बौद्ध संस्कृति से परिपूर्ण – लद्दाख
जम्मू- कश्मीर में धारा- 370 की समाप्ति के पश्चात् लद्दाख दिनांक 5 अगस्त 2019 को भारत का 9 वां केन्द्र शासित प्रदेश बन गया। इसके पूर्व यह जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था। दिनांक 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को समाप्त कर इसे दो भागों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दोनों को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। दिनांक 5 अगस्त 2019 को उक्त निर्णय से सम्बन्धित बिल राज्यसभा ने तथा अगले दिन दिनांक 6 अगस्त 2019 को लोकसभा ने पारित कर दिया। दिनांक 9 अगस्त 2019 को इसे भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी तथा दिनांक 31 अक्टूबर 2019 से यह प्रभावी हो गया। इसी तिथि को भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती भी मनाई जाती है। वहां की रणबीर दण्ड संहिता को समाप्त कर भारतीय दण्ड संहिता लागू की गई। “जमयांग सेरिंग नामग्याल” लद्दाख से सांसद हैं। वर्ष 2019 में वह भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर संसद में आये हैं।
लद्दाख को ऊंचे दर्रों की भूमि कहा जाता है। यह उत्तर में काराकोरम पर्वत तथा दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में स्थित है। लगभग 97,776 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए लद्दाख के उत्तर में चीन तथा पूर्व में तिब्बत की सीमा है। सिंधु नदी यहां की जीवन रेखा है।गाडविन आस्टिन (के-२, 8,611 मीटर ऊंची) तथा गाशर ब्रम (8,068 मीटर ऊंची) पर्वत चोटियां यहीं पर हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक लद्दाख की जनसंख्या 2 लाख, 74 हजार, 289 है। प्रकृति ने लद्दाख को अनुपम सुन्दरता दी है। अल्हड़ नदियां, नीला आसमान और दिलकश नजारे पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इसे “मून लैण्ड” अर्थात् चॉंद की जमीन भी कहते हैं। “पहाड़ों का जहाज” कहा जाने वाला पशु “याक” यहां के खानाबदोश लोगों के जीवन का साथी है। यह 300 किलो तक वजन उठाता है। याक की खाल का टेंट भी बनाया जाता है।
प्रकृति की गोद में बसा हुआ लद्दाख बौद्ध धर्म की संस्कृति और सभ्यता से संवृद्ध है। यहां लगभग ३३ बौद्ध मठ हैं जहां शांति और शुकून की तलाश में विश्व के कोने-कोने से लोग जीवन की सही परिभाषा ढूंढने आते हैं। श्रमण संस्कृति यहां के लोगों के जीवन का अंग है। बुद्ध के विचारों से प्रभावित तथा व्यवहार में शील, समाधि और प्रज्ञा का जीवन जीते लद्दाख वासी चिन्ता और दुःख से रहित जीवन व्यतीत करते हैं। लद्दाख में सेनो गोम्पा में बुद्ध देव की शुद्ध सोने की बनी हुई विशाल मूर्ति है। इन्हें “गोल्ड बुद्ध” कहा जाता है। लद्दाख के लेह पैलेस में प्राचीन शिलालेख हैं। यहीं पर खौफनाक नुब्रा घाटी है जिसके एक तरफ शांत रेगिस्तान तथा दूसरी तरफ रसीला चरागाह है। लद्दाख में ही सिखों का पवित्र गुरुद्वारा “पत्थर साहिब” है जहां दूर- दूर से श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं। लद्दाख का स्पितुक तथा शेरू रूपला उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें नृत्य करने वाले अपनी आंखों को बाघ के समान बनाते हैं।
फुकताल गोम्पा मठ
समुद्र तल से लगभग 4,800 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित फुकताल गोम्पा मठ ढाई हजार साल पुराना बौद्ध मठ है। यह एक गहरी सुनसान गुफा में बना हुआ है। बाहर से देखने पर यह शहद के छत्ते जैसा दिखता है। इसके ठीक सामने गहरी खाई है। यहां अभी भी लगभग 200 बौद्ध भिक्षु रहते हैं। इस गुफा तक पहुंचना काफी कठिन है। इस मठ के करीबी कस्बे पादुम से तीन दिन ट्रैक करके यहां पहुंचना पड़ता है तथा बीच में नदी पर बने सस्पेंशन पुल को पार करना पड़ता है। दक्षिण- पूर्व जांस्कर में रिमोट लंकनाट घाटी में स्थित इस मठ तक खाने की सामग्री घोड़ों, गधों अथवा याक पर लादकर लायी जाती है। इस मठ के अधिकांश कमरे मिट्टी और लकड़ी के बने हुए हैं। मठ में कई विद्वान् शिक्षक बौद्ध धर्म की ज्ञान मंजूषा को संजोए हुए हैं।
बर्फीले रेगिस्तान, लद्दाख की दुर्गम पहाड़ियों पर स्थित “फुकताल गोम्पा” मठ में स्मारक, पुस्तकालय तथा कई प्रार्थना कक्ष हैं। गुफा के अंदर चट्टान में एक रहस्यमय खोह है जिससे हमेशा पानी निकलता रहता है। इसका बहाव न तो अधिक होता है और न ही कम। माना जाता है कि इस पानी से बीमारियां ठीक हो जाती हैं। लद्दाख निवासी इसको “फुकथार” भी कहते हैं। फुक का मतलब गुफा और ताल का अर्थ अवकाश तथा थार का अर्थ है मुक्ति। इसलिए इस गुफा को “अवकाश की गुफ़ा या मुक्ति की गुफ़ा” भी कहा जाता है। यहां स्थित मंदिर,मूल गुफा और पवित्र बसंत भी देखने लायक हैं। गुफा में पत्थर का एक टेबलेट भी मौजूद है जो अलेक्जेंडर कोसोमा डी कोरोस के ठहरने का प्रतीक है। मठ की रंगीन और अद्वितीय वास्तुकला आप को अपनी ओर आकर्षित करती है।
कारगिल
आज का लद्दाख दो जनपदों, कारगिल तथा लेह में विभाजित है। कारगिल को “अगास की भूमि” के नाम से जाना जाता है। यह श्री नगर से 220 किलोमीटर तथा देश की राजधानी नई दिल्ली से 1067 किलोमीटर दूर है। कारगिल दो शब्दों “खार” और “रकिल” से मिलकर बना है। खार का अर्थ- महल तथा रकिल का मतलब केन्द्र होता है। इस प्रकार कारगिल का मूल अर्थ- महलों के बीच स्थित एक जगह, जो भारत और पाकिस्तान के बीच बसा हुआ है। कारगिल के सानी गांव में “सनी बौद्ध मठ” है। यह विश्व के 8 श्रृद्धेय मठों में से एक है। मारपा,नरोपा और पद्मसंभव जैसे बौद्ध समुदाय के प्रसिद्ध गुरुओं ने यहां का दौरा किया है। इस पवित्र मठ को पहली सदी में कुषाण राजा कनिष्क के द्वारा बनवाया गया था। यहां 20 फ़ीट लम्बा स्तूप है जिसे “कनिका स्तूप” के नाम से जाना जाता है।
कारगिल मुख्य रूप से बौद्ध पर्यटन केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहां के “शरगोल मठ” में “अवलोकितेश्वर बोधिसत्व” की 11 हाथों वाली प्रतिमा स्थापित है। यहीं पर लकड़ी से बनी “तारा बोधिसत्व” की भी सुंदर प्रतिमा है। कारगिल में ही “जोजिला दर्रा” है। इसे “बर्फानी तूफान का दर्रा” भी कहा जाता है। यह कश्मीर घाटी को अपने पश्चिम में द्रास और सुरु घाटियों से जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 1, श्री नगर और लेह के बीच इस दर्रे को पार करता है श्री नगर से इस दर्रे की दूरी 100 किलोमीटर और सोनमर्ग से 15 किलोमीटर है। अब यहां पर 14 किलोमीटर लंबी सुरंग बनायी गई है जिसे “जोजी- ला- टनल” कहते हैं। यह एशिया में सबसे लम्बी दोनों तरफ चलने वाली सुरंग है जो लद्दाख और कश्मीर घाटी को जोड़ती है।
कारगिल में ही “मेलबख” मठ स्थित है जहां “मैत्रेय बुद्धा” या “भविष्य बुद्धा” के नाम से प्रसिद्ध बौद्ध मूर्ति कला है। इसे “लाफिंग बुद्धा” के नाम से भी जाना जाता है। कारगिल के उप जिले जांस्कर में कई मठ हैं। यहां का “द्रांग-द्रुंग” ग्लेशियर प्रसिद्ध है। “करसा” मठ इस क्षेत्र का सबसे बड़ा और धनी मठ है। रंगदम मठ, फुगथाल मठ, शारगोले मठ और स्टारिमों मठ इस जिले के अन्य प्रसिद्ध मठ हैं। कारगिल सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा शेख उल आलम एयरपोर्ट है जिसे “श्री नगर एयरपोर्ट” के नाम से जाना जाता है। कारगिल का नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मूतवी है जो कारगिल से 540 किलोमीटर दूर है।
लेह
लेह, केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख का सबसे बड़ा शहर तथा जिले का मुख्यालय है। यह समुद्र तल से 11,562 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। लेह से ही श्री नगर, कुल्लू घाटी और काराकोरम दर्रे को राजमार्ग जाते हैं। यहां पर एशिया की सर्वाधिक ऊंची “मौसमी वेधशाला” है। दिस्कित,लेह जिले का एक गांव है। यह “नुब्रा घाटी” का मुख्य नगर है। लेह जिले में ही “सस्पोल” एक तहसील स्तर का नगर है। यहां पर प्रसिद्ध “सस्पोल की गुफाएं” हैं।
लेह में ही हिमालय पर्वत का “खार दुंग ला” पहाड़ी का दर्रा है। यह मध्य एशिया के लेह से काशगर तक जाने वाले प्रमुख कारवां मार्ग पर स्थित है।यही लेह से नुब्रा घाटी जाने का मार्ग देता है। यह विश्व का सबसे ऊंचा मोटर वाहन चलाने योग्य दर्रा है। लद्दाख की लगभग 66 फीसदी आबादी बौद्ध धर्म को मानती है। लेह-लद्दाख को “इण्डस घाटी” भी कहते हैं। शिमला समझौते के तहत मानी गई भारत और तिब्बत के बीच की “मैकमोहन रेखा” लद्दाख, कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है।
अक्साई चिन
अक्साई चिन लद्दाख का 20 प्रतिशत हिस्सा है जिसका क्षेत्रफल 37,244 वर्ग किलोमीटर है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 7,000 फ़ीट है। लद्दाख और अक्साई चिन को जो रेखा विभाजित करती है उसे “वास्तविक नियंत्रण रेखा” कहते हैं जिसकी लम्बाई 4079 किलोमीटर है। अक्साई चिन ऐतिहासिक रूप से भारत को “रेशम मार्ग” से जोड़ने का जरिया था। इसी रास्ते से भारत हजारों साल से मध्य एशिया के पूर्वी इलाकों से जुड़ा था। भारत से तुर्किस्तान का व्यापार मार्ग लद्दाख और अक्साई चिन के रास्ते से होते हुए “काशगर” शहर तक जाया करता था।
– डॉ. राज बहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, झांसी
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Thank You 🙂
लद्दाख़ का स्वर्णिम इतिहास हमे आज भी उस काल की याद दिलाता है जब तिब्बत भी इसी का एक अंग हुआ करता था। बुद्ध से परिपूर्ण इस जगह के विवरण के लिये आपको साधुवाद।
आभार आपका डॉ साहब
Awesome knowledge sir
Vishwanath Chaudhary
धन्यवाद आपको, विश्व नाथ जी