उज्जयिनी नगरी
सौराष्ट्र की अपनी यात्रा को सम्पन्न कर ह्वेनसांग वहां से दक्षिण- पश्चिम लगभग 2800 ली चलकर “उशेयनना” देश में आया। इसे “उज्जयिनी” के नाम से जाना जाता था। आजकल यह “उज्जैन” है और मध्य प्रदेश का एक प्रमुख जिला है जो “मालवा अंचल” में आता है। क्षिप्रा नदी के पूर्वी भाग पर स्थित उज्जैन मध्य -प्रदेश का पांचवां सबसे बड़ा शहर है। इसे महाकाल की नगरी भी कहा जाता है। वर्तमान समय में यहां की आबादी 515,215 है। यहां की साक्षरता दर 85.55 है। इसके उत्तर में विन्ध्य की पहाड़ियां हैं यहां से “कर्क रेखा” गुजरती है। भौगोलिक रूप से यह देश का पश्चिमी -मध्य भाग है। यहां “अवंतिका” विश्वविद्यालय,”विक्रम” विश्वविद्यालय तथा “महर्षि पाणिनि” विश्वविद्यालय जैसे उत्कृष्ट शिक्षण संस्थान हैं। यहां हवाई अड्डा नहीं है परन्तु बेहतर रेल सेवा उपलब्ध है। उज्जैन को “विक्रमादित्य की नगरी” भी कहते हैं।
उज्जयिनी नगरी का गौरवशाली इतिहास ईसा पूर्व 600 से मिलता है। जब देश 16 महाजनपदों में विभाजित था तब उज्जयिनी “अवंति” की राजधानी थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने इसे मगध में मिला लिया था।जब बिंदुसार मगध के राजा बने तब उन्होंने यहां के चार प्रांतों को मिलाकर इसे अलग पहचान दिया तथा अपने पुत्र अशोक को उज्जयिनी का गवर्नर बनाया। अशोक मगध के राजा बनने से पूर्व 11 वर्ष तक यहां के गवर्नर रहे। यहीं अशोक ने विदिशा के एक व्यापारी की बेटी “देवी” से विवाह किया। उज्जयिनी में ही रानी देवी से अशोक के एक पुत्र “महेन्द्र” तथा बेटी “संघमित्रा” का जन्म हुआ। इस प्रकार सम्राट अशोक का उज्जैन से गहरा रिश्ता है। आज़ भी पूरे उज्जैन में सम्राट अशोक की स्मृतियां और बौद्ध धर्म दिखता है। इसे “अवंतिकापुरी” पुरी के नाम से भी जाना जाता था।
ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि इस देश का क्षेत्रफल लगभग 6 हजार ली और राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 30 ली है। आबादी घनी और जनसमुदाय सम्पत्तिशाली हैं। कोई 50 सों संघाराम हैं जो सबसे सब उजाड़ हैं। केवल 2,4 ऐसे हैं जिनकी अवस्था सुधरी हुई है। कोई 300 साधु हैं जो हीन और महा दोनों यानों का अध्ययन करते हैं। नगर से थोड़ी दूर पर एक स्तूप है। इस स्थान पर अशोक राजा ने लेख बनवाया था।(पेज नं 400) कालांतर में ( 1936) इस स्तूप की पहचान “कणिपुरा” स्तूप के रूप में हुई है। आजकल इसे”वैश्य टेकरी” के नाम से जाना जाता है। 1951 से इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया है। माना यह जाता है कि इस स्तूप में बुद्ध देव का चीवर था। रानी देवी इसकी पूजा करती थीं। यह चीवर अवंति को बांटे में मिला था। पास में ही दो छोटे- छोटे स्तूप हैं। सम्भवतः यह महेंद्र और संघमित्रा की स्मृतियां हैं।
“क्षिप्रा” नदी के पास “सुडान” गांव में की गई खुदाई में विहार के अवशेष मिले हैं। यहां पर एक स्तंभ भी मिला है जिसमें नालंदा बिहार लिखा मिला है। यह भी सम्भावना जताई जा रही है कि उज्जयिनी से ही हैदराबाद, भरूच और पाटलिपुत्र को तीन सड़कें जाती थीं जिनका निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था। यहां से लगभग 1 हजार ली उत्तर- पूर्व में चलकर ह्वेनसांग “चिकिटा” राज्य में आया।
यात्री ने लिखा है कि “चिकिटा” राज्य का क्षेत्रफल लगभग 4 हजार ली और राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 15 ली है। भूमि उत्तम उपज के लिए प्रसिद्ध है।सेम और जौ अच्छा पैदा होता है। यहां पर थोड़े से लोग बुद्ध धर्म को मानते हैं। संघाराम तो बीसों हैं पर उनमें साधु बहुत थोड़े से हैं। राजा जाति का ब्राम्हण है परन्तु त्रिरत्न का अनुयाई है। ज्ञानवान लोगों की प्रतिष्ठा करता है। यहां से वह “मोहीशीफालो” अर्थात् “महेश्वरपुर” आया। यहां से वापस पीछे लौटकर गुजरदेश और वहां से उत्तर दिशा में बीहड़ रेगिस्तान और भयंकर मार्गों से होते हुए सिंधु नदी पार कर वह सिंटु (सिंध) देश में आया।(पेज नं 401)
ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि “चिकिटो” राज्य सांची के आस पास का कोई क्षेत्र रहा होगा। सांची से थोड़ी दूर पर एक “तालपुरा” गांव है। यहां पर एक “चाकला” पहाड़ है जहां पर बौद्ध धर्म के अवशेष मिले हैं। यहां पर पत्थर की दीवारों पर पेंटिंग है जिसमें तथागत भगवान् का सुंदर चित्रण किया गया है। स्तूप के खंडहर हैं। पास में “हलाली” नदी है। पास में ही “सतधारा” स्तूप है।
सांची
यहां से थोड़ी दूर पर यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया स्थल “सांची” है। आजकल यह मध्य- प्रदेश राज्य के “रायसेन” जनपद में आता है। बेतवा नदी के तट पर स्थित इस स्तूप को सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था। इस स्तूप में तथागत भगवान् का अस्थि कलश है। इसके शिखर पर धर्म का प्रतीक,विधि का चक्र लगा हुआ था। यह स्मारक को दिए गए सम्मान का प्रतीक था। इस स्तूप के तोरणद्वारों में बुद्ध देव के जीवन की घटनाएं दैनिक जीवन शैली से जोड़कर दिखाई गई हैं।इन पाषाण नक्काशियों में बुद्ध को कभी भी मानव आकृति में नहीं दर्शाया गया है बल्कि कारीगरों ने उन्हें कहीं घोड़ा,जिस पर उन्होंने गृह त्याग किया था, तो कहीं उनके पादचिंह, कहीं बोधिवृक्ष के नीचे का चबूतरा, जहां पर उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी, के रूप में दर्शाया गया है। सांची की दीवारों के बार्डरों पर बने हुए चित्रों में यूनानी पहनावा, मुद्रा, वस्त्र एवं वाद्ययंत्र भी दर्शनीय है। स्तूप की वेदिकाओं,स्तम्भों पर अनेक गांवों, शहर के लोगों, उनके सम्बंधियों तथा दान दाताओं के नाम ब्राम्ही लिपि में लिखे हुए हैं। सांची स्तूप पर सप्त बुद्ध का भी रेखांकन है। इसमें तीन स्तूप एवं चार बोधिवृक्ष के माध्यम से सप्त बुद्ध को दर्शाया गया है।
सांची के स्तूप के पश्चिम में सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय का एक लेख है जिसमें 93 गुप्त संवत्सर दिया गया है जो 412 ई के बराबर होता है। इस शिलालेख में ही चंद्र गुप्त के एक अधिकारी के दान का भी जिक्र है। यही चंद्रगुप्त द्वितीय है जिसने नागकुल की कुबेर नागा नामक कन्या से विवाह किया था।
सन् 1818 में सांची के स्तूप का पता एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर ने पहली बार लगाया।जान मार्शल की देख रेख में 1912 से 1919 के बीच इसका पुनर्निर्माण किया गया। 1989 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया।उदयगिरि से सांची पास है। यहां अनेक बौद्ध स्तूप हैं। सांची स्तूपों की कला विश्व विख्यात है। सांची से 5 मील सोनारी के पास 8 बौद्ध स्तूप हैं और सांची से 7 मील पर भोजपुर के पास 37 बौद्ध स्तूप हैं। सांची में एक सरोवर है जिसकी सीढ़ियां बुद्ध देव के समय की कही जाती हैं। भोपाल यहां से 45 किलोमीटर दूर है। सांची छोटा रेलवे स्टेशन है जो भोपाल से दिल्ली मार्ग पर स्थित है।रेल सेवा बेहतर है। यहां का संग्रहालय भी दर्शनीय है। सांची के फाटक वर्तमान समय में देश में सबसे प्राचीन शिल्प हैं।
उज्जयिनी आदिकाल से ही बहुत महत्वपूर्ण स्थल रहा है। सटीक और सारगर्भित विश्लेषण के लिये धन्यवाद सर।
उज्जयिनी बहुत प्रिय नगरी थी
उज्जैन का बौद्द साहित्य में उल्लेखनीय योगदान रहा है।जिसका वर्णन आपने अपनी लेखन द्वारा किया है।आपको बहुत बहुत साधुवाद।डॉ लवली मौर्य
आप को भी धन्यवाद डॉ साहब
नागवंशी समुदाय अब लगभग विलुप्त हो चुका है। विदिशा का योगदान अशोक को सम्राट अशोक महान बनाने में बहुत अधिक है। ज्ञानवर्धन के लिए आपका आभार।
विलुप्त नहीं बल्कि अपने को विस्मृत कर चुका है। धन्यवाद आपको, लगातार संवाद करते रहने के लिए।
Bahut achcha yah likha gaya aapke sath is site chalenge to ujjen hote chalenge…..
निश्चित ही। उत्साहवर्धन करते रहिए। धन्यवाद आपको।