पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में लिखा है कि १११५ ई. में इटली के लोकप्रिय धर्मोपदेश, ब्रेशिया के अर्नोल्ड को पादरियों ने फांसी पर लटका दिया था क्योंकि वह पादरियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रचार करता था। ईसाई संघ के भ्रष्टाचार की आलोचना करने वालों में अंग्रेज़ वाइक्लिफ भी था। वह पादरी था और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर था। उसी ने सबसे पहले बाइबिल का अंग्रेजी में अनुवाद किया। अपनी जिंदगी में तो वह पोप के कोप से बच गया, परंतु १४१५ ई. में, मरने के ३१ साल बाद ईसाई संघ परिषद ने हुक्म दिया कि उसकी हड्डियां खोद कर जला दी जाएं और ऐसा ही किया गया। १४१५ ई. में ही प्राहा विश्व विद्यालय के कुलपति जॉन हस को जिंदा जला दिया गया था।

संत फ्रांसिस का जन्म ११८१ ई. में इटली में हुआ था। सन् १२२६ ई. में इनकी मृत्यु हो गई। यह धनवान परिवार से था लेकिन इसने अपनी दौलत को त्याग कर गरीबी का व्रत लिया। बीमारों और गरीबों की सेवा करने के लिए वह दुनिया में निकल पड़ा।
इंग्लैंड में दो खानदानों में झगड़ा हुआ- एक तरफ यार्क का घराना और दूसरी तरफ लैंकेस्टर का घराना। इन दोनों दलों ने गुलाब को अपना चिन्ह बनाया। एक ने सफेद गुलाब को और दूसरे ने लाल गुलाब को। इन युद्धों को इसीलिए गुलाबों का युद्ध कहा जाता है। यूरोप में १३४८ ई. में भयंकर प्लेग फैल गई थी। इसे काली मौत भी कहते थे। इस महामारी ने इंग्लैंड की एक तिहाई आबादी को खत्म कर दिया

फ्रांस में १३५८ में किसानों का एक विद्रोह हुआ जो ज्हाकारी के नाम से मशहूर है। इंग्लैंड में वाट टाइलर का बलवा हुआ, जिसमे टाइलर, १३८१ ई. में अंग्रेज बादशाह के सामने मार डाला गया। १४ वीं सदी के शुरू से १५ वीं सदी के मध्य तक इंग्लैंड और फ्रांस के बीच युद्ध होता रहा। यह १०० वर्ष का युद्ध कहलाता है।
ओर्लियो की राजकुमारी, जीन द आर्क या जोन आफ आर्क, फ्रांस की वीर महिला थी, जिसने अंग्रेज़ो को अपने देश से मार भगाया। बाद में अंग्रेजों ने उसे पकड़ लिया और ईसाई संघ से उसके खिलाफ फतवा निकलवाया और फिर १४३० ई. में रूआं नगर के चौराहे पर उसे जिंदा जला दिया गया। बहुत वर्षों के बाद रोमन ईसाई संघ ने अपने फतवे को बदलकर उसे संत का दर्जा दे दिया।
सन् १२९१ ई. में यूरोप के एक छोटे से राष्ट्र स्विट्जरलैंड ने आस्ट्रिया से अपनी आजादी के लिए एक संघ कायम किया, जिसका नाम अमर संघ था। सन् १४९९ में स्विट्जरलैंड आजाद गणराज्य हो गया। १ अगस्त उनका राष्ट्रीय दिवस है।
१५ वीं सदी में उस्मानी तुर्कों ने जॉनिसार नाम की एक निराली फ़ौज बनाई थी। १४५३ ई. में कुस्तुनतुनिया पर उस्मानी तुर्कों का कब्जा हो गया। यूनानियों को मार भगाया गया। कुस्तुनतुनिया का यह पतन इतिहास की एक बड़ी तारीख़ है। इस दिन से एक युग का अंत और दूसरे की शुरुआत मानी जाती है। मध्य युग खत्म हो जाता है। अंधकार युग के हजार वर्ष समाप्त हो जाते हैं। यूरोप में तेजी पैदा होती है और नई जिंदगी व चेतना नजर आती है। इसे रिनेशां यानी विद्या और कला के पुनर्जन्म की शुरुआत कहते हैं। यह रिनेशां अथवा पुनर्जागरण सबसे पहले इटली में प्रारंभ हुआ। उसके बाद फ्रांस, इंग्लैंड इत्यादि में फैला।

सन् १४४५ ई. में पुर्तगालियों ने वर्दे का अंतरीप खोज निकाला। यह अंतरीप अफ्रीका का आखिरी पश्चिमी छोर है। १४८६ में बार्थोलोम्यु दायज ने, जो एक पुर्तगाली था, अफ्रीका की दक्षिणी नोक का चक्कर लगाया। यही नोक उत्माशा अंतरीप( केप ऑफ गुड होप) कहलाती है। कुछ ही वर्षों के बाद एक दूसरा पुर्तगाली वास्को-डि-गामा, इस खोज से फायदा उठा कर उत्माशा अंतरीप होता हुआ भारत आया।वास्को डी गामा १४९७ ई. में मलाबार के किनारे कालीकट आ पहुंचा। इस तरह भारत पहुंचने की दौड़ में पुर्तगालियों ने बाज़ी मार ली।
सन् १४९२ ई. में क्रिस्तोफर कोलम्बस अमेरिका की दुनिया में जा पहुंचा।कोलम्बस, जिनेवा का रहने वाला एक गरीब आदमी था। इस विश्वास पर कि दुनिया गोल है, यह पश्चिम की ओर जहाज ले जाकर जापान और भारत पहुंचना चाहता था। स्पेन के फर्डीनेंड और आइजाबेला की मदद से कोलम्बस ८८ आदमियों और तीन छोटे जहाजों को लेकर रवाना हुआ। ५९ दिन की समुद्री यात्रा के बाद वे किनारे लगे। कोलम्बस ने समझा यही भारत है। लेकिन असल में यह वेस्टइंडीज का एक टापू था। कोलम्बस कभी अमेरिका के महाद्वीप में नहीं पहुंचा। मरते वक्त तक उसका यह विश्वास था कि वह एशिया पहुंच गया है।इन टापुओं को आज तक वेस्टइंडीज कहते हैं और अमेरिका के आदिम निवासियों को इंडियन या रेड इंडियन कहा जाता है।
सन् १५१० ई. में पुर्तगाली गोवा आए। १५११ में मलाया प्रायद्वीप में मलक्का पहुंचे। १५७६ में वे जावा तथा चीन पहुंचे। १५७३ में बलबोआ नामक एक स्पेनी मध्य अमेरिका में पनामा के पहाड़ों को लांघकर प्रशान्त महासागर पहुंच गया। उसने इस समुद्र को दक्षिण समुद्र नाम दिया। १५१९ ई. में मैगेलन ५ जहाज और २७० आदमियों के साथ पश्चिमी समुद्र यात्रा पर रवाना हुआ।अतलांतिक महासागर पार करके वह दक्षिण अमेरिका पहुंचा। वहां से आगे चलकर जलडमरुमध्य को पार कर वह प्रशांत महासागर में पहुंचा। प्रशांत उसी का दिया हुआ नाम है क्योंकि यह अटलांटिक के मुकाबले ज्यादा शांत था। प्रशांत तक पहुंचने में उसे १४ महीने लगे। जिस जलडमरूमध्य से वह गुजरा था वह अभी तक उसी के नाम पर मैकलेन का जलडमरूमध्य कहलाता है।
वहां से चलकर मैकलेन १०८ दिन की समुद्री यात्रा कर फिलीपाइन द्वीप पहुंचा। यहीं वह मारा गया। इसके बाद सिर्फ एक जहाज, जिसका नाम विक्टोरिया था, रवाना होने के तीन साल बाद १५२२ में सिर्फ १८ आदमियों के साथ स्पेन में सैविले जा पहुंचा।सारी दुनिया का चक्कर लगाने वाला यह पहला जहाज था। मनिल्ला गैलियो एक स्पेनी जहाज था जो २४० साल तक अमेरिका और पूर्वी टापुओं के बीच प्रशान्त महासागर पार करके आया जाया करता था।

मैकलेन के विक्टोरिया के बाद फ्रांसिस ड्रेक का गोल्डन हिन्द दूसरा जहाज था जिसने सारी दुनिया का चक्कर लगाया। इस परिक्रमा में उसे तीन वर्ष लगे थे। १५७७ में ड्रैक ५ जहाजों को लेकर स्पेन के उपनिवेशों को लूटने निकला था। लेकिन उसके ४ जहाज डूब गए थे। सिर्फ एक जहाज प्रशांत महासागर होकर उत्तमाशा अंतरीप होता हुआ इंग्लैंड वापस आया।
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी ( उत्तर प्रदेश), भारत