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पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक (भाग-१६)

Posted on जुलाई 12, 2021जुलाई 12, 2021
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पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में लिखा है कि दक्षिण अमेरिका की स्वाधीनता का एक बड़ा नायक था, साइमन बोलिवर जो देश उद्धारक के नाम से मशहूर है।दक्षिण अमेरिका के बोलविया गणराज्य का नाम उसी के नाम पर रखा गया है। नेपोलियन की मृत्यु के बाद यूरोप के कुछ बादशाह अमेरिकी उपनिवेशों के क्रांतिकारियों को दबाने में स्पेन के बादशाह की मदद करना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति मुनरो ने साफ- साफ़ कह दिया कि अगर उन्होंने उत्तर या दक्षिण अमेरिका में कहीं भी टांग अड़ाई तो उन्हें संयुक्त राज्य से लोहा लेना पड़ेगा। यूरोप को दी गई मुनरो की यह धमकी मुनरो सिद्धांत के नाम से मशहूर है।

दक्षिण अमेरिका के गणराज्यों की नींव स्पेनियों और पुर्तगालियों ने डाली थी, इसीलिए यह लातीनी गणराज्य कहलाते हैं। यह दोनों देश और इटली व फ्रांस लातीनी राष्ट्र कहलाते हैं। दूसरी तरफ यूरोप के उत्तरी देश ट्यूटानी हैं। इंग्लैंड ट्यूटनों की ऐंग्लो सेक्सन शाखा है। संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग शुरू में इसी एंग्लो सेक्सन नस्ल के थे।ट्यूटन, जर्मनी की एक प्राचीन आदिवासी कौम है। १९ वीं सदी के मध्य में तुर्की को यूरोप का मरीज कहा जाता था, क्योंकि उस समय इसकी स्थिति अच्छी नहीं थी। फ्रांस में नेपोलियन बोनापार्ट का पतन १८१४ में हुआ। इसके ठीक १०० वर्ष बाद १९१४ में प्रथम महायुद्ध प्रारम्भ हुआ।

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अफीम का युद्ध इंग्लैंड और चीन के बीच का विवाद है। चीन में मंचू राजाओं ने अफीम के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। इससे नाराज होकर अंग्रेजों ने चीन के विरुद्ध कार्यवाई किया और चीन को अफीम खरीदने के लिए बाध्य किया।सन् १८६९ में स्वेज नहर खोली गई। इससे यूरोप और भारत के बीच का रास्ता बहुत छोटा हो गया। इंग्लैंड इस समय नये साम्राज्यवाद का नायक था।उस समय कहा जाता था कि झंडे के पीछे पीछे व्यापार चलता है और बाइबिल के पीछे पीछे झंडा चलता है।

दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ, यह कार्ल मार्क्स का नारा था। मार्क्स कहता था कि अब तक फिलॉस्फी का काम सिर्फ संसार की व्याख्या करना रहा है, साम्यवादी फिलॉस्फी का लक्ष्य होना चाहिए दुनिया को बदल देना। मार्क्स ने एंजेल्स के साथ मिलकर साम्यवादी घोषणा पत्र निकाला। बाद में जर्मन भाषा में उसकी पुस्तक पूंजी ( दास कैपिटल) निकली, जिसे साम्यवादी रूस की बाइबिल कहा जाता है। इसी दौर में इंग्लैंड में डार्विन की पुस्तक ओरिजिन आफ स्पीशीज प्रकाशित हुई। इस पुस्तक ने पश्चिम में खलबली मचा दी।

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कोतो, एक चीनी शब्द है जिसका अर्थ है- जिसका अर्थ है जमीन पर लेटकर, दंडवत प्रणाम करना। १९४२ की नानकिन की संधि के परिणामस्वरूप चीन को अपने ५ बंदरगाह- कैंटन, संघाई, अमॉय, निगपो और फ्यूचू को अफीम के व्यापार ( अंग्रेजों के लिए) के लिए खोलने पड़े। इन्हें सुलहनामे के बंदरगाह कहा जाता है। चीन में १८५० में ताइपिंग का बलवा हुआ जिसमे लगभग दो करोड़ लोग मारे गए। इस आंदोलन का नारा था, मूर्ति पूजकों को मारो। इसके लिए हूंड.- सिन-च्वान नामक व्यक्ति जिम्मेदार था।मैं किसी व्यक्ति को अपने बिस्तर के पास खर्राटें नहीं लेने दूंगा, यह एक चीनी मुहावरा है।

सन् १८६० में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने मिलकर चीन पर आक्रमण किया और उनका बेशकीमती पेकिंग के अद्भुत ग्रीष्म- भवन को तहस- नहस कर दिया। यह चीन की सभ्यता और संस्कृति की अनमोल धरोहर था। १८५४- ५६ में क्रीमियन युद्ध में अंग्रेजो और फ्रांसीसियों ने मिलकर रूस को हरा दिया। १८६८ में चीन- अमेरिका के बीच एक संधि हुई।जिसके तहत चीन से मजदूर अमेरिका ले जाना तय हुआ। १८६० के बाद चीन की बागडोर एक अनोखी महिला साम्राज्ञी राजमाता त्यू- सी के हाथ में आयी।जिस समय शासन की बागडोर उसके हाथ में आयी उस समय उसकी उम्र मात्र २६ साल की थी। क्योंकि नाम के लिए सम्राट उसका दुधमुंहा पुत्र था, ४७ वर्ष तक उसने बड़ी मर्दानगी के साथ चीन पर शासन किया।

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सन् १८९४-९५ में चीन- जापान युद्ध हुआ जिसमें जापान की विजय हुई। कोरिया को स्वाधीन घोषित किया गया। मंचूरिया में पोर्ट आर्थर के साथ लाओतुंग प्रायद्वीप और साथ ही फारमूसा और दूसरे कई टापू भी, चीन को जापान को नजर करने पड़े। १९ वीं सदी के अंत में जब यूरोपीय शक्तियां चीन को अपने प्रभाव क्षेत्र में बांटने पर उतारू थीं और इस बंटवारे में अमेरिका को हिस्सा नहीं मिल रहा था तो अमेरिका ने चीन में खुले दरवाजा कहलाने वाली नीति पर जोर दिया। जिसका अर्थ था चीन में सभी देशों को सहूलियतें मिलें। मुसीबत की ऐसी घडी में राजमाता ने अंदरुनी रक्षा सेना के मुकामी दस्ते बनाए, जिन्हें पवित्र एकता के दल अथवा पवित्र एकता की मुष्टिका कहते थे। कुछ यूरोपीय लोगों ने इसका अनुवाद बाक्सर्स अथवा घूसेबाज कहकर किया है।

जापान ने १६४१ से लेकर अगले २०० वर्षों तक अपने को शेष दुनिया से अलग रखा। यहां इस दौर में शासक शोगुन था, जो बड़े फिरके का मुखिया होता था। भारत के क्षत्रियों की तरह वहां भी समुराई नाम की एक सैनिक जाति थी। सन् १८५३ में पहला अमेरिकी जहाज पानी के रास्ते (प्रशांत महासागर) जापान आया।यानी करीब २१३ साल बाद। राष्ट्रीयता और सम्राट पूजा का पंथ जापान की विशेषता थी।

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पिजारो, एक स्पेनी नाविक (१४७१-१५४१) था जिसने दक्षिण अमेरिका के पेरु देश को जीता था। वहां उसका जीवन हद से ज्यादा बेरहमी के कामों में बीता। आखिर में अपने ही एक सिपाही के हाथों उसकी मृत्यु हुई। चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने कहा था कि जो लोग अलौकिक या गैबी बातों में दख़ल रचने का ढोंग रचते हों, उनके साथ कोई ताल्लुक मत रखो। अगर तुमने अपने देश में अलौकिक वाद को पग जमाने दिया तो उसका नतीजा भयंकर आफ़त होगा।

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दिनांक २२ जनवरी १९०५ को हजारों निहत्थे किसान एक पादरी के पीछे जुलूस बनाकर रूस के जार से मिलने उसके महल पहुंचे।जार ने उनकी बात सुनने के बजाय उन पर गोली चलवा दिया जिसमें २०० लोग मारे गए। पीटर्सबर्ग की बर्फ ख़ून से लाल हो गई।उस दिन रविवार था और तभी से इस दिन को खूनी रविवार कहा जाता है। सन् १६२३ में मलक्का में अंबोयना के डच गवर्नर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के तमाम कर्मचारियों को गिरफ्तार करके मरवा डाला।यही अम्बोयना का हत्या कांड कहलाता है।

सितम्बर १९०५ में पोटर्समाउथ की संधि से रूस- जापान के युद्ध का अंत हुआ। यह संयुक्त राज्य अमेरिका में है। १९१० में जापान ने कोरिया को मिटा दिया और उसको पुराना नाम दिया- चोसेन, यानी सबेरे की शांति का देश। इंडोनेशिया का पुराना नाम नीदरलैंड का इंडिया है, जिसे ईस्ट इंडीज कहा जाता था।

पश्चिम एशिया, यूरोप की तरफ़ एशिया का झरोखा है। यह भूमध्य सागर से घिरा हुआ है जिसने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को एक दूसरे से अलग भी किया है और जोडा भी है। यूरोप की सभ्यता भूमध्य सागर के प्रदेश में ही शुरू हुई थी। पुराने यूनान के उपनिवेश इन्हीं तीनों महाद्वीपों के समुद्री किनारे पर बिखरे हुए थे। रोमन साम्राज्य इसी के चारों ओर फैला था। भूमध्य सागर के आसपास ही ईसाइयत का बचपन गुजरा है।

– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत

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2 thoughts on “पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक (भाग-१६)”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    जुलाई 14, 2021 को 12:10 पूर्वाह्न पर

    तथ्यात्मक और रोचक अभिव्यक्ति से परिपूर्ण है आपकी यह समीक्षा।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      जुलाई 14, 2021 को 4:45 अपराह्न पर

      डा. देवेन्द्र जी आपका निरंतर अध्ययन काबिले-तारीफ है।आप की पैनी दृष्टि आपके गहन ज्ञान की ओर इंगित करती है।

      प्रतिक्रिया

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