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Glimpses of world history- part 15

पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, (भाग- 15)

Posted on जुलाई 6, 2021अप्रैल 20, 2024

पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में लिखा है कि सन् 1756 से 1763 ई. तक यूरोप, कनाडा और भारत में इंग्लैंड और फ्रांस इन दोनों शक्तियों में इस बात का निबटारा करने के लिए युद्ध हुआ कि किसका प्रभुत्व हो। यह युद्ध सात साल का युद्ध कहलाता है। 18 वीं सदी में बेल्जियम के वॉलून लोगों ने अंग्रेजों को कपड़ा बुनना सिखाया। बाद में फ्रांस से आए प्रोटेस्टेंट शरणार्थी हू्जिनात ने अंग्रेजों को रेशमी कपड़ा बुनना सिखाया। सन् 1738 में के नामक एक अंग्रेज ने कपड़ा बुनने की सरकवां ढरकी बनाई। सन् 1764 में हारग्रीब्ज ने कातने की जेनी का आविष्कार किया। सन् 1765 में जेम्स वाट ने भाप का इंजन बनाया।

सन् 1620 में प्रोटेस्टेंट लोगों का एक जत्था मे फ्लावर नामक जहाज़ से इंग्लैंड से अमेरिका गया था। डचों ने अमेरिका में एक शहर बसाया था और उसका नाम न्यू एम्स्टर्डम रखा। बाद में जब यह अंग्रेजों के हाथ में आया तो उन्होंने इसका नाम बदलकर न्यूयॉर्क कर दिया। सन् 1659 ई. में विलियम फ्राक्स ने एक सोसायटी ऑफ फ्रेण्डस ( मित्र मंडली) क़ायम की थी, जिसका उद्देश्य धर्म के ढकोसलों को छोड़ देना और शांति स्थापित करना था। इन लोगों का मुंह बोला नाम क्वेकर पड़ गया। अमेरिका में इस सोसायटी का संगठन विलियम पैन ने किया। इन लोगों का जबर्दस्त अंतर्राष्ट्रीय और सामाजिक प्रभाव रहा है।

कोलम्बस जब हिन्दुस्तान की तलाश में निकला तो अमेरिका जा पहुंचा। वहां के निवासियों को देखकर उसने उसको हिन्दुस्तान समझा और तभी से उसको इंडियन कहा जाने लगा। लेकिन जब मालूम हुआ कि यह लोग हिंदुस्तानी न थे तो उनका तांबे जैसा रंग होने के कारण रेड इंडियन का नाम दे दिया गया। यह लोग अब भी थोड़ी बहुत तादात में उत्तरी अमेरिका में पाये जाते हैं। क्यूबेक अभी तक एंग्लो सेक्सन आबादी से घिरा हुआ है। इंग्लैंड के निवासी एंग्लो सैक्सन जाति के माने जाते हैं। कहते हैं कि पहले- पहल जर्मनी के सैक्सनी प्रांत के लोग यहां आकर बसे थे।

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सन् 1773 में जब ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की चाय जबरन अमेरिका भेजी तो वहां उसका विरोध हुआ।बोस्टन बंदरगाह पर रेड इंडियनों ने चाय को समुद्र में फेंकना शुरू कर दिया, तब यह घटना बड़ी मशहूर हो गई। यह बोस्टन टी पार्टी कहलाती है।भारत में बापू के नमक सत्याग्रह को साल्ट पार्टी कहा गया। यूरोप में जैतून का पेड़ शांति का चिन्ह समझा जाता है। इसलिए जैतून के पेड़ की डाली पेश करने का मतलब होता है- शांति का प्रस्ताव करना।इसे ओलिव ब्रांच पिटीशन भी कहा जाता है। बिना प्रतिनिधित्व के कर नहीं, यह अमेरिका का नारा था जो ब्रिटेन के खिलाफ था।

अमेरिका में उपनिवेशों ने अपनी आजादी के लिए लम्बा संघर्ष किया है जिसका नेतृत्व वाशिंगटन ने किया था। सन् 1767 में उपनिवेशों का मशहूर स्वाधीनता का घोषणापत्र निकला। 1782 में युद्ध खत्म हो गया और 1783 में लड़ने वाले देशों ने पेरिस के सुलहनामे पर दस्तखत कर दिया। इस तरह अमेरिका के यह 13 उपनिवेश एक स्वाधीन गणराज्य बन गए, जिनको युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका कहा जाता है। स्वाधीनता के युद्ध के समय वहां की आबादी 40 लाख से भी कम थी। जार्ज वाशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हुए। 1767 की अमेरिकी घोषणा में कहा गया था कि जन्म से सब मनुष्य बराबर हैं। इस पर फ्रांस के वाल्तेयर और रूसो का प्रभाव है।

फ्रांस में लुई 16 वें की रानी मेरी एन्तोइनेत का उपनाम मादाम दैफिसित यानी घाटा देवी रख दिया गया था क्योंकि वह बहुत खर्चेलू थी। टेनिस कोर्ट की शपथ फ्रांस की कामन्स की वह शपथ है जिसने 14 जुलाई सन् 1789 में वहां पर रक्तरंजित क्रांति का आगाज किया।इसी दिन बास्तील का पतन हुआ। बास्तील पेरिस शहर के बीच में एक पुराना और मजबूत किला था, जिसमें राजनीतिक कैदी बन्द किए जाते थे और उनको तकलीफें दी जाती थीं। पेरिस के लोगों ने इस पर हमला किया।जेल खाने पर कब्जा करके सारे कैदियों को रिहा कर दिया। 14 जुलाई आज तक फ्रांस का राष्ट्रीय त्यौहार है और यह हर साल सारे देश में मनाया जाता है।

त्वलरी फ्रांस का राजमहल था जहां क्रांति के समय लुई 16 वें को क़ैद किया गया था। फ्रांस की राज्य क्रांति 1789 से 1794 तक चली। इसने फ्रांस का कायापलट कर दिया। इस क्रांति ने दुनिया को स्वतंत्रता, समता और भ्रातृत्व का नारा दिया था। जैकोबियन, फ्रांस की राज्य क्रांति में भाग लेने वाला एक शक्तिशाली राजनीतिक दल था। यह लोग जेलियों सी टोपी पहनते थे जो जैकोबियन कैप के नाम से मशहूर हो गई। और क्रांति का चिन्ह माना जाने लगा। इस दल की स्थापना 1789 में हुई थी।आज लाल झंडा साम्यवाद का झंडा है लेकिन पहले यह जनता के खिलाफ फौजी कानून की घोषणा का सरकारी झंडा हुआ करता था।

फ्रांस की क्रांति के बाद 21 सितम्बर 1792 को नेशनल कन्वेंशन बुलाया गया जिसने गणराज्य की घोषणा किया।लुई 16 वें पर मुकदमा हुआ तथा उसे मृत्यु दण्ड दिया गया। 21 जनवरी 1793 को उसे बादशाहत के पापों का बदला अपना शिर देकर चुकाना पड़ा। उसे गिलोतीन पर चढ़ा दिया गया।दांते का नारा था ‘‘ पितृ भूमि के दुश्मनों को परास्त करने के लिए हममे दिलेरी और भी ज्यादा दिलेरी, हमेशा दिलेरी चाहिए। यूरोप के लोग देश को मातृ भूमि के बजाय पितृ भूमि कहते हैं। कैमिल दैम्युला, लूसिल, कवि फ्रैब, फोकिए तिनविल, मारत, दॉंते यह सभी फ्रांस की क्रांति की भेंट चढे।छर्रों का फ्रांस की कहावत है जो एक घटना पर आधारित है जिसका सम्बन्ध नेपोलियन बोनापार्ट से है।

फ्रांस में 1789 की क्रांति के दिनों में मौत की सजा पाये हुए लोग हर रोज गिलोतीन पर ले जाए जाते थे। कुर्बानी के बकरों से भरी इन गाड़ियों को तंब्रिल कहते थे। फ्रांस की राज्य क्रांति से ही नेपोलियन बोनापार्ट का उदय हुआ। उसे तकदीर देवी का पुत्र कहा जाता है। उसने एक बार कहा था कि मेरी रखैल, सत्ता मेरी रखैल है, इसे वश में करने के लिए मुझे इतनी दिक्कत उठानी पड़ी है कि मैं न तो उसे किसी को छीनने दूंगा और न ही अपने साथ किसी को भोगने दूंगा। यूरोप को वह छोटी सी टेकरी कहता था। नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 1769 में कोर्सिका टापू में हुआ था जो फ्रांस के मातहत था। 24 साल की उम्र में वह फ्रांस का सेनापति बना।

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नेपोलियन बोनापार्ट कहा करता था कि मैं गोल कमरों में बैठने वालों और बकवास करने वालों की राय से क्या परवाह करता हूं। मैं तो सिर्फ एक ही राय को मानता हूँ, जो किसानों की राय है। नेपोलियन बोनापार्ट ने मारेंगो, उल्म, आस्तरलित्स, यैना, ईलू, फ्रीदलैंड, वाग्रम, आस्ट्रिया, प्रशा, रूस, स्पेन, इटली, नीदरलैंड, पोलैंड सभी को अपने अधीन कर लिया था। केवल इंग्लैंड ही उसकी आफ़त से बच गया था, वह भी समुद्र के कारण। नेपोलियन ने 1814 में गद्दी छोड़ दिया तथा 1821 में उसकी मृत्यु हो गई।

ईसाइयत के बारे में नेपोलियन ने कहा था कि मैं ऐसे मज़हब को कैसे कबूल कर सकता हूँ जो सुकरात और अफलातून की निंदा करता है। वह कहता था कि मज़हब ने स्वयं के साथ बराबरी की भावना का विचार जोड रखा है जो गरीबों को धनवानों की हत्या करने से रोकता है। मज़हब का वही उपयोग है जो चेचक के टीके का। अपनी ताकत के घमंड में नेपोलियन ने कहा था कि यदि आकाश हमारे ऊपर गिरने लगे तो हम उसे अपने भालों की नोक पर रोक लेंगे। मैंने तलवार बहुत कम खींची है, मैंने लड़ाइयां अपनी आँखों से जीती हैं, हथियारों से नहीं।

नेपोलियन बोनापार्ट के आखिरी दिन बहुत कष्ट में बीते। वह 5 वर्ष यूरोप की क़ैद में रहा। जहां उसे मां, पुत्र, पत्नी किसी से भी मिलने की अनुमति नहीं थी। सेंट हेलेना के एक टापू में क़ैद में ही उसकी मौत हुई।

लाफेअत (1757-1834) फ्रांसीसी सेनापति और राजनीतिज्ञ था। यह अमेरिका के स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ा था। 1789 ई. में यह फ्रांस की राज्य क्रांति का नेता था लेकिन 1792 ई. में वहां से भाग गया। नेपोलियन बोनापार्ट के बाद यह फिर राष्ट्रीय फ़ौज का सेनापति हुआ। ख़ास रियासती वर्गों के विरुद्ध रूसो ने लिखा है कि जनता ही वास्तव में मनुष्य जाति है।जो जनता नहीं है वह इतनी छोटी चीज है कि उसे गिनने की भी तकलीफ उठाने की भी जरूरत नहीं है।

ममलूक, तुर्की के सुल्तान अयूब के शरीर रक्षक गुलाम थे, जो उसकी मृत्यु (1251) के बाद 1571 ई. तक मिस्र में राज करते रहे। सुल्तान सलीम प्रथम ने इनको बाहर निकाल दिया था लेकिन 18 वीं सदी में इन्होंने फिर अधिकार कर लिया। 1798 ई. में नेपोलियन बोनापार्ट ने इन्हें हराया और 1811में सुल्तान मुहम्मद अली ने इनका अंत तक दिया।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी, फोटो गैलरी डॉ. संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर प्रदेश ( भारत)

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2 thoughts on “पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, (भाग- 15)”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    जुलाई 7, 2021 को 1:08 अपराह्न पर

    सरल और सारगर्भित… ज्ञानवर्धन के लिए आपका आभार

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      जुलाई 8, 2021 को 11:41 पूर्वाह्न पर

      धन्यवाद आपको डॉ साहब

      प्रतिक्रिया

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