Skip to content
Menu
The Mahamaya
  • Home
  • Articles
  • Tribes In India
  • Buddhist Caves
  • Book Reviews
  • Memories
  • All Posts
  • Hon. Swami Prasad Mourya
  • Gallery
  • About
The Mahamaya
laos buddhist

बौद्ध संस्कृति और युद्ध के ज़ख्मों के साथ आगे बढ़ने की जद्दोजहद में- लाओस (भाग-२)

Posted on दिसम्बर 4, 2020दिसम्बर 5, 2020

युद्ध की समाप्ति के बाद लाओस ने जिस कठिन परिश्रम और प्रतिबद्धता के साथ देश का पुनर्निर्माण किया है वह उनकी जीवटता तथा अदम्य साहस का प्रमाण है। यहां वामपंथी सरकार का स्वरूप एकात्मक है। पाथेट लाओ लाओस के प्रसिद्ध वामपंथी नेता थे। यहां पर हाथी सम्मानित है। लाओस में प्रत्येक वर्ष हाथियों का विशेष त्योहार होता है। स्थानीय लोग हाथियों से खेतों की जुताई करते हैं तथा भारी परिवहन का भी कार्य करते हैं।

देश की मुख्य नदी मेकांग है जो थाईलैण्ड के साथ पश्चिमी सीमा का एक बड़ा हिस्सा बनाती है। यह देश अफीम पोस्ता उगाने वाले चार क्षेत्रों में से एक है जिसे ‘स्वर्ण त्रिकोण, कहा जाता है। लाओस की मुद्रा ‘कीप, है।

लाओस का सबसे महत्वपूर्ण स्मारक ‘फा कि लुआंग, स्तूप है। इसे आधिकारिक तौर पर ‘ चेदि लोक जुलमनी, नाम दिया गया है जिसका अनुवाद ‘विश्व कीमती पवित्र स्तूप, है। मान्यता है कि भारत से सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जो बौद्ध भिक्षु विदेशों में भेजे गए थे उन्हीं में से एक बौद्ध भिक्षु ने इस स्तूप का निर्माण कराया। इसमें बुद्ध का पवित्र शरीरांश है। इस स्तूप को यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की तम्बू सूची में रखा गया है। इस स्मारक में खुली संरचना की एक छत है जिसमें बुद्ध देव की छवि है। इस पर सीढियां नागा सांपों द्वारा संरक्षित हैं।इस स्तूप की ऊंचाई १४७.६ फ़ीट है।

लुआंग स्वर्ण स्तूप के आसपास कई अन्य बौद्ध संरचनाएं हैं। यहीं पास में ही वाट दैट लुआंग नेउवा में लाओस बौद्ध धर्म के सर्वोच्च संरक्षक रहते हैं। यहां पर १२ वें चन्द्र महीने की पूर्णिमा के दिन त्योहार आयोजित किया जाता है। स्वर्ण स्तूप का सम्मान करने और सैकड़ों भिक्षुओं को सम्मान देने के लिए हजारों लोग तीन दिनों के लिए यहां पर आते हैं। अगरबत्तियां जलाकर, हाथ में लेकर पवित्र स्तूप की परिक्रमा करते हैं। बुद्ध देव को नमन करते हैं।

लाओस में मैकांग नदी के किनारे स्थापित ‘शियोंग खुआन बुद्ध पार्क, भी दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। ‘वाट सी साकेत, एक पुराना बौद्ध मठ है जहां पर विभिन्न मुद्राओं में बुद्ध देव के १० हजार से अधिक चित्र हैं। ‘हव फरा केव, एक शाही मंदिर है जिसने पन्ना बुद्ध की छवि को बनाए रखा है। इसे अब एक संग्रहालय में बदल दिया गया है।

इसका निर्माण सन् १५६५ में राजा सेठी थिरथ के द्वारा कराया गया था। यहां पर पन्ना बुद्ध के लिए सोने का सिंहासन, खुदी हुई पत्थरों की स्टेल, लकड़ी की नक्काशी और सूखे ताड़ के पत्तों पर लिखी गई प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियां भी सुरक्षित हैं। लाओस में बांस की ७ खपच्चियों से मिलकर बना ‘खेनेश, नामक संगीत वाद्य यंत्र बहुत लोकप्रिय है।

लाओस त्योहारों की भूमि है। लाओ संस्कृति में एक गांव में एक वर्ष के दौरान कम से कम १२ उत्सव होने चाहिए। इनमें से एक राकेट फैस्टिवल है जिसे ‘बन बंगफई, भी कहा जाता है। यह जून में सालाना आयोजित किया जाता है जिसका उद्देश्य बारिश को बुलाना है। इस त्योहार में लोग बौद्ध भिक्षुओं को भोजन देते हैं और उनका प्रवचन सुनते हैं।



इसी प्रकार ‘बाउ पाई मार्क, (लाओ नया साल) बौद्ध कैलेण्डर के अनुसार मनाया जाता है। एक दूसरे के ऊपर पानी फेंकना इस त्योहार का मुख्य आकर्षण है। चन्द्र कैलेंडर में ११ वें महीने की पूर्णिमा के दिन लाओस में रोशनी का त्योहार ‘ अवाक फांस, मनाया जाता है। यह बौद्ध परम्पराओं और सांस्कृतिक गतिविधियों की एक महान विविधता को प्रदर्शित करता है।

जिस प्रकार भारत में बौद्ध भिक्षु वर्षा वास मनाते हैं उसी प्रकार लाओस में भी बौद्ध लेंट वार्षिक मनाते हैं। इसे ‘खाओ फांसा’ के नाम से जाना जाता है। यह भिक्षुओं के चिंतन और मनन करने का समय होता है। यहां पर ताक बाट की रश्म, थेरवाद परम्परा की एक और गतिविधि है। इसमें हर सुबह भिक्षु नंगे पैरों के साथ लम्बी कतार में खड़े हो जाते हैं तथा चुपचाप सड़कों पर घूमते हुए लोगों से भिक्षा मांगते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं।

बाद में यह भोजन गरीबों में, भिक्षुओं में तथा मंदिर के पालतू जानवरों में बांट दिया जाता है। यह एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान है। इस समारोह में पूरी तरह से विनय का आचरण किया जाता है। भोजन देते समय भिक्षुओं को न तो छूने की इजाजत होती है और न ही उनसे नज़रें मिलाने की। लाओस में अगस्त शाकाहारी महीना होता है।

यद्यपि लाओस एक छोटा देश है परन्तु उसका आधारभूत ढांचा सुदृढ़ है। वहां की साफ-सफाई, साज सज्जा और आधुनिकीकरण हमें कुछ सीख देता है। लाओस की अर्थव्यवस्था सात फीसदी की दर से बढ़ रही है जबकि उसकी मुद्रा भारतीय रुपए से १३५ गुना सस्ती है। लाओस के शानदार मंदिर, केसरिया परिधान पहनने बौद्ध भिक्षु, कड़े चावल के खेत, अत्यंत मैत्री पूर्ण लोग बरबस दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, अध्ययन रत एम.बी.बी.एस. झांसी, उ.प्र.(भारत)

5/5 (4)

Love the Post!

Share this Post

4 thoughts on “बौद्ध संस्कृति और युद्ध के ज़ख्मों के साथ आगे बढ़ने की जद्दोजहद में- लाओस (भाग-२)”

  1. अजय कहते हैं:
    दिसम्बर 8, 2020 को 11:20 पूर्वाह्न पर

    गागर में सागर भर दिया अपने,

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 9, 2020 को 2:12 अपराह्न पर

      धन्यवाद आपको,अजय जी

      प्रतिक्रिया
  2. अनाम कहते हैं:
    दिसम्बर 5, 2020 को 11:11 पूर्वाह्न पर

    डॉ साहब को बहुत बहुत साधुवाद

    प्रतिक्रिया
    1. डॉ राज बहादुर मौर्य, झांसी कहते हैं:
      दिसम्बर 5, 2020 को 4:26 अपराह्न पर

      धन्यवाद आपको

      प्रतिक्रिया

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

About This Blog

This blog is dedicated to People of Deprived Section of the Indian Society, motto is to introduce them to the world through this blog.

Latest Comments

  • Tommypycle पर असोका द ग्रेट : विजन और विरासत
  • Prateek Srivastava पर प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा : विद्वता, साहस और ममत्व का अनुपम संगम
  • Mala Srivastava पर प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा : विद्वता, साहस और ममत्व का अनुपम संगम
  • Shyam Srivastava पर प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा : विद्वता, साहस और ममत्व का अनुपम संगम
  • Neha sen पर प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति वर्मा : विद्वता, साहस और ममत्व का अनुपम संगम

Posts

  • अप्रैल 2025 (1)
  • मार्च 2025 (1)
  • फ़रवरी 2025 (1)
  • जनवरी 2025 (4)
  • दिसम्बर 2024 (1)
  • नवम्बर 2024 (1)
  • अक्टूबर 2024 (1)
  • सितम्बर 2024 (1)
  • अगस्त 2024 (2)
  • जून 2024 (1)
  • जनवरी 2024 (1)
  • नवम्बर 2023 (3)
  • अगस्त 2023 (2)
  • जुलाई 2023 (4)
  • अप्रैल 2023 (2)
  • मार्च 2023 (2)
  • फ़रवरी 2023 (2)
  • जनवरी 2023 (1)
  • दिसम्बर 2022 (1)
  • नवम्बर 2022 (4)
  • अक्टूबर 2022 (3)
  • सितम्बर 2022 (2)
  • अगस्त 2022 (2)
  • जुलाई 2022 (2)
  • जून 2022 (3)
  • मई 2022 (3)
  • अप्रैल 2022 (2)
  • मार्च 2022 (3)
  • फ़रवरी 2022 (5)
  • जनवरी 2022 (6)
  • दिसम्बर 2021 (3)
  • नवम्बर 2021 (2)
  • अक्टूबर 2021 (5)
  • सितम्बर 2021 (2)
  • अगस्त 2021 (4)
  • जुलाई 2021 (5)
  • जून 2021 (4)
  • मई 2021 (7)
  • फ़रवरी 2021 (5)
  • जनवरी 2021 (2)
  • दिसम्बर 2020 (10)
  • नवम्बर 2020 (8)
  • सितम्बर 2020 (2)
  • अगस्त 2020 (7)
  • जुलाई 2020 (12)
  • जून 2020 (13)
  • मई 2020 (17)
  • अप्रैल 2020 (24)
  • मार्च 2020 (14)
  • फ़रवरी 2020 (7)
  • जनवरी 2020 (14)
  • दिसम्बर 2019 (13)
  • अक्टूबर 2019 (1)
  • सितम्बर 2019 (1)

Contact Us

Privacy Policy

Terms & Conditions

Disclaimer

Sitemap

Categories

  • Articles (105)
  • Book Review (60)
  • Buddhist Caves (19)
  • Hon. Swami Prasad Mourya (23)
  • Memories (13)
  • travel (1)
  • Tribes In India (40)

Loved by People

“

030028
Total Users : 30028
Powered By WPS Visitor Counter
“

©2025 The Mahamaya | WordPress Theme by Superbthemes.com