(विशेष सन्दर्भ : फ़लसफ़ा, कलाम, फासीवाद, जार्ज सोरेल, फ़िल्म और सेक्शुअलिटी, लौरा मलवी, सेंसरशिप, फ़िल्म सिद्धांत, आत्युर सिद्धांत, फ़्रांसिस बेकन, फ्रेडरिख एंगेल्स, फ्रेड्रिख नीत्शे, फ़्रैंकफ़र्ट स्कूल, फ्रेड्रिख वॉन हायक, फ़ुरसत की अवधारणा, बंकिम चन्द्र, बदरी नाथ शुक्ला, बंगाल का नव जागरण, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, ब्लैक पैंथर, बर्तोल्त ब्रेख़्त, एपिक थियेटर, दलित राजनीति तथा अन्य काफ़ी कुछ)
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी (उत्तर- प्रदेश), फ़ोटो गैलरी एवं प्रकाशन प्रभारी : डॉ. संकेत सौरभ, झाँसी (उत्तर प्रदेश) भारत । email : drrajbahadurmourya @ gmail.com, website : themahamaya.com, mobile number :09839170919
1- फ़लसिफ़ा और कलाम इस्लाम की परम्पराएँ हैं ।इस्लामी दायरे में दर्शन के अध्ययन की शुरुआत यूनानी दर्शन के अधिकतर अरबी और कुछ- कुछ फ़ारसी अनुवादों से हुई ।आठवीं सदी के शुरू और अंदलूसिया से भारत तक पहुँची इस परम्परा को फ़लसिफा का नाम दिया गया है ।इस्लाम के दर्शन की दूसरी प्रमुख परम्परा कलाम की है ।इसकी शुरुआत भी आठवीं सदी में हुई ।अगर फ़लसिफ़ा का मक़सद इस्लामिक विश्वासों को यूनानी दर्शन द्वारा प्रदत्त कसौटियों पर कसकर देखना था, तो कलाम का उद्देश्य तर्क शास्त्र के ज़रिए इस्लामिक प्रक्रियाओं की परख करते हुए उन्हें न्यायोचित ठहराना था ।
2- इस्लामिक दर्शन की उपरोक्त दोनों परम्पराओं में कई समानताएँ थीं ।इन दोनों का विकास भी 813 से 833 के बीच हुकूमत करने वाले अबासिद ख़लीफ़ा अल- मामुन के संरक्षण में हुआ ।ख़लीफ़ा ने बग़दाद में एक अकादमी स्थापित की जिसे बाइत- अल- हिकमा (हाउस ऑफ विजडम) के नाम से जाना जाता है ।यह अपनी वैचारिक सहिष्णुता और वैज्ञानिक खोजों को प्राथमिकता देने के लिए जानी जाती थी ।कलाम की स्थापना का श्रेय वसील इब्न अता (700 -748) को दिया जाता है ।
3- कलाम के दो विचार पंथ विकसित हुए ।इनमें से एक असारी स्कूल कहा जाता है और दूसरा मुताजिलाह स्कूल जिसे सरकारी संरक्षण मिला ।दोनों दार्शनिक परम्पराओं, कलाम और फलसिफा का ज़ोर इस बात पर था कि मनुष्य को ईश्वर का अर्थ ग्रहण करने के लिए महज़ आस्था और विश्वास पर भरोसा न करके अपनी बुद्धि और प्रज्ञा का इस्तेमाल करना चाहिए ।दोनों मानकर चलती हैं कि मनुष्य के अधिकारों पर ईश्वर के अधिकार को श्रेष्ठता दी जानी चाहिए ।दोनों ही दर्शन एक सदाचार पूर्ण नागरिक जीवन के समर्थक हैं ।अरस्तू ने जिसे फ़र्स्ट मूवर या अनमूव्ड मूवर कहा था, उसे अरबी के अनुवाद में अल्लाह कहा गया ।
4- फ़ासीवाद राष्ट्रवाद का प्रजातीय संस्करण है ।वर्ग -संघर्ष विरोधी समाजवाद और प्रभुवर्गीय सर्वसत्तावाद के गठजोड़ की पैरोकारी करने वाला यह विचार लोकतंत्र को मूर्खतापूर्ण, भ्रष्ट और मंदगति से चलने वाली व्यवस्था मानता है ।मार्क्सवाद और उदारतावाद उसकी निगाह में युद्ध और फूट के एजेंट हैं ।बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में फासीवादी राज्य ने नस्ली शुद्धता उपलब्ध करने के लिए जाति संहार की परियोजना चलाई और सैन्यवाद का झंडा बुलंद किया ।फासीवादी परियोजना मुख्यतः उसकी दो राजनीतिक अभिव्यक्तियों के लिए जानी जाती है : इटली में मुसोलिनी का फासीवादी आन्दोलन और जर्मनी में हिटलर का नाज़ीवाद ।
5- फासिज्म इतालवी भाषा के शब्द फैसियो की देन है जिसका मतलब होता है लकड़ी का गट्टा और कुल्हाड़ी ।यह राष्ट्र की एकताकारी शक्ति और राजकीय शक्ति का प्रतीक मानी जाती थी ।मुसोलिनी ने मार्च 1919 में फैसियों नाम से एक क्लब की स्थापना की जिसका मक़सद वर्ग- संघर्ष आधारित समाजवाद का विरोध और राष्ट्रीय समाजवाद के लिए काम करना था ।इस क्लब के सदस्य फ़ासिस्ट कहलाए और उनका विचार फासिज्म ।यह काली शर्ट पहनते थे ।वर्ष 1923 तक इनकी सदस्य संख्या 23 लाख तक पहुँच गई थी ।1932 में मुसोलिनी ने अपने एक भाषण में बीसवीं सदी को फासीवाद की सदी बताया था ।
6- जॉर्ज सोरेल को राजनीतिक चिंतन में हिंसा के प्रश्न पर व्यवस्थित दार्शनिक विचार करने वाले चिंतक के रूप में जाना जाता है ।उनकी मान्यता थी कि जनता को सक्रिय और गोलबन्द करने के लिए किसी तर्कसंगत कार्यक्रम की नहीं बल्कि मिथकों और छवियों की ज़रूरत होती है ।सोरेल के अनुयायियों ने मार्क्सवाद को पूरी तरह से छोड़ कर मज़दूरों की जगह राष्ट्रवाद की तेजी से उदित हो रही ज़बर्दस्त ताक़त का आसरा लिया ।उन्होंने वर्ग- संघर्ष की जगह राष्ट्रीय, नैतिक और मनोवैज्ञानिक क्रांति का सूत्रीकरण किया ।
7- फ़िल्म और सेक्शुअलिटी के परिप्रेक्ष्य में नारीवादी दृष्टिकोण को स्पष्टता देते हुए 1973 में क्लेयर जांस्टन ने व्यावसायिक फ़िल्मों में स्त्री की बनावट को खोलने का पहला बौद्धिक प्रयास किया ।उन्होंने पता लगाया कि उसके बिम्ब को कैसे फ्रेम किया जाता है, उसे कैसी पोशाक पहनायी है, उस पर किस कोण से प्रकाश फेंका गया है, कथांकन में वह किस जगह स्थित है, पुरुष चरित्र किस तरह स्त्री को अपनी काम्य- वस्तु बनाकर मातृरत्यात्मकता या ओडिपल ट्रैजेक्टरी की तरफ़ जाता है, कैमरा- वर्क और लाइटिंग से किस तरह स्पष्ट होता है कि पुरुष चरित्र की स्वैरकल्पनाएं स्त्री को अपना केन्द्र बना रही हैं ।
8- विद्वान चिंतक लौरा मलवी ने 1975 में मातृमनोग्रंथि के प्रभाव की भिन्न व्याख्या की ।उन्होंने कहा कि दर्शक की मैस्क्युलिन स्थिति उसे नारी देह के यौनीकरण और वस्तुकरण की तरफ़ ले जाती है ।कैमरा स्त्री की दैहिक सुन्दरता की तरफ़ ध्यान खींचता है ।वह उसकी प्रस्तुति इस क़दर सम्पूर्णता के साथ करता है कि पुरुष दर्शक को उसमें शिश्न की अनुपस्थिति न सताती है और न ही उससे बधियाकरण या कैस्ट्रेशन का भय निकलता है ।ऐसा करने के लिए कैमरा नारी देह को शिश्न की तरह तना हुआ दिखाता है ।मलवी ने दावा किया कि पुरुष की दृश्य- रत्यात्मक निगाह अथवा वॉयरिस्टिक गेज उसके अवचेतन द्वारा बधियाकरण के भय की अनुक्रिया है ।
9- वर्ष 1991 के टोरंटो फ़िल्मोत्सव में अस्सी के दशक से बनने वाली वे फ़िल्में दिखाई गई जो गे अर्थात् समलैंगिक पुरुषों और उनकी जीवन स्थितियों पर रोशनी डालती थीं ।अमेरिका में गस वॉं सेंत ने माई ओन इडाहो और इविन काऊगर्ल्स गेट द ब्लूज जैसी चर्चित फ़िल्में बनायीं।गे फ़िल्मों का सफ़र आज ब्रोक बैक माउंटेन जैसी मुख्य धारा की फ़िल्मों तक आ चुका है ।
10- हिन्दी फ़िल्मों में सेक्शुअलिटी के प्रसंगों की कई गहन समीक्षाएँ सामने आईं । गोविन्द निहलानी की अर्धसत्य में चित्रित ओमपुरी की द्वंद्वग्रस्त मर्दानगी को अमिताभ बच्चन द्वारा निरूपित प्रबल और अपराजेय पौरुष को श्रेयस्कर बतलाया गया ।श्याम बेनेगल की मण्डी को देखकर यह प्रश्न पैदा हुआ कि क्या चकलाघर की यौनदासता में भी स्त्रियाँ मजा ले सकती हैं ? इसी प्रकार रवि वासुदेवन, मणिरत्नम् तथा बासु भट्टाचार्य ने भी इसी प्रकार की फ़िल्मों का निर्माण किया ।अनिवासी फ़िल्मकार दीपा मेहता द्वारा निर्मित फायर भारतीय नारीवादियों और सेक्शुअलिटी के विमर्शकारों ने विचारोत्तेजक बहस की है ।
11- सेंसरशिप वह प्रक्रिया होती है जिसके द्वारा किसी प्रदर्शन को प्रतिबंधित किया जाता है ।आम तौर पर सेंसरशिप चार श्रेणियों को ध्यान में रखकर लागू की जाती है : राजनीतिक, धार्मिक, पोर्नोग्राफ़िक और हिंसक ।सेंसरशिप के नियम देश और काल के हिसाब से अलग-अलग हैं ।इनकी कसौटियों का निर्धारण करने में विचारधारा, प्राधिकार और सत्ता की भूमिका प्रमुख होती है ।अमेरिका और जर्मनी में फ़िल्मों को सेंसर करना संविधान के खिलाफ माना जाता है ।हॉलीवुड की फ़िल्मों पर मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स ऐंड डिस्ट्रीब्यूटर्स ऑफ अमेरिका नामक संस्था नज़र रखती है ।यह 1922 में फ़िल्म व्यवसाय द्वारा स्थापित की गई थी ।इसे हेज कोड के नाम से जाना जाता है ।
12- फ़िल्म सिद्धांत के विकास का श्रेय बीसवीं सदी के दूसरे दशक में फ़्रांस के फ़िल्मकारों और विमर्शकारों को दिया जाता है ।1908-10 के बीच फ़्रांस में फ़िल्म निर्माण का पहला चरण प्रारम्भ हुआ ।1911 में रिकोतो कैनुडो ने अपने घोषणापत्र दि बर्थ ऑफ सिक्स्थ आर्ट से दो तरह की बहसें खोलीं ।बहस की पहली धारा के केन्द्र में सिनेमाई यथार्थवाद था जिसका प्रवर्तन जर्मन मनोविद ह्यूगो मुंस्टरबर्ग ने किया ।तीस के दशक में मूक सिनेमा से सवाक सिनेमा का प्रारम्भ हुआ ।फ़िल्म सिद्धांत के दूसरे दौर पर चालीस के दशक में द्वितीय विश्वयुद्ध का गहरा प्रभाव पड़ा ।
13- फ़िल्म सिद्धांत के पचास के दशक में आत्युर- सिद्धांत उभरा ।फिर साठ के दशक में संरचनावाद ने अपना बोलबाला क़ायम किया ।इसके बाद सिनेमा को एक भाषा के रूप में देखने का आग्रह बलवती हुआ फ्रेंच का शब्द आत्युर अंग्रेज़ी के ऑथर का समानार्थक था ।यह सिद्धांत आग्रह करता था कि फ़िल्मकार को उसी तरह फ़िल्म का ऑथर समझा जाना चाहिए जिस तरह लेखक को उसकी कृति का समझा जाता है ।फ़िल्म सिद्धांत का तीसरा दौर एक बार फिर विविधता और बहुलता की तरफ़ लौटने का था ।
14- साहित्यिक पुस्तकों के फिल्मांतरण का इतिहास भी पुराना है ।उन्नीसवीं सदी के आख़िरी वर्षों में ल्युमीरे बंधुओं ने बाइबिल का फिल्मांतरण करके अपनी तेरह दृश्यों वाली फ़िल्म बनाई ।हिन्दी में फिल्मांतरण के कुछ बेहद सृजनशील उदाहरण श्याम बेनेगल की जुनून, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी, विशाल भारद्वाज की मक़बूल और ओंकारा तथा राजकुमार हीरानी की थ्री ईडियट हैं ।फ़िल्म जुनून रस्किन बांड की कहानी फ़्लाइट ऑफ पिजंस तथा फ़िल्म थ्री ईडियट चेतन भगत के एक उपन्यास का फिल्मांतरण है ।
15- फ़्रांसिस बेकन (1561-1626) को आधुनिक विचारों के इतिहास में, सत्रहवीं सदी में मानवीय मेधा और वैज्ञानिक चिंतन का अनुकरणीय आदर्श माना जाता है ।अठारहवीं शताब्दी में उन्हें ज्ञानोदय का अग्रदूत बताया गया लेकिन उन्नीसवीं सदी में उन्हें सत्ताकामी, कपटी और सच्चे विज्ञान का शत्रु घोषित कर दिया गया ।बेकन का चिंतन मुख्यतः प्राकृतिक विज्ञान के दर्शन और उसकी सामाजिक प्रासंगिकता को सम्बोधित है ।बेकन यह तजवीज़ करते हैं कि ज्ञान की पद्धति ऐसी होनी चाहिए जो अन्वेषी को नए अनुभवों और उद्घाटनों की ओर ले जाने में सक्षम हो ।
16- फ़्रांसिस बेकन अपनी चिंतन प्रणाली की मधुमक्खी से तुलना करते हुए इस बात पर ज़ोर देते हैं कि दार्शनिक ज्ञान का तरीक़ा ऐसा होना चाहिए जो प्रकृति के प्रदत्त तत्वों या उसकी सम्पदा को रचनात्मक और उपयोगी रूप में संयोजित कर सके ।जबकि मध्यकालीन चिंतकों के लिए बेकन मकड़ी का दृष्टांत उद्धृत करते हुए कहते हैं कि जिस तरह मकड़ी अपने जाले का निर्माण बाहरी पदार्थों के बजाय अपनी अंतडियों की सामग्री से करती है ठीक उसी तरह मध्यकालीन चिंतकों के विचार आत्मपरक और पूर्व निर्धारित होते हैं ।
17- – फ़्रांसिस बेकन ने ज्ञान सृजन की इन पद्धतियों पर अपनी रचना इंस्टोरैशियो मैग्ना के कई खण्डों में विस्तार से किया है ।एडवांसमेंट ऑफ लर्निंग तथा न्यू ऑर्गेनॉन इसी रचना के भाग हैं ।अपने समय की बौद्धिक जकड़नों और जडसूत्रवाद से मुठभेड़ करते हुए बेकन अरस्तू की तर्क मूलक रचना ऑर्गेनॉन को भी न्यू ऑर्गेनॉन की नयी शब्दावली में विन्यस्त कर देते हैं ।वैज्ञानिक प्रयोगों के मानवीय फलितार्थों पर केंद्रित उनकी रचना न्यू अटलांटिस को एक तरह का वैज्ञानिक यूटोपिया कहा जा सकता है ।थॉमस स्प्रैट ने बेकन की वैचारिक क्षमताओं और दृष्टि की तुलना ईश्वर से की है ।
18- फ़्रांसिस बेकन को मैकाले ने प्रगति का पुरोधा करार दिया लेकिन साथ ही उन्हें ऐसा निंदनीय व्यक्ति भी बताया जो निजी स्वार्थों, शाही तमग़ों और रंगरूतबे के लिए अपने मित्रों के साथ भी छल कर सकता है ।इसी तरह होर्खोइमर और एडोर्नो बेकन को पूँजीवादी राज्य का ऐसा सिपहसलार बताते हैं जिसने बुद्धि- विवेक की मशीनी समझ से प्रेरित होकर मनुष्य के खिलाफ खड़ी दमन और उत्पीडन की व्यवस्था को वैधता दिलाने का जुर्म किया है ।जोनाथन स्विफ़्ट की रचना गुलिवर्स ट्रैवल में बेकन की वैज्ञानिक प्रयोगशीलता का मर्मांतक उपहास किया गया ।
19- फ्रेड्रिख एंगेल्स (1820-1895) कार्ल मार्क्स के मित्र, राजनीतिक संगठक,जर्मन दार्शनिक थे ।उनकी रचनाओं ने उन्नीसवीं सदी के आख़िरी और बीसवीं सदी के शुरुआती दौर में मार्क्सवाद को एक विश्व- दृष्टिकोण के रूप में लोकप्रिय करने में प्रमुख भूमिका का निर्वाह किया ।मार्क्स के साथ मिलकर एंगेल्स ने द होली फेमिली और कम्युनिस्ट मैनिफ़ेस्टो जैसी कालजयी रचनाएँ लिखी ।उनकी एक और रचना सोशलिज्म : यूटोपियन ऑर साइंटिफिक प्रसिद्ध है ।एंगेल्स ने इतिहास और विज्ञान के विकास के बीच द्वंद्वात्मक रिश्ते पर गहराई से विचार किया जिसका परिणाम द डायलेक्टिस ऑफ नेचर जैसी कृति में निकला ।सन् 1845 में उनकी रचना कंडीशन ऑफ द वर्किंग क्लास ब्रिटेन में प्रकाशित हुई जबकि द पेजेंट वार इन जर्मनी भी इसी दौरान प्रकाशित हुई ।
20- फ्रेड्रिख नीत्शे (1844-1900) एक जर्मन दार्शनिक, संगीतज्ञ और धर्म- संस्कृति के अध्येता थे ।उनका कृतित्व स्थापित नैतिक मान्यताओं के प्रतिरोध, सभ्यता संस्कृति के उत्कर्ष सम्बन्धी चिंतन तथा आदर्शों को झुठलाती सत्ताकांक्षा के आदिम आवेगों की पड़ताल का एक विराट बीहड़ है ।बीसवीं सदी के सांस्कृतिक अध्ययन, साहित्य दर्शन, कला, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र तथा क्रांति- शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां नीत्शे का सन्दर्भ ज़रूरी मालूम न पड़ता हो ।नीत्शे की पहली पुस्तक द बर्थ ऑफ ट्रेजेडी : आउट ऑफ द स्पिरिट ऑफ म्यूज़िक 1872 में प्रकाशित हुई थी ।
21- फ्रेड्रिख नीत्शे की महत्वपूर्ण पुस्तक अनफैशनेलब आब्जर्वेशंस स्थापित मान्यताओं को प्रश्नांकित करती है ।उनकी यह कृति अपने दौर के सांस्कृतिक व्यक्तित्वों और मसलों की तह में जाकर संस्कृति की आत्ममुग्ध व्याख्या पर हमला बोलती है ।नीत्शे के मुताबिक़ जीवन के सिद्धांत ज्ञान के मुक़ाबले ज़्यादा अहम और उच्चतर होते हैं ।नीत्शे का ज़ोर इस बात पर था कि ज्ञान की खोज का मक़सद जीवन को बेहतर बनाना होना चाहिए ।नीत्शे के समकालीन इतिहासकार डेविड स्त्रॉस ने अपनी पुस्तक द ओल्ड ऐंड न्यू फेथ : ए कन्फैशन में आस्था के नए रूप को वैज्ञानिक और सार्वभौमिक बनाने की वकालत की ।
22- फ्रेड्रिख नीत्शे की अन्य रचनाओं में 1878 में प्रकाशित ह्यूमन ,ऑल- टू- ह्यूमन तथा डेब्रैक : रिफ्लेक्शन ऑन मॉरल प्रेजुडिसिज प्रमुख हैं ।गे साइंस सूत्र कथन शैली की एक अन्य चर्चित रचना है जिसमें नीत्शे का अस्तित्ववादी चिंतन एक नयी उड़ान भरता है ।नीत्शे ने ईश्वर की मृत्यु जैसी उक्ति और शाश्वत वापसी/ रिकरेंस जैसे सिद्धांतों का प्रतिपादन इसी पुस्तक में किया है ।नीत्शे का निरीश्वरवाद असल में एक आह्वान है जो व्यक्ति को पारलौकिकता और पलायन से विमुख कर स्वतंत्रता और मौजूदा दुनिया की ओर प्रणत करने पर ज़ोर देता है ।शाश्वत वापसी का मत भी इसी बात की तस्दीक़ करता है कि मौजूदा दुनिया के अलावा ऐसी कोई दुनिया नहीं है जहां व्यक्ति पलायन कर सके ।
23- फ्रेड्रिख नीत्शे के समूचे कृतित्व में दस स्पोक जरथ्रुस्त्र, अ बुक फ़ॉर ऑल ऐंड नन सबसे प्रसिद्ध रचना मानी जाती है ।जरथ्रुस्त्र को नीत्शे ने एक एकाकी,अंतर्मुखी, ध्यानस्थ, रिषि तुल्य व्यक्तित्व के रूप में दर्शाया है ।मनुष्यता की इस उच्चतर अवस्था को नीत्शे सुपरह्यूमन कहते हैं ।लौकिक संसार में बार बार ऐसा व्यक्ति लौटना चाहता है जो मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से दुरुस्त होने के साथ जीवन को उसकी सम्पूर्णता में चाहता हो ।लिहाज़ा सुपरह्यूमन वही हो सकता है जो हर परिस्थिति में टकराने का जीवट रखता हो
24- नीत्शे ने शास्त्रोक्त मान्यताओं और अवधारणाओं पर जीवन की ठोस परिस्थितियों के कोण से विचार किया है ।उनकी यह प्रवृत्ति उनकी रचना बियांड गुड ऐंड ईविल, प्रील्यूड टू अ फिलॉसफी ऑफ द फ्यूचर में सबसे मुखर रूप से प्रकट होती है ।जहां वे अच्छाई और बुराई की शाश्वत मान्यताओं से परे जाकर शोषण, वर्चस्व, निर्बल के प्रति अन्याय, ध्वंस और दूसरों पर आधिपत्य ज़माने जैसी प्रवृत्तियों में निहित नैतिकता को सार्वभौमिक रूप से आपत्तिजनक व्यवहार मानने से इंकार करते हैं ।नीत्शे ने एक आरोही क़िस्म की नैतिकता प्रस्तावित की है जिसका मतलब यह है कि निम्नवर्ग तथा कुलीन वर्ग के लिए नैतिकता के मापदंड अलग-अलग होंगे ।
25- नीत्शे ने अपनी रचना ऑन जीनियालॉजी ऑफ मॉरल्स में भी नैतिकता पर विचार किया है ।जिसका सार यह है कि व्यवहार का औचित्य व्यक्ति की स्थिति के हिसाब से तय किया जाना चाहिए ।यानी औचित्य का निर्धारण इस आधार पर किया जाना चाहिए कि सम्बन्धित व्यक्ति कमजोर, बीमार और पतनशील है या कि मज़बूत, ताकतवर और जीवन की ऊर्जा से भरा हुआ है ।ईसाइयत की नैतिक वर्जनाओं पर नीत्शे ने अपनी रचना द एंटी क्राइस्ट, कर्स ऑन क्रिश्चियनिटी में भी प्रहार किया है ।
26- वस्तुतः, नीत्शे एक प्रतिमाभंजक और प्रतिष्ठान विरोधी दार्शनिक हैं ।वे सामाजिक जीवन, इतिहास, धर्म और शास्त्रों की स्थापित मान्यताओं को स्वीकार नहीं करते ।अंग्रेज़ी भाषी देशों में नीत्शे को एक लम्बे समय तक नाज़ीवाद का समर्थक माना जाता रहा है ।पाँचवें और छठवें दशक में वाल्टर कॉफमैन और आर्थर दांतो जैसे विद्वानों ने नीत्शे से जुड़े ऐतिहासिक संदर्भों को दुरुस्त करते हुए उन्हें अंग्रेज़ी दुनिया में नए शिरे से प्रतिष्ठा दिलायी ।
27- फ्रेड्रिख वॉन हायक (1899-1992) मुक्त लाभों की पैरोकारी करने वाले ऑस्ट्रियाई मूल के अर्थशास्त्री हैं ।उनकी मान्यता थी कि सरकार द्वारा किया गया आमदनी का कोई भी वितरण अमीरों और ग़रीब दोनों को नुक़सान पहुँचाने वाला होता है ।बाज़ार को नियंत्रित करने की कोशिश का नतीजा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित करने, आर्थिक दक्षता को घटाने और जीवन स्तर में कटौती करने में निकलता है ।बाज़ार के परिणामों को न्याय- अन्याय की कसौटी पर कसना उचित नहीं है ।वर्ष 1944 में प्रकाशित हायक की पुस्तक रोड टु सर्फडम ने उन्हें पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया ।
28- फ्रेड्रिख वॉन हायक बेरोज़गारी की वजह को बाज़ार में ग़लत क़िस्म की चीजों की माँग के कारण मानते थे ।वे सरकारी धन खर्च करके किए जाने वाले निर्माण कार्यों, समर्थन मूल्य निर्धारित करने और उपभोक्ता माँग को प्रोत्साहित करने वाले उपायों के आलोचक थे ।उनका मानना था कि मुद्रास्फीति से निबटने के लिए मनी सप्लाई में कटौती की जानी चाहिए ।हायक ने बड़ी निजी फ़र्मों और बड़े बैंकों को अपनी मुद्रा छापने का अधिकार देने का सुझाव दिया ।वर्ष 1974 में गुन्नार मिर्डाल के साथ हायक को भी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
29- फ़्रैंकफ़र्ट स्कूल, जर्मनी के फ़्रैंकफ़र्ट शहर में स्थापित वह संस्था थी जिसे फ़्रैंकफ़र्ट इंस्टीट्यूट फ़ॉर सोशल रिसर्च के नाम से जाना जाता था ।इस संस्था से जुड़े प्रमुख विद्वानों में मैक्स होर्खाइमर, थियोडोर एडोर्नो, एरिक फ्रॉम, हर्बर्ट मार्क्यूज और वाल्टर बेंजामिन के नाम प्रमुख हैं ।कालान्तर में युर्गेन हैबरमास और ग्योर्गी लूकॉच के लेखन ने भी फ़्रैंकफ़र्ट स्कूल को प्रभावित किया ।फ़्रैंकफ़र्ट स्कूल अपने सदस्यों के मार्क्सवाद से भिन्न तरह के जुड़ाव के लिए जाना जाता है ।यहाँ एक ख़ास तरह के हेगेलियन मार्क्सवाद की परिकल्पना की गई जो बीसवीं सदी के पूंजीवाद की व्याख्या के अधिक अनुकूल थी ।
30- फ़्रैंकफ़र्ट स्कूल को वर्ष 1933 में हिटलर के राजनीतिक उत्थान ने जर्मनी के बाहर आश्रय ढूँढने के लिए विवश कर दिया ।स्कूल का केन्द्र पहले जिनेवा में स्थापित किया गया और फिर 1935 में न्यूयार्क ले ज़ाया गया ।कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से जुड़ने के बाद स्कूल का जर्नल स्टडीज़ इन फिलॉसफी ऐंड सोशल साइंस के नाम से अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने लगा ।वर्ष 1953 में पुनः स्कूल को फ़्रैंकफ़र्ट में स्थापित कर दिया गया ।होर्खाइमर और एडोर्नो ने अमेरिका प्रवास में संयुक्त रूप से डायलेक्टिक्स ऑफ ऐनलाइटनमेंट नामक कृति की रचना की ।
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