गया में –
पाटलिपुत्र की अपनी यात्रा को सम्पन्न कर ह्वेनसांग वहां से चलकर, शील भद्र संघाराम के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 40 या 50 ली की दूरी पर निरंजना नदी (आजकल फल्गू नदी) को पार कर गया नगर में आया। उसने लिखा है कि नगर के दक्षिण- पश्चिम 5 या 6 ली पर गया पर्वत है। इस पहाड़ की चोटी पर अशोक राजा का बनवाया हुआ एक स्तूप लगभग 100 फ़ीट ऊंचा है। तथागत भगवान् ने इस स्थान पर “रत्नमेघ” तथा अन्य सूत्रों का संकलन किया था। गयाद्रि के दक्षिण- पूर्व में एक स्तूप है। यह वह स्थान है जहां पर काश्यप बुद्ध का जन्म हुआ था। इस स्तूप के दक्षिण में 2 और स्तूप हैं। यह वे स्थान हैं जहां पर गया काश्यप और नदी काश्यप ने अग्नि पूजकों के समान यज्ञ किया था।(पेज नं 270) यहीं पर वह स्थान है जहां पर बुद्ध भगवान ने कठिन तपस्या के बाद सम्बोधि प्राप्त किया था।
जिस समय अशोक का राज हुआ, तब उसने इस पहाड़ के ऊंचे- नीचे सब स्थानों को, जहां- जहां पर बुद्ध देव गये थे, ढूंढ निकाला और फिर उन सब स्थानों को स्तूपों तथा स्तम्भों से सुसज्जित कर दिया।(पेज नं 271) कालांतर में बंगाल के शासक शशांक ने जिस बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध भगवान को ज्ञान प्राप्त हुआ था उसे कटवा डाला। बोधिवृक्ष के पूर्व में एक विहार 160 या 170 फ़ीट ऊंचा बना हुआ है। इसकी नींव की चौड़ाई 20 क़दम के लगभग है। इस विहार को पूर्ण वर्मा (वर्मा) देश के राजा ने बनवाया था। यह राजा अशोक वंश का अंतिम नृपति था।(पेज नं 274)
यहां विहार के पास जहां पर तथागत भगवान् टहले थे, उसके उत्तर की तरफ सड़क के बांए किनारे पर एक विहार बना हुआ है। इसके भीतर एक बड़े पत्थर के ऊपर बुद्ध देव की एक मूर्ति आंखें उठाए हुए ऊपर को देखती हुई है। बोधिवृक्ष के निकट ही पश्चिम दिशा में एक बड़ा विहार बना हुआ है जिसके भीतर बुद्ध देव की एक मूर्ति पीतल की बनी हुई है। बोधिवृक्ष के दक्षिण में थोड़ी दूर पर एक स्तूप लगभग 100 फ़ीट ऊंचा अशोक राजा का बनवाया हुआ है।(पेज नं 278) इसके निकट ही उत्तर दिशा में एक और स्तूप बना हुआ है। बोधिवृक्ष के पूर्व सड़क के दांयी और बांई दोनों तरफ 2 स्तूप बने हुए हैं। यह वह स्थान है जहां पर मार ने बोधिसत्व को लालच दिखाया था। बोधिवृक्ष के उत्तर- पश्चिम में एक विहार बना हुआ है जिसमें काश्यप बुद्ध की एक प्रतिमा है।(पेज नं 279)
बोधिवृक्ष के दीवार के उत्तर- पश्चिम में एक स्तूप “कुकुम” नामक है,जो 40 फ़ीट ऊंचा है। वह साउकुट देश के किसी बड़े सौदागर का बनवाया हुआ है। बोधिवृक्ष की दीवार के दक्षिण- पूर्व वाले कोण में एक “न्यग्रोध” वृक्ष के निकट ही एक स्तूप है। इसके पास में ही एक विहार बना हुआ है जिसमें बुद्ध देव की एक बैठी हुई मूर्ति है।(पेज नं 281)
बोधिवृक्ष की चहारदीवारी के भीतरी भाग में एक स्तूप है। यहां अनेक पुनीत स्थान भी हैं। बोधिवृक्ष के दक्षिण-पश्चिम में चहारदीवारी के बाहर एक स्तूप है। यह वह स्थान है जहां पर उन दोनों ग्वाल कन्याओं का मकान था जिसने बुद्ध देव को खीर अर्पण किया था। इसके निकट ही एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर लड़कियों ने खीर पकाई थी। यहीं स्तूप के पास तथागत भगवान् ने खीर को ग्रहण किया था। इसके दक्षिण में एक तालाब है। इसके निकट ही एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् ने जीर्ण वस्त्रों को धारण किया था। इसके दक्षिण की ओर जंगल में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर दरिद्र वृद्धा स्त्री ने जीर्ण वस्त्रों को तथागत भगवान् को अर्पण किया था और तथागत ने उसे स्वीकार किया था।(पेज नं 282)
पास में मुचलिंद झील है। इस झील के पूर्व वाले जंगल के मध्य में एक विहार के भीतर बुद्ध देव की प्रतिमा अत्यंत दुर्बल अवस्था में है। पीपल के वृक्ष के निकट, जो बुद्ध देव की तपस्या का स्थान है, वहां भी एक स्तूप बना हुआ है। यह वह स्थान है जहां पर जहां पर कौण्डन आदि पांचों व्यक्ति निवास करते थे। इस स्थान के दक्षिण-पश्चिम में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर बोधिसत्व ने निरंजना नदी में प्रवेश करके स्नान किया था। यहीं पास में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर किसी व्यापारी ने बुद्ध देव को गेहूं और शहद अर्पण किया था।
(पेज नं 283)शहद अर्पण स्तूप से थोड़ी दूर पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् ने अपनी माता को ज्ञान दिया था। इस स्थान के निकट ही एक सूखी झील के किनारे पर एक स्तूप बना हुआ है। यहां से तथागत भगवान् ने देशना किया था। पास में ही एक स्तूप और है जहां पर तथागत भगवान् ने “उरविल्ल काश्यप” तथा उसके दोनों भाइयों और उनके 1,000 अनुयायियों के साथ शिष्य किया था।(पेज नं 284) जहां पर काश्यप बन्धु शिष्य हुए थे वहां से उत्तर- पश्चिम में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर बुद्ध देव ने एक भयानक और क्रोधी नाग को,जिसको काश्यप ने बलि दे दिया था, परास्त किया था। इस स्मारक के पास एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर 500 प्रत्येक बुद्ध एक ही समय में निर्वाण को प्राप्त हुए थे।
मुचलिंद नाग के तड़ाग के दक्षिण में एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर बुद्ध देव को प्रलयकारी जलराशि से बचाने के लिए काश्यप गया था। (पेज नं 285) बोधिवृक्ष की दीवार के पूर्वी फाटक के पास एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर मार राजा ने बोधिसत्व को भयभीत करना चाहा था। (पेज नं 286) यहां से थोड़ी दूर पर 2 स्तूप देवराज शक्र और ब्रम्हा राजा के बनवाए हुए हैं। बोधिवृक्ष की चहारदीवारी के उत्तरी फाटक के बाहर महाबोधि नामक संघाराम है। यह सिंघल देश के किसी प्राचीन राजा का बनवाया हुआ है। इसके भीतर के ऊंचे और बड़े स्तूप बड़े ही मनोहर बने हुए हैं। इन स्तूपों में बुद्ध भगवान का शरीरांश है जिसमें हड्डियां हाथ की उंगली के बराबर हैं जो चिकनी, चमकीली तथा निर्मल श्वेत रंग की हैं। मांसावशेष बड़े मोती के समान कुछ नीलापन लिए हुए लाल रंग का है। इस संघाराम में 1,000 से अधिक संन्यासी निवास करते हैं जो स्थविर संस्था के महायान सम्प्रदाय का अनुशीलन करते हैं।(पेज नं 287)
(विभिन्न स्रोतों से पता चलता है कि बुद्ध देव के ज्ञान प्राप्ति के स्थान पर सम्राट अशोक ने जिस विशाल मंदिर का निर्माण कराया था वही आज का महाबोधि मंदिर है। कालांतर में लोग इसे भूल गए और यह मंदिर धूल- मिट्टी में दब गया। सन् 1883 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस जगह की खुदाई करायी और काफी मरम्मत के बाद बोधगया को अपने पुराने शानदार अवस्था में लाया गया। यहां का वर्तमान बोधिवृक्ष उस बोधिवृक्ष की पांचवीं पीढ़ी है जिसके नीचे बुद्ध भगवान को ज्ञान मिला था। मुख्य मंदिर के पीछे बुद्ध देव की लाल बलुआ पत्थर की 7 फ़ीट ऊंची एक मूर्ति है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर सम्राट अशोक ने हीरों से बना राज सिंहासन लगवाया था और इसे पृथ्वी का नाभि केंद्र कहा था। वर्ष 2002 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित कर दिया है।)
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ,( अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी (उ.प्र.)
वर्तमान में बोधिवृक्ष उस बोधिवृक्ष की पाँचवी पीढ़ी है जिसके नीचे तथागत बुद्ध को ज्ञान मिला था, उस ज्ञान का कुछ अंश आप के द्वारा हम सब को आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त हो रहा है |
नमोबुधाय गुरूदेव
बुद्ध की करुणा हो
अत्युत्तम समीक्षा है सर।
हम सब आपकी ज्ञान दृष्टि से अनवरत लाभान्वित हो रहे हैं।
आप पर बुद्ध देव की करुणा हो। मैं आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
इस लॉक्डाउन में आपके द्वारा प्रस्तुत समीक्षा से मुझे भी ज्ञान कीं अनुभूति हुई । आपके द्वारा पुनः बौद्धगया का स्मरण हुआ । इसके लिए आपको सपरिवार आभार ।
आप के सिखाए गए मार्ग का अनुसरण कर रहा हूं।सर। मजबूती से चलूंगा।
अप्रतिम
अद्वितीय
लाजबाव सर
धन्यवाद आपको भाई जी