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ह्वेनसांग की भारत यात्रा- नालंदा…

Posted on मई 12, 2020जुलाई 13, 2020
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नालन्द

वेणुवन विहार से 30 ली उत्तर दिशा में आगे चलकर ह्वेनसांग नालन्द (नालन्दा) संघाराम में आया।आज नालंदा बिहार की राजधानी पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व तथा राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गांव के पास स्थित है।

nalanda university
नालंदा विश्वविद्यालय के खँडहर, नालंदा, बिहार।

कनिंघम ने इसकी पहचान मौजा बड़ा गांव के रूप में किया है। यह दुनिया का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था। यहां छात्रों की संख्या लगभग 10 हजार तथा अध्यापकों की संख्या लगभग 2 हजार होती थी। इस महाविहार में 7 बड़े कक्ष और 300 अन्य कमरे थे जहां व्याख्यान हुआ करते थे। छात्रों के रहने के लिए 300 कक्ष बने हुए थे। यहां का पुस्तकालय 9 मंजिल का था जिसमें 3 लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था। यह रत्न रंजक,रत्नोदधि तथा रत्नसागर नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था। छात्रों के लिए शिक्षा, भोजन, वस्त्र, औषधि और उपचार सभी निशुल्क थे।

खुदाई में इस प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष 14 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए मिले हैं। खुदाई में मिली सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने भव्य स्तूप और मंदिर थे, जहां पर तथागत भगवान् की सुन्दर मूर्तियां स्थापित थीं। मठ के आंगन में कुआं, सुन्दर बगीचे तथा झीलें थीं। सांख्य, वेद, वेदान्त , व्याकरण, दर्शन, शल्य चिकित्सा, ज्योतिष, योगशास्त्र, चिकित्सा शास्त्र तथा खगोल शास्त्र यहां अध्ययन के मुख्य विषय थे। लगभग 800 वर्षों तक यह विश्व का प्रकाश पुंज था। यहां ह्वेनसांग ने अध्ययन किया था।जिसकी स्मृति में एक ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल बनाया गया है। इसी परिसर में उसकी मूर्ति भी स्थापित है।

nalanda university
नालंदा विश्वविद्यालय के खँडहर, नालंदा, बिहार।

ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि प्राचीन इतिहास से पता चलता है कि इस संघाराम के दक्षिण में एक आम्रवाटिका के मध्य में एक तड़ाग है। इस तडाग का निवासी नाग नालंद कहलाता है।उसी के नाम पर संघाराम प्रसिद्ध है।(पेज नं 315) इसी आम्रवाटिका को पांच व्यापारियों ने मिल कर दस कोटि (10 करोड़) स्वर्ण मुद्रा में मोल लेकर बुद्ध देव को अर्पण कर दिया था। तथागत भगवान् ने 3 मास तक धर्मोंपदेश व्यापारियों तथा अन्य लोगों को किया था। और वे लोग पुनीत पद को प्राप्त हुए थे। बुद्ध देव के निर्वाण प्राप्त करने के थोड़े दिन बाद शक्रादित्य नामक एक राजा ने यह संघाराम बनवाया था।वह रत्न त्रयी का भक्त था।(पेज नं 316) उनके पुत्र राजा बुद्ध गुप्त ने इसके दक्षिण में एक दूसरा संघाराम बनवाया। बालादित्य राजा ने राज्याधिकारी होने पर पूर्वोत्तर दिशा में एक संघाराम बनवाया।(पेज नं 317) इस वंश का एक राजा भिक्षु बन गया था।उसका वज्र नामक पुत्र उत्तराधिकारी हुआ। इसने भी संघाराम के पश्चिम दिशा में एक संघाराम बनवाया।(पेज नं 318) यहां धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति, स्थिरमति,प्रभामित्र, जिनमित्र, शीघ्र बुद्ध और शील भद्र (ह्वेनसांग के गुरु) जैसे परम विद्वान आचार्य थे।(पेज नं 319)

buddha statue in nalanda
नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में भगवान बुद्ध की मूर्ति।

संघाराम के चारों ओर सैकड़ों स्थानों में पुनीत शरीरावशेष हैं। उसने लिखा है कि, परंतु, विस्तार के डर से हम दो या तीन का ही वर्णन करेंगे। संघाराम के पश्चिम दिशा में थोड़ी दूर पर एक विहार बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् प्राचीन काल में 3 मास तक रहे थे और सभी की भलाई के लिए पुनीत धर्म का प्रवाह बहाते रहे थे। दक्षिण दिशा की ओर लगभग 100 पग पर एक छोटा स्तूप है। इस स्थान पर एक भिक्षु ने दूरस्थ देश से आकर बुद्ध भगवान का दर्शन किया था। इसी स्तूप के दक्षिणी भाग में अवलोकितेश्वर बोधिसत्व की एक बड़ी मूर्ति है। इस मूर्ति के दक्षिण में एक स्तूप है जिसमें जिसमें बुद्ध देव के तीन मास के कटे हुए नख और बाल रखे हुए हैं।(पेज नं 320) इसके पश्चिम में और दीवार के बाहर एक तडाग के किनारे पर एक स्तूप है।दीवार के भीतरी भाग में दक्षिण- पूर्व दिशा में 50 पग की दूरी पर एक अद्भुत वृक्ष है जो 8 या 9 फ़ीट ऊंचा है परन्तु इसका तना दुफडा है। तथागत भगवान् ने अपने दतून को दांत साफ करने के उपरांत इस स्थान पर फेंक दिया था।यही जमकर वृक्ष हो गई। सैकड़ों वर्ष व्यतीत हो गये परंतु तब से यह वृक्ष न तो बढ़ता है और न ही घटता है।(पेज नं 321)

तारा बोधिसत्व की मूर्ति

इसके पूर्व में एक बड़ा विहार है जो लगभग 200 फ़ीट ऊंचा बना हुआ है। यहां पर तथागत भगवान् ने 4 मास तक निवास करके अनेक प्रकार से विशुद्ध धर्म का निरूपण किया था। इसके बाद उत्तर दिशा में 100 क़दम पर एक विहार बना हुआ है जिसमें “अवलोकितेश्वर” बोधिसत्व की प्रतिमा है। यह अपने चमत्कार के लिए प्रसिद्ध है। इस विहार के उत्तर में एक और विशाल विहार 300 फ़ीट ऊंचा बना हुआ है।इसे “बालादित्य” राजा ने बनवाया है। इसके पूर्वोत्तर दिशा में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् ने 7 दिन तक (पेज नं 321) विशुद्ध धर्म का उपदेश दिया था। उत्तर- पश्चिम दिशा में तथागत भगवान् के उठने- बैठने और आने- जाने के चिन्ह हैं। इसके दक्षिण में एक पीतल का विहार “शिलादित्य” का बनवाया हुआ है। इसके पूर्व में लगभग 200 क़दम पर चहारदीवारी के बाहर बुद्ध देव की एक खड़ी मूर्ति तांबे की बनी हुई है।इसकी ऊंचाई 80 फ़ीट है।इसे राजा “पूर्ण वर्मा” ने बनवाया था। इस मूर्ति के उत्तर में 2 या 3 ली की दूरी पर ईंटों से बने हुए एक विहार में “तारा” बोधिसत्व की एक मूर्ति है। यह मूर्ति बहुत ऊंची और अद्भुत प्रताप शालिनी है। दक्षिण फाटक की ओर भीतरी भाग में एक विशाल कूप है।(पेज नं 322)

buddhist stupa
अशोक राजा द्वारा बनवाया गया सारिपुत्त परिनिर्वाण स्तूप।

संघाराम से दक्षिण-पश्चिम 8 या 9 ली चलकर “कुलिक” ग्राम है। इसमें एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। इस स्थान पर मुद्गलपुत्र का जन्म हुआ था। गांव के निकट ही एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर यह महात्मा निर्वाण को प्राप्त हुआ था।उसका शव इसी स्तूप में रखा हुआ है।मुद्गलपुत्र अपनी प्रतिभा और दूरदर्शिता के लिए विख्यात थे।(पेज नं 322) मुद्गलपुत्र के ग्राम के पूर्व में 3 या 4 ली चलने पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर राजा बिम्बिसार बुद्ध देव के दर्शन करने आए थे। इसी स्थान से बोधि प्राप्ति के बाद प्रथम बार मगध निवासियों के दर्शनार्थ अपने 1000 काषाय वस्त्र धारी भिक्षुओं के साथ तथागत भगवान् ने प्रस्थान किया था। इस स्थान से दक्षिण-पूर्व 20 ली की दूरी पर “कालपिनाक” नगर है। यहां पर एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। यह वह स्थान है जहां पर सारिपुत्र का जन्म हुआ था। इसके पास ही एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर सारिपुत्र का निर्वाण हुआ था। इस स्तूप में उसका शव समाधिस्थ है।(पेज नं 324)

avlokiteshwar bodhisattva
अवलोकितेश्वर बोधिसत्व की मूर्ति,नालंदा|

यहीं पास में “इन्द्रसेन गुहा” है।जिसकी पूर्वी चोटी पर एक संघाराम है। इसके सामने एक स्तूप है जिसका नाम ” हंस” है।इन्द्रशैल गुहा के पहाड़ के पूर्वोत्तर में 150 या 160 ली चलने पर “कपोतिक” संघाराम है। यहां कोई 200 साधु हैं जो सर्वास्तिवाद संस्था के सिद्धांतों का पालन करते हैं। इसके पूर्व दिशा में अशोक राजा का बनवाया हुआ हुआ एक स्तूप है। प्राचीन काल में बुद्ध भगवान ने इस स्थान पर धर्मोंपदेश किया था।(पेज नं 328) इसके आगे चलकर ह्वेनसांग एक निर्जन पहाड़ी पर आया। यहां पर अनेक विहार एवं पुनीत शरीरावशेष सुरक्षित हैं। विहार के मध्य में एक अवलोकितेश्वर बोधिसत्व की मूर्ति स्थापित है। यद्यपि इसका आकार छोटा है परन्तु चमत्कार बहुत बड़ा है। इसके हाथ में कमल का एक फूल और शिर पर बुद्ध देव की एक मूर्ति है।(पेज नं 329)

ashoka pillar location
अशोक स्तंभ, गणक नदी के किनारे|

यहां से 40 ली की दूरी पर एक संघाराम है जिसमें 50 साधु हीनयान सम्प्रदाय के निवास करते हैं। संघाराम के सामने एक विशाल स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां से तथागत भगवान् ने धर्मोपदेश किया था। संघाराम के पूर्वोत्तर 70 ली चलकर गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर एक बड़ा गांव है।इसकी पहचान “शेखपुर” के रूप में हुई है। इसके पास दक्षिण-पूर्व की दिशा में एक विशाल स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् ने एक रात्रि धर्मोंपदेश किया था। यहां से पूर्व दिशा में 100 ली पर रज्जान (रोविन्नी) ग्राम में एक संघाराम है। उसके सामने एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है जहां पर तथागत भगवान् ने 3 मास तक धर्मोंपदेश किया था।(पेज नं 330)

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– डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी, फोटो-संकेत सौरभ, झांसी ( उत्तर- प्रदेश)

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18 thoughts on “ह्वेनसांग की भारत यात्रा- नालंदा…”

  1. अभय राज सिंह कहते हैं:
    मई 17, 2020 को 6:19 पूर्वाह्न पर

    प्रामाणिक जानकारी सहज व सरल रुप में उपलब्ध कराने के लिए कोटिशः नमन् !

    प्रतिक्रिया
  2. अभय राज सिंह कहते हैं:
    मई 17, 2020 को 6:18 पूर्वाह्न पर

    प्रामाणिक जानकारी सहज व सरल रुप में उपलब्ध कराने के लिए कोटिशः प्रणाम्!

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 17, 2020 को 8:45 पूर्वाह्न पर

      God bless you

      प्रतिक्रिया
  3. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    मई 13, 2020 को 9:03 अपराह्न पर

    ज्ञानवर्धक… नालंदा भारत का ज्ञान गौरव रहा है, और इसका प्रतिमान सदैव अतुलनीय रहेगा। आपके श्रम के लिए साधुवाद।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 13, 2020 को 10:08 अपराह्न पर

      धन्यवाद आपको

      प्रतिक्रिया
  4. Dr Brijendra Boudha कहते हैं:
    मई 12, 2020 को 4:41 अपराह्न पर

    आज पुनः नालंदा विश्वविद्यालय की याद को आपके द्वारा तरोताज़ा कर दिया । मै आपका सदा आभारी रहूँगा। ऐसे ही तथागत भगवान बुद्ध के स्थलों के बारे में लिखते रहिये । आपको सपरिवार साधुवाद ।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 12, 2020 को 5:54 अपराह्न पर

      आभार आपका सर

      प्रतिक्रिया
  5. Vishwanath कहते हैं:
    मई 12, 2020 को 1:56 अपराह्न पर

    इसके अंत में शेखुपुर का उल्लेख है वहां पर हम गए थे। जहां कई स्तूप तभी समय के बने हुए हैं और एक तालाब है आज भी वहां पर बैठकर लोग तथागत की उपासना करते हैं। बदायूं का नाम भी बुद्ध कि धरती के नाम से पड़ा है।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 12, 2020 को 4:26 अपराह्न पर

      विस्तार में लिखिए।काम आयेगा

      प्रतिक्रिया
  6. Vishwanath कहते हैं:
    मई 12, 2020 को 11:25 पूर्वाह्न पर

    नालन्दा के बारे में इतनी जानकारी पहली बार पढ़ी है।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 12, 2020 को 12:17 अपराह्न पर

      लगातार पढ़ते रहिए

      प्रतिक्रिया
  7. अनाम कहते हैं:
    मई 12, 2020 को 10:46 पूर्वाह्न पर

    बहुत ही अद्भुत जानकारी.. सर

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 12, 2020 को 10:52 पूर्वाह्न पर

      धन्यवाद आपको

      प्रतिक्रिया
  8. अयोध्या प्रसाद निर्मल कहते हैं:
    मई 12, 2020 को 10:18 पूर्वाह्न पर

    नालंदा प्राचीन कालीन शिक्षा का विशाल मंदिर है जिसमें तथागत भगवान बुद्ध की ज्ञान रूपी जलधारा से आज भी हम लोग सिंचित हो रहें हैं ,आगे भी होते रहेंगे |
    शत-शत नमन गुरुदेव

    प्रतिक्रिया
  9. RAMDARASH SINGH YADAV कहते हैं:
    मई 12, 2020 को 9:59 पूर्वाह्न पर

    VERY NICE

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 12, 2020 को 10:52 पूर्वाह्न पर

      धन्यवाद डॉ साहब

      प्रतिक्रिया
  10. Akash Ahirwar कहते हैं:
    मई 12, 2020 को 9:23 पूर्वाह्न पर

    Thanks sir Ji 🌻🌻

    प्रतिक्रिया
    1. अनाम कहते हैं:
      मई 12, 2020 को 9:30 पूर्वाह्न पर

      आप को भी धन्यवाद

      प्रतिक्रिया

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