथ बाज़ार के तत्वों को मिला कर समाजवाद को बढ़ावा दिया । वर्ष 1989 में चीन की राजधानी पेइचिंग के त्यानान्मन चौक पर एक प्रदर्शन में लगभग एक हज़ार युवक और युवतियों की जान चली गई । इस घटना की पूरी दुनिया में आलोचना हुई ।

नोट: उपरोक्त सभी तथ्य, ओम् प्रकाश गाबा की पुस्तक “तुलनात्मक राजनीति की रूपरेखा” पाँचवाँ संस्करण, 2022, प्रकाशन – नेशनल पेपरबैक्स, 4230/1, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली, ISBN : 978-93-88658-35 –8 से साभार लिए गए हैं ।

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