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विश्व इतिहास की झलक जवाहरलाल नेहरू

विश्व इतिहास की झलक- पुस्तक समीक्षा – खंड- १

Posted on फ़रवरी 8, 2021फ़रवरी 8, 2021
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पुस्तक का नाम- विश्व इतिहास की झलक (भाग- एक), लेखक- जवाहरलाल नेहरू

पुस्तक विश्व इतिहास की झलक, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की लेखनी से निकली महत्वपूर्ण कृति है। इस पुस्तक के अध्ययन एवं अनुशीलन से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, संस्कृति और कला तथा सभ्यताओं के उतार- चढ़ाव के इतिहास के गहरे ज्ञान का पता चलता है। यद्यपि यह पुस्तक नेहरू जी के विभिन्न जेलों से अपनी पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी के नाम लिखे पत्रों का संग्रह है बावजूद इसके यह दुनिया के अतीत को जानने की कुंजी है। पुस्तक का हिन्दी अनुवाद चंद्रगुप्त वाष्र्णेय के द्वारा किया गया है। सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन,नई दिल्ली द्वारा यह प्रकाशित है। पुस्तक का ISBN 978-7309-554-2(PB) है। पुस्तक के पहले भाग में ६१६ पेज हैं।

विश्व इतिहास की झलक जवाहरलाल नेहरू
विश्व इतिहास की झलक- पुस्तक Front
विश्व इतिहास की झलक जवाहरलाल नेहरू
विश्व इतिहास की झलक- पुस्तक Back

पुस्तक के पेज नंबर २७ पर लेखक ने लिखा है कि इंकिलाब- जिन्दाबाद का अर्थ है ‘क्रान्ति अमर रहे,। यह जंगी नारा है। आजादी से पूर्व के भारत के उत्तर-पश्चिम में मोहेन- जो- दडो नामक स्थान पर एक बहुत प्राचीन सभ्यता के चिन्ह मिले हैं। आजकल यह स्थान सिंध नदी की घाटी में है और अब पाकिस्तान में है। क़रीब पांच हजार वर्ष पुराने इन खंडहरों को लोगों ने खोदा और वहां पर प्राचीन मिस्र की सी मोमियाई मिली थी। यह सभ्यता आर्यों के आने से बहुत पहले की की है। यूरोप उस समय वीरान रहा होगा।(पेज नं.२९) मोमियाई या ममी मसाला लगाकर रखा गया मुर्दा होता है।

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फिलिस्तीन, जिसे पैलस्टाइन भी कहते हैं, एशिया का एक प्राचीन देश है और यहूदियों, ईसाइयों व मुसलमानों, तीनों की पवित्र भूमि है। पश्चिम देश के अधीन रहने के बाद ईसा से लगभग ११०० वर्ष पूर्व यह फिलस्तीन जाति के अधिकार में आया। ईसा से पहले की नवीं सदी से छठीं सदी तक अशर और बाबुल के साम्राज्य इसे जीतते और फिर इससे हारते रहे। एक जमाने में यहूदियों ने यहां पर अपना स्वतंत्र राज्य कायम कर लिया था।कभी यह मुसलमानों के भी आधीन रहा। १९१७-१८ से १९४८ ई. तक यह अंग्रेजों के अधिकार में रहा। अब इसके दो भाग कर दिए गए हैं। एक भाग इजरायल है, जिसे यहूदियों ने अपना राष्ट्रीय वतन बना लिया है। दूसरा जार्डेन है जहां अरब लोगों का प्रभुत्व है।(पेज नं. ३०)

जेरूसलम, इजरायल
जेरूसलम, इजरायल
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ईरान, एशिया का एक स्वतंत्र देश है। ईसा से पूर्व ५५९ से ३३१ ई. तक ईरानी सभ्यता बहुत उन्नत दशा में थी और सम्राट डेरियस या दारा के जमाने से इसका साम्राज्य इतना विस्तृत और शक्तिशाली हो गया था कि यूनानियों को इसके डर के मारे नींद नहीं आती थी। यूरोप, अफ्रीका और एशिया ईरानी सम्राट के नाम से कांपते थे। लेकिन बाद में धीरे-धीरे इसका पतन हो गया और यूनानी विजेता सिकन्दर ने इस साम्राज्य को नष्ट कर दिया।

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जरथुस्त, प्राचीन ईरानी मज़हब के प्रवर्तक या पैगम्बर थे। यह किस ज़माने में हुए, इसका कुछ ठीक-ठीक पता नहीं चलता। लेकिन कुछ लोगों के ख्याल में इनका समय ईसा से एक हजार वर्ष पहले का है। ईरानी शहंशाह कुरुष के जमाने में इनका धर्म ईरान का खास धर्म हो गया था। यह भी एक आर्य धर्म ही था। भारत के पारसी अब भी इसी धर्म को मानते हैं। इनके शिवा इस धर्म का मानने वाला दुनिया में अब कोई नहीं है। इनकी मुख्य पुस्तक जेंदावेस्ता है। जरथुस्त को जोराष्टियन मजहब भी कहते हैं।(पेज नं. ३०) संसार की प्राचीनतम सभ्यता के उद्गम स्थल होने के कारण जवाहरलाल नेहरू एशिया को बूढ़ा महाद्वीप कहते थे।

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कन्फ्यूशियस एक मशहूर चीनी दार्शनिक और धर्म प्रवर्तक या पैगम्बर थे। ईसा से ५५१ साल पहले इसका जन्म हुआ था। कन्फ्यूशियस ने अपना सारा जीवन अपने देश की प्राचीन पुस्तकों को इकट्ठा करने, सम्पादन करने और छपाने में बिताया। ईसा से ४५८ साल पहले इसकी मृत्यु हुई थी। चीन में अब भी इनका मज़हब मानने वाले बहुत पाये जाते हैं। इनका चीनी नाम कुंग फू त्से है। लाओत्से भी मशहूर चीनी वेदांती और पैगम्बर थे। यह कन्फ्यूशियस के जमाने में ही हुए थे और उनके विरोधी थे। इसके मानने वाले भी चीन में बहुत हैं।(पेज नं. ३१)

क्रीट भूमध्य सागर के सबसे बड़े टापुओं में से एक है। प्राचीन सभ्यता में इसका स्थान बहुत ऊंचा है।कला- कौशल में कुशलता पाने वाला यह सबसे पहला यूरोपीय देश है। यहां का राजा माइनास बड़ा मशहूर शासक था और इतिहास का सबसे पहला राजा था जिसके पास अपनी जल सेना थी।क्रीट की राजधानी नोसास थी। यह बड़ा सम्पन्न और खुशहाल शहर था। मिट्टी का काम तो यहां खास तौर पर सुंदर होता ही था, सोने- चांदी का काम भी बहुत अच्छा होता था। यहां के हथियार भी बहुत अच्छे होते थे।(पेज नं. ३२) फरात और दजला नदियों के बीच के पूरे प्रांत का नाम इराक है। यह देश प्राचीन सभ्यताओं में से कइयों का क्रीडा क्षेत्र रहा है। इसे ही मेसोपोटामिया कहा जाता है।

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मिस्र देश के पत्थर के विशाल स्तूपों या मीनारों को अल-अहराम या पिरेमिड कहा जाता है जिसके नीचे मिस्र के प्राचीन सम्राटों की कब्रें हैं। सबसे बड़ा पिरेमिड गिजेह नामक स्थान पर है। इसमें पत्थर की २३ लाख चट्टानें लगी हुई हैं और एक एक चट्टान का वजन ढाई ढाई टन है।जिस जमाने में मशीनों का नाम तक न था, उस जमाने में लोगों ने कैसे ढाई- ढाई टन के २३ लाख पत्थर एक- दूसरे पर चुनकर रख दिए, इस बात के समझने में बुद्धि चकरा जाती है।

मिस्र देश के पिरेमिड (विशाल स्तूप/मीनार/अल-अहराम)
मिस्र देश के पिरेमिड (विशाल स्तूप/मीनार/अल-अहराम)

इराक के एक प्राचीन साम्राज्य का नाम बाबुल था। प्रथम बाबुली राजवंश की स्थापना ईसा से करीब २३०० साल पहले हुई थी। कई बार इसका उत्थान और पतन हुआ। ईसा से लगभग ६२५ साल पहले, नाबोपोलासार के खाल्दिया के सम्राट होने पर यह फिर आगे बढ़ने लगा। उसके उत्तराधिकारी दूसरे नेबूखुदनजर ने ईसा से पूर्व करीब ६०४ और ५६५ साल के बीच इस साम्राज्य को गौरव की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचा दिया। लेकिन उसके बाद उसका ऐसा पतन हुआ कि आगे कभी न उठा। इसकी राजधानी बाबुल एशिया का बहुत पुराना शहर था। आजकल के बगदाद से करीब ६० मील दक्षिण की तरफ, फुरात नदी के दोनों किनारों पर यह आबाद था। यहीं पर असर और ईरानी साम्राज्यों की राजधानियां भी थीं। यहां के लटकते हुए उद्यान संसार का एक आश्चर्य माने जाते थे।(पेज नं. ३३)

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अशर, एशिया के एक प्राचीन साम्राज्य का नाम है। इसका विशाल साम्राज्य उन सबसे पहले साम्राज्यों में से एक था, जिनके ऐतिहासिक लेख मिलते हैं। अपने गौरव काल में यह मिस्र में ईरान तक फैला हुआ था। इसी प्रकार खाल्दिया एक अर्थ में बेबीलोनिया का प्रांत था। ईरान की खाड़ी के ऊपर की तरफ अरब के रेगिस्तान से मिला हुआ फुरात नदी के निचले हिस्से के किनारों पर आबाद था। यहां का निवासी नाबोपोलासार मीड जाति की मदद से बैबीलोनिया का सम्राट हुआ।।

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– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी- संकेत, झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत।

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  1. पिंगबैक: पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक (खंड-१), भाग-५ - The Mahamaya
  2. पिंगबैक: पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, (खंड-१) भाग-४ - The Mahamaya
  3. पिंगबैक: पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक (खंड-१) भाग-३ - The Mahamaya
  4. पिंगबैक: विश्व इतिहास की झलक- पुस्तक समीक्षा(खण्ड-१), भाग-२ - The Mahamaya

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