Skip to content
Menu
The Mahamaya
  • Home
  • Articles
  • Tribes In India
  • Buddhist Caves
  • Book Reviews
  • Memories
  • All Posts
  • Hon. Swami Prasad Mourya
  • Gallery
  • About
  • hi हिन्दी
    en Englishhi हिन्दी
The Mahamaya
Facts of political science hindi

राजनीति विज्ञान : महत्वपूर्ण तथ्य (भाग – 11)

Posted on फ़रवरी 24, 2022अगस्त 21, 2022
Advertisement

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज झांसी, (उत्तर- प्रदेश) फोटो गैलरी एवं प्रकाशन प्रभारी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी (उत्तर- प्रदेश) भारत।email : drrajbahadurmourya @ gmail.com, website : themahamaya.com

1– जे. डब्ल्यू गार्नर ने वर्ष 1910 में प्रकाशित अपनी विख्यात कृति, ‘ इंट्रोडक्शन टू पॉलिटिकल साइंस’ में लिखा कि, ‘‘ प्रभुसत्ता राज्य की ऐसी विशेषता है जिसके कारण वह कानून की दृष्टि से केवल अपनी इच्छा से बंधा रहता है- अन्य किसी की इच्छा से नहीं।कोई अन्य शक्ति उसकी अपनी शक्ति को सीमित नहीं कर सकती।’’ राज्य की सर्वोच्च कानूनी सत्ता के विचार को प्रभुसत्ता की संकल्पना के आधार पर ही स्थापित किया जा सकता है।

2- ज्यां बोदां (1530-1596) ने वर्ष 1576 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘द रिपब्लिका’ में राज्य को ‘ परिवारों और उनकी मिली- जुली सम्पदा का ऐसा संगठन’ बताया, जहां एक सर्वोच्च शक्ति और विवेक का शासन चलता है। उसने सम्प्रभुता को परिभाषित करते हुए कहा, ‘‘ यह नागरिकों और प्रजाजनों के ऊपर ऐसी सर्वोच्च शक्ति का संकेत देती है जो कानून के बंधनों से नहीं बंधी रहती है।’’

3– ह्यूगो ग्रोश्यस (1583-1645) के अनुसार, ‘‘प्रभुसत्ता सर्वोच्च राजनीतिक शक्ति है। यह उस व्यक्ति में निहित है जिसके कार्यों पर किसी दूसरे का नियंत्रण नहीं रहता और जिसकी इच्छा का उल्लंघन कोई नहीं कर सकता।’’ जहां कानून की दृष्टि से राज्य की सत्ता अनन्य, सर्वोच्च और असीम होती है वहां पर प्रभुसत्ता का एकलवादी सिद्धांत जन्म लेता है।

4– जॉन ऑस्टिन (1710-1859) के अनुसार, ‘‘ यदि कोई निश्चित मानवीय सत्ता अपनी जैसी किसी अन्य सत्ता की आज्ञा मानने में अभ्यस्त न हो, बल्कि प्रस्तुत समाज के सर्वसाधारण उसकी आज्ञा मानने में अभ्यस्त हों तो इस निश्चित मानवीय सत्ता को उस समाज में ‘प्रभु सत्ताधारी’ कहेंगे और उस समाज को राजनीतिक और (इस सत्ता समेत) स्वाधीन समाज कहा जाएगा।’’ इस सिद्धांत के अनुसार प्रभुसत्ता राज्य का बुनियादी और अनिवार्य लक्षण है। इसलिए उसे राज्य की अनन्य निष्ठा प्राप्त होनी चाहिए।

5- पूर्णता, सार्वभौमिकता, अदेयता, स्थायित्व और अविभाज्यता, प्रभुसत्ता के लक्षण हैं। जबकि प्रभुसत्ता के रूपों में- विधि अनुसार और तथ्य अनुसार प्रभुसत्ता, राजनीतिक और लोकप्रिय प्रभुसत्ता प्रमुख हैं। प्राचीन रोमन विचारक मार्कस तुलियस सिसरो (106-43 ईसा पूर्व) ने प्राकृतिक कानून और मानवीय समानता के स्टोइक दर्शन से प्रभावित होकर यह मान्यता रखी थी कि राजनीतिक सत्ता का मूल स्रोत अंततोगत्वा सम्पूर्ण राज्य की जनता में ढूंढा जा सकता है।

6- इतालवी दार्शनिक मार्सीलियो ऑफ पादुआ (1275-1343) ने अपनी पुस्तक ‘ डिफेंसर पेसिस’ (1324) के अंतर्गत पोप की सत्ता पर प्रबल प्रहार किया। उसने लिखा कि, ‘ पुरोहित वर्ग की शक्ति विविध संस्कार सम्पन्न करने और दिव्य क़ानून की शिक्षा देने तक सीमित होनी चाहिए। परन्तु उनके इन कार्यों का विनियमन और नियंत्रण सर्वसाधारण और उसकी निर्वाचित सरकार के हाथों में रहना चाहिए।’’

7– जर्मन न्यायविद जोहानेस आल्थ्यूजियस (1557-1638) ने कहा कि, ‘ प्रभुसत्ता ऐसा करने की सर्वोच्च और सर्वोपरि शक्ति है जो राज्य के सदस्यों के भौतिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए आवश्यक है।’ आल्थ्यूजियस के विचार से राज्य की उत्पत्ति अनुबंध या सहमति से होती है। अतः राज्य के सदस्यों के कल्याण के लिए प्रभुसत्ता का प्रयोग अनिवार्य है।

8- लोकप्रिय प्रभुसत्ता के विचार की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति फ्रांसीसी दार्शनिक ज्यां जाक रूसो (1712-1778) के चिंतन से मिलती है और यही संकल्पना रूसो के राजनीति- दर्शन का सार तत्व है।उसके अनुसार प्रभुसत्ता का सही- सही आधार सामान्य इच्छा है।इसका ध्येय जन कल्याण है। लोकप्रिय प्रभुसत्ता का सिद्धांत उचित और अनुचित का निर्णय करने के लिए किसी दिव्य क़ानून का सहारा नहीं लेता बल्कि लोक शक्ति के विवेक को अपना आधार बनाता है।

9- राज्य के बहुलवादी सिद्धांत के पैरोकारों ने सम्प्रभुता के परम्परागत दृष्टिकोण की आलोचना की है। ए. डी. लिंडसे ने लिखा है कि, ‘‘ यदि हम वस्तुस्थिति को देखें तो यह सर्वथा स्पष्ट हो जाएगा कि प्रभु सत्ता सम्पन्न राज्य का सिद्धांत धराशाई हो चुका है।’’ ह्यूगो क्रैब ने कहा है कि, ‘‘प्रभुसत्ता की संकल्पना को राजनीति सिद्धांत के विचार क्षेत्र से निकाल देना चाहिए।’’

10- ब्रिटिश दार्शनिक अर्नेस्ट बार्कर ने कहा है कि, ‘‘ प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य की मान्यता जितनी निर्जीव और निरर्थक हो गई है, उतनी और कोई राजनीतिक संकल्पना न हुई होगी।’’ बार्कर ने जर्मन न्याय विद ओटो गियर्क (1841-1913) और अंग्रेज लेखक एफ. डब्ल्यू. मेटलैंड (1850-1906) के विचारों से सहमत होते हुए लिखा कि समूहों को अस्तित्व में लाने का श्रेय राज्य को नहीं है बल्कि वह तो राज्य की उत्पत्ति से पहले विद्यमान होते हैं।

Advertisement


11- अंग्रेज दार्शनिक हेरल्ड जे. लास्की (1893-1950) ने अपनी कृतियों- ‘अथॉरिटी इन द मॉडर्न स्टेट’ (1919), ‘द फाउंडेशन ऑफ सॉवरेंटी’ (1922), ‘ए ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स’ (1925), ‘एन इंट्रोडक्शन टू द पॉलिटिक्स’ (1931) तथा ‘द स्टेट इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस’ (1935) के अंतर्गत प्रभुसत्ता के बहुलवादी सिद्धांत को बढ़ावा दिया है।उनके अनुसार रीति-रिवाज और मानवता के प्रति दायित्व प्रभुसत्ता के विचार को सीमित करते हैं। यह संघीय व्यवस्था के भी विरूद्ध है।

12– अमेरिकी समाज वैज्ञानिक आर. एम. मैकाइवर (1882-1970) ने अपनी दो प्रसिद्ध कृतियों- ‘ द मॉडर्न स्टेट’ (1926) और ‘ द वैब ऑफ गवर्नमेंट’ (1957) के अंतर्गत समाज वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रभुसत्ता के सिद्धांत का खंडन किया है। उसने तर्क दिया है कि प्रभुसत्ता कोई असीम शक्ति नहीं हो सकती है। बहुत से बहुत इसे राज्य का एक कृत्य मान सकते हैं। उन्होंने कहा कि, राज्य किसी निश्चित इच्छा की अभिव्यक्ति नहीं है। यह रीति-रिवाज का रक्षक है। यह कानून का सृजन नहीं करता बल्कि उसकी घोषणा करता है।किसी व्यापारिक निगम की तरह राज्य के भी अपने अधिकार और दायित्व होते हैं।

13– आर. एम. मैकाइवर और सी. एच. पेज ने अपनी पुस्तक, ‘सोसायटी : इन इंट्रोडक्टरी एनालिसिस’ (1950) के अंतर्गत लिखा है कि, ‘‘ राज्य को अन्य सभी साहचर्यों से इस आधार पर अलग पहचाना जा सकता है कि केवल इसी में बल प्रयोग की अंतिम शक्ति निहित है।’’

14– हेरल्ड जे. लास्की ने अपनी पुस्तक, ‘एन इंट्रोडक्शन टू पॉलिटिक्स’ (1931) में लिखा है कि, ‘‘ अन्य सभी साहचर्यों का चरित्र तो स्वैच्छिक होता है और वे व्यक्ति को केवल तभी बांध पाते हैं जब वह अपनी पसंद से उनका सदस्य बनता है। परन्तु किसी राज्य में रहने वाले व्यक्ति के लिए उसके आदेशों का पालन कानूनी रूप से अनिवार्य हो जाता है। अतः आधुनिक राज्य तो समाज रूपी अट्टालिका का शिखर है।’’

15– फ्रेडरिक एम. वाटकिंस ने ‘ इंटरनेशनल एंसाइक्लोपीडिया ऑफ द सोशल साइंसेज’ में राज्य की परिभाषा मानव समाज के उस हिस्से के रूप में दी है जो भौगोलिक सीमाओं से घिरा रहता है। इसके सभी सदस्य किसी एक प्रभुसत्ताधारी की आज्ञाओं का पालन करते हैं, अतः वे सब एकता के सूत्र में बंधे रहते हैं।’’

16– सर्वाधिकार वाद, ऐसी शासन प्रणाली है जो व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन पर सर्वोच्च सत्ता का दावा करती है। अतः वह केवल उसके राजनीतिक जीवन को विनियमित नहीं करती बल्कि उसके सामाजिक और निजी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को भी नियंत्रित और निर्देशित करती है।कार्ल जे. फ्रेडरिक ने अपनी महत्वपूर्ण सम्पादित पुस्तक ‘ टोटेलीटेरियानिज्म इन पर्सपेक्टिव : थ्री व्यूज’ (1969) के अंतर्गत सर्वाधिकारवाद के 6 लक्षणों का विवरण दिया है।

17– सर्वाधिकार वादी – 1- एक आधिकारिक विचारधारा को मानते हैं, 2- सारी शक्ति एक ही राजनीतिक दल के हाथों में रहती है।3- सत्तारूढ़ दल सभी संगठनों तथा अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण रखता है।4- जन सम्पर्क के साधनों पर भी उसी का नियंत्रण होता है।5- अस्त्र-शस्त्र पर भी उसी का नियंत्रण होता है।6- गुप्त पुलिस का जाल फैला रहता है।

18– दक्षिण अफ्रीका के विधानमंडल को संसद कहा जाता है। इसके दो सदन हैं- निचले सदन को नेशनल असेंबली और ऊपरले सदन को सीनेट कहा जाता है। नेशनल असेंबली में 400 सदस्य होते हैं और सीनेट में 90 सदस्य होते हैं। नेशनल असेंबली के सभी सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली से किया जाता है जबकि सीनेट के सदस्य अप्रत्यक्ष निर्वाचन की पद्धति से चुने जाते हैं। राष्ट्रपति का चुनाव नेशनल असेंबली के द्वारा किया जाता है।

19– आनुपातिक प्रतिनिधित्व, ऐसी मतदान प्रणाली है जो जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, संस्कृति, इत्यादि के आधार पर बंटे समाज में अल्पमत को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने के ध्येय से अपनाई जाती है। यह एक जटिल प्रणाली है जिसमें साधारणतया बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र बनाए जाते हैं। मतदाताओं को विभिन्न उम्मीदवारों या दलों के प्रति अपना वरीयता क्रम दर्ज करना होता है। चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार या दल को निश्चित संख्या में वरीयताएं प्राप्त करनी होती हैं।

Related -  राजनीति / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 15)

20– दक्षिण अफ्रीका की शासन प्रणाली का राजनीतिक ढांचा एकात्मक है। यहां पर 9 अंचल या प्रांत हैं- पश्चिमी केप, पूर्वी केप, क्वाजुलू नैटल, उत्तरी केप, फ्री स्टेट, उत्तर- पश्चिम, गौतेंग, पूर्वी ट्रांसवाल और उत्तरी ट्रांसवाल। प्रत्येक अंचल का अपना विधानमंडल है। जिसमें वहाँ की जनसंख्या के आधार पर 30 से 80 तक सदस्य होते हैं।जिन दलों को विधानमंडल में 10 प्रतिशत से अधिक स्थान प्राप्त होते हैं उन्हें मंत्रिमंडल में संख्या के अनुपात में विभाग प्राप्त करने का अधिकार है।

Advertisement


21– दक्षिण अफ्रीका की प्रशासनिक राजधानी प्रिटोरिया में है। न्यायपालिका का मुख्य स्थल ब्लोएम फोंटाइन में है और विधानमंडल अर्थात् नेशनल असेंबली केपटाउन में स्थापित की गई है। इस देश का क्षेत्रफल 12 लाख, 22 हजार वर्ग किलोमीटर के ऊपर है। यहां की जनसंख्या में 75 प्रतिशत अश्वेत अफ्रीकी, 13 फीसदी श्वेत यूरोपीय, 9 प्रतिशत गैर श्वेत और 3 प्रतिशत एशियाई हैं। लगभग 1 लाख से अधिक यहूदी भी यहां पर निवास करते हैं।

22- किसी कृत्य, नीति, निर्णय या विकल्प से प्राप्त होने वाले सुख की कुल मात्रा को उपयोगिता कहा जाता है। मानवीय गतिविधियों को उपयोगिता के आधार पर जांचने के सिद्धांत को उपयोगितावाद कहते हैं। बेन्थम ने अपनी विख्यात कृति, ‘ एन इंट्रोडक्शन टू द प्रिंसिपल्स ऑफ मॉरल्स एंड लेजिस्लेशन’ (1789) में लिखा है कि, ‘‘ जब सम्पूर्ण समाज के लिए किसी नीति का निर्माण करना हो या किसी निर्णय पर पहुंचना हो तो उसका सर्वोपरि सिद्धांत अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख होना चाहिए।

23– सुखवाद से जुड़ी हुई मान्यताओं का समर्थन करते हुए बेन्थम ने लिखा है कि प्रकृति ने मनुष्य को दो शक्तिशाली स्वामियों के नियंत्रण में रखा है जिनके नाम हैं सुख और दुःख। बेन्थम ने कहा कि सुख और दुःख कोई काल्पनिक मानदंड नहीं हैं बल्कि यह बाकायदा नाप तौल के विषय हैं। बेन्थम के शब्दों में, ‘‘ यदि कंचे खेलने और कविता पढ़ने से प्राप्त होने वाले सुख की मात्रा समान हो तो इन दोनों में कोई अंतर नहीं है।’’

24– बेन्थम ने सुखवादी गणना के सात मापदंड बताए हैं- तीव्रता, स्थायित्व, निश्चितता, निकटता, उर्वरता, शुद्धता और विस्तार।जे. एस. मिल ने अपनी चर्चित पुस्तक, ‘ युटिलीटेरियानिज्म’ (1861) में बेन्थम के उपयोगितावाद में परिवर्तन करते हुए सुख के परिमाण के साथ साथ उसकी गुणवत्ता को भी बराबर महत्व दिया।मिल के शब्दों में, ‘‘ एक संतुष्ट सुअर की तुलना में असंतुष्ट मनुष्य होना कहीं अच्छा है। एक संतुष्ट मूर्ख की तुलना में असंतुष्ट सुकरात होना कहीं अच्छा है।’’

25– हेनरी सिजविक ((1838-1900) ने अपनी महत्वपूर्ण कृति, ‘द मैथड्स ऑफ एथिक्स’ (1874) के अंतर्गत तर्क दिया कि सुख की अधिकतम वृद्धि के साथ साथ सुख का वितरण पक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जी. ई. मूर (1873-1958) ने अपनी पुस्तक, ‘ प्रिंसिपिया एथिका ’(1903) के अंतर्गत यह तर्क दिया कि सुख किसी वस्तु का मूल्य अवश्य बढ़ा देता है परन्तु इसके अलावा स्नेह, सौन्दर्य और ज्ञान ऐसे तत्व हैं जो किसी वस्तु की मूल्यवत्ता को और भी बढ़ा देते हैं। कार्ल पापर ने सुख की अधिकतम वृद्धि के लक्ष्य को अव्यावहारिक मानते हुए कष्ट के अधिकतम निवारण की बात उठाई।

26- वर्ष 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर के पतन के बाद 1945 से 1959 तक जर्मनी पर मित्र राष्ट्रों का कब्जा रहा है। 1959 में जर्मनी को दो हिस्सों- पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी में बांट दिया गया।पूर्वी जर्मनी पर सोवियत रूस का कब्ज़ा था और पश्चिमी जर्मनी अमेरिका और फ्रांस के अधिकार में रहा। 1990 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हुआ तथा बर्लिन की दीवार गिरा दी गई।तब से जर्मनी को संवैधानिक रूप से जर्मन संघीय गणराज्य कहा जाता है।

27– आज जर्मनी संघीय व्यवस्था के साथ संसदीय शासन प्रणाली का देश है। लगभग 3 लाख, 57 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए इस देश की आबादी लगभग 9 करोड़ है। यहां की साक्षरता दर 99 प्रतिशत है। लगभग 90 फीसदी जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है। यहां के राज्याध्यक्ष को संघीय राष्ट्रपति तथा शासनाध्यक्ष को चांसलर कहा जाता है।जर्मनी में 19 राज्य हैं तथा प्रत्येक राज्य का अपना अलग संविधान है।केवल बावेरिया राज्य को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में विधानसभा एक सदनीय है।

28- जर्मनी में केन्द्रीय स्तर पर दो सदनीय विधानमंडल है। इसके निम्न सदन को बुंदेश्टाग ( संघीय सभा) और उच्च सदन को बुंदेस्रात ( संघीय परिषद) कहा जाता है। संघीय सभा में कम से कम 656 सदस्य होते हैं जबकि संघीय परिषद में 69 सदस्य होते हैं। निम्न सदन के सदस्य सार्वजनीन वयस्क मताधिकार के आधार पर 4 वर्ष के लिए चुने जाते हैं जबकि उच्च सदन के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन से किया जाता है। निम्न सदन के सदस्यों के चुनाव में दो वोट मतदान पद्धति अपनाई जाती है।

29– दो वोट मतदान पद्धति जर्मन संघीय गणराज्य में केन्द्रीय विधायिका के निम्न सदन के सदस्यों की निर्वाचन प्रक्रिया है। इसमें प्रत्येक मतदाता के दो वोट होते हैं पहला वोट मतदाता के जनपद का प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवार को दिया जाता है।बुंदेश्टाग के आधे स्थान इस वोट के परिणाम के आधार पर भरे जाते हैं। दूसरा वोट मतदाता की पसंद के दल के लिए होता है।सदन के शेष आधे स्थान इस ढंग से वितरित किए जाते हैं कि प्रत्येक दल के हिस्से में आने वाले स्थान मतदाताओं के दूसरे वोट में व्यक्त की गई पसंद के तुल्य हों।

30– वर्ष 1954 में जनवादी चीन गणराज्य में पहली बार समाजवादी संविधान लागू किया गया। कालान्तर में वहां पर 1975, वर्ष 1978 और फिर 1982 में नए संविधान लागू किया गया। वर्ष 1949 से 1954 में चीन में कोई स्थाई संविधान नहीं था। 1954 के संविधान में अर्थव्यवस्था के समाजीकरण, जनवादी लोकतंत्र और जनवादी अधिनायक तंत्र की विशेष रूप से चर्चा की गई। वर्ष 1965 से 1969 तक की अवधि में चीन में भारी राजनीतिक उथल-पुथल रही, जिसे सांस्कृतिक क्रांति की संज्ञा दी जाती है।

Advertisement


31- चीन की सांस्कृतिक क्रांति के पीछे यह मान्यता निहित थी कि नई नई समाजवादी व्यवस्था के अंतर्गत जनसाधारण के मन में बुर्जुआ संस्कारों और सांस्कृतिक परम्पराओं की जड़ें गहरी जमी होती हैं। अतः साम्यवादी कार्यकर्ताओं को किसानों, मजदूरों और जनसाधारण के बीच में जाकर काम करना चाहिए, उनसे कर्तव्य निष्ठा की शिक्षा लेनी चाहिए और उनके मन में समाजवाद के प्रति आस्था जगानी चाहिए।

32– चीन का वर्तमान संविधान वर्ष 1982 में अपनाया गया। इसमें 138 अनुच्छेद हैं। यह संविधान सार्वजनिक नीति की नई पूर्वताओं पर आधारित है। इसमें आधुनिकीकरण पर विशेष बल दिया गया है। संविधान के अंतर्गत लोकतंत्रीय केन्द्र वाद में प्रबल आस्था व्यक्त की गई है। संविधान को राज्य का बुनियादी कानून घोषित किया गया है। यह संविधान सर्वहारा के अधिनायक तंत्र पर बल देता है।

33– चीन में एकात्मक शासन व्यवस्था है। 95 लाख, 71 हजार, 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए इस विशाल देश की आबादी लगभग लगभग 140 करोड़ है।रूस और कनाडा के बाद यह विश्व का सबसे बड़ा देश है। प्रशासन की सुविधा के लिए इस देश को 22 प्रांतों, 5 स्वायत्त अंचलों और 3 केन्द्र शासित नगर पालिकाओं में विभाजित किया गया है। स्वायत्त अंचल वह हैं जहां पर गैर चीनियों की आबादी ज्यादा है।

34– चीन की केन्द्रीय विधायिका को राष्ट्रीय जन कांग्रेस कहा जाता है। यह एक सदनीय है।इसकी सदस्य संख्या लगभग 3 हजार है।चीन के नागरिकों को संवैधानिक रूप से काम का अधिकार प्राप्त है। इसके अलावा विश्राम का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, बीमारी और बुढ़ापे में राज्य की ओर से आर्थिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार भी प्राप्त है। समाजवादी सिद्धांत के अनुरूप वहां पर उत्पादन के सभी प्रमुख साधनों पर राज्य का स्वामित्व है।

Related -  विज्ञान, कला और स्थापत्य का अद्भुत संगम - महानतम बोरोबुदुर विहार

35– संयुक्त राज्य अमेरिका के विधानमंडल को कांग्रेस कहा जाता है। कांग्रेस के दो सदन हैं- प्रतिनिधि सभा और सीनेट। प्रतिनिधि सभा सम्पूर्ण राष्ट्र के जनसाधारण का प्रतिनिधित्व करती है और सीनेट अलग- अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। प्रतिनिधि सभा को निम्न सदन और सीनेट को उच्च सदन कहा जाता है। प्रतिनिधि सभा में कुल 435 सदस्य होते हैं जिनका कार्यकाल 2 वर्ष का होता है। सीनेट में 100 सदस्य होते हैं और इनका कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।

36– अमेरिकी सीनेट को विश्व का सबसे शक्तिशाली द्वितीय सदन माना जाता है, क्योंकि वित्त विधेयकों के लिए सीनेट का अनुमोदन जरूरी होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका का उपराष्ट्रपति सीनेट का सभापति होता है। वह केवल निर्णायक मत का प्रयोग करता है।उप राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 वर्ष होता है। यह स्थायी सदन है।दो- दो वर्ष बाद सीनेट के एक तिहाई सदस्य सेवा निवृत्त हो जाते हैं।

37– एक प्रथा के अनुसार, यदि अमेरिकी राष्ट्रपति को ऐसे राज्य में कोई नियुक्ति करनी हो जहां का सीनेट सदस्य राष्ट्रपति के अपने राजनीतिक दल से हो तो राष्ट्रपति ऐसी नियुक्ति करने से पहले उस सीनेट सदस्य से परामर्श कर लेता है।यदि वह सदस्य प्रस्तावित नियुक्ति का अनुमोदन कर देता है तो सीनेट भी उस नियुक्ति की पुष्टि कर देती है। यदि वह सीनेट सदस्य इस पर आपत्ति करता है तो सीनेट भी उसकी पुष्टि नहीं करती। इस प्रथा को सीनेट सौजन्य की संज्ञा दी जाती है।

38– संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च न्यायालय, ‘निहित शक्तियों के सिद्धांत’ को मान्यता देता है। इसके अंतर्गत कांग्रेस तथा राष्ट्रपति ने कई ऐसी शक्तियां प्राप्त कर ली हैं जो स्वयं संविधान के अंतर्गत उन्हें व्यक्त रूप से नहीं सौंपी गई थीं।

39– आम तौर पर ग्रेट ब्रिटेन के नाम से जाना जाने वाला देश संवैधानिक रूप से युनाइटेड किंगडम के नाम से जाना जाता है।इसका क्षेत्रफल 2 लाख, 44 हजार, 100 वर्ग किलोमीटर है।इसकी वर्तमान जनसंख्या लगभग 6 करोड़ है। यहां पर शहरी जनसंख्या लगभग 90 प्रतिशत है और साक्षरता दर 99 फीसदी है। ब्रिटेन की शासन प्रणाली एकात्मक है। ब्रिटिश निवासी धीरे-धीरे और क्रमिक परिवर्तन में विश्वास करते हैं।

40- ब्रिटेन की विधायिका को संसद कहा जाता है। इसके दो सदन हैं- लार्ड सभा को कॉमन्स सभा। लार्ड सभा, उच्च सदन है और कॉमन्स सभा, निम्न सदन है। कॉमन्स सभा की वर्तमान सदस्य संख्या 659 है जबकि लार्ड सभा की वर्तमान सदस्य संख्या लगभग 1200 से अधिक होगी। कॉमन्स सभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष है। कॉमन्स सभा को ब्रिटिश संसद का पर्यायवाची समझा जाता है। विधि निर्माण की अंतिम शक्ति इसी सदन के पास है। ब्रिटिश संसद को संसद जननी के रूप में सराहा जाता है।

Advertisement


41- ब्रिटिश सरकार को ‘महारानी की सरकार’ या ‘महागरिमामयी की सरकार’ कहा जाता है। यहां के मंत्रियों को राजमुकुट के मंत्री कहा जाता है। यहां की सशस्त्र सेनाओं को ‘राजमुकुट की सशस्त्र सेनाएं’ कहा जाता है। यहां की नौसेना को शाही नौसेना कहा जाता है। ब्रिटिश सरकार के जहाज़ को ‘महागरिमामयी का जहाज़’ कहा जाता है।लेखन और प्रकाशन सामग्री के भंडार को ‘महागरिमामयी का लेखन सामग्री कार्यालय’ कहा जाता है।

42– इतिहास लेखन के अनाल स्कूल की धारा का सूत्रपात फ्रांस की इतिहासकार, त्रयी ल्यूसियॉं फेब्र, मार्क ब्लॉक तथा फर्नैंद ब्रॉदेल ने किया। यह अतीत को व्यापक और अधिक मानवीय दृष्टि से देखने का हिमायती रहा है।अनाल समूह की एक बुनियादी प्रस्थापना यह भी रही है कि ऐतिहासिक शोध के विषयों का निर्धारण विश्वविद्यालय की समितियों द्वारा नहीं बल्कि मौजूदा दौर की जरूरतों के हिसाब से तय होना चाहिए।

43– वर्ष 1990 में प्रकाशित पीटर बर्क की पुस्तक, द फ्रेंच हिस्टोरिकल रिवोल्यूशन : द अनाल स्कूल, 1929-1989 तथा वर्ष 1999 में प्रकाशित, एस क्लार्क की पुस्तक, द अनाल स्कूल : क्रिटिकल एसेसमेंट अनाल स्कूल पर प्रकाश डालते हैं। इस स्कूल के इतिहासकारों ने प्रयोगधर्मी रवैया अपनाते हुए इतिहास को प्राचीन, मध्ययुगीन और आधुनिक अवधियों में बांटने का विरोध किया।इन विचारकों ने समाजों को आदिम और सभ्य में विभाजित करके देखने की प्रवृत्ति भी खारिज की।

44– एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत में 461 जन जातीय समुदाय रहते हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार देश की कुल आबादी में उनका हिस्सा 8.2 प्रतिशत है।उत्तर- पूर्व के मिजोरम, नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में जनजातीय आबादी बहुसंख्यक है। अनुसूचित जनजातियों को आदिवासी भी कहा जाता है। 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत पहली बार प्रान्तीय विधायिकाओं में पिछड़ी हुई जनजातियों के लिए प्रतिनिधित्व का प्राविधान किया गया था।

45– भारत में वर्ष 1936 में जनजातियों की एक सूची जारी की गई जिसमें पंजाब और बंगाल को छोड़कर बाकी सभी प्रांतों के जनजातीय समुदाय दर्ज किए गए। 1950 में पुनः एक संशोधित सूची जारी की गई। 1956 में फिर कुछ नए समुदाय उपरोक्त सूची में शामिल किए गए। जिनमें अधिकतर राजस्थान और मध्य प्रदेश के थे। वर्ष 1977 में पुनः एक बार फिर कुछ नए जनजातीय समुदाय इसमें शामिल किए गए।

46– वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक भारत में अनुसूचित जातियों की आबादी देश की कुल आबादी का 16.23 प्रतिशत था। अस्वच्छ पेशों के साथ जन्मगत बंधनों में जकड़े और छुआछूत का शिकार रहे समुदायों को संविधान ने अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखा है।

47- अपनी पारम्परिक सामाजिक और शैक्षिक दुर्बलताओं के कारण विशेष प्रोत्साहन और आरक्षण के पात्र समझे जाने वाले समुदाय को भारतीय संविधान समग्र रूप से पिछड़े वर्ग की श्रेणी में रखता है। मंडल आयोग ने इनकी संख्या 52 प्रतिशत बताई थी। इनके कल्याण हेतु 1985 में भारत सरकार ने अलग से समाज कल्याण मंत्रालय का गठन किया था जिसे 1998 के बाद से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के नाम से जाना जाता है।

48- संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत सरकार ने वर्ष 1953 में पिछड़ी जातियों के अध्ययन के लिए काका कालेलकर के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया जिसकी रपट 1956 में गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने ज्ञापन के साथ संसद में रखी। इसमें 2 हजार, 399 समुदायों को पिछड़े वर्ग की श्रेणी में माना गया। इन्हीं में से 837 समुदायों को अति पिछड़ा करार दिया गया था। जबकि 1979 में मंडल आयोग ने 3743 समुदायों को पिछड़े वर्ग के लिए उपयुक्त माना था तथा इनके लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी।

49- दिनांक 11 अगस्त, 1982 को मंडल आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश की गई। परन्तु 7 अगस्त, 1990 को राष्ट्रीय मोर्चा की बी. पी. सिंह की सरकार ने इसे लागू करने का निर्णय लिया। 13 अगस्त को इसकी अधिसूचना जारी कर दी गई। दिनांक 1 अक्टूबर, 1990 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर स्थगन आदेश दे दिया। दिनांक 25 सितम्बर, 1991 को नई संशोधित अधिसूचना जारी की गई। इसके तहत अन्य पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के साथ-साथ 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई ऊँची जातियों को भी दिया गया। 16 नवम्बर, 1992 को सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़े वर्गों के 27 फीसदी आरक्षण पर अपनी मुहर लगा दी।

50- फ्रांसीसी समाजशास्त्री पियरे बोर्दियो ने 1979 में फ्रेंच में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘ डिस्टिंक्शन : ए सोशल क्रटीक ऑफ द जजमेंट ऑफ टेस्ट’ ने अभिरुचि सम्बन्धी समाजशास्त्रीय विमर्श को सर्वाधिक प्रभावित किया।जिमैल ने फैशन को आधुनिकता की एक अहम परिघटना की तरह पढ़ने की कोशिश की।थोस्टाइन वेबलन ने उपभोग और प्रदर्शन प्रियता का बेहतरीन अध्ययन किया है।

नोट : तथ्य नम्बर १ से २५ तक ‘ओम प्रकाश गाबा’ की पुस्तक ‘राजनीति विज्ञान विश्वकोष’ प्रकाशन- नेशनल पब्लिशिंग हाउस, २/३५, अंसारी रोड दरियागंज, नई दिल्ली तथा तथ्य नम्बर २६ से ४१ तक ओम प्रकाश गाबा की ही पुस्तक ‘तुलनात्मक राजनीति की रूपरेखा, चतुर्थ संस्करण-२००४, प्रकाशन- मयूर पेपर बैक्स, नोयडा, व तथ्य नम्बर ४२ से ५० तक ‘अभय कुमार दुबे’ द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘ समाज विज्ञान विश्वकोष’ खंड- एक, दूसरा संस्करण-२०१६, ISBN : 978-81-267-2849-7, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, से साभार लिए गए हैं।

5/5 (2)

Love the Post!

Share this Post

2 thoughts on “राजनीति विज्ञान : महत्वपूर्ण तथ्य (भाग – 11)”

  1. अनाम कहते हैं:
    फ़रवरी 25, 2022 को 4:49 पूर्वाह्न पर

    सर, आपके लेख प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत ही उपयोगी हैं।
    विश्वास शर्मा, विद्यार्थी, इतिहास विभाग बुंदेलखंड महाविद्यालय, झाँसी

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      फ़रवरी 25, 2022 को 7:57 पूर्वाह्न पर

      धन्यवाद आपको विश्वास जी।

      प्रतिक्रिया

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Seach this Site:

Search Google

About This Blog

This blog is dedicated to People of Deprived Section of the Indian Society, motto is to introduce them to the world through this blog.

Posts

  • मार्च 2023 (2)
  • फ़रवरी 2023 (2)
  • जनवरी 2023 (1)
  • दिसम्बर 2022 (1)
  • नवम्बर 2022 (3)
  • अक्टूबर 2022 (3)
  • सितम्बर 2022 (2)
  • अगस्त 2022 (2)
  • जुलाई 2022 (2)
  • जून 2022 (3)
  • मई 2022 (3)
  • अप्रैल 2022 (2)
  • मार्च 2022 (3)
  • फ़रवरी 2022 (5)
  • जनवरी 2022 (6)
  • दिसम्बर 2021 (3)
  • नवम्बर 2021 (2)
  • अक्टूबर 2021 (5)
  • सितम्बर 2021 (2)
  • अगस्त 2021 (4)
  • जुलाई 2021 (5)
  • जून 2021 (4)
  • मई 2021 (7)
  • फ़रवरी 2021 (5)
  • जनवरी 2021 (2)
  • दिसम्बर 2020 (10)
  • नवम्बर 2020 (8)
  • सितम्बर 2020 (2)
  • अगस्त 2020 (7)
  • जुलाई 2020 (12)
  • जून 2020 (13)
  • मई 2020 (17)
  • अप्रैल 2020 (24)
  • मार्च 2020 (14)
  • फ़रवरी 2020 (7)
  • जनवरी 2020 (14)
  • दिसम्बर 2019 (13)
  • अक्टूबर 2019 (1)
  • सितम्बर 2019 (1)

Latest Comments

  • Dr. Raj Bahadur Mourya पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 40)
  • Somya Khare पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 40)
  • Dr. Raj Bahadur Mourya पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 39)
  • Kapil Sharma पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 39)
  • Dr. Raj Bahadur Mourya पर पुस्तक समीक्षा- ‘‘मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा एवं तथागत बुद्ध’’, लेखक- आर.एल. मौर्य

Contact Us

Privacy Policy

Terms & Conditions

Disclaimer

Sitemap

Categories

  • Articles (80)
  • Book Review (59)
  • Buddhist Caves (19)
  • Hon. Swami Prasad Mourya (22)
  • Memories (12)
  • travel (1)
  • Tribes In India (40)

Loved by People

“

015779
Total Users : 15779
Powered By WPS Visitor Counter
“

©2023 The Mahamaya | WordPress Theme by Superbthemes.com
hi हिन्दी
en Englishhi हिन्दी