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Facts of political science hindi

राजनीति / समाज विज्ञान : महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 12)

Posted on मार्च 1, 2022अगस्त 22, 2022
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– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झांसी (उत्तर- प्रदेश), फोटो गैलरी एवं प्रकाशन प्रभारी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी (उत्तर- प्रदेश) भारत। email : drrajbahadurmourya @ gmail.com, website : themahamaya.com

1– बीसवीं सदी के आखिरी दशकों में आर्थिक कर्ता के रूप में व्यक्ति की भूमिका को नए सिरे से परिभाषित करने का श्रेय शांतिनिकेतन पश्चिम बंगाल में जन्में भारतीय अर्थशास्त्री और दार्शनिक अमर्त्य कुमार सेन (1933 -) को जाता है।वे भारत के एकमात्र अर्थशास्त्री हैं जिन्हें (1998) अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनका जन्म बंगाल के एक गांव में हुआ था। ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज से उन्होंने पी. एच. डी किया। अमर्त्य सेन ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स और फिर लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्यापन किया।

2- अमर्त्य सेन ने 1977 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के न्यूफील्ड कालेज में पढ़ाया और फिर राजनीतिक अर्थशास्त्र के ड्रमंड प्रोफेसर हो गए। 1987 में अमर्त्य सेन को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शन और अर्थशास्त्र का प्रोफेसर बनाया गया। 1998 में इंग्लैंड लौटकर वे ट्रिनिटी कॉलेज के प्राचार्य नियुक्त किए गए। 1944 में उन्हें अमेरिकन इकॉनामिक एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। वर्ष 1981 में प्रकाशित अपनी पुस्तक पॉवर्टी एंड फेमिन में उन्होंने दिखाया कि लोकतंत्रिक व्यवस्थाओं में अकाल नहीं पड़ते।

3- अमर्त्य सेन का मानना है कि, किसी अर्थव्यवस्था के अच्छे होने की निशानी केवल यह नहीं है कि वह वस्तुएं और सेवाएं मुहैया करा पा रही है या नहीं। देखना यह चाहिए कि उसके तहत कितने लोगों का जीवन बेहतर हुआ है।उनका दावा है कि आर्थिक वृद्धि का मतलब विकास नहीं होता क्योंकि उसकी गणना प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से लगाया जाता है।विकास की सच्ची कसौटी जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, स्वास्थ्य और साक्षरता है। वर्ष 1999 में भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

4– श्री अरविन्द के नाम से विख्यात अरविंद घोष (1872-1950) भारत के महान क्रांतिकारी राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी, कवि और योगी होने के साथ-साथ भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनन्य तम प्रतिनिधि थे। उन्होंने तत्व चिंतन और कॉस्मिक प्रज्ञा को मानवता के सामाजिक- आर्थिक अस्तित्व से जोड़ने का अनूठा प्रस्ताव किया।उनके पिता का नाम डॉ. के. डी. घोष और माता का नाम स्वर्णलता देवी था।

5- रॉबर्ट मेजरमेंट ने लिखा है कि, ‘ श्री अरविन्द में राजनीति और आध्यात्मिकता का, राजनीति और योग का एवं पश्चिमी और भारतीय मूल्यों का परिपक्व संश्लेषण करने की असाधारण क्षमता थी।’ लार्ड मिंटो ने उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के लिए सर्वाधिक खतरनाक व्यक्ति करार दिया था। 1908 में उन्हें अलीपुर बम कांड में भागीदारी के आरोप में जेल हुई थी।इसी केस में खुदीराम बोस को फांसी की सजा हुई थी। वर्ष 2008 में प्रकाशित रामधारी सिंह दिनकर की पुस्तक, ‘श्री अरविन्द : मेरी दृष्टि में’ उनके जीवन पर प्रकाश डालती है।

6- लंदन में जन्मे अरनॉल्ड जोसेफ टॉयनबी (1889-1975) बीसवीं सदी के इतिहास लेखन के अनुशासन को गहराई से प्रभावित करने वाले ब्रिटिश इतिहासकार और रचनाकार थे।उनकी इतिहास दृष्टि विशाल कृतियों की तरह सभी स्थानों और कालावधियों अपने आगोश में समेटने की कोशिशों की नुमाइंदगी करती है। इतिहास विषयक सिद्धांतों का प्रतिपादन उन्होंने अपने किताब अ स्टडी ऑफ हिस्ट्री में किया है।

7- अरनॉल्ड जोसेफ टॉयनबी मानते थे कि विभिन्न संस्कृतियां एक- दूसरे को प्रभावित करती हैं। ऐतिहासिक अध्ययन की सबसे छोटी सुबोध गम्य इकाई सम्पूर्ण समाज होता है।सभी सभ्यताओं का इतिहास कुछ निश्चित संदर्भों में समानान्तर और समसामयिक होता है। व्यक्ति सामाजिक वर्ग के रूप में निरंतर आने वाली चुनौतियों का सामना करते हैं जिससे सभ्यता का विकास होता है। व्यक्तियों में क्रियात्मक शक्ति का ह्रास सभ्यता के विघटन का मूल कारण है, जिसे उन्होंने आत्मघात कहा है।

8- दिनांक 16 जुलाई, 1909 को तत्कालीन पंजाब (अब हरियाणा) के कालका में उपेन्द्र नाथ गांगुली तथा अम्बालिका के घर में जन्मी अरूणा आसफ अली (अरूणा गांगुली) सन् 1952 के भारत छोड़ो आन्दोलन की जुझारू नेता, निर्भीक पत्रकार, भारतीय मजदूर आंदोलन और स्त्री आंदोलन की प्रमुख हस्ती थी। उन्होंने लिंक जैसी राजनीतिक पत्रिका और पैट्रियाट जैसे दैनिक पत्र की स्थापना की।उनके पति आसिफ अली थे।

9- वर्ष 1932 में जब अरूणा आसिफ अली को जब अम्बाला जेल में बंद किया गया तब यहां पर उनकी मुलाकात सरदार भगत सिंह से हुई। 1942 में कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन में भारत छोड़ो आन्दोलन के एलान के बाद जब देश के बड़े नेता गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए तब अरूणा आसफ अली ने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस के अधिवेशन स्थल ग्वालिया टैंक मैदान पर तिरंगा फहराया।

10– वर्ष 1944 में अरूणा आसफ अली ने डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ मिलकर इंकिलाब समाचार पत्र का सम्पादन किया। 1948 में उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। 1953 में उनके पति बैरिस्टर आसफ अली का देहांत हुआ। अरूणा का देहांत 29 जुलाई, 1996 में हुआ। वर्ष 2007 में नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित तथा जी. एस. राघवन द्वारा लिखित पुस्तक, अरूणा आसफ अली : एक संवेदनशील क्रान्तिकारी उनके राष्ट्रीय अवदान पर प्रकाश डालती है।

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11- सूर्योदय का प्रदेश कहे जाने वाले भारत के उत्तर- पूर्वी राज्य अरूणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर है। इस राज्य के उत्तर में चीन, दक्षिण में असम और नागालैंड, पूर्व में बर्मा और पश्चिम में भूटान स्थित है।मुख्यत: जनजातीय आबादी वाले अरुणाचल प्रदेश का भौगोलिक क्षेत्रफल 83 हजार, 843 वर्ग किलोमीटर है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या 13 लाख, 82 हजार, 611 है। यहां की साक्षरता दर 66.95 फीसदी है।

12– अरूणाचल प्रदेश की सरकारी भाषा अंग्रेजी है। अरूणाचल प्रदेश की एकसदनीय विधायिका में 60 सदस्य होते हैं। यहां से लोकसभा के 2 तथा राज्य सभा का 1 सदस्य चुना जाता है। अरूणाचल प्रदेश की 95 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। यहां पर लगभग 20 मुख्य जनजातियां निवास करती हैं। इनमें अडी, निशी, अपतानी, वांचो, सिंगपो, तंगशा, तगीन, मिशियम, मोनपा, अका, नोक्टे तथा मिरीश प्रमुख हैं। यह लगभग 20 भाषाएं बोलती हैं, जिनमें 14 भाषाओं का उपयोग प्राथमिक शिक्षा में किया जाता है।

13– अंग्रेजों ने 1874 में अरुणाचल प्रदेश में शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट और 1880 में असम फ्रंटियर ट्रैक्ट रेग्यूलेशन लागू किया। 1913 में उन्होंने नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेन्सी (नेफा) का गठन किया। 1914 में अंग्रेजों ने तिब्बत से मिलने वाली 885 किलोमीटर लम्बी सीमा रेखा को मैकमोहन लाइन करार देते हुए अंतर्राष्ट्रीय सीमा का दर्जा दिया। 1962 में चीन ने इसी इलाके की तरफ से भारत पर हमला किया था।

14– दिनांक 20 जनवरी, 1972 को भारत सरकार ने अरूणाचल प्रदेश को एक केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया और इसका नाम अरुणाचल प्रदेश रख दिया। 20 फरवरी, 1987 को अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।

15- ईसा से 300 वर्ष पूर्व रचा गया संस्कृत ग्रन्थ अर्थशास्त्र राजनीतिक सत्ता हासिल करने और उसे बनाए रखने के उपायों की विस्तृत संहिता है। अर्थ को परिभाषित करते हुए कौटिल्य ने कहा है कि, मनुष्यों से बसी सारी धरती अर्थ है। अर्थशास्त्र इस धरती के पालन का शास्त्र है। 15 अधिकरणों में बंटे हुए इस ग्रन्थ में 150 अध्याय हैं। अर्थशास्त्र की तुलना चीनी विद्वान सुन जू के ग्रन्थ आर्ट ऑफ वार से भी की गई है।

16– जर्मन दार्शनिक मैक्सवेबर ने अपनी विख्यात कृति, पॉलिटिक्स एज अ वोकेशन में अर्थशास्त्र को ‘ रैडिकल मैकियावेलियनिज्म’ करार देते हुए कहा है कि इसके सामने 16 वीं सदी में लिखी गई मेकियावली की रचना प्रिंस की चमक भी फीकी पड़ जाती है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण के अनुसार सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य (321-296) के शिक्षक और अमात्य (मंत्री) के रूप में कौटिल्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई थी।वे राजा को सलाह देते हैं कि उसे धार्मिक चिंतन और राज्य कौशल से सम्बंधित विज्ञान को अलग अलग रखना चाहिए।

17- अर्थशास्त्र का पहला अध्याय राज्य कौशल में शासक के प्रशिक्षण पर केंद्रित है। उसने लिखा है राजा को साढ़े चार घंटे से ज्यादा सोने का समय नहीं मिलना चाहिए। दूसरे अध्याय में सरकारी विभागों के प्रमुखों के कर्त्तव्यों का विस्तृत वर्णन किया गया है। तीसरा और चौथा अध्याय कानून पर केन्द्रित है। इसमें कौटिल्य ने 18 क़िस्म के कानूनी विवादों को गिनाया है। पांचवां अध्याय राजा के गोपनीय आचरण के बारे में है।

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18- अर्थशास्त्र का छठवां अध्याय मंडल सिद्धांत का सूत्रीकरण करता है। यहां विदेश नीति के इस सिद्धांत की सिफारिश है कि सीमा से लगे राज्य को अपना प्राकृतिक शत्रु मानना चाहिएं और उसकी सीमा से लगे राज्य को अपना सम्भावित सहयोगी।कौटिल्य कहते हैं कि यदि शासक अपने राज्य को पहला माने तो तीसरे, पांचवें और सातवें राज्य को अपने मित्र के रूप में देखता और दूसरे, चौथे और छठें तथा आठवें राज्य को सम्भावित शत्रु के रूप में।

19- अर्थशास्त्र के सातवें अध्याय में कौटिल्य की विदेश नीति का प्रमुख सिद्धांत, ‘ युद्ध के लिए तैयारी, लेकिन शांति की उम्मीद’ न होकर युद्ध की तैयारी और विजय की योजना है। आठवें अध्याय में राज्य पर आने वाली कुदरती आफतों की चर्चा है। नवें और दसवें अध्याय में युद्ध की तैयारी और विभिन्न चक्रव्यूहों का वर्णन है। ग्यारहवां अध्याय गणों और गणसंघों के बारे में है। बारहवें अध्याय में कमजोर राजा के द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियों का वर्णन है। तेरहवें अध्याय में किले में घिरे शासक की समस्याओं का समाधान है। चौदहवें अध्याय में युद्ध के खुफिया हथकंडों की चर्चा है।पन्द्रहवां अध्याय तर्कपरक और सैद्धांतिक राजकौशल के संक्षिप्त विश्लेषण पर केन्द्रित है।

20– भाषा के दायरे में शब्दों और वाक्यों के तात्पर्य का अध्ययन अर्थ विज्ञान कहलाता है। फ्रांसीसी भाषा शास्त्री मिशेल ब्रील ने इसे अलग अनुशासन में स्थापित कर सीमेंटिक्स नाम दिया। सीमेंटिक्स का पहला काम है भाषायी श्रेणियों की शिनाख्त करना और उन्हें उपयुक्त शब्दावली में व्याख्यायित करना। सीमेंटिक्स यह पता लगाता है कि अर्थ ग्रहण का अंतर करने में भाषा कैसे काम करती है।इसका जोर संदर्भ पर कम और बोध पर अधिक रहता है।

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21- अर्जेन्टीना में जन्मे अर्नेस्टो चे गुएवारा (1928-1967) मार्क्स वादी विचारक, समर्पित क्रांतिकारी और छापामार युद्ध के सिद्धांतकार थे। एलेक्सिस कोर्डा के द्वारा खींची गई, फौजी कैप पहने और हल्की बेगरी दाढ़ी वाली उनकी तस्वीर क्रांति और विद्रोह की कालजई छवि के रूप में सारी दुनिया में स्वीकार की जा चुकी है। उनकी मां सेलिया अर्जेंटीना की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी थीं।मोटर साइकिल की लैटिन अमेरिकी देशों की उनकी यात्रा का विवरण उन्होंने मोटरसाइकिल डायरीज में लिखा है।

22– बीसवीं सदी में दूसरे से लेकर चौथे दशक के बीच सांस्कृतिक मानवशास्त्र के अनुशासन को गहराई से प्रभावित करने वाले अमेरिकी मानव शास्त्री अल्फ्रेड लुई क्रोबर (1876-1960) को डीन ऑफ अमेरिकन एंथ्रोपोलॉजिस्ट के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1901 में उनके 28 पृष्ठीय प्रबन्ध ने उन्हें कोलम्बिया विश्वविद्यालय का पहला पीएचडी बनाया।क्रोबर के अकादमिक जीवन का अधिकतर हिस्सा यूनिवर्सिटी ऑफ कोलम्बिया, बर्कले में बीता।वे वहीं मानवशास्त्र के प्रोफेसर और वहीं के संग्रहालय के निदेशक बने।

23– अल्फ्रेड लुई क्रोबर ने वर्ष 1939 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘कल्चरल ऐंड नेचुरल एरियाज ऑफ नेटिव नॉर्थ अमेरिका’ में उन्होंने अमेरिकी इंडियनों को 6 मुख्य सांस्कृतिक और भाषाई क्षेत्रों में बांटा। कल्चरल डिफ्यूजन के प्रवर्तक क्लार्क विजलर और रॉबर्ट लॉवी जैसे विद्वानों की तर्ज पर क्रोबर की धारणा थी कि संस्कृति की व्याख्या केवल संस्कृति के माध्यम से ही की जा सकती है, न कि उसे शरीरशास्त्र या मनोविज्ञान में घटा कर।

24– लंदन के एक मजदूर वर्गीय इलाके में पैदा हुए अल्फ्रेड मार्शल (1842-1924) को अर्थशास्त्र को एक स्वतंत्र बौद्धिक अनुशासन के रूप में स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। 1903 में अल्फ्रेड मार्शल के प्रयासों से ही कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के अध्ययन के लिए अलग से पढ़ाई की शुरुआत की गई। 1885 से पहले अर्थशास्त्र एक विषय के रूप में दर्शनशास्र और इतिहास के पाठ्यक्रम का अंग हुआ करता था।

25– अल्फ्रेड मार्शल ने आर्थिक धारणाओं को सहज ग्राफों में अनूदित करके, ‘डॉयग्रामैटिक इकॉनॉमिक्स’ का सूत्रपात किया। उन्होंने ही पार्शियल इक्विलीबिरियम एनॉलिसिस’ का प्रतिपादन किया।यही मांग और पूर्ति का नियम है। मार्शल ने दिखाया कि आर्थिक सम्बन्ध कार्य- कारण से बंधे होते हैं। उन्होंने इस सिलसिले में लोच की धारणा विकसित की।

26- अबू हामिद इब्न मुहम्मद अल- तुसी अल- गजाली (1058-1111) सुन्नी इस्लाम के एक प्रमुख दार्शनिक धर्मशास्त्री, विधिशास्त्री और रहस्यवादी थे। उन्होंने अपनी पुस्तक तहाफत अल- फलसिफा में फलसिफा की 20 मान्यताओं का जिक्र करते हुए उनकी आलोचना प्रस्तुत किया।अल गजाली का जन्म उत्तर- पूर्व ईरान के आधुनिक मेशाद शहर से 15 मील उत्तर तबरान- तुस में हुआ था।अरबी और इस्लामी जगत में उनकी स्वीकार्यता और प्रामाणिकता मुख्यत: उनके ज्ञान मीमांसा सम्बन्धी उत्कृष्ट विमर्श के कारण है।

27- अबू यूसुफ याकूब इब्न इसहाक अल किंदी (800-870) ईरानी परम्परा के महान दार्शनिक, विधिवेत्ता, चिकित्सा शास्त्र के ज्ञाता, गणितज्ञ और संगीतकार थे। उन्हें अपने भूगोल और खगोलशास्त्र सम्बन्धी ज्ञान के लिए भी जाना जाता है। मध्य युगीन विद्वता उन्हें विश्व के 12 सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्कों में से एक मानती है। उन्होंने अरबी भाषा में अनुवाद करने वाले विद्वानों के एक समूह के साथ मिलकर अरस्तू, नव प्लेटो वादियों, ग्रीक गणितज्ञों और वैज्ञानिकों के विचारों को अरबी में प्रस्तुत किया।

28- अल- किंदी की कुल 241 पुस्तकें हैं। जिनमें 16 खगोलशास्त्र पर, 11 अंकगणितीय पर, 32 ज्यामितिक पर, 22 औषधि शास्त्र पर, 12 भौतिकशास्त्र पर, 22 दर्शन शास्त्र पर, 9 तर्क शास्त्र पर, 5 मनोविज्ञान पर और 7 कला व संगीत पर हैं। उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना, ‘ऑन फर्स्ट फिलॉस्फी’ मानी जाती है।बसरा की किंदा जनजाति में जन्मे अल- किंदी को अरब का दार्शनिक की उपाधि दी जाती है।

29- भारतीय चिंतक असगर अली इंजीनियर (1939-2013) को समाज विज्ञान और जन आन्दोलनों की दुनिया में एक कर्मठ एक्टीविस्ट के तौर पर माना जाता है। साम्प्रदायिकता का विरोध और साम्प्रदायिक दंगों का विश्लेषण उनके लेखन का केन्द्र बिंदु रहा है।सत्तर के दशक में उन्होंने मुस्लिम बोहरा समाज के भीतर इस्लाम के नाम पर होने वाले सामाजिक और आर्थिक दमन का विरोध किया। उनकी लगभग 50 पुस्तकें प्रकाशित हैं।

30- इंजीनियर असगर अली ने वर्ष 1990 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘ इस्लाम एंड लिबरेशन जियोलॉजी’ में यह दर्शाने की कोशिश किया कि यदि धर्म को उसके ऐतिहासिक संदर्भ में समझा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वह अपने शुरुआती दौर में एक सामाजिक आन्दोलन ही होता है। वह धर्म को एक सामाजिक परिघटना के तौर पर समझने की कोशिश करते हैं।

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31– असम का शाब्दिक अर्थ है- जिसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। पूर्वी हिमालय के दक्षिणी भाग में स्थित असम एक मिली- जुली जनसंख्या वाला राज्य है इसकी राजधानी दिसपुर है।असम का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 78 हजार, 438 वर्ग किलोमीटर है। यह अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैण्ड, मिज़ोरम और मेघालय से घिरा हुआ है।इसकी सीमाएं भूटान और बांग्लादेश से जुड़ी हुई हैं।असम देश के दूसरे भागों से एक बहुत ही संकरे रास्ते से जुड़ा हुआ है। पश्चिम बंगाल से गुजरने वाले इस रास्ते को सिलीगुड़ी कॉरिडोर या चिंकस नेक कहा जाता है।

32- अस्मिता की अवधारणा समाजशास्त्र, संस्कृति-अध्ययन, राजनीति विज्ञान और मनोविश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण है। राजनीति विज्ञान के लिए अस्मिता का अर्थ उन हासियाकृत समूहों से है जो सांस्कृतिक, सामाजिक या जातीय आधार पर अलग समुदाय बनाकर अपनी राजनीतिक दावेदारी पेश करते हैं। इसमें अस्मिता की राजनीति का जन्म होता है।

33- अस्मिता की राजनीति का प्रयोग पहली बार साठ के दशक में अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन की प्रमुख शक्ति स्टूडेंट नॉन वॉयलेंट कोआर्डिनेशन कमेटी के संदर्भ में एल. ए. कॉफमैन ने किया। बीसवीं सदी की शुरुआत में नारीवादी आंदोलन को इस परिप्रेक्ष्य में देखा गया। सत्रहवीं सदी में रेने देकार्त के कथन, ‘ केवल एक बात ऐसी है जिस पर वे शक नहीं कर सकते और वह है अपना वजूद, को भी अस्मिता के विश्लेषण में प्रयुक्त किया जाता है।

34– ह्यूम ने इयत्ता की बंडल थियरी का सूत्रपात किया। जार्ज हर्बर्ट मीड ने कहा कि, ‘ इयत्ता की रचना दूसरों के सम्बन्ध के तहत होती है।’ उन्होंने आई और मी में फर्क करते हुए कहा कि आई का मतलब है व्यक्ति का दूसरों के प्रति रवैया, और मी का अर्थ है दूसरों का वह रवैया जो व्यक्ति ग्रहण कर लेता है।मीड के इस चिंतन से समाजशास्त्र में शिम्बोलिक इंटरेक्शनिस्ट नामक नजरिए की बुनियाद पड़ी जिसे इरविंग गॉफमेन ने और आगे बढ़ाया।

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35– कृष्ण काव्य की भक्ति परम्परा में अष्टछाप के कवियों की अविस्मरणीय भूमिका रही है। इनमें पुष्टि मार्ग के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य के चार और उनके पुत्र विट्ठल नाथ के चार प्रधान शिष्य : क्रमशः कुम्भनदास(1468-1582), सूरदास (1478-1580-85), कृष्ण दास (1495-1575-81), परमानंद दास (1491-1583), गोविंद दास (1505-1585), छीत स्वामी (1481-1585), नन्द दास (1533-1586) तथा चतुर्भुज दास (1540-1585) अष्टछाप के नाम से प्रसिद्ध हैं।

36– अश्वेत नारीवादी आंदोलन के तहत अफ्रो- अमेरिकन मूल की काली औरतों के साथ- साथ एशियाई समेत अन्य सभी जातीयताओं और राष्ट्रीयताओं की नारीवादी दावेदारियां आती हैं। नारीवाद का यह प्रारूप उत्तर औपनिवेशिक विमर्श का सहारा लेकर साम्राज्यवादी रवैए के तहत तीसरी दुनिया पर थोपे गए सांस्कृतिक और वैचारिक प्रभुत्व को भी प्रश्नांकित करता है।सत्तर के दशक के मध्य में कॉमबाहो रिवर कलेक्टिव ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि अश्वेत स्त्री की मुक्ति के पश्चात ही सम्पूर्ण मानव समाज की मुक्ति सम्भव है।

37– अश्वेत नारीवादी आंदोलन की आधारभूमि तैयार करने में एलिस वाकर द्वारा प्रतिपादित वुमनिज्म के सिद्धांत का महत्वपूर्ण योगदान है। बेल हुक्स ने अपने लेखन और चिंतन में इसे और संवृद्ध किया। गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक के उत्तर औपनिवेशिक चिंतन ने आर ई आई धारा में साम्राज्यवाद विरोध के पहलू जोडे हैं। पेट्रियस हिल कॉलिंस ने 1991 में प्रकाशित अपनी महत्वपूर्ण कृति फेमिनिस्ट थाट में इसे सैद्धांतिक दृष्टि प्रदान की।

38– आत्महत्या अर्थात् व्यक्ति द्वारा अपने जीवन का जानबूझ कर अंत। प्लेटो ने आत्महत्या के विरोध में फैइडो तथा लॉस का प्रयोग करते हुए तर्क दिया है।फैइडो पाइथागोरियन दर्शन से प्रभावित हैं। इसमें कहा गया है कि आत्महत्या करना हमेशा अनुचित है।ऐसा करके हम ईश्वर द्वारा दी गई सजा से अपनी आत्मा को मुक्त कर देते हैं, जबकि ईश्वर ने सजा के तौर पर आत्मा को हमारे शरीर में रहने का हुक्म दिया है। आत्महत्या के सम्बन्ध में एमील दुर्खीम की कृति सुसाइड (1991) विख्यात है।

39– लॉज के अंतर्गत प्लेटो ने दावा किया है कि आत्महत्या करना शर्मनाक है। आत्महत्या करने वाले अपराधियों को बिना किसी निशान वाली कब्र में दफ़न करना चाहिए। प्लेटो ने यह भी कहा है कि यदि कोई नैतिक रूप से भ्रष्ट हो या किसी न्यायिक आदेश के द्वारा अपने को मार ले तो यह नियम लागू नहीं होगा।

40– गैर द्विज जातियों के सामाजिक और राजनीतिक आधुनिकीकरण में उल्लेखनीय योगदान करने वाले आत्मसम्मान आंदोलन ( सुयमरीताई इयक्कम) की शुरुआत 1926 में ई. वी. रामास्वामी नायकर पेरियार द्वारा मद्रास (आज के तमिलनाडु) में शुरू की गई थी आन्दोलन की मान्यता थी कि जिस व्यक्ति में आत्मसम्मान विकसित हो जाता है उसका राजनीतिक दोहन कोई नहीं कर सकता।

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41- पेरियार को यह कहने में कोई हिचक नहीं होती थी कि केवल आत्मसम्मान आंदोलन ही वास्तविक आजादी दिला सकता है। उन्होंने स्वराज की अवधारणा के विरुद्ध आरिवू विदुतालाई इयक्कम अर्थात् बौद्धिक मुक्ति के आंदोलन की तजवीज की। आन्दोलन का मुख्यालय इरोड में था। आत्मसम्मान आंदोलन ने अपने प्रभाव के इलाकों में ब्राम्हण वर्चस्व को कड़ी चुनौती दी और धर्म, जातिवाद तथा ईश्वर की अवधारणा का विरोध करते हुए बुद्धि वादी आधार पर समाज की पुनर्रचना का प्रस्ताव किया।

42- आदर्शवाद दोनों विश्व युद्धों के बीच की अवधि में विकसित हुआ बौद्धिक आंदोलन के साथ ही साथ एक राजनीतिक आंदोलन भी था। इस विचार की बुनियादी मान्यता यह है कि विभाजित करने वाले पहलुओं के मुकाबले जोड़ने वाली ताकतें मनुष्य के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं।इसने सार्वदेशिक नैतिक मूल्यों की पैरोकारी की और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में सुधार की मुहिम चलाई। वुड्रो विल्सन ने दिसम्बर 1918 में वार्साई शांति सम्मेलन में जिन 14 उसूलों को पेश किया था, वे आदर्श वादी चिंतन का सार माने गए हैं।

43- नाटे न राज आन्दोलन भारत में आदिवासी समुदाय का आन्दोलन था। बस्तर के सुदूर घने जंगलों के बीच संगम गांव में दिनांक 8 से 10 नवम्बर, 1988 को ग्राम स्वराज सम्मेलन हुआ। इस संदर्भ में आगे चलकर 2 नवम्बर, 1991 को भारत जन आन्दोलन की स्थापना हुई।डॉ. ब्रम्हदेव शर्मा ने इस संगठन को वैचारिक दिशा देने का काम किया। इस आन्दोलन की मांग थी कि विकास कार्यक्रमों के बारे में स्थानीय लोगों से भी सहमति ली जाए।

44– लैटिन शब्द मोडो का अर्थ है ‘जो आज का है’ और जो अतीत जैसा नहीं है।मोडो से मॉर्डनस बना, जिससे माडर्निटी या आधुनिकता की व्युत्पत्ति हुई। विचार के तौर पर आधुनिकता का अर्थ है : जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में समकालीन को परम्परागत से अलग समझना। इस जगत को मानवीय हस्तक्षेप के जरिए रूपांतरण के लिए प्रेरित करना। वर्ष 1970 में आंत्वॉं द कोंदोर्स ने पहली बार प्रौद्योगिकीय प्रगति को सांस्कृतिक प्रगति के साथ जोड़ने का प्रयास किया।

45– बीसवीं सदी के महान कला- इतिहासकार,, सौन्दर्य शास्त्री और तत्व मीमांसक आनन्द केंटिश कुमारास्वामी (1877-1947) को तुलनात्मक धार्मिक विचार के परम्परावादी स्कूल का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। 1934 में प्रकाशित उनकी रचना, ‘द ट्रांसफार्मेशन ऑफ द नेचर इन आर्ट’ राजपूत चित्रकला की खोज के लिए जाना जाता है। वह जॉन रस्किन के इस फिकरे को हमेशा दोहराते थे कि, कला के बिना उद्योग एक बर्बरता है।

46– आनन्द केंटिश कुमारास्वामी का जन्म कोलम्बो, सिलोन में 22 अगस्त, 1877 को हुआ था। उनके पिता सर मुत्थु कुमार स्वामी श्री लंकाई तमिल थे और उनकी मां अंग्रेज। नटराज की ताम्र- शिल्प की प्रतिकृति आज जो पूरी दुनिया में दिखती है तो उसका श्रेय कुमारास्वामी के 1918 में प्रकाशित लेख, ‘ द डांस ऑफ शिवा’ को जाता है। कुमारास्वामी के विचारोत्तेजक निबन्धों के दो संकलन अस्सी के दशक में प्रकाशित हुए : सोर्सिज ऑफ विजडम (1981) और व्हाट इज सिविलाइजेशन ? (1989) ।

47– उन्नीसवीं सदी में मेडिकल की शिक्षा के लिए अमेरिका जा कर पेन्सिल्वेनिया महिला चिकित्सा महाविद्यालय (अक्टूबर -1883 से मार्च 1886) से स्नातक की उपाधि प्राप्त करके भारत की पहली महिला डॉक्टर बनने वाली आनन्दी गोपाल जोशी (1865-1887) का प्रेरक जीवन भारतीय नारीवाद की बेमिसाल कहानी है। 18 वर्ष की आयु में भारत से अमेरिका जाने वाली वह पहली हिन्दू महिला थी।न्यू जर्सी के एक पादरी वाइल्डर की मदद से उन्होंने यह उपलब्धि हासिल किया। अल्पायु में ही दिनांक 26 फरवरी, 1887 को उनका निधन हो गया।

48– जर्मन विचारक आर्थिक राष्ट्रवाद के प्रमुख प्रवक्ता ग्योर्गे फ्रेडिख लिस्ट (1789-1846) ने 1841 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘ द रेशनल सिस्टम ऑफ पोलिटिकल इकॉनॉमी’ में दावा किया कि राष्ट्रों के बीच सत्ता और सम्पत्ति के लिए सहयोग के बजाय होड़ के पहलू अधिक प्रमुख हैं। वर्ष 1991 में प्रकाशित हुई रॉबर्ट रीश की रचना, द वर्क ऑफ नेशंस : प्रिपेयरिंग अवरसेल्फ फॉर 21 सेंचुरी कैपिटलिज्म भी आर्थिक राष्ट्रवाद पर केन्द्रित है।

49- 1902 में रमेश चंद्र दत्त के ग्रन्थ द इकॉनामिक हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया का पहला खंड प्रकाशित हुआ।इसे ब्रिटिश हुकूमत पर लिखे गए सबसे बेहतरीन ग्रन्थ की संज्ञा दी जाती है। वर्ष 1901 में दादा भाई नौरोजी की पुस्तक, पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया का प्रकाशन हो चुका था। समकालीन आर्थिक इतिहासकारों में विपिन चन्द्र का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनकी रचना राइज ऑफ इकॉनामिक नेशनलिज्म इन इंडिया प्रसिद्ध है।

50– इंग्लैंड में पैदा हुए और पले- बढे विख्यात भारत- विद्या विद आर्थर लेवेलिन बाशम (1914-1986) को मुख्यत: प्राचीन भारत की संस्कृति पर लिखी उनकी अत्यंत लोकप्रिय और कालजयी रचना द वंडर दैट वाज ऑफ इंडिया : अ सर्वे ऑफ कल्चर ऑफ इंडियन सब- कांटिनेंटल बिफोर द कमिंग ऑफ द मुस्लिम्स (1954) के लिए जाना जाता है।बाशम का जन्म वेल्स स्टोक स्थित एसेक्स के लॉटन नामक स्थान पर हुआ था।

नोट- उपरोक्त सभी तथ्य, अभय कुमार दुबे द्वारा सम्पादित, ‘समाज विज्ञान विश्वकोश , खंड-1, ISBN : 978-81-267-2849-7, राजकमल प्रकाशन प्रा. लि. 1- बी, नेता जी सुभाष मार्ग, दरियागंज नई दिल्ली, दूसरा संस्करण–2016, पेज नं-1 से 172 तक से साभार लिए गए हैं।

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