Skip to content
Menu
The Mahamaya
  • Home
  • Articles
  • Tribes In India
  • Buddhist Caves
  • Book Reviews
  • Memories
  • All Posts
  • Hon. Swami Prasad Mourya
  • Gallery
  • About
  • hi हिन्दी
    en Englishhi हिन्दी
The Mahamaya

ह्वेनसांग की भारत यात्रा- चोल तथा द्रविड़ देश में…

Posted on मई 20, 2020जुलाई 13, 2020
Advertisement

चोल तथा द्रविड देश में

“अन्ध्र” देश की अपनी यात्रा को सम्पन्न कर ह्वेनसांग वहां से दक्षिण- पश्चिम लगभग एक हजार ली चलकर “चुलिये” अर्थात् “चुल्य” अथवा “चोल” देश में आया।

ashokan pillar chennai
अशोक स्तंभ, अशोक नगर, चेन्नई, तमिलनाडु, भारत

उसने लिखा है कि इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग 2500 ली और राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 10 ली है। उस समय यह वीरान तथा जंगली देश था। डाकुओं का आतंक था। संघारामों की दशा अच्छी नहीं थी। नगर के दक्षिण- पूर्व थोड़ी दूर पर एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। यहां पर बुद्ध देव ने देवता और मनुष्यों की रक्षा के लिए अपने आध्यात्मिक चमत्कार को प्रदर्शित करते हुए धर्मोपदेश करके विरोधियों को परास्त किया था। नगर के पश्चिम में थोड़ी दूर पर एक प्राचीन संघाराम है।(पेज नं 364) इस स्थान पर एक अर्हत के साथ “देव” बोधिसत्व का शास्त्रार्थ हुआ था।

चोल राज्य से दक्षिण दिशा में लगभग एक हजार या 1500 ली चलकर ह्वेनसांग एक जंगल में आया।इसे पार कर वह “टलोपिच आ” (द्रविड) देश में पहुंचे। इस देश की राजधानी का नाम “कांचीपुर” है, जिसकी पहचान “कांजीवरम” के रूप में हुई है।(पेज नं 365) इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग 6000 ली तथा राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 30 ली है। भूमि उपजाऊ है। प्रकृति गर्म और मनुष्य साहसी हैं। लोग सच्चे और ईमानदार तथा विद्या के प्रेमी हैं। उसने लिखा है कि इस समय यहां पर कई सौ संघाराम हैं जिनमें 10 हजार साधु निवास करते हैं। यह लोग स्थविर संस्था के महायान सम्प्रदाय के अनुयाई हैं।

ekambareshwar temple
एकांबरेश्वर मंदिर, कांची की मिश्रित दीवार में बुद्ध देव के चित्र।

तथागत भगवान् ने प्राचीन काल में जब वह संसार में थे, इस देश में बहुत अधिक निवास किया था। जहां-जहां इस देश में उनका धर्मोपदेश हुआ था और लोग शिष्य किये गये थे, वहां- वहां सब पुनीत स्थानों पर अशोक राजा ने उनके स्मारक स्वरूप स्तूप बनवा दिए हैं। कांजीपुर नगर “धर्मपाल’ बोधिसत्व का जन्म स्थान है। वह इस देश के प्रधानमंत्री का बड़ा पुत्र था।(पेज नं 366) नगर के दक्षिण में थोड़ी दूर पर एक बड़ा संघाराम है जिसमें एक ही प्रकार के विद्वान, बुद्धिमान और प्रसिद्ध पुरुष निवास करते हैं। एक स्तूप भी कई सौ फीट ऊंचा अशोक राजा का बनवाया हुआ है।(पेज नं 367)

ekambareshwar temple
एकांबरेश्वर मंदिर, कांचीपुरम, तमिलनाडु।

कांजीवरम से 3000 ली के लगभग दक्षिण दिशा में जाकर ह्वेनसांग ” मोनो क्युचअ” अर्थात् “भालकूट” राज्य में आया। इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग 5000 ली तथा राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 40 ली है। यहां पर नमक बहुत होता है। यहां की प्रकृति गर्म है। लोगों के स्वभाव में क्रोध है। यह लोग पढ़ने – लिखने की बहुत परवाह नहीं करते हैं बल्कि पूरी तरह से व्यापार में लगे रहते हैं। इस स्थान के बारे में विद्वान शोध कर्त्ताओं में एक मत नहीं है। लेकिन यह समुद्र के पास का ही कोई स्थान था। उसने लिखा है कि इस देश में अनेक संघाराम थे परंतु आजकल सब बर्बाद हो गये हैं। केवल दीवारें मात्र अवशेष हैं। अनुयाई भी बहुत थोड़े हैं। इस नगर से उत्तर दिशा में थोड़ी दूर पर एक संघाराम बना हुआ है। इसे अशोक राजा के भाई महेंद्र ने बनवाया था। इस समय यहां पर घास- फूस और जंगल है। संघाराम की केवल दीवारें शेष हैं। इसके पूर्व में एक स्तूप है, जिसका निचला भाग भूमि में धंस गया है। केवल शिखर मात्र बाकी है। इसको अशोक राजा ने बनवाया था। इस स्थान पर प्राचीन काल में तथागत भगवान् ने धर्मोपदेश किया था।(पेज नं 368)

ekambareshwar temple
प्राचीन बुद्ध की प्रतिमा (खोई हुई) कांची के एकांबरेश्वर मंदिर के परिसर में।

इस देश के दक्षिण में समुद्र के किनारे तक “मलयांचल” है जिसकी ऊंची चोटियों और कगारों तथा गहरी घाटियों और वेगगामी पहाड़ी झरनों के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर चंदन के वृक्षों की बहुतायत है।इन पेड़ों में सर्प लिपटे रहते हैं। यात्री ने यह भी लिखा है कि जिस समय यह वृक्ष काटा जाता है और गीला होता है उस समय इसमें कुछ भी सुगंध नहीं आती। परंतु जैसे जैसे इसकी लकड़ी सूखती जाती है वैसे ही वह चिटकती जाती है और बत्तियां सी जमती जाती हैं। तब सुगंधित होती हैं। सम्भवतः यह आजकल का “मालाबार” रहा होगा।

potalak
पोथीगई मलाई, में ‘पोटलका’ (पोतलक पहाड़) , तमिलनाडु, भारत|

मलयागिरि के पास “पोतलक” पहाड़ है। इस पहाड़ के दर्रे बड़े भयानक हैं। पहाड़ की चोटी पर एक झील है जिसका जल दर्पण के समान निर्मल है। यहां से एक बड़ी नदी बहती है जो बीसों फेरे में पहाड़ को लपेटती हुयी दक्षिणी समुद्र में जाकर मिल गयी है। झील के निकट ही देवताओं की चट्टानी गुफा है। इस स्थान पर अवलोकितेश्वर बोधिसत्व आते जाते विश्राम किया करते हैं। यहां चन्दन एवं देवदारु के वृक्ष हैं। यहीं वह वृक्ष भी पाया जाता है जिससे कपूर निकाला जाता है। इस पहाड़ के उत्तर – पूर्व में समुद्र के किनारे से पोत दक्षिण सागर और लंका को जाते हैं। इसी बंदर से जहाज पर सवार होकर ह्वेनसांग दक्षिण- पूर्व में यात्रा करते हुए लगभग तीन हजार ली चलकर सिंघल देश में पहुंचा।(पेज नं 370)

Related -  पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, भाग- २०

“चिर काल से खामोश इन पिरामिडों में दफन हैं,

ज्ञान, शांति, प्रगति, मैत्री और करुणा का पैगाम।

भारत वासी अब पुनः जागने और कहने लगे हैं,

तथागत, तुम्हें कहीं न कहीं से आना ही होगा।”


– डॉ.राजबहादुर मौर्य, फोटो- संकेत सौरभ, झांसी (उत्तर- प्रदेश)

5/5 (9)

Love the Post!

Share this Post

4 thoughts on “ह्वेनसांग की भारत यात्रा- चोल तथा द्रविड़ देश में…”

  1. R L MAURYA LUCKNOW. कहते हैं:
    मई 23, 2020 को 3:14 अपराह्न पर

    nice and beautiful thoughts.

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 23, 2020 को 5:15 अपराह्न पर

      Lot of thanks sir

      प्रतिक्रिया
  2. अभय राज सिंह कहते हैं:
    मई 23, 2020 को 1:20 अपराह्न पर

    प्राचीन तथ्यों से निकट साक्षात्कार कराने के लिए धन्यवाद सर।

    प्रतिक्रिया
  3. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    मई 20, 2020 को 9:10 अपराह्न पर

    ज्ञान वर्धन हेतु आपको बहुत बहुत साधुवाद।

    प्रतिक्रिया

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Seach this Site:

Search Google

About This Blog

This blog is dedicated to People of Deprived Section of the Indian Society, motto is to introduce them to the world through this blog.

Posts

  • मार्च 2023 (2)
  • फ़रवरी 2023 (2)
  • जनवरी 2023 (1)
  • दिसम्बर 2022 (1)
  • नवम्बर 2022 (3)
  • अक्टूबर 2022 (3)
  • सितम्बर 2022 (2)
  • अगस्त 2022 (2)
  • जुलाई 2022 (2)
  • जून 2022 (3)
  • मई 2022 (3)
  • अप्रैल 2022 (2)
  • मार्च 2022 (3)
  • फ़रवरी 2022 (5)
  • जनवरी 2022 (6)
  • दिसम्बर 2021 (3)
  • नवम्बर 2021 (2)
  • अक्टूबर 2021 (5)
  • सितम्बर 2021 (2)
  • अगस्त 2021 (4)
  • जुलाई 2021 (5)
  • जून 2021 (4)
  • मई 2021 (7)
  • फ़रवरी 2021 (5)
  • जनवरी 2021 (2)
  • दिसम्बर 2020 (10)
  • नवम्बर 2020 (8)
  • सितम्बर 2020 (2)
  • अगस्त 2020 (7)
  • जुलाई 2020 (12)
  • जून 2020 (13)
  • मई 2020 (17)
  • अप्रैल 2020 (24)
  • मार्च 2020 (14)
  • फ़रवरी 2020 (7)
  • जनवरी 2020 (14)
  • दिसम्बर 2019 (13)
  • अक्टूबर 2019 (1)
  • सितम्बर 2019 (1)

Latest Comments

  • Dr. Raj Bahadur Mourya पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 40)
  • Somya Khare पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 40)
  • Dr. Raj Bahadur Mourya पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 39)
  • Kapil Sharma पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 39)
  • Dr. Raj Bahadur Mourya पर पुस्तक समीक्षा- ‘‘मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा एवं तथागत बुद्ध’’, लेखक- आर.एल. मौर्य

Contact Us

Privacy Policy

Terms & Conditions

Disclaimer

Sitemap

Categories

  • Articles (80)
  • Book Review (59)
  • Buddhist Caves (19)
  • Hon. Swami Prasad Mourya (22)
  • Memories (12)
  • travel (1)
  • Tribes In India (40)

Loved by People

“

015796
Total Users : 15796
Powered By WPS Visitor Counter
“

©2023 The Mahamaya | WordPress Theme by Superbthemes.com
hi हिन्दी
en Englishhi हिन्दी