Skip to content
Menu
The Mahamaya
  • Home
  • Articles
  • Tribes In India
  • Buddhist Caves
  • Book Reviews
  • Memories
  • All Posts
  • Hon. Swami Prasad Mourya
  • Gallery
  • About
The Mahamaya

ह्वेनसांग की भारत यात्रा- तिब्बत में…

Posted on जून 11, 2020जुलाई 13, 2020

तिब्बत में

पामीर की घाटी को पार कर ह्वेनसांग को ” कइप अटो” देश मिला। उसने लिखा है कि इस देश का क्षेत्रफल लगभग 2 हजार ली है। राजधानी एक बड़े चट्टान पर बसी हुई है। इसका क्षेत्रफल लगभग 20 ली है।

tibet plateu
तिब्बत का पठार ।

पहाड़ियां लगातार फैली हुई हैं और मैदान कम हैं। पेड़ बहुत बड़े नहीं होते तथा फल और फूल कम होते हैं। मनुष्य वीर और साहसी होते हैं। यहां पर बुद्ध धर्म की प्रतिष्ठा बहुत थोड़ी है।कोई दस संघाराम हैं जिनमें लगभग 500 साधु निवास करते हैं जो सर्वास्तिवाद संस्था के अनुसार हीनयान सम्प्रदाय का अध्ययन करते हैं। राजा बहुत धार्मिष्ट और सदाचारी है। रत्न त्रयी की बड़ी प्रतिष्ठा करता है।उसका स्वरूप शांत है। उसमें किसी प्रकार की बनावट नहीं है।उसका चित्त उदार है और वह विद्या का प्रेमी है।(पेज नं 423) इस देश में अशोक राजा का बनवाया हुआ एक स्तूप है।

tibet buddhism
तिब्बती बौद्धधर्म का मूल मंत्र

प्राचीन काल में किसी राजा ने यहां पहाड़ी पर एक महल बनवाया था। पीछे से जब राजा ने अपने निवास भवन को राजधानी के पूर्वोत्तर कोण में बनवाया तब इस प्राचीन भवन में उसने “कुमारलघ” के निमित्त एक संघाराम बनवा दिया था। इस भवन के बुर्ज ऊंचे और कमरे चौड़े हैं। इसके भीतर बुद्ध देव की एक बड़ी मूर्ति अद्भुत स्वरूप की है। “कुमारलघ” तक्षशिला का निवासी था और बहुत विद्वान था। वह प्रतिदिन 32 हजार शब्दों का पाठ करता था। उसके लिखे हुए बीसों शास्त्र हैं जिनकी बड़ी प्रतिष्ठा है। सौत्रांतिक संस्था का संस्थापक यही महात्मा है। पूर्व में अश्वघोष, दक्षिण में देव, पश्चिम में नागार्जुन और उत्तर में कुमारलघ एक ही समय में पैदा हुए हैं। यह चारों व्यक्ति संसार को प्रकाशित करने वाले चार सूर्य कहलाते हैं। इसलिए इस देश के राजा ने महात्मा कुमारलघ की कीर्ति को सुनकर तक्षशिला पर चढ़ाई की और जबरदस्ती उसको अपने देश में ले आया और इस संघाराम को बनवाया।(पेज नं 425)

dalai lama
तिब्बत के वर्तमान दलाई लामा ।

यह स्थान आज कल का सम्भवतः तिब्बत था।आज भी तिब्बत बौद्ध लामाओं का देश है। मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों के मध्य कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित तिब्बत,की राजधानी ल्हासा, भाषा तिब्बती और धर्म बौद्ध है। 16 हजार वर्ग फीट की ऊंचाई तथा 47 हजार वर्ग मील क्षेत्र में फैले हुए इस देश की जनसंख्या 31,80,000 है। वाह्य तिब्बत की ऊबड़-खाबड़ भूमि की मुख्य नदी ब्रम्हपुत्र है जो मानसरोवर झील से निकलकर पूर्व दिशा की ओर बहती हुई दक्षिण की ओर मुड़कर भारत एवं बांग्लादेश में होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है।

ब्रम्हपुत्र घाटी के प्रमुख नगर ल्हासा, ग्यान्त्से एवं सिगात्से हैं। “याक” यहां का मुख्य पशु है जो दूध भी देता है और बोझा भी ढोता है। 1913-14 में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की एक बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को दो भागों में बांट दिया गया- अंर्तवर्तीय तथा वाह्य तिब्बत। अंर्तरवर्तीय तिब्बत चीन के नियंत्रण में था जबकि वाह्य तिब्बत के प्रमुख दलाई लामा थे परंतु 1955 से विवादों के कारण दलाई लामा भारत में हैं। मुस्लिम आक्रांताओं के दौर में जब विक्रमशिला को ध्वस्त कर दिया गया था तब भारतीय बौद्ध संघ के प्रधान तथा विक्रमशिला के संघराज शाक्य श्री भद्र पूर्वी बंगाल के जगत्तला विहार से होते हुए नेपाल देश में आये तथा वहां से तिब्बती सामंत कीर्ति ध्वज ने उन्हें अपने यहां बुला लिया। शाक्य श्री भद्र अनेक वर्षों तक भोट (तिब्बत) में रहे।

larung gar academy
लारूंग गार बौद्ध एकेडमी

तिब्बती बौद्ध धर्म, बौद्ध धर्म की महायान शाखा की एक उप शाखा है जो तिब्बत, मंगोलिया, भूटान, उत्तर नेपाल, भारत के लद्दाख, अरूणाचल, सिक्किम तथा पूर्वी चीन में प्रचलित है। तिब्बती लिपि भारतीय मूल की “ब्राम्ही” परिवार की लिपि है। इसको “सम्भोट” लिपि भी कहते हैं। लारुंग गार बौद्ध एकेडमी तिब्बती बौद्ध विद्यापीठ है जो सिचुआन प्रांत की सेरता काउंटी,गरजे में है। 12,500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित इस विद्यापीठ में 40 हजार छात्र रहते हैं जिसमें 10 हजार से अधिक छात्र, भिक्षु एवं भिक्षुणियां हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा रिहायशी बौद्ध विश्वविद्यालय है।

kailash mountain
कैलाश पर्वत ।

इस नगर से दक्षिण-पूर्व की ओर चलने पर एक बड़ी चट्टान है जिसमें दो कोठरियां खोद कर बनायी गई हैं। प्रत्येक गुफा में एक अरहत समाधि मग्न हो निवास करता है। दोनों अरहत सीधे बैठे हुए हैं और मुश्किल से चल फिर सकते हैं। इनके चेहरों पर झुर्रियां पड़ गयी हैं परंतु इनकी त्वचा और हड्डियां अब भी सजीव हैं।

वहां से चलकर ह्वेनसांग पुण्यशाला में आया।सुंगलिंग पहाड़ की पूर्वी शाखा के चारों पहाड़ों के मध्य एक मैदान है जिसका क्षेत्रफल कई हजार एकड़ है। यहां पर जाड़ा और गर्मी दोनों ऋतुओं में बर्फ गिरती है। ठंडी हवा और बर्फीले तूफान बराबर बने रहते हैं। भूमि नमक से गर्भित है।कोई फ़सल नहीं होती और न कोई पेड़ होता है। कहीं- कहीं पर झाड़ू के समान कुछ घास उगी हुई दिखाई पड़ती है। भूमि पर पैर रखते ही यात्री बर्फ से आच्छादित हो जाता है। सौदागर और यात्री लोग इस कष्टप्रद और भयानक स्थान में आने जाने में बड़ी तकलीफ़ उठाते हैं।(पेज नं 426)

bodhisattva maitreya
मैत्रेय बुद्ध प्रतिमा, तसिलहुनपो मठ, शिन्गाट्स।

वहां से चलकर ह्वेनसांग “उश” अथवा “ओच” देश में आया। इस देश की दक्षिणी सीमा पर “शीता” नदी बहती है। यहां के लोग बुद्ध धर्म के दृढ़ भक्त हैं और उसकी बड़ी प्रतिष्ठा करते हैं। यहां कोई 10 संघाराम और लगभग एक हजार से कुछ कम साधु हैं। यह लोग सर्वास्तिवाद संस्था के अनुसार हीनयान सम्प्रदाय का अनुशीलन करते हैं। नगर के पश्चिम में 200 ली चलकर एक पहाड़ है जिस पर एक स्तूप है।(पेज नं 427) यह किसी अर्हत का है। यहां से पहाड़ों और रेगिस्तानों को पार कर ह्वेनसांग “काशगर” देश में आया।


– डॉ. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी (उत्तर- प्रदेश)

5/5 (9)

Love the Post!

Share this Post

4 thoughts on “ह्वेनसांग की भारत यात्रा- तिब्बत में…”

  1. देवेन्द्र कुमार मौर्य कहते हैं:
    जून 12, 2020 को 11:12 पूर्वाह्न पर

    विस्तृत और सारगर्भित विवरण के लिए आपका आभार।

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      जून 12, 2020 को 11:15 पूर्वाह्न पर

      धन्यवाद आपको डाक्टर साहब

      प्रतिक्रिया
  2. Dr. SITA RAM SINGH कहते हैं:
    जून 11, 2020 को 9:09 पूर्वाह्न पर

    आप अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय अद्भूत रचना के निर्माण के लिए कर रहे हैं इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं!!

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. RB Mourya कहते हैं:
      जून 11, 2020 को 9:11 पूर्वाह्न पर

      धन्यवाद आपको डाक्टर साहब

      प्रतिक्रिया

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

About This Blog

This blog is dedicated to People of Deprived Section of the Indian Society, motto is to introduce them to the world through this blog.

Latest Comments

  • ANITYA KUMAR JAIN पर झाँसी- ललितपुर संसदीय क्षेत्र : वर्ष 1952 से 2024 तक
  • Vikram singh khangar पर खंगार समाज के साथ……
  • Vikram singh khangar पर खंगार समाज के साथ……
  • Kamlesh mourya पर बौद्ध धर्म और उनसे सम्बन्धित कुछ जानकारियाँ और मौलिक बातें
  • Tommypycle पर असोका द ग्रेट : विजन और विरासत

Posts

  • जुलाई 2025 (1)
  • जून 2025 (2)
  • मई 2025 (1)
  • अप्रैल 2025 (1)
  • मार्च 2025 (1)
  • फ़रवरी 2025 (1)
  • जनवरी 2025 (4)
  • दिसम्बर 2024 (1)
  • नवम्बर 2024 (1)
  • अक्टूबर 2024 (1)
  • सितम्बर 2024 (1)
  • अगस्त 2024 (2)
  • जून 2024 (1)
  • जनवरी 2024 (1)
  • नवम्बर 2023 (3)
  • अगस्त 2023 (2)
  • जुलाई 2023 (4)
  • अप्रैल 2023 (2)
  • मार्च 2023 (2)
  • फ़रवरी 2023 (2)
  • जनवरी 2023 (1)
  • दिसम्बर 2022 (1)
  • नवम्बर 2022 (4)
  • अक्टूबर 2022 (3)
  • सितम्बर 2022 (2)
  • अगस्त 2022 (2)
  • जुलाई 2022 (2)
  • जून 2022 (3)
  • मई 2022 (3)
  • अप्रैल 2022 (2)
  • मार्च 2022 (3)
  • फ़रवरी 2022 (5)
  • जनवरी 2022 (6)
  • दिसम्बर 2021 (3)
  • नवम्बर 2021 (2)
  • अक्टूबर 2021 (5)
  • सितम्बर 2021 (2)
  • अगस्त 2021 (4)
  • जुलाई 2021 (5)
  • जून 2021 (4)
  • मई 2021 (7)
  • फ़रवरी 2021 (5)
  • जनवरी 2021 (2)
  • दिसम्बर 2020 (10)
  • नवम्बर 2020 (8)
  • सितम्बर 2020 (2)
  • अगस्त 2020 (7)
  • जुलाई 2020 (12)
  • जून 2020 (13)
  • मई 2020 (17)
  • अप्रैल 2020 (24)
  • मार्च 2020 (14)
  • फ़रवरी 2020 (7)
  • जनवरी 2020 (14)
  • दिसम्बर 2019 (13)
  • अक्टूबर 2019 (1)
  • सितम्बर 2019 (1)

Contact Us

Privacy Policy

Terms & Conditions

Disclaimer

Sitemap

Categories

  • Articles (109)
  • Book Review (60)
  • Buddhist Caves (19)
  • Hon. Swami Prasad Mourya (23)
  • Memories (13)
  • travel (1)
  • Tribes In India (40)

Loved by People

“

030894
Total Users : 30894
Powered By WPS Visitor Counter
“

©2025 The Mahamaya | WordPress Theme by Superbthemes.com