अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की झलक में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है कि अंग्रेज़ दार्शनिक और अर्थशास्त्री जॉन स्टुअर्ट मिल (20 मई, 1806- 8 मई, 1873) उपयोगितावादी विचारक के रूप में प्रसिद्ध है। उपयोगितावादियों का बुनियादी सिद्धांत था- अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख ( Greatest happiness of the greatest number), अर्थात् जो काम जितना सुख बढ़ाने वाला होता है वह उतना ही अच्छा कहा जाता है और जो काम जितना दुःख बढ़ाता है वह उतना ही बुरा माना जाता है।
जे. एस. मिल ने स्वतंत्रता पर एक छोटी पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है- ऑन लिबर्टी। मिल के अनुसार किसी मत की अभिव्यक्ति पर ताला लगा देने में ख़ास बुराई यह है कि मनुष्य जाति उससे वंचित रह जाती है।आने वाली संतानें और मौजूदा पीढ़ी भी, और उस मत के मानने वालों से भी ज्यादा वे लोग जो उनसे मतभेद रखते हैं। अगर वह मत सही है तो लोग असत्य की जगह पर सत्य को बिठाने के अवसर से महरूम रह जाते हैं, अगर ग़लत है तो वे करीब उतना ही बड़ा लाभ खो देते हैं- यह लाभ है सत्य के साथ उस मत की टक्कर से पैदा होने वाले सत्य का ज्यादा साफ़ ज्ञान और सत्य की ज्यादा चटकीली छाप।
अंग्रेज़ पूंजीपति और कारखाना मालिक रॉबर्ट ओवन के अथक प्रयास के बाद ब्रिटिश सरकार ने 1819 ई. में कारखाना कानून (Factory law), पारित किया। जिसके अनुसार 9-9 वर्ष के छोटे बच्चों से १२ घंटे से ज्यादा काम न लेने की बात कही गई थी। 1830 ई. के आस-पास रॉबर्ट ओवन ने सर्वप्रथम समाजवाद शब्द का प्रयोग किया समाजवाद की मूल अवधारणा यह है कि उत्पादन के साधनों, विनिमय और वितरण पर राज्य या सरकार का नियंत्रण हो। किसी व्यक्ति विशेष का नहीं। नेहरू के शब्दों में- मार्क्सवाद, इतिहास, अर्थ शास्त्र, मानव जीवन और मानव उमंगों की व्याख्या करने का एक तरीका है। यह मत भी है और अमली कार्य वाही के लिए पुकार भी। यह ऐसा दर्शन है जो मनुष्य जीवन की ज्यादातर हलचलों के बारे में कुछ न कुछ बताता है। यह भूत, वर्तमान और भविष्य के मानव इतिहास को एक ऐसे बे- लचक ढांचे में बैठाने का यत्न है जो भाग्य या किस्मत जैसा अटल है।
अराजकतावाद का अर्थ ऐसा समाज है, जिसमें जहां तक हो सके, कोई केन्द्रीय सरकार न हो और व्यक्तियों को खूब आजादी हो।अराजकतावाद का आदर्श- ऐसे जनराज्य में विश्वास, जिसका आधार परोपकार, हर हालत में एकता और दूसरे भाई के हकों का अपनी मर्जी से लिहाज हो।थोरो नाम के एक अमेरिकी ने कहा था कि- सरकार सबसे अच्छी वह है जो बिल्कुल शासन न करे और जब मनुष्य ऐसी सरकार के लिए तैयार हो जायेंगे, तब वे ऐसी ही सरकार पसंद करेंगे। नेहरू के शब्दों में- अराजकतावादी लोग ऐसे समाजवादी थे, जिनका स्थानीय और हर व्यक्ति की आजादी पर बहुत जोर था।कर दिखाने का प्रचार अराजकतावादियों की रणनीति थी जिसमें व्यक्तिगत दिलेरी के कारनामे थे। फ्रांसीसी प्रूदों, रूसी माइकेल बाकुनिन, पीटर क्रोपाटकिन, इटालियन निवासी एनरीको मालातेस्ता प्रमुख अराजकतावादी थे।
कार्ल मार्क्स एक जर्मन यहूदी था, जिसका जन्म 5 मई, 1818 में हुआ। उसकी मृत्यु 14 मार्च, 1883 में हुई। 1848 में मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर साम्यवादी घोषणा पत्र जारी किया। घोषणा पत्र का समापन करते हुए लिखा था कि- दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ। तुम्हें खोना कुछ नहीं है, सिवाए अपनी गुलामी की जंजीरों के, और पाने को तुम्हारे वास्ते संसार पड़ा है। 1864 में लंदन में मार्क्स के प्रयासों से अंतरर्राष्ट्रीय कामगार समिति की नींव पड़ी। यह मजदूरों का प्रथम अंतर्राष्ट्रीय (First International) संगठन था।
इसके तीन साल बाद 1867 में मार्क्स का महान ग्रंथ कैपिटल अर्थात् पूंजी जर्मन भाषा में प्रकाशित हुआ। मार्क्स ने इसी ग्रंथ में वैज्ञानिक समाजवाद की अवधारणा दी। अंग्रेजी छाप के समाजवाद की उस समय फेबियन सोसायटी थी। जार्ज बर्नार्ड शॉ और सिडनी वेब मशहूर फेबियनवादी थे। अराजकतावाद और समाजवाद का वर्ण- शंकर संघाधिपत्यवाद कहलाता था। 1989 में द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय संघ बना। 1919 में लेनिन ने तृतीय अंतर्राष्ट्रीय संघ बनाया। बाद में स्टालिन ने इसे भंग कर दिया।
मार्क्स ने इतिहास के बारे में लिखा है कि- सारे मानव समाज का पिछला और मौजूदा इतिहास वर्गों के संघर्षों का इतिहास है। राज्य समूचे शासक वर्ग के काम काज की व्यवस्था करने के लिए एक कार्यकारिणी कमेटी है। मार्क्स के इतिहास के देखने के तरीके को इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या कहा जाता है।इसे भौतिक इसलिए कहते हैं क्योंकि यह विचारवादी नहीं है।
मार्क्स वाद के बारे में लेनिन ने कहा था कि हमें किसी भी अर्थ में मार्क्स वाद को ऐसी चीज नहीं समझना चाहिए जो मुकम्मल है और जिसमें कोई ऐब नहीं निकला जा सकता। वस्तुत: मार्क्स वाद उस विज्ञान की आधारशिला है जिसकी समाजवादियों को हर दिशा में उन्नति करनी चाहिए, अन्यथा जीवन की दौड़ में वे पीछे रह जाएंगे।
इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया जर्मनी के हैनोवर घराने की थीं। 18 वर्ष की उम्र में, सन् 1837 में वह गद्दी पर बैठी और सदी के अंत तक, यानी 1900 ई. तक 63 वर्ष राज किया। उन्हें यूरोप की दादी भी कहा जाता था। ब्रिटिश पार्लियामेंट को पार्लियामेंटों की जननी भी कहा जाता है। इस पार्लियामेंट के दो सदन हैं- उच्च सदन को हाउस ऑफ लॉर्ड्स तथा निम्न सदन को हाउस ऑफ कॉमन्स कहा जाता है। यहां पर दो प्रमुख राजनीतिक दल हैं- अनुदार दल तथा उदार दल। इन्हें पूर्व में टोरी और ह्विग कहा जाता था।
19 वीं सदी में इंग्लैंड की खुशहाली के 4 आधार उद्योग थे- सूती कपड़े, कोयला, लोहा और जहाज निर्माण। ब्रिटिश साम्राज्य शाही के नामी कवि रूडयार्ड किपलिंग ने गोरों का बोझ ( Whiteman’sburden) के गीत गाए थे। 1899 में दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल में एक युद्ध हुआ जिसे बोअर युद्ध के नाम से जाना जाता है। इसका कारण यहां पर सोने की खानें थी। बोअर लोग बड़ी बहादुरी से लड़े। अंततः अंग्रेजों ने उन्हें कुचल दिया।
अमेरिका में गुलामी का व्यापार 17 वीं सदी के प्रारम्भ में शुरू हुआ और 1863 ई. तक निरंतर जारी रहा। यह गुलाम अफ्रीका के हब्सी होते थे।गोरा एक भी गुलाम नहीं था।वहां स्वाधीनता की घोषणा में कहा गया था कि जन्म से सब मनुष्य बराबर होते हैं।पर यह बात गोरों पर लागू होती थी, कालों पर नहीं। अफ्रीका के जिस समुद्री तट से इन गुलामों को ले जाया जाता था, उसे अब भी गुलामों का तट कहते हैं। 1790 में संयुक्त राज्य में गुलामों की संख्या 6 लाख, 97 हजार थी, जो 1861 में बढ़कर 40 लाख हो गई थी।
जिम क्रो कार, अमेरिका में रेल के वह डिब्बे होते थे जहां पर कालों तथा हब्सियों को यात्रा में बैठना पड़ता था। कू- क्लक्स- क्लैन, अमेरिका के दक्षिणी राज्यों के गोरों की एक गुप्त समिति थी। जो 1865 ई. में स्थापित हुई थी। इसका काम हब्सियों को दंड देना था। यह 1876 में तोड़ दी गई थी परन्तु 1915 में फिर जाग उठी। पुनः 1928 ई. के बाद शांत हो गई। इसने हब्सियों और कैथोलिकों को बहुत आतंकित किया और अनेक हत्याएं की। लिंच का अर्थ होता है- किसी पर संदेह कर उसे पकड़ना तथा पीट – पीट कर मार डालना।
अमेरिका में गुलामी की प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाने वाले लोगों को अबोलिशनिस्ट्स कहा जाता था। उनका सबसे बड़ा नेता विलियम लॉयड गैरीजन था। 1831 में गैरीजन ने गुलाम विरोधी आंदोलन के समर्थन के लिए लिबरेटर नामक अखबार निकाला 1862 ई. के सितम्बर माह में अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने मुक्ति की घोषणा (Proclamation of Emancipation) निकाली। जिसमें ऐलान कर दिया गया कि 1863 की पहली जनवरी से सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले सब राज्यों के गुलाम आज़ाद हो जाएंगे। इसका नतीजा यह हुआ कि ४० लाख गुलाम आज़ाद हो गए। इसके कुछ दिन बाद ही लिंकन को गोली मार दी गई।
हैरियट बीचर स्टो की किताब Uncle Tom’s cabin दक्षिण अमेरिका के हब्सी गुलामों पर केन्द्रित है। यह पुस्तक अमेरिका के गृह युद्ध से 10 वर्ष पूर्व 1852 ई. में प्रकाशित हुई थी। इसमें गुलामों की दर्दनाक कहानी है। अमेरिका के लोगों को गुलामी के खिलाफ भड़काने में इस पुस्तक का बड़ा योगदान है। (हैरियट स्टो, अमेरिका के एक मंत्री की पुत्री थी। पुस्तक लिखने के 11 वर्ष बाद जब वहां के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन उनसे मिले, तो उन्होंने उनका अभिनंदन करते हुए कहा कि अच्छा तो आप ही वह छोटी सी महिला हैं, जिन्होंने ऐसी पुस्तक लिखी कि जिसके कारण यह भयंकर गृह युद्ध हो गया )।
कहा जाता है कि बाइबिल के बाद सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली और सबसे गहरा नैतिक प्रभाव डालने वाली यही पुस्तक है। 1852 में जब उक्त पुस्तक का अमेरिका में पहला संस्करण अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ तब अकेले अमेरिका में उस पहले संस्करण की 3 लाख, 13 हजार प्रतियां बिक गयीं और उसके बाद 10 वर्षों में इस पुस्तक के 14 सौ संस्करण प्रकाशित हुए। भारत में यह पुस्तक टामकाका की कुटिया के नाम से, हिन्दी में, सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है।
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान, बुंदेलखंड कालेज, झाँसी, फोटो गैलरी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत
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2 thoughts on “पुस्तक समीक्षा- विश्व इतिहास की झलक, भाग- 19”
बहुत ही ज्यादा जटिल और उलझे हुए विषयो को एक साथ समाहित करना और उन्हें सरल भाषा मे व्यक्त करना आपके सामर्थ्य को प्रतिबिंबित करती है।
बहुत ही ज्यादा जटिल और उलझे हुए विषयो को एक साथ समाहित करना और उन्हें सरल भाषा मे व्यक्त करना आपके सामर्थ्य को प्रतिबिंबित करती है।
निरंतर उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपको डॉ साहब।