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ह्वेनसांग की भारत यात्रा- सारनाथ, गाजीपुर तथा वैशाली…

Posted on मई 2, 2020जुलाई 13, 2020
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सारनाथ

कपिलवस्तु और लुम्बिनी की अपनी यात्रा को सम्पन्न कर ह्वेनसांग वहां से चलकर ” पओलोनिस्की ” अर्थात् वाराणसी या बनारस आया।

उसने लिखा है कि यहां 30 संघाराम और 3,000 संन्यासी रहते हैं। सभी सम्मतीय संस्थानुसार हीनयान सम्प्रदाय के अनुयाई हैं। राजधानी के पूर्वोत्तर वरना नदी के पश्चिमी तट पर अशोक राजा का बनवाया हुआ 100 फ़ीट ऊंचा एक स्तूप है। इसके सामने पत्थर का एक स्तम्भ कांच के समान स्वच्छ और चमकीला है।इसका तल भाग बर्फ के समान चिकना और चमकदार है। इसमें प्राय:छाया के समान बुद्ध देव की परछाईं दिखलाई पड़ती है।(पेज नं 212) (इसकी ऊंचाई प्रारंभ में 17.55 मीटर अर्थात् 55 फ़ीट थी। वर्तमान में इसकी ऊंचाई सिर्फ 2.03 मीटर अर्थात् 7 फ़ीट 9 इंच है। स्तम्भ का ऊपरी शिरा अब सारनाथ संग्रहालय में सुरक्षित है। इस स्तम्भ पर तीन लेख उल्लिखित हैं। पहला अशोक कालीन ब्राम्ही लिपि में, दूसरा कुषाण कालीन तथा तीसरा गुप्त काल का है। भारत का राष्ट्रीय चिह्न इसी स्तम्भ के मुकुट की द्विविमीय अनुकृति है।)

ashoka emblem
सिंह राजधानी, सारनाथ

इसके पास एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर 500 प्रत्येक बुद्ध एक ही समय में निर्वाण को प्राप्त हुए थे। इसके अलावा 3 और स्तूप हैं जहां पर गत तीनों बुद्धों के पद चिन्ह पाये जाते हैं। इस अंतिम स्थान के पास एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर मैत्रेय बोधिसत्व को अपने बुद्ध होने पर विश्वास हुआ था। इस स्थान के निकट ही दक्षिण दिशा में बुद्ध देव के पद चिन्ह हैं। यह स्थान नीले पत्थरों से बनाया गया है जिसकी लम्बाई 50 पग तथा चौड़ाई 7 फुट है। ऊपरी भाग में टहलती हुई अवस्था में एक मूर्ति है।(पेज नं 214) संघाराम की चहारदीवारी के भीतर कई सौ स्तूप और कुछ विहार आदि मिलाकर असंख्य पुनीत चिन्ह हैं।

(पेज नं 215) इसी स्थान से थोड़ी दूर पर एक जंगल में एक स्तूप है।यही प्रसिद्ध मृगदाव है। इस स्थान को छोड़कर और संघाराम से 2,3 ली दक्षिण-पश्चिम चलकर एक स्तूप 300 फ़ीट ऊंचा मिलता है। इसके आस-पास ऊंची इमारत बनाई गई है। इसके निकट ही एक और छोटा सा स्तूप बना हुआ है। यह वह स्थान है जहां पर कौण्डन्य इत्यादि पांच मनुष्यों ने बुद्ध देव के अभिवादन से मुख मोड़ा था।(पेज नं 217) मृगदाव के 3 या चार ली पूर्व में एक स्तूप तथा पास में ही एक शुष्क जलाशय था। पास ही एक झील है जिसके पश्चिम में एक स्तूप तीन जानवरों का है।

sarnath stupa
धामेक स्तूप, सारनाथ

गाजीपुर

वहां से चलकर ह्वेनसांग “चेनगू” अर्थात् गाजीपुर देश में आया। इसका प्राचीन नाम “गजपुर” था। उस समय यहां 10 संघाराम थे जिसमें 1000 से कम हीनयान सम्प्रदायी साधु निवास करते थे। राजधानी के पश्चिमोत्तर वाले संघाराम में एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है। भारतीय इतिहास से पता चलता है कि इस स्तूप में बहुत सा बौद्धवशेष रखा हुआ है। प्राचीन काल में बुद्ध भगवान ने इस स्थान पर निवास करके 7 दिन तक देव समाज को धर्म का उपदेश दिया था। इसके अतिरिक्त यहां पर बुद्ध देव के पद चिन्ह भी हैं। इसके निकट ही मैत्रेय बोधिसत्व की मूर्ति बनी हुई है। मुख्य नगर के पूर्व 200 ली चलकर एक संघाराम है जिसका नाम “अविद्धकण” है। पेज नं 225)

ashokan pillar gajipur
लटिया, ज़मानिया अशोक स्तंभ,गाजीपुर

अविद्धकण संघाराम के दक्षिण- पूर्व की ओर लगभग 100 ली चलकर और गंगा नदी के दक्षिण में जाकर ह्वेनसांग “महागार” नगर में आया। यह स्थान अब बिहार के आरा जनपद में पड़ेगा। उसने लिखा है कि यहां पर एक मंदिर के पूर्व में लगभग 30 चलकर एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है, जिसका आधे से अधिक भाग भूमि में धंसा हुआ है। इसके अगले भाग में एक शिला स्तम्भ लगभग 20 फ़ीट ऊंचा लगा हुआ है।

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जिसके ऊपरी भाग में सिंह की मूर्ति बनी हुई है।(पेज नं 227) यहां बहुत से संघाराम बने हुए हैं जो अब खंडहर हैं। तो भी कुछ साधु उसमें निवास करते हैं जो महायान सम्प्रदाय के अनुयाई हैं। यहां से दक्षिण- पूर्व में लगभग 100 ली चलकर एक टूटा- फूटा स्तूप है। इस स्तूप का नाम द्रोण स्तूप है। इसे बुद्ध के अस्थि अवशेषों को बांटने वाले द्रोण ने बनवाया था। कालांतर में सम्राट अशोक ने इसे तोड़कर अस्थि अवशेष को निकाल कर, प्राचीन स्तूप के स्थान पर एक नवीन और बड़ा स्तूप बनवा दिया। टनर साहब इसे “कुम्भन स्तूप” कहते हैं। जो राजा अजातशत्रु का बनवाया हुआ है।(पेज नं 228)

वैशाली

वहां से चलकर व्हेनसांग “फयीशीली” अर्थात् वैशाली नगर में आया। उस समय यहां पर कई सौ संघाराम थे, परंतु सब के सब खंडहर हो गए थे। वैशाली का प्रधान नगर उजाड़ था। राजधानी के पश्चिमोत्तर 5 या 6 ली की दूरी पर एक संघाराम है जिसमें कुछ साधु हैं। यह लोग सम्मतीय संस्थानुसार हीनयान सम्प्रदाय के अनुयाई हैं। इसके पास एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर तथागत भगवान् ने विमल कीर्ति को सूत्र का उपदेश दिया था। यहीं पर एक गृहस्थ के पुत्र रत्नाकर तथा औरों ने एक बहुमूल्य छत्र बुद्ध देव को अर्पण किया था। इसी स्थान पर सारिपुत्र तथा अन्य लोगों ने अर्हत दशा को प्राप्त किया था। इस अंतिम स्थान के दक्षिण- पूर्व में एक स्तूप वैशाली के राजा का बनवाया हुआ है।(पेज नं 229) बुद्ध भगवान निर्वाण के पश्चात् इस स्थान के किसी प्राचीन नरेश ने बुद्धावशेष का कुछ भाग पाया था और उसी के ऊपर उसने यह अत्यंत वृहद स्तूप बनवाया था। वैशाली स्थान वृज्जि या बज्जी जाति के लोगों का मुख्य नगर था। यह लोग उत्तर भारत से आकर यहां बस गए थे।

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उक्त स्तूप के उत्तर- पश्चिम में एक स्तूप अशोक राजा का बनवाया हुआ है जिसके पास एक पत्थर का स्तम्भ 50 या 60 फ़ीट ऊंचा बना हुआ है। इसके शिरोभाग में एक सिंह की मूर्ति बनी हुई है। यहां बुद्ध देव आकर निवास करते थे। इस स्तम्भ के दक्षिण में एक तड़ाग है जिसके दक्षिण में थोड़ी दूर पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर बुद्ध भगवान का भिक्षापात्र लेकर बन्दर वृक्ष पर चढ़ गये थे और उसको शहद से भर लाए थे। इसके दक्षिण में थोड़ी दूर पर एक स्तूप उस स्थान पर बना हुआ है जहां पर बंदरों ने शहद लाकर बुद्ध देव को अर्पण किया था।(पेज नं 220)


– डा. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी

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10 thoughts on “ह्वेनसांग की भारत यात्रा- सारनाथ, गाजीपुर तथा वैशाली…”

  1. अभय राज सिंह कहते हैं:
    मई 4, 2020 को 6:31 अपराह्न पर

    जिन लोगों ने इन ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा का सौभाग्य प्राप्त किया है उनके लिये समीक्षा पढ़ना स्मृतियों में पुनः लौटने का समय है। वह लोग जो किन्हीं कारणों से अभी तक वहाँ नहीं जा पाये हैं वह यहीं से इतिहास दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं। जानकारी सभी के लिये अमूल्य है।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 4, 2020 को 9:23 अपराह्न पर

      प्रेरक कथन है। धन्यवाद आपको।

      प्रतिक्रिया
  2. Dr Brijendra Boudha कहते हैं:
    मई 3, 2020 को 3:54 अपराह्न पर

    आपके द्वारा पुनः यादें ताज़ी करा दी । दो वर्ष पूर्व हम सपरिवार वैशाली गये थे एवं पिछले वर्ष सारनाथ गये थे । आपके लेख से मन आनंदित हो उठा ;अभूतपूर्व इक्छा शक्ति का संचार हुआ । ऐसे लाक्डाउन के नर्वस समय में । आपका आभारी जो इन तथ्यों को बताया । आपको सपरिवार साधुवाद ।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 4, 2020 को 9:27 अपराह्न पर

      आप बुद्ध देव के सद्धर्म पथ के पथिक हैं। हमेशा आप पर बुद्ध की करुणा हो।

      प्रतिक्रिया
  3. दिनेश कहते हैं:
    मई 2, 2020 को 8:28 अपराह्न पर

    लॉकडॉउन में घर बैठे सहज व सरल शब्दों में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराने के लिए …..बहुत बहुत धन्यवाद , सर जी।।।।।।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 4, 2020 को 9:29 अपराह्न पर

      Thank you very much. Dinesh jee

      प्रतिक्रिया
  4. Ajay कहते हैं:
    मई 2, 2020 को 7:30 अपराह्न पर

    आपके अथक प्रयासों से दुर्लभ जानकारी प्राप्त होती है।
    बहुत धन्यवाद

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 4, 2020 को 9:29 अपराह्न पर

      धन्यवाद राजा

      प्रतिक्रिया
  5. Dr.Lovely mourya कहते हैं:
    मई 2, 2020 को 4:48 अपराह्न पर

    Valuable information about history given by you in this book.thanks a lot.

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      मई 2, 2020 को 6:48 अपराह्न पर

      Thank you very much

      प्रतिक्रिया

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