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करुणामय है त्रिपुरा राज्य का वेणुवन विहार !!

Posted on अगस्त 22, 2020अगस्त 22, 2020
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भारत की उत्तर- पूर्वी सीमा पर बांग्लादेश और म्यांमार की नदी घाटियों के बीच स्थित त्रिपुरा राज्य के कुंजावन क्षेत्र में स्थित वेणुवन बुद्ध विहार करुणा मय मैत्री और शांति का प्रतीक है। अतीत के लम्बे दौर से यह समभाव का संदेश देता आया है और आज भी अपनी करुणामय आभा को बिखेर रहा है। वेणुवन विहार, त्रिपुरा राज्य के सबसे प्रमुख आकर्षणों में से एक है। इस विहार की संरचना में विशिष्ट त्रिपुरी शैली की वास्तुकला का प्रभाव है।

इस वेणुवन विहार में लाल रंग का गर्भ गृह है जो भगवान बुद्ध को समर्पित है। बहुत पहले वर्मा में बनायी जाने वाली भगवान बुद्ध और बोधिसत्व की विशिष्ट धातु की मूर्तियों के लिए वेणुवन का यह विहार बौद्ध धर्म के अनुयायियों के बीच जाना जाता है। यह स्थान घने पेड़ों की झाड़ियों से घिरा हुआ है। पूरे त्रिपुरा राज्य में 200 से अधिक बौद्ध विहार हैं। यहां पर बौद्ध धर्म की थेरवादी शाखा का प्रभाव अधिक है। त्रिपुरा का उल्लेख सम्राट अशोक के शिलालेख में भी मिलता है।

venuvan buddha vihar agartala
वेणुवन विहार

वर्तमान त्रिपुरा राज्य 10,492 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है जिसकी आबादी 36,73,917 है। अगरतला त्रिपुरा की राजधानी तथा बंगाली और त्रिपुरी यहां की मुख्य भाषाएं हैं। त्रिपुरी भाषा को स्थानीय लोग कोक बोरोक कहते हैं। पहले इसकी राजधानी उदयपुर थी। त्रिपुरा की स्थापना 14 वीं शताब्दी में आदिवासी मुखिया माणिक्य द्वारा की गई थी। इसका सम्बन्ध इंडो- मंगोलियन समूह से था। 1808 में त्रिपुरा ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हुआ।

19 अगस्त 1908 से 17 मई 1947 तक वीर विक्रम किशोर माणिक्य देव वर्मन यहां के अंतिम महाराजा थे। 15 अक्टूबर 1949 को त्रिपुरा रियासत का विलय भारत संघ में कर दिया गया। 1 जुलाई 1963 को त्रिपुरा भारतीय गणराज्य के अंतर्गत केन्द्र शासित प्रदेश बना। 21 जनवरी 1972 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। त्रिपुरा राज्य के तीन ओर, उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में बांग्लादेश है जबकि पूर्व में असम और मिजोरम है। यहां के शासकों को फा उपनाम से पुकारा जाता था जिसका अर्थ पिता होता है।

त्रिपुरा राज्य का इतिहास राजमाला गाथाओं और मुस्लिम इतिहासकारों के वर्णनों से जाना जाता है। 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बाद से यहां पर सशस्त्र संघर्ष प्रारम्भ हो गया है जिसके निशाने पर बंगाली लोग हैं। स्थानीय भाषा में त्रिपुरा का अर्थ, त्रि- जल,पुरा- निकट अर्थात् जल के निकट है।धान, त्रिपुरा की मुख्य फसल है। राज्य में कुल रेलमार्ग मात्र 66 किलोमीटर है। अब अगरतला तक रेल लाइन पहुंच गई है।

यह हिन्दू बहुल राज्य है जो कुल जनसंख्या का 84 प्रतिशत हैं। यहां पर त्रिपुरी देवी का भव्य मंदिर है जिसकी गिनती शक्ति पीठों में होती है। सचिन देव बर्मन तथा राहुल देव बर्मन जैसे प्रसिद्ध संगीतकार इसी राज्य की देन हैं। त्रिपुरा की राज्य विधानसभा 60 सदस्यीय है। यह एक सदनीय विधानमंडल है। यहां से 2 सांसद लोकसभा में तथा 1 सांसद राज्य सभा में प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां की 856 किलोमीटर सीमा अंतर्राष्ट्रीय है। शिलांग से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 44 के माध्यम से त्रिपुरा पूरे देश से जुड़ा हुआ है।

अगरतला

अगरतला, त्रिपुरा के पश्चिम भाग में बांग्लादेश से केवल 2 किलोमीटर दूर स्थित है। हरोआ नदी इस शहर के बीच से होकर गुजरती है। इसे वीर विक्रम सिंह माणिक्य बहादुर का शहर भी कहा जाता है। 1901 में निर्मित उजयन्त पैलेस यहां का मुख्य स्मारक है जो 800 एकड क्षेत्र में फैला हुआ है। इसी परिसर में राज्य की विधानसभा स्थित है।

यहीं एअरपोर्ट रोड़ पर वेणुवन विहार है। यहीं पर अनोखे तरीके से क्राकरी के टूटे हुए टुकड़ों से बनी हुई गेंदू मियां मस्जिद है। 19 आदिवासी समूहों की स्मृतियों को संजोए हुए भव्य जनजातीय संग्रहालय है। पुराने अगरतला में 14 मूर्तियों वाला मंदिर है यहां की कडची पूजा प्रसिद्ध है। 15 वीं सदी में निर्मित कमल सागर झील यहां की शोभा है।

venuban buddha vihar, agartala
वेनुबन बुद्ध विहार, अगरतल।

पास ही 16 वीं सदी में निर्मित काली देवी का मंदिर है। यहां पर रवीन्द्र नाथ टैगोर आए थे। कुंजबन पैलेस तथा नीरमहल भी यहां के दर्शनीय स्थल हैं। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर अगरतला- सबरुम मार्ग पर उदयपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका निर्माण 1501 ई. में राजा धान्य माणिक्य देव ने कराया था। मंदिर परिसर में माता महामाया के सीधे पैर की उंगलियों के निशान मौजूद हैं।

पुरातात्विक स्थल

अगरतला से 40 किलोमीटर दूर बाक्स नगर में वर्ष 2001-02,03,04 में पुरातात्विक उत्खनन किया गया है जिसमें विशाल ईंट से निर्मित स्तूप,एक चैत्य गृह और एक मठ मिला है। यह खोज प्राचीन त्रिपुरा की वास्तुकला तथा धार्मिक पहलुओं को प्रदर्शित करती है। कोरबा बाजार के पास मनासा ( नाग देवी) के एक प्राचीन मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जुलाई 1997 में वरिष्ठ पुरातत्व विद डॉ. जितेन्द्र दास ने इस स्थान का दौरा किया तथा भगवान बुद्ध की एक मूर्ति की खोज के बाद पुष्टि किया कि यह एक बुद्ध मंदिर था।

त्रिपुरा में मोग, चकमा, बरुआ और उचाई लोग बौद्ध धर्म में आस्था रखते हैं। मोग बौद्ध लोग पारम्परिक रूप से म्यान्मार से प्रभावित हैं। इन्हें धार्मिक शिक्षा बर्मी लिपि में दी जाती है।इनकी बोली भी बर्मी भाषा और राखेन भाषाओं से मिलती जुलती है। चकमा और बरुआ लोग बंगाली भाषा का प्रयोग करते हैं। देवतामुरा की शैल प्रतिमाएं अगरतला से 75 किलोमीटर दूर गोमती नदी के किनारे अमरपुर के बीच स्थित हैं। उदयपुर से इसकी दूरी लगभग 35 किलोमीटर है।यह पूरी तरह से जंगलों से घिरा हुआ इलाका है। यहां पर पहाड़ पर उकेरी गई प्रतिमाएं हैं। यहां पर जाने का माध्यम सिर्फ नाव है।

चकमा, बांग्लादेश के चट्टगाम पहाड़ी क्षेत्र का सबसे बड़ा समुदाय है। आनुवंशिक रूप से चकमा लोगों का बर्मा तथा तिब्बत की मूल जातियों से सम्बन्ध है। चकमा लिपि, ब्राम्ही लिपि से व्युत्पन्न एक लिपि है। इसे चकमा भाषा में अझापात कहा जाता है। यहां पर यह बात भी महत्वपूर्ण है कि इथियोपिया लिपि पर भी ब्राम्ही लिपि का स्पष्ट प्रभाव है।

agartala religion gods
Gods_of_Unakoti, Agartala

बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है और पूरे विश्व में 54 करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयाई हैं। पाली भाषा में सिंहल द्वीप में लिखा गया ऐतिहासिक महाकाव्य, महावंश बौद्ध धर्म के विस्तार की जानकारी देता है। ईसा पूर्व पांचवीं से चौथी शताब्दी ईस्वी तक, लगभग 850 वर्षों का इसमें लेखा जोखा है। इसके प्रारम्भिक रचना कार स्थविर महानाम थे। श्री लंका से भारत की दूरी मात्र 31 किलोमीटर है।

त्रिपुरा राज्य में अगरतला- अखौरा चौकी है। यह बांग्लादेश के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र है। अगरतला शहर से 6 किलोमीटर दूर यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा अमृतसर की प्रसिद्ध बाघा सीमा के समान है। वर्ष 2013 में इसका उद्घाटन किया गया था। अगरतला से 102 किलोमीटर दूर धलाई जिले में लांगथिराई मंदिर है।

त्रिपुरा में अशोका अष्टमी और बुद्ध पूर्णिमा बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। अगरतला हवाई अड्डे से 125 किलोमीटर दूर मनुबकुल बुद्ध मंदिर है। माना जाता है कि यहां पर स्थापित मूर्ति को अराकन से लाया गया था। अगरतला से 55 किलोमीटर दूर भुवनेश्वरी मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक स्तूप है। प्राचीन काल में त्रिपुरा को किरात कहा जाता था।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी




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5 thoughts on “करुणामय है त्रिपुरा राज्य का वेणुवन विहार !!”

  1. पिंगबैक: श्री स्वामी प्रसाद मौर्य : कृतज्ञता की मुक्तामाला - The Mahamaya
  2. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    अगस्त 23, 2020 को 6:08 अपराह्न पर

    सुगठित और ज्ञानात्मक लेख के लिए आपका आभार।

    प्रतिक्रिया
    1. डॉ. राज बहादुर मौर्य कहते हैं:
      अगस्त 23, 2020 को 7:29 अपराह्न पर

      धन्यवाद आपको डॉ साहब

      प्रतिक्रिया
  3. Ajay कहते हैं:
    अगस्त 22, 2020 को 7:02 अपराह्न पर

    Very knowledgeable post

    प्रतिक्रिया
    1. डॉ. राज बहादुर मौर्य कहते हैं:
      अगस्त 23, 2020 को 10:19 पूर्वाह्न पर

      Thank you very much

      प्रतिक्रिया

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