बंगाल तथा उड़ीसा
आसाम से 1200 या 1300 ली चलकर ह्वेनसांग “सनमोटाचा” अथवा “समतल” प्रदेश में आया।इसकी पहचान “पूर्वी बंगाल”(अब बांग्लादेश) के रूप में हुई है। यह समुद्र के किनारे पर बसा हुआ है। यहां कोई 200 साधुओं सहित 30 संघाराम हैं जिनका सम्बन्ध स्थविर संस्था से है। इस राज्य का क्षेत्रफल 3000 ली विस्तृत है। राजधानी का क्षेत्रफल 20 ली है।
![sompura mahavihar](http://themahamaya.com/wp-content/uploads/2020/05/sompura-mahaviharapaharpur-near-naogonbangladesh-8th-centuary-1024x717.jpg)
राजधानी के नगर के बाहर थोड़ी दूर पर एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है।(पेज नं 342) इस स्थान पर तथागत भगवान् ने देवताओं के लाभार्थ सात दिन तक गुप्त और गूढ़तम धर्म का उपदेश किया था। इसके पास गत चारों बुद्धों के उठने-बैठने आदि के चिन्ह हैं। यहां से थोड़ी दूर पर एक संघाराम में बुद्ध देव की हरे पत्थर की एक मूर्ति है। यह 8 फ़ीट ऊंची है। इसकी बनावट बहुत स्पष्ट और सुंदर है।(पेज नं 343) यहां से पूर्वोत्तर दिशा में समुद्र के किनारे चलकर ह्वेनसांग “श्री क्षेत्र” नामक राज्य में आया। यहां पर संघाराम और स्तूप का जिक्र नहीं है।
समतल अथवा “पूर्वी बंगाल” से पश्चिम दिशा में लगभग 900 ली चलकर ह्वेनसांग ” तानमोलिति” अथवा “ताम्रलिप्ति” देश में आया। वर्तमान में यह “तमलुक” है जो “सेलई” के ठीक उस स्थान पर है जहां पर उसका “हुगली” नदी के साथ संगम होता है। यह वर्तमान में “पश्चिम बंगाल” है।(पेज नं 343) यहां कोई 10 संघाराम और 1000 संन्यासी निवास करते हैं। देश की सीमा समुद्र तट पर है। यहां के निवासी धनाढ्य हैं। नगर के पास एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है जिसके आस-पास गत चारों बुद्धों के उठने-बैठने आदि के चिन्ह मौजूद हैं।(पेज नं 344)
![ashoka pillar bangladesh](http://themahamaya.com/wp-content/uploads/2020/05/Dhamrai-Ashokan-Pillar-Bangladesh-300x111.png)
वहां से उत्तर- पश्चिम में लगभग 700 ली चलकर ह्वेनसांग “कईलोना सुफालाना”अथवा “कर्ण सुवर्ण” देश में आया। इस स्थान की पहचान बिहार में भागलपुर के निकट “कर्ण गढ़” से हुई है।इसकी राजधानी का क्षेत्रफल 20 ली है। यह बहुत बहुत घनी बसी हुई है और निवासी भी बहुत धनी हैं। यहां कोई 10 संघाराम हैं जिनमें 2000 साधु निवास करते हैं और सभी सम्मतीय संस्थानुसार हीनयान सम्प्रदाय के अनुयाई हैं। राजधानी के पास ही एक ” रक्तविटी” नामक संघाराम है। इसके कमरे सुप्रकाशित और बड़े-बड़े हैं तथा खण्ड़बद्ध भवन बहुत ऊंचे-ऊंचे हैं।(पेज नं 344) संघाराम के पास थोड़ी दूर पर एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। तथागत भगवान् ने इस स्थान पर मनुष्यों को सुमार्ग पर लाने के लिए सात दिन तक विशद रूप से धर्मोंपदेश किया था। इसके निकट ही एक विहार बना हुआ है जहां पर बुद्ध देव ने अपने विशुद्ध धर्म का उपदेश दिया था।(पेज नं 346)
![ashoka stupa gajipur bangladesh](http://themahamaya.com/wp-content/uploads/2020/05/Ashokan-Pillar-Gazipur-Bangladesh.-284x300.jpg)
कर्ण सुवर्ण देश से 700 ली दक्षिण-पश्चिम दिशा में चलकर व्हेनसांग ” ऊच” अथवा “उद्र” देश में आया।यही आजकल “उड़ीसा” है जिसे”उत्कल” भी कहते हैं। इसकी राजधानी का निश्चय प्राय: “वैतरणी नदी” के किनारे “जजीपुर” से किया जाता है। उसने लिखा है कि इस राज्य का क्षेत्रफल 7000 ली और राजधानी का लगभग 20 ली है। यहां की प्रकृति गर्म है।लोग विद्या के प्रेमी हैं। अधिकांश लोग बुद्ध धर्म के अनुयाई हैं। यहां पर कोई 100 संघाराम बने हुए हैं जिसमें 10 हजार साधु निवास करते हैं। यह सभी महायानी सम्प्रदायी हैं। स्तूप,जिनकी संख्या कोई 10 होगी,उन- उन स्थानों का पता बता देते हैं जहां पर तथागत भगवान् ने धर्मोपदेश किया था। यह सब अशोक राजा के बनवाए हुए हैं।(पेज नं 346)
देश की दक्षिण-पश्चिम सीमा पर एक बड़े पहाड़ में एक संघाराम बना हुआ है, जिसका नाम “पुष्पगिरि” है। यहां पर पत्थर का बना हुआ एक स्तूप है जिसमें आध्यात्मिक शक्तियों का प्रकाश होता है। इसके उत्तर-पश्चिम पहाड़ के ऊपर एक संघाराम में एक स्तूप है। यह दोनों स्तूप देवताओं के बनवाए हुए हैं। देश की दक्षिणी- पूर्वी सीमा पर समुद्र के किनारे ” चरित्र” नाम का एक नगर 20 ली के घेरे में है।
![pulpura buddhist temple](http://themahamaya.com/wp-content/uploads/2020/05/Buddha_Dhatu_Zadi01-1024x768.jpg)
इस स्थान से व्यापारी लोग व्यापार करने के निमित्त दूसरे देशों को जाते हैं। नगर की चहारदीवारी दृढ़ और ऊंची है। नगर के बाहर 5 संघाराम एक के पीछे एक बने चले गए हैं। इनके खण्ड़ बद्ध भवन बहुत ऊंचे-ऊंचे हैं और महात्मा पुरुषों की खुदी हुई मूर्तियों से सुन्दरता के साथ सुसज्जित हैं।ह्वेनसांग ने यह भी लिखा है कि यहां से 20 हजार ली जाने पर सिंहल देश मिलता है। वहां से यदि स्वच्छ और शांत निशा में देखा जाए तो इतनी दूर होने पर भी बुद्ध दंत स्तूप के बहुमूल्य रत्न आदि ऐसे चमकते हुए दिखाई देते हैं जैसे गगन मण्डल में मशालें जल रही हों।
आओ चलें उस राह पर,
जिस राह से बुद्ध गुज़रे हैं।
होगा सभी का मंगल,
यही बुद्ध की करुणा है।
Thank you very much
Ok bhai jee
अत्यन्त ज्ञानवर्धक एवं रुचिकर है।
सोमपुरा व बालाघाट की तस्वीरें रम्य हैं और आमंत्रित कर रही हैं।
Thank you very much
सार्थक एवं प्रसंशनीय …आपका लेखन सदा प्रेरक होता है।
Thank you very much Dr sahab
एतिहासिक रूचिकर एवं ज्ञानवर्धक प्रयास है यह हम सब के लिए संजीवनी बूटी है |
शत-शत नमन गुरुदेव
बुद्ध देव की आप पर करुणा हो।