अनंदपुर
वलभी से उत्तर- पश्चिम की ओर लगभग 700 ली चलकर ह्वेनसांग “ओननटोपुलो” अर्थात् “अनंदपुर” आया। उसने लिखा है कि इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग 2 हजार ली और राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 20 ली है।

आबादी घनी और निवासी धनी हैं। यह देश मालवा के अधीन है। यहां की प्रकृति, साहित्य और कानून मालवा जैसे ही हैं। यहां कोई 10 संघाराम हैं जिनमें लगभग एक हजार से कुछ कम साधु निवास करते हैं और सम्मतीय संस्थानुसार हीनयान सम्प्रदाय का अनुशीलन करते हैं।(पेज नं 398) अहमदाबाद से कुछ ही किलोमीटर दूर “वड़नगर” नामक स्थान पर 10 संघारामों के खंडहर मिले हैं। यह आजकल महेसाना जनपद में आता है। अहमदाबाद से वड़नगर की दूरी 128 किलोमीटर है यहां 2 स्तूप के भी अवशेष हैं। इस स्थान की पहचान “अनंदपुर’ के रूप में हुई है।
महेसाना
महेसाना जनपद में ही धर्मात्मा मंदिर है। यह भी एक प्राचीन बौद्ध स्थल है जो तरंगा पहाड़ में स्थित है। यहां तारा माता तथा धारा माता मंदिर हैं। तारा को बुद्ध देव की मां माना जाता है। ध्यानी बौद्ध की 4 मूर्ति भी यहां पायी जाती हैं। प्राचीन कालीन गुफ़ाएं अभी मौजूद हैं।

वलभी से लगभग 500 ली पश्चिम दिशा में चलकर ह्वेनसांग “सुलचअ” अर्थात् “सुराष्ट” देश में आया। यह स्थान आज गुजरात राज्य में “सौराष्ट्र” अंचल है। यात्री ने लिखा है कि इस समय इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग 4 हजार ली और राजधानी का क्षेत्रफल लगभग 30 ली है। आबादी घनी तथा लोग सम्पत्तिशाली हैं। भूमि में नमक बहुत है फल और फूल कम होते हैं। यहां पर कोई 50 संघाराम हैं जिनमें स्थविर संस्थानुकूल महायान सम्प्रदाय के अनुयाई कोई 3 हजार साधु निवास करते हैं। यह पश्चिमी समुद्र के निकट है।(पेज नं 399)
गिरनार
नगर से थोड़ी दूर पर एक पहाड़ “यूह चैन टी” (उजंता) नामक है जिस पर पीछे की ओर एक संघाराम बना हुआ है। इसकी कोठरियां आदि अधिकतर पहाड़ खोदकर बनायी गई हैं। यह पहाड़ घने और जंगली वृक्षों से आच्छादित तथा इसमेें सब ओर झरनें प्रवाहित हैं। यहां पर महात्मा और विद्वान पुरुष विचरण किया करते हैं तथा आध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न बड़े- बड़े सिद्ध पुरुष आकर विश्राम करते हैं।(पेज नं 399) आज इसे “गिरनार” पर्वत के नाम से जाना जाता है और यह काठियावाड़ में जूनागढ़ के निकट है। जूनागढ़ में अशोक कालीन स्तूप, चट्टानें और गुफ़ाएं हैं।

“सौराष्ट्र” अथवा “काठियावाड़” गुजरात का दक्षिणी- पश्चिमी हिस्सा है। इसका क्षेत्रफल 66 हज़ार वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या लगभग 15,300,000 है। सौराष्ट्र में 11 जिले आते हैं जिसमें राजकोट भी है। चंद्रगुप्त मौर्य के ज़माने में यहां का शासक पुष्यगुप्त था। राजकोट में 3 प्राचीन कालीन बौद्ध गुफाएं लगभग 1800 वर्ष पुरानी हैं। यह ‘गोंडल” तहसील में ‘खंभालिका’ गांव के पास में हैं। “वीरपुर” यहां का नजदीकी शहर है।

“देव नी मोरी” गुजरात राज्य के “शामला जी” कस्बे में जनपद “साबरकांठा’ में स्थित प्राचीन बौद्ध स्थल है। यह हिम्मत नगर और अहमदाबाद के नज़दीक है। यहां अशोक कालीन अवशेष हैं। देवनीमोरी में उत्खनन में बुद्ध देव के अस्थि अवशेष तथा 17 मिट्टी की मूर्ति मिली हैं। यह बड़ोदरा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग में सुरक्षित हैं। यहां बुद्ध देव की वैसी ही लेटी हुई प्रतिमा मिली है जैसी जनपद कुशीनगर के कसया कस्बे में मिली है।
गुजरात राज्य में ही भावनगर में राजकोट के निकट सरिता और “सतरंजी’ नदी के पास तलाजा पहाड़ है। यहां तलाजा शहर और पहाड़ियों के आस पास 30 प्राचीन बौद्ध गुफाएं हैं। इन्हीं गुफाओं में एक “इभाला मण्डप” है जिसमें एक बड़ा चैत्यगृह है। “तलाजा” पहाड़ की ऊंचाई 320 फ़ीट है।

उपरोक्त स्थानों की यात्रा सम्पन्न कर ह्वेनसांग वहां से उत्तर दिशा में लगभग एक हजार ली चलकर “कियाचेला” अर्थात् “गुजर” राज्य में आया। कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी (5 145) ज़िक्र आया है कि यह वर्तमान समय में राजपूताना और मालवा के दक्षिण भाग में जहां तक गुजराती भाषा का प्रचार है, यह स्थान माना गया है। उसने लिखा है कि इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग 5 हजार ली है और राजधानी लगभग 30 ली के घेरे में है। यहां केवल एक संघाराम है जिसमें लगभग 100 संन्यासी निवास करते हैं। सबके सब सर्वास्तिवाद संस्था के हीनयान सम्प्रदायी हैं। राजा जाति का क्षत्रिय है और योग्य महात्माओं की बड़ी प्रतिष्ठा करता है।(पेज नं 400)
‘तारा’ दसमहाविद्या ओ में से एक है और बौद्ध तांत्रिक सम्प्रदाय वज्रयान आदि की अधिष्ठात्री देवी है, कालचक्र भी इसका महत्वपूर्ण अंग है। सारगर्भित विवरण के लिये आपका आभार।
आप को भी धन्यवाद