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ह्वेनसांग की भारत यात्रा- कलिंग, कोशल और अन्ध्र देश…

Posted on मई 18, 2020जुलाई 13, 2020
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कलिंग

यात्रा के अगले चरण में ह्वेनसांग “कयी लिंग किया” अर्थात् “कलिंग” राज्य में आया। आजकल यह उड़ीसा, आंध्र प्रदेश का उत्तरी भाग तथा छत्तीसगढ़ राज्य तक फैला हुआ है।

कनिंघम मानते हैं कि उस समय कलिंग देश की सीमा दक्षिण- पश्चिम में गोदावरी नदी से आगे और उत्तर- पश्चिम में गौलिया नदी से,जो इन्द्रवती नदी की शाखा है, आगे नहीं हो सकती है। इसका मुख्य नगर कदाचित “राजमहेन्द्री’ था, जहां पर चालुक्य राजाओं ने अपनी राजधानी बनायी थी। एक मान्यता यह भी है कि उस समय कलिंग की पूर्वी सीमा बंगाल की खाड़ी से तथा पश्चिमी सीमा अमरकंटक की पहाड़ियों से मिलती थी। ह्वेनसांग ने लिखा है कि इस राज्य का क्षेत्रफल 5 हजार ली और इसकी राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 20 ली है। यहां की प्रकृति आग के समान है। जंगल और झाड़ी की भरमार है। यहां कोई 10 संघाराम हैं जिनमें 500 संन्यासी निवास करते हैं। सभी स्थविर संस्थानुसार महायान सम्प्रदाय का अनुशीलन करते हैं।(पेज नं 349)

shanti stupa orissa
शांति स्तूप, धौली, भुबनेश्वर, उड़ीसा।

यात्री ने लिखा है कि प्राचीन काल में “कलिंग” देश बहुत घना बसा हुआ था। इस कारण मार्ग में चलते समय लोगों के कंधे से कन्धे घिसते थे और रथों के पहियों के धुरे एक दूसरे से रगड़ खाते थे। राजधानी के दक्षिण में थोड़ी दूर पर कोई 100 फ़ीट ऊंचा अशोक राजा का बनवाया हुआ एक स्तूप है। इसके पास गत चारों बुद्धों के उठने-बैठने आदि के चिन्ह हैं। इस देश की उत्तरी सीमा के निकट एक बड़ा पहाड़ (कदाचित महेन्द्र गिरि) है जिसके करार के ऊपर एक पत्थर का स्तूप लगभग 100 फ़ीट ऊंचा बना हुआ है। इस स्थान पर कोई प्रत्येक बुद्ध निर्वाण को प्राप्त हुआ था।(पेज नं 350)

buddha statue amravati
ध्यान बुद्धा मूर्ति, अमरावती, आन्ध्र प्रदेश।

कोशल

ह्वेनसांग कलिंग देश से 18 सौ ली पश्चिमोत्तर दिशा में जंगलों और पहाड़ों को पार कर “किया वसलो” अर्थात् “कोशल” देश में आया। इस देश की राजधानी का ठीक-ठीक निश्चय नहीं हो पाया। कनिंघम प्राचीन कोशल,बरार और गोंडवाना के सूबे को समझते हैं तथा राजधानी का निश्चय चांदा, (जो राज महेंद्री से 290 मील उत्तर पश्चिम दिशा में एक नगर है) नागपुर, अमरावती और इलिचपुर में से किसी एक के साथ करते हैं। परंतु अंतिम तीनों स्थान कलिंग की राजधानी से बहुत दूर हैं। यदि हम 5 ली का एक मील मानें तो नागपुर या अमरावती की दूरी राजमहेन्द्री से 18 सौ या 19 सौ ली, जैसा कि ह्वेनसांग लिखता है,हो सकती है।(पेज नं 350) यहां पर उस समय कई सौ संघाराम और लगभग 10 हजार साधु थे। सभी महायान सम्प्रदाय का अनुशीलन करते हैं।

nagarjun bodhisattva
नागार्जुन बोधिसत्व, नागार्जुन पहाड़ी, गुंटूर जिला, आंध्र प्रदेश,भारत।

नगर के दक्षिण में थोड़ी दूर पर एक संघाराम बना हुआ है जिसके बगल में एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। नागार्जुन बोधिसत्व इस संघाराम में रहा है।(पेज नं 351) नागार्जुन बोधिसत्व दवाएं बनाने में दक्ष थे। संघाराम से 300 ली दक्षिण-पश्चिम चलने पर “ब्रम्हगिरि” नामक पहाड़ है, जहां पर नागार्जुन ने अपने प्राणों का अंत किया था। कालांतर में इस स्थान पर “सदेह’ राजा ने नागार्जुन बोधिसत्व के लिए चट्टान खोदकर उसके भीतरी मध्य भाग में एक संघाराम बनवाया था। इसमें जाने के लिए कोई 10 ली दूरी से एक सुरंग कर बन्द मार्ग बनाया गया था। चट्टान के नीचे खड़े होने पर पहाड़ी खुदी हुई पायी जाती है और लम्बे लम्बे बरामदों की छतें स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं। इसके ऊंचे-ऊंचे कंगूरे और खंडबद्ध भवन पांच खण्ड़ तक पहुंचे हुए हैं। प्रत्येक खंड में 4 कमरे और विहार परस्पर मिले हुए हैं। प्रत्येक विहार में बुद्ध देव की एक मूर्ति सोने की बनी हुई है। सम्पूर्ण आभूषण सोने और रत्नों के हैं।(पेज नं 355)

ashoka pillar orissa
अशोक स्तम्भ, धौली, भुबनेश्वर, उड़ीसा।

अन्ध्र देश

वहां से दक्षिण दिशा में एक घने जंगल में जाकर और कोई 900 ली चलकर ह्वेनसांग “अनतलो” अर्थात् “अन्ध्र” देश में पहुंचा। उस समय यहां पर कोई 20 संघाराम 3 हजार साधुओं सहित थे। यहां की राजधानी “विंगिला” (कदाचित यह वेंगी का प्राचीन नाम है जो गोदावरी और कृष्णा इन दोनों नदियों के मध्य में तथा “इलर झील”के उत्तर- पश्चिम में है और जो आंध्र- प्रदेश के अंतर्गत है) से थोड़ी दूर पर एक संघाराम बना हुआ है जहां पर बुद्ध देव की एक मूर्ति है। इस संघाराम के सामने एक पाषाण स्तूप कई सौ फीट ऊंचा है। यह दोनों पवित्र स्थल “अचल”नाम के अरहत के बनवाए हुए हैं।अचल का जिक्र अजन्ता की गुफा में भी आया है।(पेज नं 357)

chandavarnam stupa
चन्दावरणम स्तूप, चंदवरम उत्खनन स्थल, आंध्र प्रदेश।

अरहट के संघाराम के दक्षिण-पश्चिम में थोड़ी दूर पर एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। इस स्थान पर तथागत भगवान् ने प्राचीन काल में धर्मोपदेश करके और अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को प्रर्दशित कर असंख्य व्यक्तियों को शिष्य किया था। अचल के संघाराम के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 20 ली पर एक “सून्य” पहाड़ है जिसके ऊपर एक पाषाण स्तूप है। इस स्थान पर “जिन” बोधिसत्व ने “न्यायद्वार तारक शास्त्र” अथवा “हेतुविद्या शास्त्र” को निर्मित किया था। (पेज नं 357,358)

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– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो-संकेत सौरभ, झांसी ( उत्तर- प्रदेश)

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5 thoughts on “ह्वेनसांग की भारत यात्रा- कलिंग, कोशल और अन्ध्र देश…”

  1. अभय राज सिंह कहते हैं:
    मई 23, 2020 को 12:58 अपराह्न पर

    अत्यन्त रुचिकर एवं ज्ञानवर्धक समीक्षा है।

    प्रतिक्रिया
  2. अनाम कहते हैं:
    मई 19, 2020 को 11:48 पूर्वाह्न पर

    बौद्घ दर्शन की परम्परा, इतिहास पर अमिट छाप हैं और तत्कालीन समय युद्धों ने अनुशासन की पैरवी की होगी।।।। सर जी आपके लेख पाठको को हमेशा नवीन जानकारियां देते रहे हैं, आपका बहुत बहुत आभार।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 19, 2020 को 12:00 अपराह्न पर

      धन्यवाद आपको भी

      प्रतिक्रिया
  3. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    मई 18, 2020 को 4:16 अपराह्न पर

    कलिंग का महत्व भारतीय और बौद्ध इतिहास में बहुत अधिक है, शायद सम्राट अशोक महान यदि ये युद्ध न लड़ते तो शायद एक अगल दुनिया होती। ज्ञान वर्धन के लिए आपका आभार।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 18, 2020 को 6:01 अपराह्न पर

      Thank you very much Dr sahab

      प्रतिक्रिया

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