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पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक (भाग 6)

Posted on मई 15, 2021दिसम्बर 10, 2024

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में लिखा है कि गुप्त काल के 200 वर्षों बाद दक्षिण भारत में पुलकेशी नामक एक राजा ने, जो रामचन्द्र का वंशज होने का दावा करता था, एक साम्राज्य स्थापित किया जो चालुक्य साम्राज्य के नाम से मशहूर है। भारत के पश्चिम और मध्य में स्थित इस साम्राज्य की राजधानी बादामी थी। इसके उत्तर में हर्ष का साम्राज्य, दक्षिण में पल्लवों का साम्राज्य तथा पूर्व में कलिंग था।

विजयाचल, चोल साम्राज्य का महान राजा था। लंका में चोलों ने 70 साल तक राज किया। चोल राजा, रामराजा ने इसे जीता था। यह 10 वीं सदी के अंत की बात है। रामराजा के पुत्र राजेन्द्र ने दक्षिण वर्मा को जीता था। राजेन्द्र ने 1013 ई. से 1044 ई. तक राज किया। चोल सम्राट राजेन्द्र प्रथम ने ही चोलापुर में सिंचाई के लिए एक जबर्दस्त बांध बनवाया था, जो ठोस चूने का था और 16 मील लम्बा था। इसके बनने के 100 वर्ष बाद एक अरब यात्री अलबेरुनी वहां गया और इसे देखकर चकित हो गया।

दक्षिण भारत में जन्मे शंकराचार्य ने अपनी कीर्ति पताका पूरे देश में फहराई। मात्र 32 वर्ष की उम्र में केदारनाथ में उनकी मृत्यु हो गई। बौद्ध धर्म को समाप्त करने तथा शैव मत को प्रतिष्ठापित करने में शंकराचार्य की प्रमुख भूमिका रही।

सुदूर भारत उन उपनिवेशों और बस्तियों को कहते हैं जो दक्षिण भारत के लोगों ने मलेशिया और हिन्द चीन में जाकर क़ायम की। यह ईसवी सन् की पहली और दूसरी सदी के हैं। हिंद चीन के सबसे पुराने उपनिवेश का नाम चम्पा था और यह अनाम में था। हिंद चीन में नवीं सदी में जय वर्मन नाम का एक राजा हुआ। उसका उत्तराधिकारी यशोवर्मन था। यहां का अंकोरथोम का राजनगर सारे पूर्व में शानदार अंकोर के नाम से मशहूर था। इसके पास ही अंकोरवाट का अद्भुत मंदिर है। श्री विजय नगर भी सुमात्रा टापू की राजधानी था। सिंगापुर कभी सुमात्रा का उपनिवेश था। इसे सिंहपुर नाम से जाना जाता था।

एशिया के दक्षिण- पूर्व भाग में आस्ट्रेलिया तक फैला हुआ द्वीप समूह जिसे ईस्ट इंडीज या मलय द्वीप कहते हैं। जावा के बोरो बुदूर में भारतीय कारीगरों के द्वारा बनाए हुए बड़े- बड़े बौद्ध मंदिरों के खंडहर अब भी पाये जाते हैं। इन मंदिरों की दीवारों पर बुद्ध के जीवन की पूरी कहानी खुदी हुई है।

कोरिया

चीन के पड़ोस में कोरिया और जापान बिल्कुल सिरे पर, सुदूर पूर्व में हैं और इसके पार प्रशान्त महासागर फैला हुआ है। की- त्से नामक एक निर्वासित चीनी ने कोरिया जाकर उसका नाम ‘ चोसेन, यानी ‘सुबह की शान्ति, का देश रख दिया यह ईसा पूर्व 1122 की बात है। 935 ई. में चोसेन एक स्वाधीन संयुक्त राज्य बन गया। इसका श्रेय वांड्- कीयन को जाता है। एक हजार वर्ष तक कोरिया वालों ने चीनी लिपि काम में ली। चीनी लिपि में अक्षर नहीं, बल्कि विचारों, शब्दों और पदों के चिन्ह होते हैं। जनगणना का काम सर्वप्रथम चीन में हुआ। वहाँ 156 ई. में पहली जनगणना हुई। यह हन् वंश का शासन था। गिनती व्यक्तियों की नहीं कुटुम्बों की होती थी।

पंडित जवाहरलाल नेहरु ने लिखा है कि जापानी लोग मंगोली नस्ल के हैं। जापान में अब भी कुछ लोग हैं जिन्हें आइनस कहते हैं और वह जापान के आदिम निवासी समझे जाते हैं। 200 ई. के क़रीब जिंगो नाम की एक साम्राज्ञी यामातो राज्य की शासक थीं। यामातो उस हिस्से का असली नाम है जहां आइनस लोगों को धकेल दिया गया था। यद्यपि जिंगो का अंग्रेजी नाम है- डींग मारने वाला। जापान का पुराना मज़हब शिन्तो था। शिन्तो, चीनी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है- देवताओं का मार्ग। यह मज़हब प्रकृति पूजा और पुरखों की पूजा का मेल था।

जापान


शिन्तो, योद्धाओं की जाति का मज़हब था जिसका आदर्श वाक्य है- देवताओं का सम्मान करो और उनके वंशजों के प्रति वफादार रहो। जापानी लोग अपने को ‘दाई निप्पोन, यानी सूर्योदय का देश कहते हैं। यह नाम एक चीनी सम्राट का दिया हुआ है। जापान शब्द निप्पौन से बिगडकर बना हुआ है। इतालवी यात्री मार्कोपोलो ने अपनी पुस्तक में जापान को चिपड्.गो लिखा है और इसी से जापान शब्द निकला है।

जापान के शासक परिवारों में सोगा परिवार तथा काकातोमी परिवार बहुत प्रसिद्ध हैं। सोगा परिवार के समय में ही बौद्ध धर्म वहां का सरकारी धर्म बना। यह 600 ई. के लगभग की बात है। इसी काल में जापान की राजधानी नारा बनी। 794 ई. में क्योतो राजधानी बनी और करीब 1100 वर्षों तक रही।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी (उत्तर प्रदेश) भारत

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