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पुस्तक समीक्षा- आंधियों में भी यह ज्योति जलती रहे…

Posted on सितम्बर 8, 2020मई 19, 2022
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डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी । प्रकाशन प्रभारी एवं फ़ोटो गैलरी- डॉ. संकेत सौरभ, झाँसी, उत्तर- प्रदेश (भारत), मोबाइल नंबर- 09839170919, email : drrajbahadurmourya @ gmail.com, website : themahamaya.com

प्रेरणा/ भूमिका

इतिहास हमारा अतीत है, जहां हम अपने जीवन के अस्तित्व की खोज करते हैं। यह खोज हमें ताकत और हिम्मत के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देती है। संघर्ष और निर्माण की प्रक्रिया को हम समझ पाते हैं। इतिहास हमें यह भी सिखाता है कि मानवीय समाज ने दुनिया में कैसे आहिस्ता-आहिस्ता तरक्की की है। बर्बरता से निकल कर मानवीय गरिमा और सम्मान, मर्यादा, मानवीय मूल्यों तथा सभ्यता और संस्कृति की अवधारणा को विकसित किया है। आपस में सौहार्द पूर्ण तरीके से मिल जुल कर रहने की भावना निरंतर बढ़ी है। सबके हित के लिए नागरिक सम्मान और स्वाभिमान तथा सभ्यता का आदर्श विकसित हुआ है। समझदार और वाजिब बात कहने की सीख, जरुरत और हिम्मत हमें शताब्दियों में मिली है।

दुनिया बहुत बड़ी जगह है। हमें साहस और हिम्मत के साथ आगे बढ़ना चाहिए। उतार-चढाव समय का क्रम है। आपसी सहयोग और समाज की भलाई के लिए त्याग और समर्पण ही सभ्यता की कसौटी है। महान उद्देश्य के लिए यत्न करने का आनंद उठाना चाहिए। समाज की प्रगति में योगदान करके हम भी अपना कुछ फर्ज अदा कर सकते हैं, क्योंकि दुनिया की हर वह चीज जिसमें जान है, वह परिवर्तन शील है। अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार अपने अवदान को समाज और राष्ट्र की प्रगति में लगाना चाहिए। प्रस्तुत पुस्तक को इसी संदर्भ और परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकित किया जाना चाहिए।

पुस्तक के बारे में…

पुस्तक “आंधियों में भी यह ज्योति जलती रहे” ( दो खंडों में, कुल मिलाकर लगभग १५०० पेजों में) कोई प्राचीन इतिहास की कृति नहीं है, बल्कि बीसवीं शताब्दी के मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के आन्दोलन पर आधारित है। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ से ही इस समुदाय ने समाज में व्यापक स्तर पर फैली कुरीतियों, गलत परम्पराओं, आडम्बरों तथा रूढ़ियों का विरोध किया। समग्र रूप से समाज को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं संगठन के लिए प्रेरित किया। वर्ष 1907 में श्री सीताराम कनौजिया ने मौर्य सभा की स्थापना किया। वर्ष 1912 में श्री हरि प्रसाद जी वैष्णव ने चुनार में कोइरी हितकारिणी सभा की स्थापना किया। वर्ष 1917 में उक्त दोनों सभाओं को एक में मिला दिया गया।

वर्ष 1920 में जौनपुर अधिवेशन में कोइरी हितकारिणी सभा का नाम बदलकर “कुशवाहा क्षत्रिय महासभा” रखा गया। वर्ष 1921 में श्री सीताराम कनौजिया ने पुनः मौर्य सभा को पुनर्जीवित किया। 1964 में उत्तर प्रदेशीय मौर्य सभा फिर से पुनर्गठित हुई। इसका अधिवेशन कस्बा कसरौर, तहसील पुरवा जनपद उन्नाव में डाक्टर कमल सिंह वर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का आयोजन डाक्टर नन्द किशोर मौर्य ने किया था। इसी अधिवेशन में मौर्य संगठन की पत्रिका “मौर्य ज्योति” के प्रकाशन का प्रस्ताव पारित किया गया था।

कुशवाहा महासभा का प्रथम अधिवेशन वर्ष 1911 में आयोजित किया गया था। संगठन का पांचवां अधिवेशन दिनांक 28,29,30 दिसम्बर को आजमगढ़ में, छठवां 28,29,30 दिसम्बर 1916 को मुंगेर, बिहार में, सातवां 28,29,30 दिसम्बर 1917 को मुजफ्फरपुर में, आठवां 28,29,30 दिसम्बर 1918 को मोतिहारी, बिहार में,नवां 28,29,30 दिसम्बर 1919 में बेतिया नगर,चम्पारन में, दसवां 29,30,31 दिसम्बर 1920 को जौनपुर में, ग्यारहवां 11,12,13 दिसम्बर 1922 में खगरिया, मुंगेर, बिहार में तथा बारहवां अधिवेशन दिनांक 27,28,29 दिसम्बर 1923 को बिहार शरीफ, पटना में सम्पन्न हुआ। अधिवेशन का यह क्रम निरंतर चलता रहा।

संगठन का चौंतीसवां तीन दिवसीय अधिवेशन दिनांक 29,30,31 दिसम्बर 1950 को सम्पन हुआ।इस सम्मेलन में 30 हजार की अपार भीड़ थी। पहली बार इस अधिवेशन में अलग से छात्र सम्मेलन का आयोजन किया गया था। दिसम्बर 1920 के जौनपुर अधिवेशन में कोइरी हितकारिणी महती सभा का नाम बदलकर “कुशवाहा क्षत्रिय महासभा “तथा मासिक पत्रिका – कोइरी हित चिंतक” का नाम बदलकर “कुशवाहा क्षत्रिय मित्र” रखा गया।

अखिल भारतीय श्री शाक्य-क्षत्रिय महासभा

अखिल भारतीय शाक्य,क्षत्रिय महासभा की स्थापना सन् 1900 ई. के आस पास हुई। वर्ष 1911 में महासभा का प्रथम अधिवेशन चन्द्रपुर, पोस्ट कुरावली जनपद मैनपुरी में आयोजित किया गया।इसकी अध्यक्षता श्री चेतराम सिंह ने किया था।दूसरा अधिवेशन अगौनापुर पोस्ट अलीगंज जिला एटा में सन् 1912 में सम्पन्न हुआ। तृतीय अधिवेशन 1913 में अलीगंज, एटा में, चतुर्थ अधिवेशन 1914 में अल्हेपुर, गंजडुंडवारा,एटा में, पांचवां अधिवेशन 1915 में पटियाली, एटा में, छठवां अधिवेशन 1916 में बदायूं में, सातवां अधिवेशन 1917 में घिरोर, मैनपुरी में, आठवां अधिवेशन 29, 30 अप्रैल 1925 को चौरसिया मझोला, फर्रूखाबाद में, दसवां अधिवेशन 1925 में अधिकार पुर,एटा में, ग्यारहवां अधिवेशन 1926 में रंगपुर कैथोली, मैनपुरी में, बारहवां अधिवेशन 1926 में ज्योति, मैनपुरी में आयोजित किया गया। इसी प्रकार लगातार 45 वार्षिक अधिवेशनों का विवरण मिलता है। 45 वां अधिवेशन बियारी जनपद इटावा में दिनांक 08, 09 मार्च 1959 ई.को श्री बाबूलाल शाक्य की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ था।

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आन्दोलन के उद्देश्य

कुशवाहा, शाक्य, मौर्य,सैनी समाज के द्वारा चलाए जा रहे इस आंदोलन के उद्देश्यों को उनकी सभाओं में लिए जाने वाले संकल्पों,बहस के विषयों, चर्चा- परिचर्चा के बिंदुओं तथा अधिवेशन में पारित किए जाने वाले प्रस्तावों के माध्यम से समझा जा सकता है। दिनांक 01.01.1978 को आराकलां, जनपद शाहजहांपुर की बैठक में लिए गए निर्णयों को उद्देश्यों के रूप में विवेचित किया जा सकता है।

बैठक में निम्नलिखित निर्णय लिए गए– 1.अशिक्षा को दूर करना 2. एकता पर बल देना 3. दहेज प्रथा पूरी तरह बंद हो 4. मृत्यु भोज पर रोक लगे 5. अंधविश्वास तथा रूढ़िवादिता को समाप्त करना 6. अनमेल विवाह न हो 7. बाल विवाह बंद हो 8. मद्य पान बंद हो 9. जुआ खेल बंद हो 10. हीन भावना तथा शाखा वाद के भाव को समाप्त किया जाए।

जातीय संगठन का प्लेटफार्म होते हुए भी इन संगठनों ने समाज सुधार के विस्तृत कार्यक्रमों को अपनाया। दिनांक 15.05.1983 को जौनपुर में संपन्न सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जयंती के अवसर पर मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी महासभा ने जो उद्देश्य प्रस्ताव पारित किया था उस के प्रमुख बिंदु थे-समाज में व्याप्त पयीपुजी प्रथा को समाप्त करना, लड़की की शादी में बारात बुलाना, बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाना तथा उलंघन करने वाले का बहिष्कार करना, किसी भी लड़की की अधिक उम्र के लड़के से शादी न करना, लड़कों तथा लड़कियों को समान रूप से शिक्षित करना, पुराने रीति-रिवाजों तथा पाखंडों का बहिष्कार करना, नशीली वस्तुओं के सेवन से समाज को मुक्त करना, शादी में होने वाली फिजूलखर्ची को रोकना तथा सामूहिक विवाह के प्रचलन को बढ़ावा देना, आपसी ईर्ष्या द्वेष को भुलाकर प्रेम भावना से रहना, 15 साल तक के बच्चों को काम पर न लगाना, प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम को अपनाना, परिवार नियोजन के महत्व को समझाना, दहेज प्रथा को रोकना तथा मृतक भोज बंद कराना ।

इसके साथ ही संगठनों ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करवाने के लिए भी सरकारों पर दबाव डालने की रणनीति अपनाई। आन्दोलन के अगले चरण में बच्चों को तकनीकी शिक्षा दिलाने पर जोर दिया गया। समाज के सक्षम लोगों से शिक्षण संस्थाएं खोलने का अनुरोध किया गया। कानपुर में स्थापित वाई.के.मिशन ने समाज के शिक्षित बेरोजगार युवकों को सामान्य ज्ञान तथा सरकारी नौकरियों के बारे में जागरूक करने का व्यापक पैमाने पर अभियान चलाया। इलाहाबाद में स्थापित मित्र परिषद ने समाज में विवाह योग्य युवक-युवतियों के कार्यक्रम आयोजित कर आपसी मेलजोल का क्रम बढ़ाया।

छोटे-छोटे संगठनों का उदय

इन सामाजिक कार्यों का प्रभाव यह हुआ कि कि समाज में व्यापक स्तर पर जन चेतना का जागरण हुआ। जहां पहले राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले संगठन ही प्रमुख होते थे, वहीं अब स्थानीय स्तर पर लोगों ने अपने छोटे- छोटे संगठनों का निर्माण कर समाज सुधार तथा परिवर्तन आंदोलन को गति दी। गौतमबुद्ध लोक कल्याण संस्थान, तथागत गौतम बुद्ध महासभा, प्रगतिशील मौर्य समाज समिति, जिला सैनी युवा संघ, अशोक मोर्चा, मौर्य क्रांति दल, कुशवाहा परिवार, शाक्य सैनी संघ, चन्द्रगुप्त मौर्य समिति, कुशवाहा बन्धु, मौर्य पंचायती समिति, अशोक शोध संस्थान, गौतमबुद्ध संस्कृति संस्थान, लोक मानव कल्याण परिषद, गौतमबुद्ध लोक कल्याण संस्थान, कुशवाहा जागृति युवा संस्थान, मौर्य चेतना संघर्ष समिति, माली सैनी समाज सेवा संस्थान, कुशवाहा किसान चेतना संघ, मौर्य छात्र संघ, लवकुश चेतना परिषद, सिद्धार्थ मित्र परिषद, कुशवाहा समाज उत्थान समिति, मौर्य कल्याण कमेटी तथा सम्राट अशोक विचार दर्शन संघ जैसे गैर सरकारी तथा अपंजीकृत संगठनों ने महत्वपूर्ण तथा उल्लेखनीय कार्य किया।

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यद्यपि इन संगठनों के कार्य करने का दायरा तथा क्षमता सीमित थी, परंतु अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार इन संगठनों ने स्थानीय स्तर पर आम जनता को आंदोलन से जोड़ा। यह संगठन समाज के बड़े नेताओं तथा वक्ताओं को विशेष कार्यक्रम आयोजित कर बुलाते थे और उनका अभिनंदन करते थे। इसका प्रभाव यह हुआ कि समाज में व्यापक बदलाव की लहर आयी। समाज के शिक्षित और जागरूक तथा समझदार लोगों ने अपने समाज के गौरवशाली अतीत को समझाना प्रारंभ किया। परिणामस्वरूप समाज में चहुं मुखी जागृति आयी। जकड़न कम हुई। समाज कुरीतियों तथा पाखंड से बाहर निकला। अच्छी तालीम के लिए लोगों में ललक बढ़ी। सांस्कृतिक बदलाव का कारवां भी चल पड़ा।

पुस्तक का उद्देश्य

प्रस्तुत पुस्तक शाक्य मौर्य सैनी कुशवाहा समाज के जीवट भरे सामाजिक संघर्षों को देखने का एक प्रयास है। पुस्तक उन व्यक्तियों को याद करती है जिन्होंने जोखिम उठाकर अपने निजी संसाधनों को व्यय कर, अपनी प्रतिभा तथा अपने पौरुष को खपाकर इस महती कार्य को अंजाम दिया है। पुस्तक को लिखने का एक उद्देश्य यह भी है कि जो भी इसे पढ़े, वह भविष्य के नवनिर्माण के लिए प्रेरित हो तथा अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लडे, ताकि एक बेहतर भविष्य का सपना सच हो सके। समाज अपने आदर्शों, उसूलों, तथा विश्वासों का गहरी निष्ठा से पालन करे। आत्मसम्मान तथा गरिमा के महत्व को समझे।

बोझिल बात

प्रस्तुत पुस्तक को आपके सामने लाने में मुझे लम्बा वक्त लगा।इस प्रक्रिया में मुझे शारीरिक और मानसिक थकान के दौर से गुज़रना पडा। विषय वस्तु के संग्रह हेतु लम्बे-लम्बे दौरे करने पड़े। लेकिन ताक़त इसलिए मिलती थी कि इसी प्रक्रिया में सैकड़ों लोगों से मिलने तथा संवाद करने का अवसर मिला। समाज को,उसकी आंतरिक संरचना को, उसकी जीवट भरी जिंदगी को, उसकी प्रतिध्वनि को, उसकी निरंतरता को मैं समझ पाया। निश्चित रूप से इससे मेरी समझदारी में इजाफा हुआ।

आभार

प्रस्तुत पुस्तक के प्रणयन में जिन लोगों ने अपना अवदान दिया है, मैं उनके प्रति कृतज्ञता पूर्वक आभार व्यक्त करता हूं। इ. चन्द्र प्रकाश मौर्य, फतेहपुर, डाक्टर संतोष कुमार मौर्य, रायबरेली, डाक्टर कृष्ण कुमार मौर्य, महाराज गंज, डाक्टर लवली मौर्य, रायबरेली, शिवाकांत कुशवाहा, हरदोई, मिथलेश कुशवाहा, झांसी, श्री अरविन्द कुमार कुशवाहा, बांदा ने निरंतर विषय वस्तु के संग्रह से लेकर मेरा उत्साह बढ़ाया है। मैं अपने उक्त सहयोगी साथियों के लिए धन्यवाद तथा आभार ज्ञापित करता हूं। बिना मुझसे एक भी पैसा लिए पुस्तक की पूरी कम्प्यूटर टाइपिंग करने वाले मेरे अति प्रिय, श्री अजय कुमार मौर्य, अज़ीज़ गंज, महाराज गंज, रायबरेली मेरी कृतज्ञता के सच्चे हकदार हैं। उनके एहसान को मैं कभी नहीं भुला पाऊंगा।

इस काम के दौरान सबसे ज्यादा कष्ट मैंने अपनी प्रिय धर्म पत्नी श्रीमती कमलेश मौर्या को दिया है, परंतु उन्होंने कभी उफ़ तक नहीं किया, बल्कि निराशा के क्षणों में मुझे समझाया और प्रेरित किया है। मेरे शब्द कोष में ऐसा कोई शब्द नहीं है जिसे मैं उनके लिए प्रयुक्त कर उनके अवदान को याद कर पाऊं। अपनी पढ़ाई और तैयारी करने के साथ ही मेरी बेटी इं.सपना मौर्या तथा बेटे डॉ.संकेत सौरभ ने कम्प्यूटर से संबंधित मेरा सारा काम निबटाया। दोनों बच्चों को स्नेहिल प्यार और आशीर्वाद। मेरी कामना है कि वह शोहरत की बुंलदियों को छुएं। समाज के लिए आदर्श बनें।

लगभग 650 पेज की यह पुस्तक ऑनलाइन, अमेजन. इन, पर उपलब्ध है।

डॉ.राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी.

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1 thought on “पुस्तक समीक्षा- आंधियों में भी यह ज्योति जलती रहे…”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    सितम्बर 13, 2020 को 10:15 अपराह्न पर

    सामाजिक इतिहास का दस्तावेजीकरण अपने आप मे एक श्रम साध्य प्रक्रिया है, आपका ये योगदान सामाजिक चेतना को बढ़ाने वाला है। ये इतिहास लेखन ही है जो आपको इतिहास में अंकित कर देता है। आपको बहुत बहुत बधाई।

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