अपने अतीत में गौरवशाली विरासत को संजोए हुए आन्ध्र-प्रदेश भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार के यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने यहां का दौरा किया था। भगवान बुद्ध भी धान्यकटकम्, जिसे अब अमरावती के नाम से जाना जाता है में पधारे थे। तिब्बती विद्वान तारानाथ के अनुसार अपने ज्ञानोदय के अगले वर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा को बुद्ध देव ने धान्य कटक के महान स्तूप के पास महान नक्षत्र (कालचक्र) मंडलों का सूत्रपात किया था। सम्राट अशोक के 13वें शिलालेख में इस बात का जिक्र है कि यह क्षेत्र उसके साम्राज्य का हिस्सा था। आज अमरावती का स्तूप जमींदोज हो गया है जिसका मात्र एक टीला अवशेष है। इस पवित्र स्थल का समस्त गौरव अब अतीत का विषय बन चुका है।
आज आन्ध्र-प्रदेश भारत का एक राज्य है। यहां के 88.5 प्रतिशत लोगों की भाषा तेलगू है। आन्ध्र-प्रदेश की राजधानी हैदराबाद को “थोक दवा बाजार की राजधानी” माना जाता है। गोदावरी, कृष्णा,पेन्ना तथा तुंगभद्रा नदियां आन्ध्र-प्रदेश को भरपूर मात्रा में पानी देती हैं। यही कारण है कि यहां पर चावल खूब पैदा होता है तथा इस प्रदेश को “चावल का कटोरा” कहा जाता है।जल विद्युत उत्पादन में आन्ध्र-प्रदेश का देश में पहला स्थान है। तिरुपति या तिरुमला यहां का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद आन्ध्र-प्रदेश का प्रमुख शिक्षा केन्द्र है। “कुचिपुड़ी” यहां का सर्वाधिक प्रसिद्ध नृत्य है। हैदराबाद में स्थित “सालारजंग संग्रहालय”, विजयवाड़ा में स्थित विक्टोरिया जुबली संग्रहालय तथा विशाखापट्टनम में स्थित विशाखापट्टनम संग्रहालय व गुंटूर शहर में अमरावती के पास स्थित पुरातत्व संग्रहालय यहां के अतीत का दिग्दर्शन कराते हैं।
बोरा की गुफाएं
बोरा की गुफाएं विशाखापट्टनम शहर से 90 किलोमीटर की दूरी पर, समुद्र तल से 1400 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित हैं। इन गुफाओं को लाखों वर्ष पुरानी माना जाता है। भू- वेज्ञानिकों का मानना है कि यह स्टैलक्लाइट व स्टैलग्माइट गुफाएं गोस्थनी नदी के प्रवाह का परिणाम हैं। यह गुफाएं अंदर से बहुत विशालकाय हैं। कुछ हाल बीसियों फ़ीट ऊंचे हैं। गुफाओं के अंदर एक अलग ही दुनिया है।
बेलम की गुफाएं
आन्ध्र-प्रदेश में ही कुरनूल जनपद से 106 किलोमीटर दूर “बेलम की गुफाएं” स्थित हैं।इन गुफाओं की खोज 1854 में एच.बी. फुटे ने किया था परन्तु इन्हें दुनिया के सामने लाने का काम 1882 में यूरोप के गुफा विज्ञानियों की एक टीम के द्वारा किया गया।वेलम की गुफाएं एक बड़े सपाट खेत के नीचे हैं। ज़मीन से गुफाओं तक तीन कुएं जैसे छेद हैं। इन्हीं में से बीच का छेद प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ऊपरी सतह से लगभग 20 मीटर तक सीधे नीचे उतरने के बाद गुफा जमीन के नीचे विस्तृत है। इसकी लंबाई 3,229 मीटर है। यहां मीठे पानी की सुरंग और नालियां भी हैं। गुफा का गहरा विंदु 120 फ़ीट प्रवेश द्वार से है और यह “पाताल गंगा” के रूप में जाना जाता है। तेलगु में इन गुफाओं को “वेलम गुहलू” नाम से जाना जाता है।
हैदराबाद में ही हुसैन सागर झील के मध्य में “राक आफ़ ग्रिबाल्टर” पर 350 टन की बुद्ध देव की 18 मीटर ऊंची प्रतिमा स्थापित है। इब्राहीम कुली कुतुब शाह के दामाद हुसैन शाह के द्वारा इसका निर्माण कराया गया है। हैदराबाद में इस झील का वही स्थान है जो मुम्बई में मरीन ड्राइव का है। झील के पास ही “लुम्बिनी पार्क” है।
नागार्जुन कोंडा
आन्ध्र-प्रदेश अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है।इस राज्य के नलगोंडा जिले में हैदराबाद से 160 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व एक “नागार्जुन कोंडा” नामक प्राचीन स्थान है। बौद्ध धर्म में महायान सम्प्रदाय के संस्थापक भिक्षु नागार्जुन के कारण इस स्थान की प्रतिष्ठा है। आज से लगभग 50 साल पहले यहां उत्खनन में 9 बौद्ध स्तूपों की खोज की गई थी।इन अवशेषों में स्तूप, चैत्य और विहार सम्मिलित हैं। बुद्ध देव के जीवन से जुड़े हुए अवशेष भी पाये गए हैं।
यहां पर प्राप्त अभिलेखों से ज्ञात होता है कि ईसा की प्रथम शताब्दी से ही भारत का चीन, यूनानी जगत तथा लंका से सम्बंध था। नागार्जुन कोंडा में मिले एक अभिलेख से स्थविरों के सम्बन्ध में जानकारी भी मिलती है।इन भिक्षुओं ने भारत के बाहर बौद्ध धर्म का प्रचार किया था। सातवाहन वंश के नरेश “हाल” ने भिक्षु “नागार्जुन” के आवास हेतु यहां पर विहार बनवाया था। यहीं पर नागार्जुन अपने जीवन के अंत समय तक रहे।
नागार्जुन कोंडा का स्तूप 1926 में खोजा गया। ईसा की प्रथम शताब्दी में तथा उसके पूर्व नागार्जुन कोंडा का नाम “श्री पर्वत” था। उस समय यहां पर एक विश्वविद्यालय स्थापित हो गया था जो महायान की शिक्षा का बड़ा केन्द्र था। इक्ष्वाकु वंशी राजाओं ने आन्ध्र-प्रदेश की राजधानी अमरावती से यहीं पर स्थानांतरित कर दिया था।उस समय नागार्जुन कोंडा को “विजयपुर” कहते थे। हिंदू इक्ष्वाकु नरेश, बौद्ध धर्म के संरक्षक थे। इस वंश की कई रानियां बौद्ध धर्म को मानती थीं। रानी “शांति श्री” ने यहां पर महाविहार और महा चैत्य बनवाया था। दूसरी रानी “बोधि श्री” ने सिंहल, कश्मीर, नेपाल और चीन के भिक्षुओं के लिए चैत्य गृहों का निर्माण करवाया था। यहां का मुख्य स्तूप 70 फ़ीट ऊंचा तथा 100 फ़ीट चौड़ा था। यह एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ था। इस पर चढ़ने के लिए सीढियां बनाई गई थीं।
कृष्णा नदी के तट पर स्थित नागार्जुन कोंडा के जमींदोज महाचैत्य का उत्खनन “लांगहर्स्ट” ने किया था। इस स्तूप में बुद्ध देव का एक दांत (बाम श्वदंत) धातु मंजूषा में सुरक्षित पाया गया था। श्री लंका के अनुराधा पुरा की भांति यहां पर भी अनेक बौद्ध मूर्तियों को स्मारकों के आधारों के चारों ओर स्थापित करने की प्रथा पायी गई है। यहां के शिल्प में स्तम्भों की पंक्तियां विशेष रूप से दिखाई देती हैं। यही शिल्प परवर्ती काल में आन्ध्र-प्रदेश में बने मंदिरों में दृटव्य है।
नागार्जुन कोंडा के अभिलेखों की भाषा अर्ध साहित्यिक “प्राकृत” है। उस समय यह इस प्रांत के द्रविड़ भाषा-भाषियों की बोली थी। 1954 में नागार्जुन कोंडा से संगमरमर के दो मूर्ति पट प्राप्त हुए थे जो सिंगापुर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। इसमें एक पट्ट के बीच में “बोधिद्रुम” अंकित है,जिसे “बौद्ध त्रिरत्न” के साथ दिखाया गया है। दूसरे पट्ट पर सम्भवतः मगध राज “बिंदुसार” की बुद्ध देव से भेंट करने की यात्रा का अंकन किया गया है। दृश्य में राजा को चार घोड़ों के रथ में आसीन दिखाया गया है। रथ के आगे कुछ पैदल सैनिक चल रहे हैं।
आज़ाद भारत में जब आन्ध्र-प्रदेश में कृष्णा नदी पर नागार्जुन सागर बांध बना तब “श्री पर्वत” डूब क्षेत्र में आ गया और हमेशा के लिए जल मग्न हो गया। बांध बनने के बाद कोंडा शहर की स्मृतियों को इसी जलाशय के द्वीप पर आबाद करने की कोशिश की गई है। इस द्वीप का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है। यहां तक जाने के लिए मोटर लांच से जाना पड़ता है। द्वीप पर एक संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय में एक अद्भुत प्रतिमा पंचमुख नाग “मुछलिंद” की है जो तपस्या के समय बुद्ध देव की रक्षा करते हुए दिखाई देती है। यहीं पर लगभग 3 मीटर ऊंची खडे हुए बुद्ध देव की अनुपम छटा की प्रतिमा है।
भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति दुनिया की बेमिसाल और बेनजीर संस्कृति है। हजारों वर्षों से इसकी अमर जीवंतता, विश्व व्यापी फैलाव, सहिष्णुता की मिसाल, सर्वधर्म समभाव, अनेकता में एकता ऐसे पहलू हैं जो इसे अन्य संस्कृतियों से जुदा तथा विशिष्टता प्रदान करती है। सभ्यताओं की उत्कृष्टता से ही मनुष्य की मानसिक उच्चता का बोध होता है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम भविष्य को वर्तमान से अधिक उज्जवल और गौरवपूर्ण बनाएं और यह अपने अतीत के गंभीर सांस्कृतिक अध्ययन से ही संभव है।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ (अध्ययन रत एम.बी.बी.एस.), झांसी
प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को सँजोये हुये आंध्र प्रदेश अपने आप मेँ सौंदर्यता की मिशाल कायम किये है| नागार्जुन कोंडा अपने ऐतिहासिक धरोहर के लिए विख्यात है जो अद्भुत और बेमिशाल है| यह जानकारी उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक है| सप्रे साधन्यवाद सर
शत-शत नमन गुरुदेव
धन्यवाद आपको
ज्ञानवर्धन के लिये आपको बहुत बहुत साधुवाद।
सप्रेम धन्यवाद आपको डाक्टर साहब
-डॉ.राज बहादुर मौर्य, झांसी