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ह्वेनसांग की भारत यात्रा- सिन्ध देश में…

Posted on जून 3, 2020जुलाई 13, 2020

सिंध देश में

उज्जयिनी की अपनी यात्रा को सम्पन्न कर ह्वेनसांग ने राजस्थान के रेतीले मैदान को पार कर सिंधु नदी को पार किया और “सिण्टु” अथवा “सिंध” देश में आया।

Historical place in Mohenjo-daro, Pakistan
मोहेंजो दारो के खँडहर , सिंध।

उसने लिखा है कि इस देश का क्षेत्रफल लगभग 7 हजार ली और राजधानी जिसका नाम “पइशेनय आपुला” है, लगभग 20 ली के घेरे में है। भूमि में गेहूं, बाजरा आदि अच्छा होता है। सोना, चांदी और तांबा भी बहुत होता है। देश में बैल, भेंड़, ऊंट, खच्चर आदि पशुओं के पालन का भी अच्छा सुभीता है। ऊंट छोटे- छोटे और एक कूबड़ वाले होते हैं। यहां लाल रंग का नमक बहुत होता है। मनुष्य स्वभाव से कठोर होने पर भी सच्चे और ईमानदार बहुत हैं। लोगों में लड़ाई-झगडा बहुधा बना रहता है। यहां पर कई सौ संघाराम हैं जिनमें 10 हजार से अधिक साधु निवास करते हैं। यह सब सम्मतीय संस्थानुसार हीनयान सम्प्रदायी हैं। इनमें कई आलसी और भोग-विलास में लिप्त रहने वाले हैं।(पेज नं 401,402) राजा बुद्ध धर्म को मानने वाला है। यहां के अधिकांश लोग मूड-मुडाए रहते हैं और काषाय वस्त्र पहनते हैं, परंतु यह सब तो दिखावा है क्योंकि उनके जीवन और आचरण में पवित्रता नहीं है।

Buddhist Stupa in Pakistan, Sindh
कुषाण बुद्धिस्ट स्तूप (मोहेंजो दारो के खँडहर में ), सिंध।

1947 में भारत विभाजन के बाद सिंध पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। वर्तमान समय में यह पाकिस्तान के 4 प्रांतों में से एक है।इसकी राजधानी कराची है। यह पाकिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा प्रांत है। कराची का व्यापारिक बंदरगाह यहीं पर है।इसकी पूर्वी हद पर गुजरात और राजस्थान की सीमा है तथा दक्षिण में अरब सागर मिलता है। 140,914 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए सिंध प्रांत की आबादी लगभग 47,886,051 है। सिंधु नदी इस प्रांत के बीचों-बीच से गुजरती है जिसके किनारे उपजाऊ मैदान है। कराची, हैदराबाद, सुक्कुर, लरकाना सिंध के प्रमुख शहर हैं। यहां 62 प्रतिशत लोग सिंधी, 18 प्रतिशत लोग उर्दू, 5.5 प्रतिशत लोग “पश्तो” भाषा बोलते हैं। यूनेस्को के द्वारा संरक्षित 2 विश्व विरासत स्थल, मकली के स्मारक तथा मोहन जोदड़ो ( मृतकों का पहाड़) के पुरातात्विक खंडहर यहीं पर हैं। सिंध प्रांत सूफीवाद से प्रभावित है। सूफी कवि “शाह अब्दुल लतीफ भिटई” सिंध में ही रहते थे। सूफी गायक “लाल शाहबाज़ कलंदर” का मकबरा भी यहीं पर है। “अबिरा” जनजाति का “अबीरिया” देश दक्षिणी सिंध में था।

Heritage museum in Takht Bhai, Pakistan
बुद्धिस्ट मठ,तख़्त-इ-बही, मर्दान, पाकिस्तान।

सिंध अपने अतीत के गर्भ में मनुष्य जाति के गौरवशाली इतिहास को संजोए हुए है। सिंध का पहला ज्ञात गांव मेहरगढ़ 7 हजार ईसा पूर्व की धरोहर है। 3 हजार ईसा पूर्व में यहीं पर “सिंधु घाटी सभ्यता” का जन्म हुआ जिसने प्राचीन “मिस्र” और “मेसोपोटामिया” की सभ्यताओं को आकार दिया। सिंध का आधुनिक “अरोर” अथवा “रोहरी” से पहचाना जाने वाला शहर रोरुका, “सौविरा” साम्राज्य की राजधानी था। चूंकि इस खुदाई में सभ्यता के प्रमाण मिले हैं इसलिए इसे सिंधु घाटी की सभ्यता कहा गया। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा,लोथल,धोलावीरा और राखीगढ़ी सिंधु सभ्यता के प्रमुख केन्द्र थे। अब तक सिंधु घाटी सभ्यता के 1400 केन्द्रों को खोजा जा चुका है जिसमें से 925 केन्द्र भारत में हैं। इसमें 80 फीसदी स्थान सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आसपास हैं। अभी तक कुल खोजों में से 3 फीसदी स्थानों का ही उत्खनन हो पाया है।प्रारम्भिक बौद्ध साहित्य में इसका उल्लेख व्यापारिक केंद्र के रूप में मिलता है। 305 ईसा पूर्व में मगध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया था। सम्राट अशोक के शासनकाल में यहां बौद्ध धर्म फैला। समकालीन दौर में बौद्ध दर्शन के कुछ प्रबुद्ध अध्धेयता मानते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता बौद्ध सभ्यता है। इसके समर्थन में वह सिंधु घाटी की खुदाई में मिली शिल्प कला, स्तूपों की डिजाइन, मुहरों इत्यादि का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हैं।

Miracle of Sravasti Lahore Museum
बुद्ध देव, श्रावस्ती के चमत्कार में, लाहौर संग्रहालय।

ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि “तथागत भगवान् ने अपने जीवन काल में बहुधा इस देश में फेरा किया है, इसलिए अशोक राजा ने उन सब पुनीत स्थानों में जहां- जहां पर तथागत भगवान् के पदार्पण करने के चिन्ह पाये गये थे, बीसों स्तूप बनवा दिए हैं। उपगुप्त महात्मा भी अनेक बार इस देश में भ्रमण करके धर्म का उपदेश और मनुष्यों को सन्मार्ग का प्रर्दशन करता रहा है। जहां- जहां पर इस महात्मा ने विश्राम किया था अथवा कुछ चिन्ह छोड़ा था उन सभी स्थानों में संघाराम अथवा स्तूप बनवा दिए गए हैं। इस प्रकार की इमारतें प्रत्येक स्थान में वर्तमान हैं जिनका केवल संक्षिप्त वृत्तांत हम दे सकते हैं।”(पेज नं 402)

By Raza Shah Khan - Own work, CC BY-SA 3.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=35833986
अशोक राजा का शिलालेख, शहबाज़ गढ़ी, मरदान।

सिंध देश से लगभग 900 ली पूर्व दिशा में चलकर और सिंधु नदी पार करके तथा उसके पूर्वी किनारे पर जाकर ह्वेनसांग मुलोसन पउलू अर्थात् मूल स्थान पुर आया।इसकी पहचान मुल्तान के रूप में की गई है।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो ग्राफ्स- संकेत सौरभ, झांसी (उ.प्र.)

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4 thoughts on “ह्वेनसांग की भारत यात्रा- सिन्ध देश में…”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    जून 4, 2020 को 2:21 अपराह्न पर

    दुःखद है कि कैसे इस उन्मादी देश ने सारी सांस्कृतिक विरासत तबाह कर दी, और आज भी ये लोग लगातार सनातन और बौद्ध निशानियों को पूरी तरह से तबाह करने में आमादा रहते है।

    प्रतिक्रिया
    1. अनाम कहते हैं:
      जून 4, 2020 को 4:31 अपराह्न पर

      असहिष्णुता कभी भी खुशहाल समाज का निर्माण नहीं कर सकती।

      प्रतिक्रिया
  2. अभय राज सिंह कहते हैं:
    जून 4, 2020 को 5:40 पूर्वाह्न पर

    इतिहास को बहुत रुचिकर तरह से प्रस्तुत कर रहे हैं आप!
    🙏

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      जून 4, 2020 को 8:13 पूर्वाह्न पर

      धन्यवाद आपको

      प्रतिक्रिया

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