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ह्वेनसांग की भारत यात्रा- अफगानिस्तान में…

Posted on जून 9, 2020जुलाई 13, 2020

अफगानिस्तान में,

दक्षिण एशिया में स्थित अफगानिस्तान आज एक इस्लामिक गणराज्य है। इसके पूर्व में पाकिस्तान, उत्तर- पूर्व में भारत तथा चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान व कजाकिस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान व पश्चिम में ईरान स्थित है। 34 प्रांतों में विभाजित अफगानिस्तान की कोई समुद्री सीमा नहीं है। काबुल और कंधार यहां के प्रमुख नगर हैं। यहां की सर्वाधिक आबादी “पश्तून” तथा भाषा “पश्तो” है।

Bamyan Afganisthan
बामयान बुद्ध, बामयान, अफगानिस्तान।

अफगानिस्तान मध्य एशिया तथा पश्चिम एशिया को भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति से जोड़ता है। काबुल यहां का सबसे बड़ा शहर तथा देश की राजधानी है। यहीं मुग़ल बादशाह बाबर की कब्र है जिसे शेरशाह सूरी के द्वारा यहां लाकर दफनाया गया था। कभी अफगानिस्तान में बौद्ध धर्म एक प्रमुख शक्ति था। अभी हाल में हुई खुदाई में यहां पर पूरे बौद्ध नगर के अवशेष मिले हैं। कांधार या कंदहार काबुल से लगभग 28 मील दक्षिण- पश्चिम में 3,462 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से नये चमन तक रेल लाइन है। यह कभी सम्राट अशोक के साम्राज्य का एक अंग था। उनका एक शिलालेख भी यहां से मिला है।

भारत की अपनी यात्रा को सम्पन्न कर ह्वेनसांग अफगानिस्तान में आया। यहां उसका पहला पड़ाव सुकुच अथवा साउकूट देश था। कनिंघम ने इसकी पहचान “अरचौसिया” के रूप में की है। इसकी राजधानी हासल की पहचान मार्टिन ने गजनी के रूप में की है। यह स्थान आज कल अफगानिस्तान में है। यात्री ने लिखा है कि इस देश का क्षेत्रफल लगभग 7 हजार ली और राजधानी लगभग 30 ली के घेरे में है। यह स्थान पहाड़ और घाटियों के बीच में सुरक्षित है। बीच बीच में खेती योग्य जमीन है। गेहूं अच्छा पैदा होता है। ह्वेनसांग ने लिखा है कि यहां पर कई सौ संघाराम हैं जिनमें लगभग 10 हजार साधु निवास करते हैं जो महायान सम्प्रदाय का अध्ययन करते हैं। यहां का शासक सच्चा और धर्म निष्ठ है तथा अनेकानेक पीढ़ी से राज्याधिकारी चला आया है धार्मिक कार्यों में खूब परिस्रम करता है, सुशिसुशिक्षित है और विद्या का प्रेमी है। यहां पर कोई 10 स्तूप अशोक राजा के बनवाए हुए हैं।(पेज नं. 411)

आज गजनी अफगानिस्तान के दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित एक प्रमुख शहर है और गजनी प्रांत की राजधानी भी। यह काबुल से कंदहार जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। यहां आधे लोग पश्तून हैं।हजारा और ताजिक समुदाय के लोग भी यहां पर रहते हैं। 22,915 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए इस प्रांत की जनसंख्या लगभग दस लाख है।

मेस अयनक स्तूप , अफगानिस्तान ।

वहां से लगभग 500 ली उत्तर दिशा में चलकर ह्वेनसांग फोलीशिसट अंगन अथवा पशुरस्थान या वदस्थान पर आया। इसकी राजधानी उपिन थी। उसने लिखा है कि इस देश में शीत बहुत होती है। राजा जाति का तुर्क है। लोग उपासना के तीनों बहुमूल्य रत्नों पर विश्वास करते हैं। राजा विद्या की प्रतिष्ठा और विद्वानों का सत्कार खूब करता है। (पेज नं 412) यहां से पूर्वोत्तर पहाड़ों और नदियों को पार कर, कपिस देश की सीमा से होते हुए वह ” पोलोसिन” पहाड़ी दर्रे पर आया। इस दर्रे की पहचान ” ख़ैबर दर्रा” तथा पहाड़ की पहचान ” हिंदुकुश पहाड़ ” के रूप में की गई है। यह स्थान 13 हजार फीट ऊंचा है। इसके रास्ते जंगली और भयानक तथा पेंचीदे हैं। गुफाएं अनेक हैं। यहां पर हवा बहुत बर्फीली तथा जानलेवा होती है। विस्राम करने का कोई स्थान नहीं है।(पेज नं 412) ह्वेनसांग ने तीन दिन में इस दर्रे को पार किया और ” अण्टलोपी” (अंदराव) देश में आया।

बुद्धिस्ट स्तूप न. 6, अफगानिस्तान ।

यात्री ने लिखा है कि तुहोला देश का प्राचीन स्थान यही है। यहां पहाड़ और घाटियॉं बहुत दूर तक फैली हुई हैं। जलवायु बड़ी ही कष्टप्रद होती है। यहां पर बहुत थोड़े से लोग बुद्ध धर्म पर विश्वास करते हैं।कोई तीन संघाराम और थोड़े से साधु हैं जो महायान सम्प्रदाय का अध्ययन करते हैं। अशोक राजा का बनवाया हुआ एक स्तूप भी है। यहां से उत्तर- पश्चिम 400 ली चलकर ह्वेनसांग ” कओह सिटो”अथवा खोस्त देश में आया। उसने लिखा है कि यह एक पहाड़ी देश है। यहां पर भी वायु बर्फीली तथा शीत बहुत होती है। कोई तीन संघाराम और बहुत थोड़े से साधु निवास करते हैं। यहां से उत्तर पश्चिम पहाड़ों और घाटियों को पार करते हुए वह लगभग 3 हजार ली चलकर होंह अथवा कुन्दुज देश में आया। यह स्थान भी ठंडा रहता है। (पेज नं 413) यहां ऊनी वस्त्र पहनते का चलन है। बहुत से लोग बुद्ध धर्म को मानने वाले हैं। कोई 10 संघाराम और कई सौ साधु हैं जो हीन और महा दोनों यानों का अध्ययन करते हैं। राजा जाति का तुर्क है।(पेज नं 414) यहां से पूर्व दिशा में चलकर ह्वेनसांग सुंगलिंग पहाड़ पर पहुंचा। इसकी पहचान पामीर के पठार के रूप में की गई है।

खोस्त आज पूर्वी अफगानिस्तान का एक शहर है जो पाकिस्तान सीमा के निकट स्थित एक पर्वतीय इलाका है। 4,152 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए इस शहर की आबादी लगभग 6.4 लाख है। यहां की सामाजिक व्यवस्था क़बीलाई है तथा अधिकतर निवासी पश्तो भाषी पठान हैं। इसी से लगा हुआ अफगानिस्तान का एक और पूर्वी प्रांत लमगान है। 3,843 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए इस प्रांत की राजधानी मेहतरलाम है तथा आबादी लगभग 3.8 लाख है। यहां पर पश्तून लोग बहुसंख्यक हैं।नूरिस्तानी और पाशाई लोग भी यहां पर रहते हैं। इस प्रांत में आलीगार नदी बहती है जो काबुल नदी की उपनदी है। यहां अरामाई भाषा में लिखी अशोक राजा के आदेश वाली दो शिलाएं हैं।

ashokan inscription
अशोक राजा का द्विभाषिक शिलालेख, कांधार, अफगानिस्तान ।

आगे चलकर ह्वेनसांग मुज्जन,ओलिनी,होलहू, किलिसिमो, पोलहो राज्य को पार कर हिमोतल देश में आया। यहां कभी शाक्य वंशीय शासन था।(पेज नं 416) यहां से आगे वह पोटो चंगन अथवा बदख्शां देश में आया। यहां पर भी वायु बर्फीली होती है। लोगों को पढ़ने लिखने और शिल्प का ज्ञान नहीं है। ऊनी वस्त्र पहनने का चलन है। कोई तीन संघाराम हैं जिनमें अनुयाई बहुत थोड़े से हैं। राजा धर्मिष्ठ है और उपासना के तीनों अंगों की प्रतिष्ठा करता है।(पेज नं 416)

वहां से चलकर ह्वेनसांग, यमगान होते हुए क्यूलंगन देश में आया। उसने लिखा है कि यहां पर बहुत थोड़े लोग हैं जो बुद्ध धर्म पर विश्वास करते हैं। संघाराम बहुत थोड़े से हैं। राजा धर्मिष्ठ और सरल ह्रदय का है। वह उपासना के तीनों अंगों की प्रतिष्ठा और भक्ति करता है। यहां से पूर्वोत्तर एक पहाड़ पर चढ़कर और घाटियों को पार करते हुए वह टमोसिटैइटी राज्य में आया। इस देश का क्षेत्रफल लगभग 15 सौ ली है।(पेज नं 417) यहां पर कोई दस संघाराम हैं जिनमें थोड़े से साधु निवास करते हैं। इस देश के मध्य में किसी प्राचीन नरेश का बनवाया हुआ एक संघाराम है (पेज नं 418) संघाराम के मध्य में एक विहार अरहट का बनवाया हुआ है जिसके भीतर बुद्ध देव की एक पाषाण प्रतिमा है जिसके ऊपर मुलम्मा किया हुआ तांबे का पत्र चढ़ा हुआ है। यह बहुमूल्य रत्नों से सुसज्जित है।(पेज नं 419)

buddhist monastry afganishtan
सीढ़ी का मार्ग, चौखिल-ए-घौंडी बुद्धिस्ट मठ, अफगानिस्तान।

यहां से चलकर ह्वेनसांग शिकइनी (शिखनान) से होता हुआ शाम्भी देश में आया। उसने लिखा है कि यहां का राजा शाक्य वंशीय है और बुद्ध धर्म की बड़ी प्रतिष्ठा करता है।लोग उसका अनुसरण करते हैं और उस पर विश्वास करते हैं। यहां पर कोई दो संघाराम और बहुत थोड़े से साधु हैं।(पेज नं 421) देश की उत्तरी पूर्वी सीमा पर पहाड़ियों और घाटियों को लांघ कर वह पामीलो अर्थात् पामीर घाटी तक आया।इस घाटी का विस्तार पूर्व से पश्चिम तक दस हजार ली तथा उत्तर से दक्षिण तक सौ ली है। यह बर्फीले पहाड़ों में स्थित है। गर्मी और बसंत दोनों ऋतुओं में बर्फ पड़ती है।पामीर घाटी के मध्य में नावह्रद नामक एक बड़ी झील है। यह पहाड़ के मध्य में स्थित है और जम्बूद्वीप का केन्द्र भी है।इसका जल दर्पण के समान स्वच्छ है।इसकी गहराई की थाह नहीं है। झील का रंग गहरा नीला और जल मीठा है।जल के ऊपर तैरने वाले पक्षी तथा हंस निवास करते हैं।(पेज नं 421) सम्भवतः आजकल इसे ही मानसरोवर कहते हैं।

पामीर पर्वतों के इलाके में स्थित “बदख्शां” आज अफगानिस्तान का एक प्रांत है। यह मध्य एशिया का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है। इसे यह नाम ईरान के सासानी साम्राज्य ने दिया है जो एक सरकारी उपाधि होती थी। यहां पर ताजिक लोग बहुसंख्यक समुदाय में हैं। उजबेक और किरगिज जैसे अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी यहां पर हैं। कई क्षेत्रों में पामीरी भाषा बोलने वाले लोग भी रहते हैं। अफगानिस्तान के मध्य भाग में स्थित बामियान भी यहां का प्रसिद्ध शहर है। बुद्ध देव की दो विशालकाय प्रतिमाएं यहीं पर थी जिनका उल्लेख आइने अकबरी में भी है।

इसी के पास गोर प्रांत में हरी नदी के किनारे पहाड़ी चट्टान में तराश कर बनाया गया बौद्ध मठ भी मिला है। “गोर” शब्द का अर्थ पहाड़ होता है। कहते हैं कि अफगानिस्तान के एक प्रांत बल्ख की राजधानी मजारे शरीफ़ में ईरान के सन्त जरथुष्ट का मकबरा है। यह देश के उत्तरी भाग में स्थित है।


– डॉ.राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी

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6 thoughts on “ह्वेनसांग की भारत यात्रा- अफगानिस्तान में…”

  1. RAMDARASH SINGH YADAV कहते हैं:
    जून 9, 2020 को 4:54 अपराह्न पर

    धन्यवाद आपको डॉक्टर साहब

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      जून 9, 2020 को 5:39 अपराह्न पर

      आप को भी धन्यवाद सर

      प्रतिक्रिया
  2. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    जून 9, 2020 को 2:01 अपराह्न पर

    अफगानिस्तान लंबे समय तक भारत का ही अंग रहा है मौर्य से लेकर कनिष्क आदि ने इसे अपने अधीन ही नही रखा बल्कि इसका अदभुत विकास भी किया, किन्तु आज तालिबानियों ने न सिर्फ इसके स्वर्णिम इतिहास एक अवशेषों को धवस्त कर दिया है बल्कि इसके भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। आपका विस्तृत आलेख ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध एवं सराहनीय है।

    प्रतिक्रिया
    1. अनाम कहते हैं:
      जून 9, 2020 को 4:03 अपराह्न पर

      धन्यवाद आपको डॉ साहब

      प्रतिक्रिया
  3. Dr. SITA RAM SINGH कहते हैं:
    जून 9, 2020 को 10:22 पूर्वाह्न पर

    अद्भुत सुन्दर व्याख्या.. बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      जून 9, 2020 को 10:35 पूर्वाह्न पर

      धन्यवाद आपको डाक्टर साहब

      प्रतिक्रिया

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