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पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, भाग-१९

Posted on जुलाई 29, 2021जुलाई 29, 2021
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अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है कि अंग्रेज़ दार्शनिक और अर्थशास्त्री जॉन स्टुअर्ट मिल (१८०६-१८७३) उपयोगितावादी विचारक के रूप में प्रसिद्ध है। उपयोगितावादियों का बुनियादी सिद्धांत था- अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख ( Greatest happiness of the greatest number), अर्थात् जो काम जितना सुख बढ़ाने वाला होता है वह उतना ही अच्छा कहा जाता है और जो काम जितना दुःख बढ़ाता है वह उतना ही बुरा माना जाता है।

जे. एस. मिल ने स्वतंत्रता पर एक छोटी पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है- ऑन लिबर्टी। मिल के अनुसार किसी मत की अभिव्यक्ति पर ताला लगा देने में ख़ास बुराई यह है कि मनुष्य जाति उससे वंचित रह जाती है।आने वाली संतानें और मौजूदा पीढ़ी भी, और उस मत के मानने वालों से भी ज्यादा वे लोग जो उनसे मतभेद रखते हैं। अगर वह मत सही है तो लोग असत्य की जगह पर सत्य को बिठाने के अवसर से महरूम रह जाते हैं, अगर ग़लत है तो वे करीब उतना ही बड़ा लाभ खो देते हैं- यह लाभ है सत्य के साथ उस मत की टक्कर से पैदा होने वाले सत्य का ज्यादा साफ़ ज्ञान और सत्य की ज्यादा चटकीली छाप।

अंग्रेज़ पूंजीपति और कारखाना मालिक रॉबर्ट ओवन के अथक प्रयास के बाद ब्रिटिश सरकार ने १८१९ ई. में कारखाना कानून (Factory law), पारित किया। जिसके अनुसार ९-९ वर्ष के छोटे बच्चों से १२ घंटे से ज्यादा काम न लेने की बात कही गई थी।१८३० ई. के आस-पास रॉबर्ट ओवन ने सर्वप्रथम समाजवाद शब्द का प्रयोग किया समाजवाद की मूल अवधारणा यह है कि उत्पादन के साधनों, विनिमय और वितरण पर राज्य या सरकार का नियंत्रण हो। किसी व्यक्ति विशेष का नहीं। नेहरू के शब्दों में- मार्क्सवाद, इतिहास, अर्थ शास्त्र, मानव जीवन और मानव उमंगों की व्याख्या करने का एक तरीका है। यह मत भी है और अमली कार्य वाही के लिए पुकार भी। यह ऐसा दर्शन है जो मनुष्य जीवन की ज्यादातर हलचलों के बारे में कुछ न कुछ बताता है। यह भूत, वर्तमान और भविष्य के मानव इतिहास को एक ऐसे बे- लचक ढांचे में बैठाने का यत्न है जो भाग्य या किस्मत जैसा अटल है।

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अराजकतावाद का अर्थ ऐसा समाज है, जिसमें जहां तक हो सके, कोई केन्द्रीय सरकार न हो और व्यक्तियों को खूब आजादी हो।अराजकतावाद का आदर्श- ऐसे जनराज्य में विश्वास, जिसका आधार परोपकार, हर हालत में एकता और दूसरे भाई के हकों का अपनी मर्जी से लिहाज हो।थोरो नाम के एक अमेरिकी ने कहा था कि- सरकार सबसे अच्छी वह है जो बिल्कुल शासन न करे और जब मनुष्य ऐसी सरकार के लिए तैयार हो जायेंगे, तब वे ऐसी ही सरकार पसंद करेंगे। नेहरू के शब्दों में- अराजकतावादी लोग ऐसे समाजवादी थे, जिनका स्थानीय और हर व्यक्ति की आजादी पर बहुत जोर था।कर दिखाने का प्रचार अराजकतावादियों की रणनीति थी जिसमें व्यक्तिगत दिलेरी के कारनामे थे। फ्रांसीसी प्रूदों, रूसी माइकेल बाकुनिन, पीटर क्रोपाटकिन, इटालियन निवासी एनरीको मालातेस्ता प्रमुख अराजकतावादी थे।

कार्ल मार्क्स एक जर्मन यहूदी था, जिसका जन्म १८१८ में हुआ। उसकी मृत्यु १८८३ में हुई। १८४८ में मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर साम्यवादी घोषणा पत्र जारी किया। घोषणा पत्र का समापन करते हुए लिखा था कि- दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ। तुम्हें खोना कुछ नहीं है, सिवाए अपनी गुलामी की जंजीरों के, और पाने को तुम्हारे वास्ते संसार पड़ा है। १८६४ में लंदन में मार्क्स के प्रयासों से अंतरर्राष्ट्रीय कामगार समिति की नींव पड़ी। यह मजदूरों का प्रथम अंतर्राष्ट्रीय (First International) संगठन था।

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इसके तीन साल बाद १८६७ में मार्क्स का महान ग्रंथ कैपिटल अर्थात् पूंजी जर्मन भाषा में प्रकाशित हुआ। मार्क्स ने इसी ग्रंथ में वैज्ञानिक समाजवाद की अवधारणा दी। अंग्रेजी छाप के समाजवाद की उस समय फेबियन सोसायटी थी। जार्ज बर्नार्ड शॉ और सिडनी वेब मशहूर फेबियनवादी थे। अराजकतावाद और समाजवाद का वर्ण- शंकर संघाधिपत्यवाद कहलाता था। १९८९ में द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय संघ बना। १९१९ में लेनिन ने तृतीय अंतर्राष्ट्रीय संघ बनाया। बाद में स्टालिन ने इसे भंग कर दिया।

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मार्क्स ने इतिहास के बारे में लिखा है कि- सारे मानव समाज का पिछला और मौजूदा इतिहास वर्गों के संघर्षों का इतिहास है। राज्य समूचे शासक वर्ग के काम काज की व्यवस्था करने के लिए एक कार्यकारिणी कमेटी है। मार्क्स के इतिहास के देखने के तरीके को इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या कहा जाता है।इसे भौतिक इसलिए कहते हैं क्योंकि यह विचारवादी नहीं है।

karl marx and capital, vladimir lenin

मार्क्स वाद के बारे में लेनिन ने कहा था कि हमें किसी भी अर्थ में मार्क्स वाद को ऐसी चीज नहीं समझना चाहिए जो मुकम्मल है और जिसमें कोई ऐब नहीं निकला जा सकता। वस्तुत: मार्क्स वाद उस विज्ञान की आधारशिला है जिसकी समाजवादियों को हर दिशा में उन्नति करनी चाहिए, अन्यथा जीवन की दौड़ में वे पीछे रह जाएंगे।

इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया जर्मनी के हैनोवर घराने की थीं। १८ वर्ष की उम्र में, सन् १८३७ में वह गद्दी पर बैठी और सदी के अंत तक, यानी १९०० ई. तक ६३ वर्ष राज किया। उन्हें यूरोप की दादी भी कहा जाता था। ब्रिटिश पार्लियामेंट को पार्लियामेंटों की जननी भी कहा जाता है। इस पार्लियामेंट के दो सदन हैं- उच्च सदन को हाउस ऑफ लॉर्ड्स तथा निम्न सदन को हाउस ऑफ कॉमन्स कहा जाता है। यहां पर दो प्रमुख राजनीतिक दल हैं- अनुदार दल तथा उदार दल। इन्हें पूर्व में टोरी और ह्विग कहा जाता था।

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१९ वीं सदी में इंग्लैंड की खुशहाली के ४ आधार उद्योग थे- सूती कपड़े, कोयला, लोहा और जहाज निर्माण। ब्रिटिश साम्राज्य शाही के नामी कवि रूडयार्ड किपलिंग ने गोरों का बोझ ( White man’s burden) के गीत गाए थे। १८९९ में दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल में एक युद्ध हुआ जिसे बोअर युद्ध के नाम से जाना जाता है। इसका कारण यहां पर सोने की खानें थी। बोअर लोग बड़ी बहादुरी से लड़े। अंततः अंग्रेजों ने उन्हें कुचल दिया।

boer war boer war memorial
बोअर युद्ध

अमेरिका में गुलामी का व्यापार १७ वीं सदी के प्रारम्भ में शुरू हुआ और १८६३ ई. तक निरंतर जारी रहा। यह गुलाम अफ्रीका के हब्सी होते थे।गोरा एक भी गुलाम नहीं था।वहां स्वाधीनता की घोषणा में कहा गया था कि जन्म से सब मनुष्य बराबर होते हैं।पर यह बात गोरों पर लागू होती थी, कालों पर नहीं। अफ्रीका के जिस समुद्री तट से इन गुलामों को ले जाया जाता था, उसे अब भी गुलामों का तट कहते हैं। १७९० में संयुक्त राज्य में गुलामों की संख्या ६ लाख, ९७ हजार थी, जो १८६१ में बढ़कर ४० लाख हो गई थी।

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जिम क्रो कार, अमेरिका में रेल के वह डिब्बे होते थे जहां पर कालों तथा हब्सियों को यात्रा में बैठना पड़ता था। कू- क्लक्स- क्लैन, अमेरिका के दक्षिणी राज्यों के गोरों की एक गुप्त समिति थी। जो १८६५ ई. में स्थापित हुई थी। इसका काम हब्सियों को दंड देना था। यह १८७६ में तोड़ दी गई थी परन्तु १९१५ में फिर जाग उठी। पुनः १९२८ ई. के बाद शांत हो गई। इसने हब्सियों और कैथोलिकों को बहुत आतंकित किया और अनेक हत्याएं की। लिंच का अर्थ होता है- किसी पर संदेह कर उसे पकड़ना तथा पीट – पीट कर मार डालना।

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अमेरिका में गुलामी की प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाने वाले लोगों को अबोलिशनिस्ट्स कहा जाता था। उनका सबसे बड़ा नेता विलियम लॉयड गैरीजन था। १८३१ में गैरीजन ने गुलाम विरोधी आंदोलन के समर्थन के लिए लिबरेटर नामक अखबार निकाला १८६२ ई. के सितम्बर माह में अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने मुक्ति की घोषणा (Proclamation of Emancipation) निकाली। जिसमें ऐलान कर दिया गया कि १८६३ की पहली जनवरी से सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले सब राज्यों के गुलाम आज़ाद हो जाएंगे। इसका नतीजा यह हुआ कि ४० लाख गुलाम आज़ाद हो गए। इसके कुछ दिन बाद ही लिंकन को गोली मार दी गई।

हैरियट बीचर स्टो की किताब Uncle Tom’s cabin दक्षिण अमेरिका के हब्सी गुलामों पर केन्द्रित है। यह पुस्तक अमेरिका के गृह युद्ध से १० वर्ष पूर्व १८५२ ई. में प्रकाशित हुई थी। इसमें गुलामों की दर्दनाक कहानी है। अमेरिका के लोगों को गुलामी के खिलाफ भड़काने में इस पुस्तक का बड़ा योगदान है। (हैरियट स्टो, अमेरिका के एक मंत्री की पुत्री थी। पुस्तक लिखने के ११ वर्ष बाद जब वहां के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन उनसे मिले, तो उन्होंने उनका अभिनंदन करते हुए कहा कि अच्छा तो आप ही वह छोटी सी महिला हैं, जिन्होंने ऐसी पुस्तक लिखी कि जिसके कारण यह भयंकर गृह युद्ध हो गया )।

uncle toms cabin by Harriet Beecher Stowe

कहा जाता है कि बाइबिल के बाद सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली और सबसे गहरा नैतिक प्रभाव डालने वाली यही पुस्तक है। १८५२ में जब उक्त पुस्तक का अमेरिका में पहला संस्करण अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ तब अकेले अमेरिका में उस पहले संस्करण की ३ लाख, १३ हजार प्रतियां बिक गयीं और उसके बाद १० वर्षों में इस पुस्तक के १४ सौ संस्करण प्रकाशित हुए। भारत में यह पुस्तक टाम काका की कुटिया के नाम से, हिन्दी में, सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत

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2 thoughts on “पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, भाग-१९”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    जुलाई 30, 2021 को 12:42 पूर्वाह्न पर

    बहुत ही ज्यादा जटिल और उलझे हुए विषयो को एक साथ समाहित करना और उन्हें सरल भाषा मे व्यक्त करना आपके सामर्थ्य को प्रतिबिंबित करती है।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      जुलाई 30, 2021 को 12:42 अपराह्न पर

      निरंतर उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब।

      प्रतिक्रिया

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